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गुजरात की रहनेवाली शिपा पटेल बताती हैं कि उन्हें हमेशा से हाथों से बनी चीज़ें काफी पसंद आती हैं। इसी पसंद ने शिपा को एक नए मुकाम तक पहुंचाया है। शिपा की यात्रा तब शुरू हुई, जब उन्होंने इंटीरियर डिज़ाइन की डिग्री ली और कुछ रचनात्मक गतिविधि की तलाश में गुजरात में अपने गांव पहुंची। गुजरात में उनके घर के पास एक छोटा सा गाँव है, दीसा। वहां उन्होंने कुछ कारीगरों को हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग का अभ्यास करते हुए देखा।
ब्लॉक प्रिंटिंग की पूरी प्रक्रिया देखकर वह काफी प्रभावित हुईं। वह कहती हैं, “यह मेरे लिए पहली नज़र के प्यार जैसा था। मुझे लकड़ी के ब्लॉकों की कच्ची बनावट और तकनीक से प्यार हो गया।” पूरी प्रक्रिया से प्यार हो जाने के बाद, एक शौक़ के रूप में शिपा ने अपने लिए हैंड ब्लॉक कपड़े डिज़ाइन करना शुरू किया।
2013 में, उन्होंने हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग को पुनर्जीवित करने और लोकप्रिय बनाने पर ध्यान देने के साथ, टिकाऊ कपड़ों का ब्रांड 'छापा' (छापने कि लिए गुजराती शब्द) लॉन्च करने का फैसला किया।
आज शिपा का अहमदाबाद में एक खुदरा स्टोर है और एक ऑनलाइन स्टोर भी है, जो सिंगापुर, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों में अपना माल बेचता है। इस बिज़नेस से उनकी सलाना कमाई करीब 1.5 करोड़ रुपये हो रही है। उनकी कमाई का 25 प्रतिशत उन 25 कारीगरों के पास जाता है, जिनसे वह काम करवाती हैं।
हानिकारक रंगों का नहीं करते इस्तेमाल
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शिपा के पति और कंपनी के को-फाउंडर, हार्दिक पटेल कहते हैं, "हमारा काम स्थिरता देने की कोशिश करना है।" हार्दिक, कंपनी का बिज़नेस डेवलपमेंट और आईटी संभालते हैं।
'छापा' कॉटन और खादी जैसे टिकाऊ कपड़ों के साथ काम करती है। हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग के लिए, केवल प्राकृतिक या एज़ो-मुक्त रंगों का उपयोग किया जाता है, जो पर्यावरण के अनुकूल हैं। साथ ही इसमें हानिकारक विषाक्त पदार्थों का जोखिम कम होता है। यानि कारीगरों में ये डर नहीं होता कि इससे उनकी स्किन को नुकसान पहुंचेगा और वे बिना किसी डर के उन्हें छू सकते हैं।
हालांकि, इस काम में उत्पन्न होने वाले कचरे को पूरी तरह से काटा नहीं जा सकता, लेकिन वे इसे जितना संभव हो उतना कम करने की कोशिश करते हैं और जहां भी हो सके वे इसे अपसाइकल करते हैं। उदाहरण के लिए, किसी भी बचे हुए कपड़े का उपयोग कैमरा बेल्ट, पाउच, आईपैड स्लीव्स, बैग्स आदि बनाने के लिए किया जाता है।
छापा की यूएसपी उनकी अनूठी डिज़ाइन है। पारंपरिक रास्ते पर जाने के बजाय, वे अपना खुद का सैंपल डिज़ाइन करते हैं, जैसे हाथी, धूप का चश्मा, ग्रह, पक्षी, रिक्शा आदि, जिन्हें बाद में हाथ से छपाई के लिए लकड़ी के ब्लॉकों पर उकेरा जाता है। वे युवा दर्शकों को आकर्षित करने के लिए पारंपरिक तकनीक को अनोखे और मजे़दार डिजाइनों के साथ मिला रहे हैं।
हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग कारीगरों को लगातार काम देते रहना है मकसद
शिपा बिज़नेस के डिजाइन और रचनात्मक पहलुओं को देखती हैं। वह मूड बोर्ड और कलर स्कीम तैयार करती हैं। अगला कदम कारीगरों के साथ रंगों और डिज़ाइनों पर सहमती बनाना है और फिर उसके बाद एक कलेक्शन तैयार किया जाता है।
