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आज जब तकनीक के मामले में हम रोज़ ही आगे बढ़ रहे हैं, घरों की छतों से लटके पंखों में कोई बदलाव देखने को नहीं मिलता है। ये पंखे पहले की तरह ही पुराने ढर्रे पर चलते जा रहे हैं। वैसे, यह भूला नहीं जा सकता कि ये पंखे भारत जैसे विकासशील देशों में आज भी अधिकांश घरों और इमारतों की लाइफ-लाइन हैं। तपती गर्मियों में ये पंखे दिन-रात चौबीसों घंटे चलते रहते हैं। इनमें बिजली की ज़्यादा खपत होती है और बिजली का बिल भी बहुत आता है।
इसे देखते हुए आईआईटी, बॉम्बे के कुछ पूर्व छात्रों ने इस समस्या का कोई समाधान निकालने का निश्चय किया। उन्होंने इसके लिए कोशिश शुरू की और इसके बाद जो उत्पाद बनकर सामने आया, वह है 'गोरिल्ला पंखा'।
ये पंखे एटमबर्ग नाम की कंपनी ने बनाये हैं, जिसे आईआईटी बॉम्बे के छात्र मनोज मीणा ने 2012 में शुरू किया था। सिबब्रता दास इसके को-फाउंडर हैं। इससे आईआईटी, बॉम्बे के कई पूर्व छात्र भी जुड़े हुए हैं। इस कंपनी के मार्केटिंग व स्ट्रैटजी विभाग के प्रमुख अरिंदम पारुल के अनुसार, हमने पंखा-निर्माण के क्षेत्र में आने से पहले कुछ साल डाटा एक्विज़िशन सिस्टम और व्हीकल ट्रैकिंग सिस्टम को विकसित करने में लगाए।
इनका कहना है, “पिछले 50-60 सालों में पंखे में कोई वास्तविक बदलाव नहीं हुआ है। हमारी टीम को बीएलडीसी मोटर में विशेषज्ञता प्राप्त थी। हम जानते हैं कि इस मोटर में बिजली की खपत कम करने की क्षमता है। फिर हमने इसे सीलिंग फैन के अनुकूल बनाया। हमारे पास एक मजबूत तकनीकी पृष्ठभूमि थी। हम विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थानों में डाटा एक्विज़िशन सिस्टम बनाने के साथ उसकी सप्लाई भी कर रहे थे। इन पंखों का उपयोग और इनमें बिजली की कम खपत को देख कर हमने इसे बड़े पैमाने पर बनाने का निर्णय लिया।”
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इसका प्रोटोटाइप बनाना सबसे बड़ी चुनौती थी। जिस हिसाब से इसमें समय और संसाधन लगने लगे, इसका निर्माण करना बहुत कठिन हो गया। अरिंदम बताते हैं, “इस क्षेत्र में पेशेवर विक्रेताओं की कमी ने हमें कई तरह की मुश्किलों में डाल दिया। पंखे के निर्माण के लिए सामान आने में आम तौर पर कई दिन या कभी महीने भर की देरी भी हो जाती थी।”
लेकिन देरी से की जा रही आपूर्ति के बाद भी टीम अपने लक्ष्य को पूरा करने में जुटी रही। इसकी योजना 30 दिन के विलंब के अनुसार बनाई गयी। यह समय आसान नहीं था।
अरिंदम याद करते हैं कि किस प्रकार इन्हें एक बार 500 पंखों की आपूर्ति दिवाली के पहले करनी थी और वह भी बिना किसी औद्योगिक सेटअप के। उन्होंने बताया, “पूरी टीम ने लगातार चार दिन काम किया, ताकि पंखों का निर्माण और उनकी आपूर्ति समय से हो सके। पंखों को दिवाली के पहले भेजना मुश्किल था, क्योंकि हमे आगे के उत्पादन के लिए ग्राहक से पैसे चाहिए थे।”
आज इन पंखों के निर्माण से ले कर इनकी टेस्टिंग तक का हर काम नवी मुंबई में इसके प्लांट पर होता है, जिसकी शुरुआत मार्च 2016 में की गई। इसी के एक महीने बाद एक आईटी कंपनी से इन्हें 100 पंखों का ऑर्डर मिला।
अपनी अधिकतम गति में भी गोरिल्ला पंखे में 28 वाट बिजली की खपत होती है, जो आम पंखों में होने वाली खपत का एक-तिहाई है।
द एटमबर्ग टीम ने इसे बनाते समय कई अन्य पहलुओं पर भी विचार किया है। यह पंखा करीब 20-25 वर्ष तक आराम से चल सकता है और 110V से ले कर 285V तक के वोल्टेज में काम कर सकता है। इस पंखे में एसी की तरह ‘स्लीप टाइमर’ भी है और रिमोट कंट्रोल होने से रेग्युलेटर की कोई ज़रूरत नहीं है। अगर आपने अपने घर या ऑफिस में रेग्युलेटर से जुड़ी परेशानियों का सामना किया है, तो ये पंखे निश्चित रूप से आपके लिए वरदान हैं।
