16 दिसंबर, 1971 को, भारतीय सेना ने पाकिस्तान के विरुद्ध निर्णायक युद्ध जीता। अपने देश की रक्षा करने के लिए कई वीर सैनिकों ने अपनी जान दे दी।
आज 36 साल बाद भी इन सैनिकों का बलिदान हमारे देश में गूंजता है। पर बहुत कम लोग है, जो भारतीय वायु सेना के परमवीर चक्र विजेता निर्मलजीत सिंह सेखों के बारे में जानते हैं।
वे वायु सेना के इकलौते अफ़सर थे, जिन्हें परमवीर चक्र से नवाज़ा गया।

पंजाब के लुधियाना जिले के इस्वाल दाखा गाँव के रहनेवाले निर्मलजीत सिंह सेखों का जन्म 17 जुलाई, 1943 को हुआ था। उनके पिता तारालोचन सिंह सेखों भारतीय वायुसेना में फ्लाइट लेफ्टिनेंट थे।
अपने पिता से प्रेरित, सेखों ने बचपन में ही फ़ैसला कर लिया था कि वे भारतीय वायु सेना (आईएएफ) में शामिल होंगे। अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने इंडियन एयर फ़ोर्स में शामिल होने के अपने सपने को पूरा किया। 4 जून, 1967 को उन्हें औपचारिक रूप से एक पायलट के रूप में कमीशन किया गया था।
साल 1971 में भारत पाकिस्तान का युद्ध शुरू हुआ। पाकिस्तानी वायुसेना (पीएएफ) अमृतसर, पठानकोट और श्रीनगर के महत्वपूर्ण हवाईअड्डों को ध्वस्त करने के लिए निरंतर हमले कर रही थी। आईएएफ के 18 स्क्वाड्रन की एक टुकड़ी को श्रीनगर की रक्षा के लिए नियुक्त किया गया।
सेखों इस प्रसिद्ध स्क्वाड्रन का हिस्सा थे, जिसे हवा में उनकी अविश्वसनीय क्षमता के कारण ‘फ्लाइंग बुलेट’ भी कहा जाता था। 14 दिसंबर, 1971 की सुबह वे फ्लाइट लेफ्टिनेंट बलधीर सिंह घुम्मन के साथ श्रीनगर एयरफील्ड में स्टैंड-बाय-2 ड्यूटी (लड़ाई के आदेश मिलने पर उन्हें दो मिनट के भीतर हवाई जहाज पर जाना पड़ता है) पर थे।
दोस्तों और सहयोगियों के बीच ‘जी-मैन’ के नाम से जाने जाने वाले घुम्मन, सेखों के वरिष्ठ अधिकारी होने के साथ-साथ प्रशिक्षक भी थे।
सेखों को सभी लोग प्यार से ‘भाई’ कहकर बुलाते थे।

उस सुबह, पाकिस्तान के छह एफ-86 सेबर जेट (पीएएफ के प्रमुख सेनानी) को श्रीनगर एयरबेस पर बमबारी करने के उद्देश्य से पेशावर से हटा लिया गया था। इस टीम का नेतृत्व 1965 युद्ध के अनुभवी, विंग कमांडर चँगाज़ी ने किया था। इस टीम में फ्लाईट लेफ्टिनेंट डॉटानी, एंड्राबी, मीर, बेग और यूसुफजई शामिल थे। सर्दी में कोहरे के कारण पाकिस्तानी सेना ने कब भारतीय सीमा में प्रवेश कर लिया, पता भी नहीं चला।
उस समय कश्मीर घाटी में कोई रडार नहीं था और आईएएफ आनेवाले खतरे के लिए ऊंचाई पर लगी पोस्टों द्वारा चेतावनी पर ही निर्भर था। पीएएफ फौजियों को आखिरकार श्रीनगर से कुछ किलोमीटर दूर एक आईएएफ निरीक्षण पोस्ट द्वारा देखा गया और उन्होंने तुरंत एयरबेस को चेतावनी दी।
‘जी मैन’ घुम्मन और ‘भाई’ सेखों ने तुरंत अपने सेनानी विमानों को निकाला और उड़ान भरने की आज्ञा लेने के लिए एयर ट्रैफिक कंट्रोल (एटीसी) से संपर्क करने की कोशिश करने लगे। लेकिन रेडियो नेटवर्क में परेशानी की वजह से वे अपने सभी प्रयासों के बावजूद एटीसी से जुड़ने में असमर्थ रहे। पर उन्होंने बिलकुल भी देरी न करते हुए उड़ान भरी और जैसे ही उन्होंने उड़ान भरी, रनवे पर दो बम विस्फोट हुए।
जब सेखों ने उड़ान भरी तो उन्होंने देखा कि दो सेबर जेट दूसरे रनवे पर हमला करने के लिए बढ़ रहें हैं, तो उन्होंने तुरंत अपना जेट घुमाया और उनका पीछा किया।
इसके बाद जो हुआ वह वायु युद्ध के इतिहास में शायद अब तक की सबसे बड़ी लड़ाई है।

