मौसम विभाग ने इस साल देश में समान्य से अधिक गर्मी होने की चेतावनी दी थी। ऐसे में देशभर के मजदूर इस विषम परिस्थिति में भी काम करने को मजबूर है, क्योंकि इसी से इनकी रोजी-रोटी चलती है। अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए वे चिलचिलाती धूप में लकड़ी और पत्थर काटते हुए दिन बिताते हैं। वो भी चप्पल जैसी जरूरी सुविधा के बिना।
मिर्जापुर के 70 वर्षीय मजदूर श्यामबाबू कहते हैं, "मैं पत्तों और रस्सी से पट्टी बनाता हूं और इसे अपने पैरों पर पहनता हूं।" हालाँकि उनका यह प्रयोग जुगाड़ू तो है लेकिन ज्यादा समय तक कारगर नहीं। आधा दिन होते-होते उनकी चप्पल टूट जाती है। और उन्हें नंगे पैर ही धूप में काम करना पड़ता है।
आप सोच रहे होंगे कि वह चप्पल क्यों नहीं खरीदते?
इसपर श्यामबाबू कहते हैं "मैं दिन के 80 रुपये कमाता हूं। इन पैसों से मैं चप्पल खरीदू या अपना और अपने परिवार के लिए रोटी लाऊ।"
लेकिन आज उनके पास पहनने को चप्पल है। कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश कई मजदूर, श्यामबाबू की तरह तेज धूप में भी बिना चप्पल के चलने को मजबूर थे। दिन के 60-70 रुपये कमाने वाले ये लोग भर पेट खाना और चप्पल के बीच किसी एक को चुनने के लिए मजबूर थे।
उनकी मदद करने के लिए द बेटर इंडिया एक प्रयास करने का फैसला किया। हमारे उस प्रयास को आपने आसान बनाया है।
Hope Welfare Trust और द बेटर इंडिया की मुहीम #DonateASlipper में हमारा साथी बनकर। अप्रैल के महीने में हमने आपसे सिर्फ 100 रुपये डोनट करने की अपील की थी, आपने महज 15 दिनों में 5000 मजदूरों के पैरों के लिए चप्पल का इंतज़ाम कर दिया। अब मई और जून की गर्मी में इन्हें नंगे पाँव बाहर नहीं जाना पड़ेगा। इतना ही नहीं इस मुहीम से जुड़कर, आपने ग्रीन ग्रुप की कई महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने में मदद भी की है। आप न होते तो 5000 चेहरों तक यह मुस्कान भी न होती और इतना बड़ा बदलाव भी न आ पाता।
शुक्रिया यह मुमकिन बनाने के लिए!
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