अरिंदम के अनुसार, हर एक गोरिल्ला पंखे से सालाना 1,500 रुपए की बचत की जा सकती है।
ये बताते हैं, “एक आम सीलिंग फैन में करीब 75-80 वाट बिजली की खपत होती है, जबकि गोरिल्ला बिजली की खपत में 65 प्रतिशत से अधिक की कटौती करता है।”
“भारत में करीब 246 मिलियन सीलिंग फैन हैं। अगर हम 10 घंटे के हिसाब से 300 दिनों तक इनके चलने का हिसाब लगाएं, तो प्रति वर्ष 2782 (GWH) बिजली की बचत कर सकते हैं, जिससे 200 मिलियन परिवारों को बिजली मिल सकती है। इससे कई परिवारों के लिए पंखे लेना सस्ता हो जाएगा।”
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इस गोरिल्ला पंखे के लिए एटमबर्ग टीम को यूएनआईडीओ (यूनाइटेड नेशन्स) से 2016-2017 में एनर्जी एफिशियंसी की श्रेणी में ग्लोबल पुरस्कार के साथ एक मिलियन डॉलर का फंड भी मिला है।
बहरहाल, इस काम में चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं, खास कर ग्राहकों तक पहुँचने के लिए सेल्स और मार्केटिंग के काम में। मार्केट सर्वेक्षण से इन्हें अपना ग्राहक तलाशने में कोई मदद नहीं मिली। इनके पहले ग्राहकों में सेरामिक कंपनियाँ थीं जिन्हें 24 घंटे लगातार चलने वाले पंखों की ज़रूरत थी।
अरिंदम बताते हैं, “हम चाहते थे कि एक बार हमारे पहले के ग्राहक संतुष्ट हो जाएं, तो हमें फिर और भी ग्राहकों के मिलने में आसानी होगी, क्योंकि लोग जब हमारे पंखों की तारीफ़ करेंगे तो जाहिर है, उनके ख़रीददार बढ़ेंगे। इसलिए हमारा मक़सद था नए ग्राहकों के पीछे भागने की बजाय अपने मौजूदा ग्राहकों को संतुष्ट करना।“
इन्होंने इसे आगे बढ़ाने के लिए कमीशन पर आधारित व्यवसाय की शुरुआत भी की है। उपभोक्ता इस पंखे को खरीद कर खुद को पंजीकृत कर सकते हैं, जिससे इन्हें मार्केटिंग सामग्री और कोड मिल जाएगा। ये पंखों का प्रचार कर ख़ुद अपने ग्राहक खोज सकते हैं जो इनके कोड से पंखे खरीदे। इन्हें हर पंखे की बिक्री पर कमीशन मिलेगा और इस तरह ये पैसे कमा सकते हैं।
60 सदस्यों वाली एटमबर्ग टीम ने अब तक लोगों और संगठनों को मिला कर 50,000 से अधिक पंखे बेचे हैं।
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कंपनी के कॉरपोरेट ग्राहकों में इंफ़ोसिस, आईटीसी, अदित्या बिरला ग्रुप, हयात होटल, भारतीय रेल, आईआईटी बॉम्बे, आईआईटी हैदराबाद, आईडीएफ़सी, टाटा पावर आदि प्रमुख हैं। अरिंदम बताते हैं, “हमने विभिन्न ई-कॉमर्स साइट के ज़रिए भी करीब 5000 पंखे बेचे हैं।“
अरिंदम मानते हैं कि क्लीन-टेक हार्डवेयर स्टार्टअप के सामने चुनौतियाँ बहुत हैं, पर वे मिल रही प्रतिक्रियाओं से संतुष्ट हैं। कंपनी का अगला लक्ष्य पेडेस्टल पंखों और टेबल पंखों का निर्माण करना है, जिनका गाँवों में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। “अगले 5-7 साल में हम कम ऊर्जा खपत वाले एयर कंडीशनर बनाने पर भी विचार कर रहे हैं। इसके बारे में सोचा जा रहा है कि किस प्रकार उनके कम्प्रेसर में लगे मोटर को ऊर्जा सक्षम बीएलडीसी मोटर से बदला जाए और उन्हें अधिक ऊर्जा सक्षम बनाया जाए।“
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एटमबर्ग टीम का मानना है कि आविष्कार एक बेहतर दुनिया का निर्माण करते हैं। ये कहते हैं, “हर साल भारत में 4 करोड़ पंखों की बिक्री होती है। हमारा सपना है कि एक दिन भारत के सारे सीलिंग फैन्स को कम बिजली की खपत करने वाले बीएलडीसी पंखों में बदल दिया जाए। इससे 5 करोड़ से अधिक उन भारतीयों को बिजली की सुविधा मिल सकेगी जो आज इससे वंचित हैं।“
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सम्पादन: मनोज झा
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