जब चँगाज़ी ने देखा कि एक भारतीय जेट उनके सेबर जेट का पीछा कर रहा है, तो उन्होंने तुरंत अपनी टीम को नीचे कूदने और गोताखोरी करने का आदेश दिया। लेकिन तब तक सेखों ने उन पर गोलियां बरसाना शुरू कर दिया था।
सेखों उन दो सेबर जेट से लड़ ही रहे थे कि उनके पीछे और दो पाकिस्तानी सेबर जेट आ गए। अब यह केवल एक आईएएफ जेट था, जो 4 पाकिस्तानी सेबर जेट से मुकाबला कर रहा था। घुम्मन का संपर्क भी सेखों से टूट गया था और वे उनकी मदद के लिए नहीं जा पाए।
यह सेखों का अपने जेट पर विश्वास और उनका साहस था कि उन्होंने अकेले 4 सेबर जेट से मुकाबला किया। सेखों ने अपने जेट से फायरिंग करते हुए चक्कर लगाना शुरू कर दिया। तभी रेडियो संचार व्यवस्था से निर्मलजीत सिंह की आवाज़ सुनाई पड़ी…
“मैं दो सेबर जेट जहाजों के पीछे हूँ…मैं उन्हें जाने नहीं दूँगा…”
उसके कुछ ही क्षण बाद नेट से आक्रमण की आवाज़ आसमान में गूँजी और एक सेबर जेट आग में जलता हुआ गिरता नजर आया। तभी निर्मलजीत सिंह सेखों ने अपना सन्देश प्रसारित किया…
“मैं मुकाबले पर हूँ। मेरे इर्द-गिर्द दुश्मन के दो सेबर जेट हैं। मैं एक का पीछा कर रहा हूँ, दूसरा मेरे साथ-साथ चल रहा है।”
इसके बाद नेट से एक और धमाका हुआ, जिसके साथ दुश्मन के सेबर जेट के ध्वस्त होने की आवाज़ भी आई। उनका निशाना फिर लगा और एक बड़े धमाके के साथ दूसरा सेबर जेट भी ढेर हो गया। कुछ देर की शांति के बाद फ्लाइंग अफ़सर निर्मलजीत सिंह सेखों का सन्देश फिर सुना गया। उन्होंने कहा…
“शायद मेरा जेट भी निशाने पर आ गया है… घुम्मन, अब तुम मोर्चा संभालो।”
यह निर्मलजीत सिंह का अंतिम सन्देश था। इसके बाद उनका जेट बड़गाम के पास क्रैश हो गया और उन्हें शहादत प्राप्त हुई।
जब वे शहीद हुए तब उनकी उम्र मात्र 26 वर्ष थी।

देश के लिए अपनी निःस्वार्थ सेवा और दुश्मन के खिलाफ़ दृढ़ संकल्प के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। उनकी पत्नी और पिता ने यह सम्मान स्वीकार किया। वह युद्ध में भारत के सबसे बड़े बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले और एकमात्र वायु सेना के सैनिक थे।
भाई ‘सेखों’ जैसे सैनिक हर दिन पैदा नहीं होते हैं। इस वीर योद्धा के बलिदान के लिए देश सदा उन्हें सम्मान के साथ याद करता रहेगा!
संपादन – मानबी कटोच
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