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पति के खेत में उगी फसल से शुरू किया साइड बिज़नेस, अब बेटी को मेडिकल पढ़ने भेजेंगे रूस

Food processing buisness of farmer's wife

“हर महिला को अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए। ज़रूरी नहीं कि आप के घर में आर्थिक तंगी हो तभी आप नौकरी या अपना काम करें। अपनी पहचान के लिए भी आपको काम करना चाहिए,” यह कहना है राजस्थान की सुमन शर्मा का। ‘ऋषि फ्रेश फूड्स’ के नाम से अपना आउटलेट चला रहीं सुमन किसान परिवार से आती हैं और आज वह एक सफल बिज़नेस वुमन हैं। 

कभी अपने घर में ही पार्लर चलाने वाली सुमन को आज कई सम्मान और पुरस्कार मिल चुके हैं। द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने अपने सफर के बारे में बताया, “मैं कोटा के एक गांव की रहने वाली हूं। मैंने बीए तक की पढ़ाई की है। साल 2001 में मेरी शादी हुई थी। लेकिन शादी से पहले ही एक बात मेरे मन में बैठ चुकी थी और वह थी कि हालात चाहे जैसे भी हों लेकिन मैं हमेशा आत्मनिर्भर रहूंगी। मुझे हमेशा से ही अपने पैरों पर खड़ा होना था ताकि कभी किसी पर भी निर्भर न होना पड़े।”

बड़ी बहन के तलाक ने दी आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा

सुमन बताती हैं कि वह बहुत ही सामान्य परिवार से संबंध रखती हैं। खासकर कि मायके में उन्होंने बहुत ज्यादा आर्थिक तंगी देखी थी। उनके मायके में भी खेती होती थी। “हम तीन बहनें हैं और सबसे छोटा भाई है। हमारे पिता दिव्यांग हैं और टाइपिस्ट का काम करते थे। घर का खर्च मुश्किल से चल पाता था। फिर भी हम बहनों ने कॉलेज तक की पढ़ाई पूरी की,” उन्होंने कहा। 

ग्रामीण इलाकों में आज भी लड़कियों की शादी जल्दी कर दी जाती है और सुमन की बड़ी बहन की शादी भी इसी तरह हो गयी। लेकिन पति के खराब बर्ताव के कारण शादी टूट गई। सुमन कहती हैं कि गांवों में लड़की का ससुराल छोड़कर मायके में रहना और पति से तलाक लेना आम बात नहीं है। लेकिन उनकी बहन ने यह हिम्मत की। क्योंकि वह एक सकारी स्कूल में शिक्षक थीं, जिस वजह से वह किसी पर निर्भर नहीं थीं। सुमन कहती हैं कि ज्यादातर लडकियां या महिलाएं अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के लिए कभी पिता, भाई तो कभी पति और बच्चों पर निर्भर होती हैं। इसलिए वे गलत बर्ताव के बावजूद अपने लिए आवाज नहीं उठा पाती हैं। 

सुमन शर्मा

सुमन कहतीं हैं, “ऐसे में, अपना खुद का कमाई का जरिया होने से महिलाओं को बहुत मदद मिलती हैं। मैंने यह करीब से देखा कि दीदी अपने पैरों पर खड़ी थी। उनके इस अनुभव से मुझे यह सीख मिली कि चाहे जो हो जाए, महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा होना ही चाहिए। इसलिए मैंने अपनी पढ़ाई पूरी की और कुछ समय एक सामाजिक संगठन के साथ काम किया। इससे मुझे बहुत हौसला मिला।” 

पार्लर के काम से लेकर कृषि विज्ञान केंद्र में मास्टर ट्रेनर तक

साल 2001 में सुमन की शादी अखिल शर्मा से हुई जो खेती के साथ-साथ बतौर फोटोग्राफर भी काम करते हैं। उन्होंने बताया कि उनके ससुराल में भी संयुक्त परिवार है और 25 बीघा जमीन पर खेती करते हैं। लेकिन इससे सिर्फ गुजारा ही हो पाता था और इसलिए सुमन ने शादी के कुछ समय बाद से ही काम करना शुरू कर दिया। वह कहती हैं कि उन्होंने पार्लर, सिलाई-कढ़ाई का काम भी सीखा हुआ था। इसलिये घर में ही पार्लर का काम शुरू कर दिया। इससे ज्यादा नहीं लेकिन इतनी कमाई हो पाती थी कि वह अपना छोटा-मोटा खर्च चला सकें। हालांकि सुमन अपना काम बढ़ाना चाहती थीं।

