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“ मेरी कलम भी वाकिफ है मेरे जज्बातों से,
मैं इश्क भी लिखना चाहूँ, तो इन्कलाब लिखा जाता है“
- भगत सिंह
आज़ादी के दीवाने और भारत माँ के सपूत क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर 1907 में लायलपुर ज़िले के बंगा में (अब पाकिस्तान में) सरदार किशन सिंह के यहाँ हुआ। उनकी स्मृति में अब इस जिले का नाम बदल कर शहीद भगत सिंह नगर रख दिया गया है। भगत सिंह के पिता ग़दर पार्टी के सदस्य थे। शायद इसी का प्रभाव उनके बालमन पर पड़ा। आज़ादी और क्रांति के बीज उनके बालमन में बचपन में ही फूट चुके थे।
उनके बचपन के एक प्रसंग से आज़ादी के लिए उनकी ललक का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
भगत जब तीन वर्ष के थे तब वे अपने पिता सरदार किशन सिंह के मित्र नंदकिशोर मेहता के खेत में गए। वहां उन्होंने खेल-खेल में मिट्टी का ढेर इकट्ठा कर उस पर छोटे-छोटे तिनके लगा दिए। भगत सिंह से जब इसका कारण पूछा गया, तो उन्होंने जवाब में कहा-
'मैं बंदूकें बो रहा हूँ, क्योंकि मैं अपने देश को आजाद कराना चाहता हूँ।'
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अपने साथियों के साथ खेलते समय भगत सिंह हमेशा साथियों को दो दलों में बांट देते थे। एक दल दूसरे दल पर आक्रमण करता था और यह खेल उन्हें बहुत प्रिय था।
13 अप्रैल 1919 में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने एक पढ़ने लिखने वाले सिख लड़के की सोच को ही बदल दिया।
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लाहौर में स्कूली शिक्षा के दौरान ही उन्होंने यूरोप के अलग अलग देशों में हुई क्रांति के बारे में अध्ययन किया। भगत सिंह ने भारत की आज़ादी के लिये 'नौजवान भारत सभा' की स्थापना की थी। इसके बाद भगत सिंह पं.चन्द्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी 'हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन' से जुड़ गये थे। जिसके बाद इस संगठन का नाम हो गया था 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन'। इस संगठन का उद्देश्य सेवा, त्याग और पीड़ा झेल सकने वाले नवयुवक तैयार करना था।
1929 में भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त और राजगुरु के साथ असेंबली में बम धमाके की योजना बनाई। बताया जाता है कि यह बम सिर्फ आजादी की लड़ाई के आगाज की सूचना अंग्रेजों के लिए पहुंचाना था। भगत सिंह और बटुकेश्वर ने एक-एक बम फेंका। धमाके में किसी की मौत नहीं हुई थी। भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में कैद रहने के दौरान भगत सिंह ने डायरी और किताबें भी लिखीं। उनके कहे हुए शब्द आज भी हमारे अन्दर देशभक्ति की भावना को जगा देते है।
शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के कुछ विचार इस प्रकार है -
"मेरा एक ही धर्म है देश की सेवा करना।"
"जिंदगी हमेशा अपने दम पर ही जी जाती है,दुसरो के कंधो पर तो बस जनाजे ही उठाये जाते है"
" क्रांति की तलवार तो सिर्फ विचारो की शान पर ही तेज होती है"
"बुराई इसलिए नहीं बढती की बुरे लोग बढ़ गए है बल्कि बुराई इसलिए बढती है क्योंकि बुराई सहन करने वाले लोग बढ़ गये है"
"कवि, एक पागल प्रेमी और देशभक्त एक ही चीज से बने है क्योंकि लोग अक्सर देशभक्तों को पागल कहते है"
"हमारे लोगो को मारकर वो कभी भी हमारे विचारो को नहीं मार सकते"
"मेरे सीने में जो जख्म है वो सब फूलो के गुच्छे है हमें तो पागल ही रहने दो हम पागल ही अच्छे है"
"मेरी कलम मेरी भावनावो से इस कदर रूबरू है कि मैं जब भी इश्क लिखना चाहूं तो हमेशा इन्कलाब लिखा जाता है"
"हर कण राख का मेरी ऊर्जा से चलायमान है और मैं एक ऐसा पागल हूँ जो जेल में भी आजाद है"
"जो भी ब्यक्ति विकास के लिए खड़ा होगा उसे हर एक रुढ़िवादी चीज को चुनौती देनी होगी तथा उसमे अविश्वास करना होगा"
23 मार्च 1931 को लाहौर जेल में इस महान देशभक्त को फांसी दे दी गयी।
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भारत माँ के इस सच्चे सपूत को कोटी कोटी नमन !