2016 से छापा के साथ काम करने वाले कारीगरों में से एक गीता टोंड्रिया कहती हैं, "उनके रंग और डिज़ाइन बहुत अलग हैं। ऐसे डिज़ाइन आपको बाज़ार में और कहीं नहीं मिलेंगे।"
हालांकि, 'छापा' उपभोक्ताओं को कुछ नया और अलग पेश करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, लेकिन छापा का प्राथमिक उद्देश्य कारीगरों को सपोर्ट करना है। हार्दिक कहते हैं, "हमारा मकसद कारीगरों को काम देना है, क्योंकि हमने महसूस किया कि वे काम पाने के लिए संघर्ष करते हैं।" इस वजह से वे स्टार्टअप के साथ छोटे स्तर पर एक्सपेरिमेंट करने को तैयार थे।
300 साल पुरानी तकनीक, हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग धीरे-धीरे मर रही है और इसका मुख्य कारण फैशन और उपभोक्ता मांगों का तेज़ी से बदलना है। ब्लॉक प्रिंटिंग की प्रक्रिया में एक नक्काशीदार, लकड़ी के ब्लॉक को डाई में डुबोया जाता है और फिर सामग्री पर हाथ से दबाया जाता है, जिसके लिए बहुत ज्यादा सटीकता और फोकस की ज़रूरत होती है।
हार्दिक कहते हैं, "कारीगर, इस कला को इसलिए छोड़ रहे थे, क्योंकि उन्हें कोई काम नहीं मिल रहा था।"
अब युवा पीढ़ी भी बढ़ रही इस कला की ओर
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छापा का प्रयास है कि हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग कला को फिर से लोकप्रिय बनाया जाए और उसे जन चेतना में वापस लाया जाए। हार्दिक बताते हैं, "अब, न केवल शिल्पकार कला का अभ्यास कर रहे हैं, बल्कि वे इसे अगली पीढ़ी को भी दे रहे हैं।"
गीता कहती हैं, ''पहले, युवा पीढ़ी में से कोई भी ब्लॉक प्रिंटिंग नहीं करना चाहता था। सब सरकारी या निजी क्षेत्र में नौकरी ढूंढना पसंद करते थे। लेकिन अब, अपना कोर्स पूरा करने के बाद, उन्होंने ब्लॉक प्रिंटिंग सीखना शुरू कर दिया है। छोटे बच्चे काम कर रहे हैं, खासकर छुट्टियों के मौसम में।”
गीता, आटे का उपयोग करके प्राकृतिक रंग बनाने से लेकर अन्य कारीगरों के साथ को-ऑर्डिनेट करने, कपड़ों पर डिज़ाइन सेट करने और प्रिंट करने तक की पूरी प्रक्रिया को संभालती हैं। छपाई के बाद, कपड़ों को कुछ घंटों के लिए गर्म पानी में भिगोया जाता है, ताकि प्रिंट सेट हो जाए।
प्रोडक्ट बनाने वाले कारीगरों की कहानियां बयां करता है यह ब्रांड
छापा अपने कारीगरों को अन्य तरीकों से भी मदद करता है, जैसे मुफ्त स्वास्थ्य जांच और अच्छी गुणवत्ता वाले जूते प्रदान करता है।
अपनी वेबसाइट और सोशल मीडिया के माध्यम से छापा, कारीगरों की कहानी और काम को उपभोक्ताओं तक पहुंचाने पर भी ध्यान केंद्रित करती है। गीता कहती हैं, “प्रोडक्ट तो कोई भी लगा सकता है। लेकिन अगर आप इसके पीछे की कहानी नहीं बताते हैं, तो इसका कोई मूल्य नहीं है। आपको अपने काम, चुनौतियों और पर्दे के पीछे क्या चल रहा है, इसके बारे में लगातार संवाद करना होगा।”
यह निरंतर संचार ग्राहकों के लिए पूरी प्रक्रिया सीखने का एक तरीका है कि उनके कपड़े कैसे बनाए जा रहे हैं। तेजी से बदलते फैशन और बड़े ब्रांडों के खिलाफ प्रतिस्पर्धा में, यह पारदर्शिता ही है, जो उन्हें बाहर खड़े होने में मदद करती है। हार्दिक कहते हैं, "एक बार जब आप उन्हें प्रोडक्ट के काम के बारे में शिक्षित कर देते हैं, तो वे एक वफादार ग्राहक बन जाते हैं।"
अधिक जानकारी के लिए आप उनकी वेबसाइट पर विज़िट कर सकते हैं।
संपादनः अर्चना दुबे
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