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भाई-बहन ने किया ऐसा आविष्कार, जिससे कम हो जाएगी किसानों और जंगली जानवरों के बीच की लड़ाई

ANIDER A farming innovation in agriculture
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किसानों के लिए उनकी फसल की सुरक्षा सबसे बड़ा मुद्दा है। कई बार जंगली जानवर खेत  में घुसकर फसल को पूरी तरह से बर्बाद कर देते हैं। इस वजह से जहां एक तरफ किसानों को आर्थिक नुकसान होता है, वहीं जावनरों के भय से फसल की रखवाली में उनका अच्छा खासा वक्त भी बर्बाद होता है। किसानों की इस तरह की परेशानी को दूर करने के लिए उत्तर प्रदेश के अभय शर्मा और उनकी बहन स्मृतिका शर्मा ने एक अनोखी मशीन (Innovation in Agriculture) बनाई है। इसके साथ उन्होंने एक स्मार्ट स्टिक भी बनाई है, जो फॉरेस्ट गार्ड्स और आम लोगों को बड़े जानवरों के हमले से बचाती है।

कौशाम्बी, गाजियाबाद स्थित एग्री-टेक स्टार्टअप, ‘क्यारी’ के अभय और स्मृतिका ने ANIDERS (Animal Intrusion Detection and Repellent System) नाम का एक डिवाइस तैयार किया है। यह डिवाइस सेंसर के जरिए जानवरों की हलचल का पता लगाता है। अगर कोई जानवर इस मशीन के रेंज के आस-पास आने की कोशिश करता है तो इसका अलार्म सिस्टम एक तेज लाइट के साथ बजना शुरू हो जाता है। अलार्म की आवाज और तेज रौशनी से जानवर वापस लौट जाते हैं।

साल 2017 में भाई-बहन की इस जोड़ी ने एक छोटी सी सोच के साथ इस मशीन को अपने घर पर बनाया था। लेकिन आज अपने स्टार्टअप के जरिए वे इस मशीन को देश-विदेश में बेच रहे हैं। 

अभय और स्मृतिका

द बेटर इंडिया से बात करते हुए पेशे से इंजीनियर अभय कहते हैं, “शुरुआत में हमने हॉबी के तौर पर अपने घर से ही एक प्रोटोटाइप बनाकर गांव के एक किसान को दिया था। जिसका नतीजा काफी अच्छा निकला। केवल पांच महीने बाद ही वन विभाग के स्थानीय अधिकारियों ने हमसे संपर्क किया और मशीनों की मांग की।”

इस मशीन की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि स्टार्टअप शुरू करने से पहले ही भाई-बहन की यह जोड़ी 300 मशीन बेच चुकी थी।

हालांकि उन्होंने इसे किसानों को ध्यान में रखकर बनाया था लेकिन वन विभाग वालों ने इस मशीन को अपने जंगल की बॉउंड्री में लगवाया ताकि जानवर जंगल से बहार आ ही ना पाएं। 

मशीन बनने के पीछे का आईडिया 

साल 2016 में हुई एक घटना से अभय और स्मृतिका  को यह मशीन बनाने की प्रेरणा मिली। बचपन से ही इन दोनों को वाइल्डलाइफ और जंगली जानवरों के प्रति विशेष रूचि रही है। अभय कहते हैं, “हम अक्सर जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क जाते रहते थे। हमें जंगल सफारी के साथ जानवरों के बारे में जानकारी लेने का बहुत शौक था। एक बार जिम कॉर्बेट की यात्रा के दौरान हमने उत्तराखंड के क्यारी गांव में एक घायल हाथी को देखा जो इलाज के दौरान मर गया।  ज्यादा जानने पर हमें पता चला की यह हाथी किसान के जाल में फंसकर घायल हुआ था।” 

चूंकि उनका लगाव जानवरों के प्रति ज्यादा था इसलिए उन्होंने इसमें किसान को ही दोषी समझा। लेकिन बाद में जब उन्होंने किसानों की बात सुनी तो अहसास हुआ कि जंगली जानवरों के कारण, हर साल किसानों की फसलें खराब हो जाती हैं। जिससे उन्हें काफी आर्थिक संकट उठाना पड़ता है।  

ANIDERS

घर वापस आकर इनदोनों ने इस समस्या के समाधान के बारे में सोचना शुरू किया। उस समय अभय मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे और उनकी बहन सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद नौकरी कर रही थीं।  

अभय ने बताया, “हमने समस्या के मूल कारण को समझने की कोशिश की। फसलों को जंगली जानवरों की घुसपैठ से बचाने के लिए हमने ANIDERS(Animal Intrusion Detection and Repellent System) जैसा एक डिवाइस तैयार किया।”

उन्होंने बिना ज्यादा पैसे खर्च किए, अपने घर पर इस मशीन को तैयार किया और क्यारी गांव के ही एक किसान को मुफ्त में इस्तेमाल करने को दिया। 

