साल 2016 में उत्तराखंड में हुए एक सर्वे में पता चला कि यहां की 41% महिलाओं में हेमोग्लोबिन की कमी है। इस स्थिति को संभालने की शुरूआत सरकारी स्कूलों से की गई। महिला एवं बाल विकास कल्याण विभाग ने कृषि विज्ञान केंद्र के साथ मिलकर इस गंभीर विषय पर काम किया। राज्य के टिहरी जिले में कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा रागी का इस्तेमाल करके खास आयरन से भरपूर लड्डू तैयार किए गए और इन्हें छात्राओं को मिड-डे मील में दिया गया। केवल एक महीने में ही छात्राओं में हेमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ने लगी।
इसके बाद, तय किया गया कि पूरे साल तक यह अभियान चलाया जाए और सरकार ने इसके लिए 25 लाख रुपये की ग्रांट भी दी। यह सब संभव हो पाया इन सुपरग्रेन्स से बने लड्डुओं की वजह से, जिन्हें यहां के महिला सहकारिता समूह ने बनाया था और इनकी रेसिपी को तैयार किया था केवीके टिहरी की खाद्य और पोषण वैज्ञानिक कीर्ति कुमारी ने।
साल 2013 में केवीके टिहरी में नियुक्त होने वाली कीर्ति बताती हैं कि आयरन लड्डुओं से पहले उन्हें ‘कोडार्फी’ में भी सफलता मिल चुकी है, मतलब की रागी की बर्फी। कीर्ति ने न सिर्फ इन मिलेट से बनने वाली मिठाइयों की रेसिपी बनाई है बल्कि पहाड़ों में जो फल और फूल हर मौसम में होते हैं, उनका इस्तेमाल भी उत्पाद बनाने के लिए हो रहा है।
कीर्ति ने द बेटर इंडिया को बताया, “जब मैंने केवीके ज्वाइन किया, तब जो सबसे बड़ी समस्या थी कि यहां पर किसानों की उपज को सही बाज़ार न मिलने की वजह से और स्टोरेज की सुविधा उपलब्ध न होने की वजह से बहुत सी फसलें ख़राब हो जाती है। खासकर पहाड़ी फल, जिनमें पोषण की मात्रा काफी अधिक होती है लेकिन उनकी शेल्फ लाइफ बहुत कम। हर मौसम में यहां पर किसानों की कोई न कोई उपज खराब होती थी।”
इसलिए कीर्ति ने सोचा कि आखिर, ऐसा क्या किए जाए जिससे कि यह समस्या भी हल हो और साथ ही, यहां के लोगों को एक स्थायी आजीविका मिल सके। यहीं से शुरूआत हुई पहाड़ों में फ़ूड प्रोसेसिंग की। कीर्ति ने सबसे पहले रागी की बर्फी से शुरूआत की। उन्होंने देवकौश महिला स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को यह बर्फी बनाने की ट्रेनिंग दी और फिर गांव के दो युवाओं ने इनकी मार्केटिंग की ज़िम्मेदारी ली। संदीप सकलानी और कुलदीप रावत ने मात्र 1 महीने में 1 टन रागी की बर्फी बेची और उन्हें लगभग 9 लाख रुपये की कमाई हुई। उनकी इस बर्फी को ‘हिल रत्न सम्मान’ भी मिला।
इसके सफलता के बाद ही कीर्ति को IFAD- ILPS से आयरन के लड्डू बनाने की अनुमति मिली। उनका यह प्रोजेक्ट भी कामयाब रहा और इसके बाद, उत्तराखंड सरकार ने कीर्ति किमारी के फ़ूड मॉडल को समझते हुए, इसे पूरे राज्य में लागू करने का फैसला लिया।
क्या है कीर्ति का मॉडल:
कीर्ति बताती हैं कि उन्होंने सबसे पहले क्षेत्रीय फसलों जैसे कि फिंगर मिलेट, बार्नयार्ड मिलेट, अमरनाथ ग्रेन और फोक्सटेल मिलेट और कुछ पहाड़ी फलों से क्या-क्या खाद्य पदार्थ बन सकते हैं, इस पर काम किया। इससे पोषण से भरपूर उत्पाद तो बन ही रहे हैं, साथ ही किसानों को उनकी फसल का सही दाम मिल रहा है। एक बार रेसिपी तैयार करने के बाद कीर्ति ने महिला स्वयं सहायता समूहों को यह उत्पाद बनाने की ट्रेनिंग दी।
“टिहरी में दो ब्लाक हैं- चम्बा और जौनपुर। चम्बा में 6 महिला सहकारिता हैं तो जौनपुर में 5 और इन सहकारिताओं से 7, 422 महिलाएं जुडी हुई हैं। हमने इन महिलाओं को स्थानीय अनाजों और फलों की प्रोसेसिंग करके बर्फी, लड्डू, जैम, स्क्वाश, जूस जैसे उत्पाद बनाने की ट्रेनिंग दी। इससे इन महिलाओं के लिए आजीविका के रास्ते खुले हैं,” उन्होंने आगे बताया।
इन सहकारिताओं द्वारा बनाए जा रहे उत्पादों की सप्लाई चेन के लिए गांव के युवाओं को ही ट्रेनिंग दी जा रही है। इससे उनके लिए भी रोज़गार के अवसर बन रहे हैं। इन सभी उत्पादों को FSSAI द्वारा सर्टिफाइड ‘हेलांस’ ब्रांड नाम के अंतर्गत बेचा जा रहा है। हेलांस पहाड़ों के एक पक्षी का नाम है।
