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भारत में क्रिकेट के लिए खेल प्रेमियों की दीवानगी किसी से छुपी नहीं है और अगर मुकाबला भारत-पाकिस्तान का हो, तो फिर कहना ही क्या? लेकिन क्या आप उस शख़्स को जानते हैं, जिसे रेगुलर विकेटकीपर को चोट लगने की वजह से टीम में जगह मिली और फिर उसने देश को जिताने में अहम भूमिका निभाई? जो 'मैन आफ द सीरीज़' ही नहीं, बल्कि पूरे देश का हीरो बना, वह विकेटकीपर बल्लेबाज़ थे सुरिंदर खन्ना। दिल्ली के रहनेवाले शानदार क्रिकेटर रहे सुरिंदर खन्ना की कहानी आज भी एशिया कप के इतिहास के पन्नों पर सुनहरे अक्षरों में दर्ज़ है।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए सुरिंदर खन्ना ने एशिया कप से जुड़े लम्हे और कुछ पूरानी यादें साझा करते हुए बताया कि सन 1984, यानी आज से 38 साल पहले, दुबई के शारजाह क्रिकेट स्टेडियम में पहला एशिया कप खेला जा रहा था। हालांकि, इससे पहले इस स्टेडियम पर एक प्रदर्शनी मैच हो चुका था, लेकिन किसी को भी यहाँ की पिच पर खेलने का अनुभव नहीं था। टूर्नामेंट का पहला मैच श्रीलंका और पाकिस्तान के बीच हुआ था, जिसमें श्रीलंका ने जीत हासिल की थी।
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भारत का पहला मैच 8 अप्रैल, 1984 को श्रीलंका के ही ख़िलाफ़ था। चेतन शर्मा, मनोज प्रभाकर आदि ने शानदार बॉलिंग की और श्रीलंका को 96 रन पर समेट दिया। टीम इंडिया की ओर से ओपनिंग करते हुए सुरिंदर ने 69 गेंदों पर 6 चौकों के साथ नाबाद 51 रन की शानदार पारी खेली। इस तरह भारत ने 10 विकेट से शानदार जीत के साथ एशिया कप की शुरुआत की।
अब अगला मैच चार दिन बाद, 13 अप्रैल को पकिस्तान के साथ होना था। उस दिन बारिश हो रही थी। ऐसे में ओवर घटाकर 47 कर दिए गए । भारत ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाज़ी का फैसला किया और 46 ओवर में चार विकेट पर 188 रन बनाए। सुरिंदर का बल्ला एक बार फिर चला, उन्होंने फिर से हॉफ सेंचुरी लगाते हुए 56 रन की पारी खेली और 72 गेंदों पर 3 चौके और दो छक्के लगाए। महान खिलाड़ी सुनील गावस्कर 36 रनों पर नाबाद रहे।
जवाब में पाकिस्तान की टीम 39.4 ओवर में 134 रन पर सिमट गई। इस टूर्नामेंट में भारत सबसे अच्छा प्रदर्शन करके विजेता बना और सुरिंदर हर जगह छाए हुए थे। उनकी शानदार परफार्मेंस ने उन्हें देश का हीरो बना दिया।
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विकेटकीपर को लगी चोट की वजह से टीम में हुई थी वापसी
सुरिंदर बताते हैं कि वे 1979 का क्रिकेट वर्ल्ड कप उनके लिए बहुत अच्छा नहीं रहा था, जिसकी वजह से उन्हें कुछ समय तक टीम में जगह नहीं मिली। उन्हें वापसी की उम्मीद भी नहीं थी, लेकिन इसी बीच भारतीय टीम के विकेटकीपर सैयद किरमानी को चोट लग गई और उन्हें प्लेइंग इलेवन में बतौर विकेटकीपर जगह मिल गई।
सुरिंदर खन्ना कहते हैं “भारतीय टीम के कप्तान, सुनील गावस्कर को मुझसे काफ़ी उम्मीदें थीं; मैंने उन्हें निराश नहीं किया। मेरी बल्लेबाज़ी से कपिल देव, जो घुटने में इंजरी की वजह से उस टूर्नामेंट में नहीं खेल रहे थे, बहुत खुश थे। उन्होंने बाद में इस खुशी में डिनर भी रखा।”
सुरिंदर बताते हैं “क्योंकि शारजाह क्रिकेट स्टेडियम में पहली बार कोई मुक़ाबला हो रहा था, इसलिए हमें विकेट का बहुत अंदाज़ा नहीं था। कप्तान सुनील गावस्कर और हमारी किस्मत अच्छी थी कि श्रीलंका के खिलाफ़ हुए मैच में हम टॉस जीत गए और हमने फील्डिंग चुनी। विकेट के पीछे काम करते हुए हमें पिच का मिज़ाज समझने में मदद मिली और मैंने जमकर अपने स्ट्रोक्स खेले, जिससे हमारी टीम कप जीत गई।”
दोबारा क्यों हुए टीम से बाहर?