अभय ने बताया, “इस मशीन के पीछे एक आसान कॉमन सेन्स यह था कि जानवर तभी आते हैं जब उन्हें लगता है कि यहां कोई इंसान नहीं है। वहीं आमतौर पर इंसान जानवरों को भगाने के लिए शोर या रौशनी करते हैं। हमारी यह मशीन अपने सेंसर के माध्यम से इंसानों का काम आसान बनाती है। यह मशीन पूरी तरह से सोलर पावर से चलती है। साथ ही, ऑटोमैटिक मोड में काम करती है। यह एक पोर्टेबल मशीन है, इसलिए जहां ज्यादा जानवरों की हलचल होती है, वहां इसे रखा जा सकता है।” 

किसानों के साथ वन विभाग के लिए भी उपयोगी मशीन

हालांकि, उस एक मशीन को बनाने के बाद भी उन्होंने स्टार्टअप के बारे में नहीं सोचा था। लेकिन मशीन में लगे अलार्म और लाइट काफी सक्षम थे और इसके नतीजे देखकर गांव के वन विभाग ने उन्हें ऐसी और मशीन बनाने का ऑर्डर दिया। अभय ने बताया कि स्टार्टअप की औपचारिक शुरुआत होने से पहले ही वे 300 डिवाइस बना चुके थे। वह घर से ही ऑर्डर्स के हिसाब से मशीन बनाते थे। 

अभय कहते हैं, ” शुरुआत में हम आर्डर के हिसाब से घर में ही यह मशीन बनाते थे। उन दिनों हम वीकेंड पर यह काम किया करते थे। लेकिन जब धीरे-धीरे इसकी मांग बढ़ने लगी तब हमने इसे बड़े स्तर पर करने का फैसला किया और स्टर्टअप की शुरुआत की।”

2017 से 2019 तक वह अपने घर से ही काम कर रहे थे। 2019 में स्मृतिका  ने नौकरी छोड़कर ‘क्यारी’ नाम के साथ स्टार्टअप का काम शरू किया तब तक अभय भी अपनी पढ़ाई खत्म कर चुके थे। शुरुआत में वे बेसिक डिवाइस ही बनाते थे जिसकी कीमत 10 हजार रुपये है। लेकिन अब वे अलग-अलग क्षमता वाली मशीन भी बनाते हैं जिसकी कीमत अधिक है।  

हालाँकि, उन्होंने इसे किसानों को ध्यान में रखकर बनाया था। लेकिन चूंकि, इसकी कीमत थोड़ी ज्यादा थी, इसलिए यह किसानों से ज्यादा देश भर के वन विभाग में ज्यादा लोकप्रिय हुई। 

बिहार के सुपौल जिले के जिला वन अधिकारी (DFO) सुनील कुमार कहते हैं, “हमने तक़रीबन दो साल पहले अपने जंगल के लिए  50 मशीनें ख़रीदे  थे। हमारे यहां के जंगल की सीमा नेपाल से जुड़ी है, इसलिए अक्सर यहां नेपाल से हाथी और जंगली भैंस आ जाया करते थे। वह हमारे जंगल के पेड़ों और जानवरों को नुकसान भी पहुंचाते थे। हम इस समस्या का समाधान खोज ही रहे थे तभी इस मशीन की जानकारी मिली। इसके नतीजे काफी अच्छे हैं।”

भाई-बहन की इस जोड़ी को भारत के अलावा जाम्बिया, श्रीलंका, भूटान और नेपाल से भी मशीन के ऑर्डर्स मिल रहे हैं। अभय और स्मृतिका  देश के 500 DFO से भी नियमित रूप से बात करते हैं। वे महाराष्ट्र, बिहार, उत्तराखंड के जंगलों में भी अपनी मशीन लगा चुके हैं।  

अभय कहते हैं, “आने वाले दिनों में हम निजी सुरक्षा से जुड़े साधन बनाने पर काम करने वाले हैं। हम नियमित रूप से वन विभाग के लोगों और किसानों से उनकी जरूरतों के बारे में पूछते रहते हैं ताकि समय-समय पर अपनी मशीन में बदलाव करते रहें।”

इसी साल फरवरी में, उन्होंने एक स्मार्ट स्टिक भी लॉन्च की है। यह स्टिक फारेस्ट गार्ड के लिए बड़े काम की चीज है। इस स्टिक में एक टॉर्च, अलार्म, मोबाइल चार्जर जैसी कई सुविधाएं शामिल हैं। एक साल के अंदर ही, वे 700 से ज्यादा स्मार्ट स्टिक्स बेच चुके हैं।  

आज अभय और स्मृतिका  वन विभाग, किसानों और Wildlife Institute of India जैसे कई NGO के साथ काम कर रहे हैं।  

अभय और स्मृतिका  द्वारा बनाए गए डिवाइस के बारे में ज्यादा जानने के लिए आप ‘क्यारी’ की वेबसाइट देख सकते हैं।  

संपादन- जी एन झा

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