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यह कहानी कर्नाटक के बेलगाम इलाके में रहने वाले 27 वर्षीय संतोष कावेरी की है, जो पेशे से स्वास्थ्य विभाग में बतौर मैनेजर कार्यरत हैं लेकिन उनकी पहचान आविष्कारक के तौर पर है, जिसने किसानों के लिए कुछ उपयोगी उपकरण बनाए हैं।
बेलगाम के एक छोटे से गाँव में पले-बढ़े संतोष बहुत ही साधारण परिवार से आते हैं। वह संघर्षों के बीच पले-बढ़े। संतोष को स्कूल जाने के लिए लगभग 10 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी तो छोटी उम्र से ही पढ़ाई के साथ-साथ काम भी किया।
सुबह 5 बजे उठकर अपने पिता के साथ खेत पर जाना और फिर स्कूल, उन्होंने हर कदम पर मेहनत की। यह उनकी मेहनत ही थी कि उन्हें स्कूल की पढ़ाई के बाद बेलगाम में समिति कॉलेज में BBA में दाखिला मिल गया। यहाँ पर उन्हें देशपांडे फाउंडेशन के लीड प्रोग्राम के साथ जुड़ने का मौका मिला।
इस प्रोग्राम से जुड़ने के बाद उनके इनोवेटिव आइडियाज को एक नयी दिशा मिली। खेतों पर काम करने के दौरान उन्हें जो भी समस्याएं आतीं थीं, उनके समाधान उन्होंने यहाँ पर ढूंढें ताकि वह किसानों की मदद कर पाएं।
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संतोष ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैंने गाँव में गाजर उगाने वाले किसानों की परेशानी को बहुत करीब से देखा था। गाजर की हार्वेस्टिंग के बाद, इन्हें साफ़ करना बहुत ही मेहनत भरा काम होता है। इस काम में श्रमिक की सबसे अधिक जरूरत पड़ती है। मैंने एक ऐसी मशीन बनाने पर काम किया जो आसानी से गाजर को साफ़ कर सके और वह भी बिना किसी बिजली के। क्योंकि गाँव में बिजली की समस्या होती है।”
संतोष को यह आईडिया वॉशिंग मशीन को देखकर आया। उन्हें लगा कि वह इस कांसेप्ट को अपनी मशीन के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। संतोष ने मशीन का डिज़ाइन तैयार कर इसे बनाने पर काम किया। लेकिन वह बिज़नेस के छात्र थे और इंजीनियरिंग से उनका दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था।
संतोष ने अपने इनोवेशन के लिए बेसिक तकनीक को समझा और लगभग 11 असफलताओं के बाद 12वीं बार में 'कैरट क्लीनिंग मशीन' बनाकर तैयार की।
उनकी यह मशीन मात्र 15 मिनट में लगभग 1 क्विंटल गाजर आसानी से साफ़ कर सकती है। इसके लिए बिजली की भी ज़रूरत नहीं है, सिर्फ दो लोग इसे ऑपरेट कर सकते हैं। साथ ही, पानी की भी बचत इसमें होती है। संतोष के मुताबिक उन्होंने लगभग 2500 मशीन अब तक छोटे-बड़े किसानों को दी हैं। फ़िलहाल, वह अपनी जॉब कर रहे हैं लेकिन अगर उन्हें कोई ऑर्डर करता है तो वह अपने गाँव में ही एक मैकेनिक से मशीन बनवा कर उन्हें देते हैं।
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संतोष कहते हैं, "मैंने जो भी परेशानी झेलीं, उन्होंने मुझे सीखने के मौके दिए। इसी वजह से मैं उनका समाधान ढूंढ़ पाया। पहले मैं सिर्फ संतोष था लेकिन अब मेरी हर जगह एक अलग पहचान है।"
संतोष को अपने इस इनोवेशन के लिए कई पुरस्कार मिले। उन्हें रतन टाटा द्वारा बेस्ट लीडर अवॉर्ड से भी नवाज़ा गया। यह संतोष और उनके परिवार के लिए किसी सपने से कम नहीं था। उनके माता-पिता ने कभी नहीं सोचा था कि वह अपने बेटे को टीवी पर रतन टाटा से अवॉर्ड लेते हुए देखेंगे!