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सुरिंदर के अच्छे खेल की वजह से अक्टूबर , 1984 में पाकिस्तान जाने वाली क्रिकेट टीम में भी उन्हें रखा गया। तीन मैचों की सीरीज़ के पहले वनडे में उन्होंने 31 रन बनाए, लेकिन भारतीय टीम को हार का सामना करना पड़ा। दूसरे वनडे से पहले, सुरिंदर को हैमस्ट्रिंग इंजरी हो गई, जिसकी वजह से उन्हें बाहर होना पड़ा और किरमानी एक बार फिर टीम में आ गए ।
31 अक्टूबर, 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो जाने की वजह से वह मैच और दौरा रद्द हो गया। इसके बाद फिर कभी सुरिंदर को अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में वापसी का मौक़ा नहीं मिल सका। उन्होंने पहले एशिया कप में भारत के लिए जो प्रदर्शन किया, उस पर उन्हें आज भी गर्व है।
सुरिंदर खन्ना अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में केवल 10 वनडे मैच खेल सके। इनमें उन्होंने 22 की औसत से 176 रन बनाए और चार स्टंपिंग भी की। घरेलू क्रिकेट में दिल्ली के लिए सुरिंदर के रन बनाने का सिलसिला चलता रहा। उन्होंने 106 प्रथम श्रेणी मैच खेले और 43 की औसत से 5,337 रन बनाए। हिमाचल के खिलाफ़ 1987-88 में उन्होंने नाबाद 220 रन की पारी खेली, जो उनका बेहतरीन प्रदर्शन है।
एशिया कप में बदलाव पर क्या सोचते हैं सुरिंदर?
सुरिंदर ने जब एशिया कप खेला था, उस समय एक दिवसीय मैचों का फॉर्मेट था; आज यह टूर्नामेंट टी-20 फॉर्मेट में खेला जा रहा है। इस पर सुरिंदर कहते हैं “टी-20 सुविधाजनक तो है, लेकिन एक ओल्ड स्कूल क्रिकेटर होने के कारण मैं एक दिवसीय का ही समर्थक हूं।”
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कानों में आज भी गूंजता है ‘इंडिया..इंडिया..’
सुरिंदर कहते हैं कि किसी भी टूर्नामेंट में भारत-पाकिस्तान का मुकाबला हो, तो दोनों देशों से फैंस बड़ी संख्या में अपनी टीम को सपोर्ट करने पहुंचते हैं। 38 साल पहले लोग बैटरी से चलने वाले लाउडस्पीकर लेकर स्टेडियम आते थे। उस वक़्त क्राउड सपोर्ट को देखकर, खिलाड़ियों को एक अलग ही एनर्जी मिलती थी। उनके कानों में आज भी ‘इंडिया..इंडिया..’ का शोर गूंजता है।
सुरिंदर खन्ना के इकलौते बेटे, मन्नत की आज से चार साल पहले, दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई थी। लेकिन आज भी सुरिंदर की ज़िंदादिली औरों को प्रेरित करती है। उनकी एक बेटी, भी है, जिनका नाम महक है। महक की शादी हो चुकी है, वह कहती हैं “पापा अब भी एशिया कप से जुड़ी यादों को साझा करते रहते हैं। उनके मैचों की रिकॉर्डिंग्स भी हम सभी ने देखी है। वे हमारे लिए बेहद गौरवपूर्ण क्षण हैं।”
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संपादन- भावना श्रीवास्तव
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