नासा का ऑफर ठुकराकर इस युवा वैज्ञानिक ने बनाया केले के कचरे से थर्माकोल

gopal jee innovation

एक आविष्कार से दो समस्या का समाधान निकाला है बिहार के युवा वैज्ञानिक गोपाल जी ने। उनकी बनाई केले के कचरे की कटलरी से मिलेगा प्लास्टिक का बढ़िया विकल्प।

जय जवान, जय किसान!! के बाद देश का नया नारा है- जय आविष्कार। जी हाँ, और आज उसी को ध्यान में रखकर देश के युवा एक से बढ़कर एक आविष्कार कर रहे हैं। समस्या छोटी हो या बड़ी लेकिन अगर युवा ठान लें, तो सबका समाधान निकाल ही लेते हैं। ऐसी ही सोच के साथ बिहार के गोपाल जी सालों से केले के कचरे से नए आविष्कार कर रहे हैं।

बिहार के भागलपुर के रहने वाले गोपाल जी ने देश में रहकर काम करने के लिए नासा का ऑफर भी ठुकरा दिया। कहते हैं, हमारी जरूरतें ही आविष्कार का कारण होती हैं और ऐसा ही कुछ गोपाल जी के साथ भी हुआ। गोपाल के किसान पिता प्रेम रंजन कुमार का केले का ही बागान था। 

इस क्षेत्र में लगभग हर साल बाढ़ आती है। 2008 के मानसून में अपने पिता के पूरे खेत को नष्ट होते देखने के बाद, गोपाल ने हरित ऊर्जा बनाने के लिए सभी कचरे का उपयोग करने का मन बनाया। महज़ 13 साल की उम्र में उन्होंने बायोसेल बनाया और फिर केले के इस कचरे के इर्द-गिर्द एक के बाद एक आविष्कार करते गए।  

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केले के कचरे से बनाया सिंगल यूज़ प्लास्टिक का विकल्प

पिछले दो सालों से गोपाल Avon Pacfo नाम की एक कंपनी के साथ चीफ साइंटिस्ट के तौर पर काम कर रहे हैं। इस कंपनी के साथ मिलकर ही वह केले के कचरे से थर्माकोल और सिंगल यूज़ प्लास्टिक बना रहे हैं। उन्होंने बताया कि केले के कचरे से एक बेहतर प्लास्टिक का विकल्प निकल सकता है।

वह जल्द ही अपने उत्पाद को बाजार में लेकर आएँगे। यह ईको-फ्रेंडली प्रोडक्ट बिना केमिकल के प्लास्टिक जैसी कम कीमत में ही उपलब्ध होगा, जिससे बड़ी मात्रा में प्लास्टिक को रोज़मर्रा की जिंदगी से बाहर निकाला जा सकेगा।  

अपनी सोच के कारण गोपाल जी आज कई युवाओं के लिए आदर्श हैं। उन्हें देश के साथ-साथ अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा में भी सम्मानित किया जा चुका है। महज़ 23 साल की उम्र में जिस तरह की समस्या का हल गोपाल ला रहे हैं, वह वाकई में तारीफ के काबिल है। 

आशा है हमारी तरह आपको भी केले के कचरे से बनी थाली, कटोरी और ग्लास का इंतजार रहेगा। 

संपादनः अर्चना दुबे

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