कैरट क्लीनिंग मशीन के अलावा, संतोष ने बैलगाड़ी के लिए ब्रेक सिस्टम और गर्म पानी के लिए इको हॉट वाटर क्वाइल बनाई। अक्सर हम ब्रेक्स को किसी मोटर गाड़ी के साथ जोड़ते हैं। लेकिन संतोष ने बैलगाड़ी की समस्याओं पर काम किया।
"आज भी बहुत से ग्रामीण इलाकों में सामान आदि लाने-ले जाने के लिए बैलगाड़ी का इस्तेमाल होता है। लेकिन अगर कहीं बैलगाड़ी को रोकना हो तो लोग रस्सी खींचते हैं जो कि बैलों के लिए बहुत ही पीड़ादायक होती है और चलाने वाले को भी जोर लगाना पड़ता है," उन्होंने आगे कहा।
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इसलिए संतोष ने ऐसा सिस्टम बनाया जिसे चलाने वाला आसानी से ऑपरेट कर सकता है। इससे बैलों को भी कोई तकलीफ नहीं होती है। आसानी से चालक रस्सी के सहारे ही बैलगाड़ी को रोक सकता है।
ब्रेक सिस्टम के अलावा उन्होंने गर्म पानी के लिए भी एक इनोवेशन किया है। उन्होंने एक खास स्टोवटॉप बनाया, जो एक साथ दो काम करता है। इसमें एक क्वाइल लगी है जिस वजह से एक ही गैस पर लोग खाना भी बना सकते हैं और साथ ही, इस क्वाइल के ज़रिए पानी भी गर्म होता है।
वह बताते हैं कि बेलगाम के कई हॉस्टल में यह तकनीक इस्तेमाल हो रही है। उन्हें अपने आविष्कारों के लिए नारायण मूर्ति से भी सम्मान मिला है। इसके अलावा और भी कई जगह उन्हें सम्मानित किया गया।
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उनके आविष्कारों की खासकर कि गाजर साफ़ करने वाली मशीन की अच्छी मांग है। ऐसे में लोग अक्सर उनसे पूछते हैं कि उन्होंने अपनी कंपनी क्यों नहीं खोली? इस पर वह सिर्फ इतना कहते हैं कि जब उन्होंने इस बारे में रिसर्च की तो उन्हें समझ में आया कि कंपनी शुरू करना और उसे चलाना इतना आसान नहीं होगा।
उनके पास इतनी फंडिंग नहीं थी कि वह उस समय किसी स्टार्टअप के बारे में सोचते। इसलिए उन्होंने अपने परिवार की स्थिति को ध्यान में रखते हुए छोटे स्तर पर ही काम किया और फिर साथ में, जॉब भी करने लगे।
फ़िलहाल, वह इस सबके साथ एक और ख़ास अभियान चला रहे हैं और वह है वृक्षारोपण का अभियान। लेकिन इसके लिए उनका तरीका थोड़ा अलग है। उन्होंने 'वी आर विद यु' के नाम से एक अभियान शुरू किया, इसके तहत कोई भी व्यक्ति उन्हें किसी खास मौके पर अपने नाम से पौधे लगाने के लिए ऑर्डर दे सकता है।
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"यह उन लोगों के लिए है जो कुछ करना चाहते हैं लेकिन कर नहीं पाते हैं। हम उनके नाम से उनके बताये अनुसार संख्या में किसी न किसी किसान के यहाँ खेत में पेड़-पौधे लगाते हैं। इससे हम 'अरण्य कृषि' यानी की जंगल पद्धिति की कृषि को बढ़ावा दे रहे हैं," उन्होंने बताया।
इससे किसानों को मुफ्त में फलों के पेड़ मिल जाते हैं और लोगों को यह संतुष्टि की उन्होंने कुछ अच्छा किया है। इसके अलावा, जो लोग किसी सड़क किनारे पेड़ लगवाते हैं, उन पौधों को लगाने के साथ-साथ उनकी देख-रेख की ज़िम्मेदारी भी संतोष और उनकी टीम स्वयं ही उठाती है।
संतोष कहते हैं कि हमेशा से ही उनका उद्देश्य ग्रामीण परिवेश के लिए कुछ करने का रहा। पहले अपने इनोवेशन के ज़रिए और अब इस तरह से वह किसानों की मदद के रास्ते तलाश रहे हैं।
आप संतोष से 74113 07074 पर संपर्क कर सकते हैं!
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