देश का अपना सबसे पहला बैंक, जहाँ सबसे पहले खाता खोलने वाले व्यक्ति थे लाला लाजपत राय!

देश का अपना सबसे पहला बैंक, जहाँ सबसे पहले खाता खोलने वाले व्यक्ति थे लाला लाजपत राय!

भारत में बैंकिंग का इतिहास सदियों पुराना है। देश का सबसे पहला बैंक साल 1770 में 'बैंक ऑफ़ हिंदुस्तान' के नाम से शुरू हुआ था। हालांकि, यह बैंक साल 1832 में बंद हो गया था। पर उस समय शुरू हुए बहुत से बैंक आज भी भारत में काम कर रहे हैं। इन्हीं बैंकों में से एक प्रमुख बैंक है पंजाब नेशनल बैंक!

पंजाब नेशनल बैंक की जड़ें भारत के स्वदेशी आंदोलन से जुड़ी हुई हैं। स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत लाला लाजपत राय जैसे महान स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष का परिणाम थी। आगे चलकर यही स्वदेशी आन्दोलन महात्मा गांधी के स्वतंत्रता आन्दोलन का भी केन्द्र-बिन्दु बन गया। उन्होने इसे "स्वराज की आत्मा" कहा।

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लाला लाजपत राय

एक भारतीय बैंक का सपना प्रसिद्द आर्य समाजी राय मूल राज ने देखा था और इस सपने को हकीक़त बनाया लाला लाजपत राय ने। वे भली-भांति जानते थे कि अंग्रेजों ने जो भी बैंक भारत में शुरू करवाए हैं, उनका पूरा फायदा सिर्फ़ इंग्लैंड को पहुंचता है। इसलिए लाला लाजपत राय ने एक ऐसा बैंक खोलने का सपना देखा, जो पूरी तरह से सिर्फ़ और सिर्फ़ भारत और इसके आम नागरिकों को समर्पित हो।

उन्होंने कहा, "भारतीयों की पूंजी का इस्तेमाल अंग्रेजी बैंक चलाने में हो रहा है। उन्हें थोड़े ब्याज से ही संतुष्ट होना पड़ रहा है। भारतीयों का अपना राष्ट्रीय बैंक होना चाह‍िए।"

इसके लिए उन्होंने भारतीय संयुक्त स्टॉक बैंक के विचार को "स्वदेशी के पहले कदम" के तौर पर अपने कुछ दोस्तों के सामने रखा। इस विचार को तुरंत सभी ने मान लिया और फिर बना 'पंजाब नेशनल बैंक!'

लाला लाजपत राय के साथ इस बैंक को शुरू करने वालों में शामिल थे- दयाल सिंह मजीठिया, एक पश्चिमी शिक्षित समाज सुधारक, ट्रिब्यून अखबार के संस्थापक और लाहौर के दयाल सिंह कॉलेज के संस्थापक, ईसी जेसवाला (एक पारसी व्यापारी), बाबू काली प्रसूनो रॉय, जो 1900 में अपने लाहौर अधिवेशन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्वागत समिति के अध्यक्ष थे; लाहौर में एक सिविल वकील बख्शी जैशी राम; लाला हरकिशन लाल, एक उद्यमी जिन्होंने बाद में भारत बीमा कंपनी और पीपुल्स बैंक की स्थापना की; डीएवी कॉलेज के संस्थापकों में से एक लाला बुलाकी राम और लाला लाल चंद।

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पीएनबी बैंक के फाउंडर- ऊपर की पंक्ति में (बाएं से दाएं): दयाल सिंह मजीठिया, लाला हरकिशन लाल, ई. सी. जसेवाला, राय बहादुर लाला लालचंद। नीचे की पंक्ति में (बाएं से दाएं): काली प्रसूनो रॉय, लाला प्रभु दयाल, बख्शी जैशी राम और लाला ढोलन दास।

इनमें से ज्यादातर लोगों को बैंक चलाने का कोई अनुभव नहीं था; पर अपना एक बैंक शुरू करने का जुनून इस कदर था कि इनमें से कभी भी किसी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 19 मई 1894 को लाहौर (अविभाजित भारत में) के अनारकली बाज़ार में बैंक की पहली ब्रांच रजिस्टर की गयी। उस वक़्त पीएनबी में 14 शेयरहोल्डर और 7 निदेशकों ने बैंक के कुछ ही हिस्से पर अपना नियन्त्रण रखा। क्योंकि उनका मानना था कि बैंक पर सर्वाधिक अधिकार आम लोगों का होना चाहिए।

बैसाखी के त्योहार से एक दिन पहले 12 अप्रैल, 1895 को पीएनबी को कारोबार के लिए शुरू किया गया। इस बैंक में सबसे पहला खाता खुला लाला लाजपत राय का। बैंक के लिए मई, 1895 में एक ऑडिटर नियुक्त किया गया। बैंक के स्पष्ट नियम, ग्राहकों के साथ पारदर्शिता और पासबुक- भारतीयों के लिए ये सब नई बातें थीं और इस सब ने लोगों का बैंक पर विश्वास बनाने में मदद की।

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लाहौर में पीएनबी की पहली ब्रांच

देश के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री और महात्मा गांधी ने भी इस बैंक में खाता खोला था। इसके अलावा जलियांवाला बाग कमेटी से जुड़े सदस्यों ने भी इस बैंक पर भरोसा जताया। धीरे-धीरे इसमें खाता खोलने वालों की संख्या और नाम भी बढ़ते गए। बैंक के शुरू होने के एक साल बाद, 30 जून, 1896 को बैंक की कुल जमा राशि 3,46,046 रूपये थी।

लाला लाजपत राय अपनी आखिरी सांस तक बैंक के प्रबंधन और कामकाज से जुड़े रहे। पीएनबी के बाद भी देश में बहुत से बैंक खुले। साथ ही, सहकारी समितियों को भी बढ़ावा मिला। साल 1946 तक आते-आते पीएनबी की लगभग 278 ब्रांच पूरे देश में फैली हुई थीं। उस वक़्त लाला योध राज बैंक के डायरेक्टर थे।

उस वक़्त देश आज़ाद होने की कगार पर था; पर लाला योध राज को कोई और ही चिंता सता रही थी। कहीं न कहीं आज़ादी के साथ आने वाले बँटवारे को भी उन्होंने भांप लिया था और इसलिए, भारत की स्वतंत्रता से कुछ दिन पहले उन्होंने पीएनबी के मुख कार्यालय को लाहौर से दिल्ली शिफ्ट करवा दिया।

भारत के विभाजन के समय हालत बहुत बुरे थे। बैंक की जो भी ब्रांच पाकिस्तान के हिस्से में गयीं, वे जल्द ही बंद कर दी गयीं। इससे देश की काफ़ी पूंजी बर्बाद हुई। लेकिन भारत में नागरिकों का विश्वास इस बैंक पर था और इसलिए बैंक के कर्मचारियों ने दिन-रात एक करके बैंक को चलाये रखा।

बताया जाता है कि विभाजन में बहुत से नागरिकों ने अपने बैंक के कागज़ात खो दिए थे। पर फिर भी बैंक ने हर एक नागरिक को उनके जमा किये हुए पैसे दिए। यह बैंक लाला लाजपत राय और उनके साथियों की दूरदृष्टि का ही परिणाम था। ये सभी लोग जानते थे कि आज़ादी के बाद भारत को अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए ऐसे बैंकों की ही जरूरत होगी। आज इतने सालों बाद भी पंजाब नेशनल बैंक भारत के सबसे बड़े और ऊँचे बैंकों में से एक है।

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