साल 2007 में, उनके पति को कृषि विज्ञान केंद्र, कोटा के लिए फोटोग्राफी करने का मौका मिला। अखिल बताते हैं कि इस दौरान उन्हें पता चला कि कृषि विज्ञान केंद्र में उनके जैसे किसानों और महिलाओं के लिए बहुत सी ट्रेनिंग होती हैं। “सुमन अपना काम बढ़ाना चाहती थीं और इसलिए मुझे लगा कि केवीके में उन्हें अच्छा मार्गदर्शन मिल सकता है और ऐसा हुआ भी। केवीके की डॉ. ममता तिवारी और गुंजन सनाढ्य से सुमन को न सिर्फ ट्रेनिंग लेने का मौका मिला बल्कि केवीके में ट्रेनिंग देने का भी मौका मिला,” वह कहते हैं।

कृषि विज्ञान केंद्र में सुमन ने अलग-अलग विषयों पर ट्रेनिंग ली। इनमें फ़ूड प्रोसेसिंग जैसे आंवले की कैंडी, अचार बनाना, सोयाबीन के पनीर जैसे उत्पाद बनाना शामिल था। सुमन जो भी सीखती थीं, उसे घर पर आकर ट्राई जरूर करती थीं और केवीके में वैज्ञानिकों को जाकर दिखाती भी थीं। सुमन की लगन देखकर कृषि विज्ञान केंद्र की टीम ने उन्हें बतौर ट्रेनर काम दिया। 

केवीके से ली ट्रेनिंग

वह कहती हैं, “मुझे केवीके की तरफ से आसपास के गांवों की महिलाओं और किसानों को ट्रेनिंग देने का मौका मिलता रहा। इससे आमदनी भी हो जाती थी और ज्यादा से ज्यादा महिलाओं के संपर्क में भी आने लगीं।” 

सुमन ने केवीके की तरफ से अलग-अलग गांवों में 75 से ज्यादा ट्रेनिंग प्रोग्राम किए हैं। 

शुरू किया अपना व्यवसाय

सुमन कहती हैं कि केवीके से जुड़ने के बाद उन्हें पता चला कि महिला समूहों को कृषि मेलों या आयोजनों में मुफ्त में स्टॉल लगाने का मौका मिलता है। इसलिए उन्होंने गांव की 10 महिलाओं को जोड़कर उन्हें ट्रेनिंग दी और ऋषि स्वयं सहायता समूह बनाया। इस समूह को उन्होंने नगर निगम के साथ रजिस्टर किया, जिससे उन्हें कोटा में लगने वाले दशहरा मेला और दूसरे कृषि मेलों में अपनी स्टॉल लगाने का मौका मिलने लगा। सबसे पहले उन्होंने आंवले के अचार, मुरब्बा और कैंडी से शुरुआत की। वह कहती हैं कि पहले ही मेले में उन्हें बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली और देखते ही देखते उनके सभी उत्पाद बिक गए। 

इसके बाद, उन्होंने अपना संगठन ‘सिद्धि विनायक’ शुरू किया और इसके अंतर्गत लगभग 100 महिलाओं को फ़ूड प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग दी। इन महिलाओं में से लगभग 40 महिलाओं को वह अपने साथ जोड़ने में कामयाब रहीं और अलग-अलग स्वयं सहयता समूह बनाकर उन्हें काम देने लगी। वह कहती हैं, “आंवले का काम तो हम पहले से कर ही रहे थे। इसके बाद, 2014 में सोयाबीन प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग लेकर मैंने अपनी एक सोया यूनिट भी शुरू की। क्योंकि कृषि मेलों में मुझे बहुत से रिटेलर जुड़ गए थे और उनसे बल्क ऑर्डर मुझे मिलने लगे। इसलिए मैंने अपने बचत के पैसों से यह यूनिट सेटअप की।”