इस प्रोजेक्ट के मेनेजर, डॉ. एच. बी. पंत के मुताबिक, साल 2016-19 के बीच इन सहकारिताओं का टर्नओवर 2 करोड़ 92 लाख 33 हज़ार रुपये थे, जिसमें उन्हें 30 लाख रुपये का फायदा हुआ था। लेकिन पिछले साल से जनवरी 2020 तक का टर्नओवर लगभग 1 करोड़ 38 लाख 63 हज़ार रुपये है, जिसमें उन्हें लगभग साढ़े 23 लाख रुपये का फायदा हुआ है। यह सब संभव हुआ है फ़ूड प्रोसेसिंग तकनीकों की वजह से।
महिलाएं हुई सशक्त:
फ़ूड प्रोसेसिंग के ज़रिए कीर्ति की पहल ने पहाड़ों की महिलाओं को उद्यमी बनाया है। उन्होंने हज़ार से भी ज्यादा महिलाओं को उत्पादों की ग्रेडिंग, प्रोसेसिंग, पैकेजिंग का प्रशिक्षण दिया है। इससे अगर महिलाएं अपना स्वयं का कोई छोटा उद्यम भी शुरू करना चाहें तो कर सकती हैं।
कंथर गांव की 40 वर्षीय सुनीता सजवान उत्साह सहकारिता समूह से जुडी हुई हैं। उन्होंने द बेटर इंडिया को बताया कि साल 2015 से वह महिला समूह से जुडी हुई हैं। लेकिन फ़ूड प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग उन्हें साल 2016 में मिली। इसके बाद, उनके इलाके में खेतों और यहाँ तक कि घरों में उगने वाली फसल भी व्यर्थ नहीं गयी है।
सुनीता बताती हैं, “हमारे यहां माल्टा-निम्बू के पेड़ आपको खूब मिलेंगे। पहले जो भी उपज आती थी, उसमें से हम घर के इस्तेमाल में लेते थे और कुछ कभी-कभी बाज़ार पहुंच पाती थी। लेकिन हमारी काफी फसल खराब भी जाती थी। पर अब हम कुछ भी खराब नहीं होने देते। माल्टा जूस, अचार, निम्बू का अचार और स्क्वाश जैसे उत्पाद हम बना रहे हैं। सरकार ने हमारे उत्पादों को बाज़ार उपलब्ध कराया है। इसके अलावा, हम राजमा और कुछ दालों की ग्रेडिंग और पैकेजिंग भी करते हैं। इन सभी कामों से हमारी आमदनी तो काफी बढ़ी है ही, लेकिन एक जो अलग पहचान मिली है, उससे हमें काफी हौसला मिला है।”
सुनीता ने इसी साल अपने पति को खोया है और उन पर दो बच्चों की ज़िम्मेदारी है। पहले वह पशुपालन और थोड़ी-बहुत खेती से अपना गुज़ारा करते थे। लेकिन अब सुनीता को कोई परेशानी नहीं है। वह कहती हैं कि सहकारिता से जुड़ने के बाद उनके आजीविका के रास्ते खुल गये हैं। अब हर महीने वह 5 से 10 हज़ार रुपये तक कमा लेती हैं। साथ ही, यदि कोई भी परेशानी हो तो सहकारिता से उन्हें ऋण भी मिल जाता है।
जिले में शुरू हुई फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट:
टिहरी जिले की महिला सहकारिताओं की सफलता पूरे राज्य के लिए मिसाल बनकर उभरी है। राज्य सरकार से फंडिंग मिलने के बाद यहां पर प्रोसेसिंग यूनिट शुरू हुई है। कीर्ति बताती हैं कि फ़िलहाल, टिहरी और उत्तरकाशी जिले में 2 प्रोसेसिंग यूनिट और ग्रोथ सेंटर शुरू किए गए हैं। इससे महिलाओं को काफी राहत मिलेगी क्योंकि ग्राइंडिंग जैसे काम के लिए अब उनके पास मशीन होगी। इससे उनका समय भी बचेगा और वे ज्यादा उत्पाद बना पाएंगी।
साथ ही, सरकार ने यहां पर चुलू का तेल निकालने के लिए मशीन सेट-अप करने की मंजूरी दे दी है। चुलू एक पहाड़ी फूल है और इसका तेल का पौष्टिक होता है, जिसकी बाज़ारों में काफी मांग है। यदि किसानों को जिले में ही प्रोसेसिंग यूनिट्स मिल जाएं तो उन्हें अपनी फसलों की बिक्री के लिए परेशानी नहीं उठानी पड़ेगी। वह अपनी उपज को प्रोसेस करके उत्पाद के तौर पर बाज़ारों तक पहुंचा सकते हैं।
कीर्ति कहतीं हैं कि पिछले 5-6 सालों में उन्होंने और महिलाओं ने जो मेहनत की है, अब उसकी सफलता दिखने लगी है। इसका श्रेय वह महिलाओं, किसानों के साथ जिले के प्रशासन और सरकार को देती हैं। उनका मानना है कि टिहरी को पूरे राज्य के लिए मॉडल बनाना सबकी मेहनत से सम्भव हुआ है।
कीर्ति को उनके प्रयासों के लिए कई अवॉर्ड मिल चुके हैं, जिसमें हिल रत्न, इंडिया स्टार यूथ आइकोनिक अवॉर्ड, WEFT अवॉर्ड, यंग साइंटिस्ट अवॉर्ड आदि शामिल हैं। इसके साथ ही उन्हें ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान का टिहरी का ब्रांड एम्बेसडर भी बनाया गया है।
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