कश्मीर में ठण्ड का समय और हर तरफ हरीसा का नाश्ता करने के लिए लोगों की दीवानगी! ऐसे में श्रीनगर के डाउनटाउन में पिता-पुत्र की एक जोड़ी जब 200 साल पुरानी अपनी हरीसा की दुकान का शटर उठाती है, तो ग्राहकों की एक लम्बी कतार लग जाती है और इसकी वजह है इनका सदियों पुराना कश्मीरी स्वाद।
हरीसा बनाने के 60 सालों के अनुभव के साथ, 80 वर्षीय गुलाम मोहम्मद और उनके 45 वर्षीय बेटे जहूर अहमद भट बड़े प्यार से लोगों को हरीसा परोसते हैं। इनके स्वाद का जादू ही है कि यहां हर दिन दोपहर तक हरीसा ख़त्म भी हो जाता है।
जहूर अहमद भट बताते हैं कि यहां सुबह छह बजे से लोग लाइन लगाकर खड़े रहते हैं। तीन बजे कोई आए, तो उसे खाली हाथ लौटना पड़ता है, इसलिए लोग यहां हरीसा के लिए दो दिन पहले ही ऑर्डर दे देते हैं।
दरअसल, इसमें इस्तेमाल मीट और गर्म मसाला सर्दियों में शरीर को गर्म रखने का काम करते हैं। इसलिए हरीसा को सर्दी के मौसम में खाया जाता है। जहूर अहमद की इस दुकान में इस पकवान को बनाने के लिए, मिट्टी के बर्तन का इस्तेमाल होता है और इसके लिए उन्होंने एक विशेष किचन भी बनाया है।
गुलाम मोहम्मद ने 18 साल की उम्र में अपने पिता के साथ हरीसा बनाना शुरू किया था। वह कहते हैं कि उनकी पुश्तैनी दुकान में कई प्रमुख हस्तियों ने हरीसा का स्वाद चखा है।
क्या है हरीसा?
हरीसा एक स्वादिष्ट और पौष्टिक व्यंजन है। इसे केसर, कबाब, मेथी के साथ तेल छिड़ककर प्लेटों पर गर्मा-गर्म सर्व किया जाता है। यह ताजे़ मीट से बनता है, जिसमें हड्डियां नहीं होतीं। इसे मांस, मूंग, चावल और कई तरह के मसालों से बनाया जाता है। पारम्परिक रूप से इसे लोवासा (ब्रेड) के साथ खाया जाता है। यह व्यंजन सर्दियों में सबसे अच्छे व्यंजनों में से एक होता है।
शुरुआत में यह पारम्परिक कश्मीरी हरीसा, कस्बों और गांवों में खाया जाता था, लेकिन आज यह देश भर में बड़े चाव से खाया और पकाया जाता है। इसके लाजवाब स्वाद के पीछे 18 घंटों की मेहनत होती है। जहूर अहमद बताते हैं कि वह दोपहर के दो बजे से हरीसा बनाना शुरू करते हैं, तब जाकर कहीं रात के तीन-चार बजे यह बनकर तैयार होता है।
यूँ तो आपके पास कश्मीर घूमने जाने की कई वजहें हैं, लेकिन अगर आप ठण्ड में कश्मीर जा रहे हैं और नॉन वेज खाते हैं, तो श्रीनगर की इस 200 साल पुरानी दुकान में हरीसा का स्वाद लेना आपकी ट्रिप की एक वजह बन सकता है।
संपादन- अर्चना दुबे
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