कृषि मेलों में लगाए स्टॉल

आज वह 20 से ज्यादा तरह के उत्पाद बनाकर लोगों को उपलब्ध करा रही हैं। अलग-अलग रिटेलर से उन्हें बल्क आर्डर मिलते हैं जैसे पिछले सीजन में उन्होंने पांच क्विंटल आंवला की कैंडी बनाई थी। इसी तरह ऑर्डर पर सोया पनीर, लड्डू, पापड़, आदि वह बना रही हैं। अपने इन उत्पादों को सीधा ग्राहकों तक पहुंचाने के लिए उन्होंने अपना एक आउटलेट भी खोला हुआ है। अपने काम से आज उन्हें प्रतिमाह 50 से 60 हजार रुपए तक की कमाई हो रही है। साथ ही, कृषि मेले में भी वह अच्छी कमाई कर पाती हैं। 

खुद के साथ-साथ दूसरों को भी बढ़ा रही हैं आगे

कोटा के समीप रहने वाले एक ग्रामीण विक्रम सिंह बताते हैं कि लगभग आठ साल पहले उन्होंने सुमन से फ़ूड प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग ली थी। इससे पहले वह पारंपरिक खेती करते थे। लेकिन ट्रेनिंग के बाद वह सुमन के समूह से जुड़ गए और लगातार उनके ऑर्डर पूरे कर रहे हैं। उन्होंने बताया, “सुमन जी के माध्यम से हमें लगातार ऑर्डर मिलते रहते हैं और इसके अलावा, मैंने अपने स्तर पर भी काम करना शुरू किया है। अलग-अलग जगहों पर हम सीधा ग्राहकों से जुड़ रहे हैं। इसलिए अब हम आराम से लगभग 50 हजार रुपए/माह कमाई कर पाते हैं। इससे हमारे घर की स्थिति काफी बेहतर हुई है।”

सुमन कहती हैं कि अपने परिवार को आगे बढ़ाने के साथ-साथ वह दूसरों को भी मदद कर पा रही हैं। “इस राह में मुश्किलें थीं लेकिन परिवार के सहयोग से सभी पार होती चली गयी। गांव में महिलाओं का काम के लिए घर से बाहर निकलना भी मुश्किल होता है। लोग तरह-तरह की बातें करते हैं। लेकिन मैं ट्रेनिंग देने के लिए गांव से बाहर गयी हूं। हमने दिल्ली में भी कई बार स्टॉल लगाए हैं। अब मैंने अपना आउटलेट खोला है। कई बार लोग बोलते हैं लेकिन मुझसे पहले मेरे पति और परिवार उन्हें जवाब दे देते हैं। क्योंकि वे समझते हैं कि आज के जमाने में पति-पत्नी का मिलकर कमाना बहुत जरुरी है,” उन्होंने कहा। 

मिले हैं कई पुरस्कार

अखिल और सुमन आज मिलकर अपने परिवार को अच्छी जिंदगी दे रहे हैं। साथ ही, अपने बच्चों के हर सपने को पूरा कर रहे हैं। उनकी बेटी ने 12वीं कक्षा पास की है और वह डॉक्टर बनना चाहती है। उन्होंने रूस के मेडिकल कॉलेज में अपनी बेटी के लिए एप्लीकेशन दी है। अगले साल की शुरुआत में वह अपनी मेडिकल डिग्री की पढ़ाई शुरू कर देगी। अखिल कहते हैं, “हमने सुमन का हर कदम पर साथ दिया और सुमन ने हर जगह खुद को साबित किया है। अगर आज हम सिर्फ किसानी पर निर्भर रहते तो इतना आगे न बढ़ पाते।”

इसलिए यह दंपति सभी किसान परिवारों को मिलकर काम करने और आगे बढ़ने की सलाह देते हैं। उनसे सम्पर्क करने के लिए आप 9460853746 पर मैसेज कर सकते हैं।

संपादन- जी एन झा

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