प्रेमपूर्वक ‘कोबीगुरु’ के नाम से जाने जाने वाले पुरस्कृत कवि और बहुमुखी प्रतिभा के धनी रबीन्द्रनाथ टैगोर आज भी उनके साहित्य में जीवित हैं। बहुत से लोगों के लिए उनकी विरासत, उनके द्वारा रचे गए संगीत में बसती है, उनके गाने जिनकी संख्या शायद 5000 से भी ज्यादा है।
अक्सर परिवार में, उत्सवों, त्योहारों के दौरान गाये जाने वाले रबीन्द्र संगीत में प्रेम का अद्भुत मिश्रण है। जैसे कि ये गाना, ‘भालोबेशे शोखी, निभृते जोतोने,’ मतलब, ‘मेरे प्रिये, मेरा नाम लिखो, प्रेम और स्नेह से अपनी आत्मा के मंदिर पर।”
उनके संगीत को देखते हुए, ये कोई आश्चर्य की बात नहीं कि इस बंगाली आइकॉन को ‘रोमांस का कवि’ कहा जाता है। हालाँकि, बहुत कम लोगों को शायद रबीन्द्र और बॉम्बे की अन्नपूर्णा तुरखुद की प्रेम कहानी के बारे में पता हो। 17 साल के रबीन्द्र एक मराठी लड़की से प्यार कर बैठे थे और आज भी वह उनकी कविताओं में जीवित है।
दिलचस्प बात यह है कि इस प्रेम-कहानी पर आधारित एक बंगाली-मराठी फिल्म बन रही है। प्रियंका चोपड़ा के प्रोडक्शन हाउस पर्पल पेबल्स पिक्चर्स द्वारा निर्मित यह फिल्म लिखित दस्तावेजों पर आधारित है और आधुनिक शांतिनिकेतन में एक युवा छात्र के दृष्टिकोण से सुनाई जाएगी, जो ‘नलिनी’ नाम के साथ अन्नपूर्णा की एक तस्वीर को देखता है।
तो आज हम आपको बता रहें हैं, अन्नपूर्णा तुरखुद की कहानी, जिन्हें रबीन्द्र ने प्यार से ‘नलिनी’ नाम दिया था और इसी नाम से यह फिल्म भी आ रही है।

अन्ना या अन्नबाई के नाम से भी जाने जाने वाली अन्नपूर्णा, मुंबई स्थित (तत्कालीन बॉम्बे) डॉक्टर आत्माराम पांडुरंग तुरखुद की बेटी थीं। एक उच्च शिक्षित परिवार होने के साथ-साथ आत्माराम एक समर्पित सामाजिक सुधारक भी थे, जिन्होंने प्रार्थना समाज की स्थापना की थी।
इस तरह से उनके दोस्तों में देश भर से सुधारवादी और प्रतिष्ठित नागरिक शामिल थे। इन परिचितों में से एक रवींद्रनाथ टैगोर के बड़े भाई सत्येंद्रनाथ टैगोर भी थे। वो भारतीय नागरिक सेवा में शामिल होने वाले पहले भारतीय थे।
सत्येन्द्रनाथ ने ही रबीन्द्र को तुरखुद परिवार के साथ रहने के लिए मुंबई भेजा था। क्योंकि साल 1878 में रबीन्द्र पहली बार इंग्लैंड जाने वाले थे। इसलिए वे चाहते थे कि वहां जाने से पहले रबीन्द्र की अंग्रेज़ी अच्छी हो जाये। और इसके लिए फ्रांसीसी तुरखुद परिवार से अच्छा और कोई विकल्प नहीं था।
साल 1878 के मध्य में लगभग दो महीनों के लिए किशोर रबीन्द्र आत्माराम के घर पर रहे। अन्ना उन्हें अंग्रेज़ी पढ़ाती थी। रबीन्द्र से उम्र में तीन साल बड़ी अन्ना, कुछ वक़्त पहले ही इंग्लैंड से लौटीं थी। इसलिए उनकी अंग्रेज़ी काफी अच्छी थी।

ऐसा माना जाता है कि इन्हीं दिनों में उन दोनों के बीच प्यार हुआ। कृष्णा कृपलानी ने अपनी किताब ‘टैगोर-ए लाइफ’ में उनके रिश्ते के बारे में लिखा है। इस किताब के मुताबिक, दोनों के बीच यह स्नेह भरा रिश्ता पनपने के बाद टैगोर ने अन्ना को ‘नलिनी’ नाम दिया था।
इतना ही नहीं रबीन्द्र की बहुत सी कवितायेँ भी नलिनी से प्रेरित हैं। हालाँकि, किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। शायद इसीलिए किशोरावस्था का यह प्रेम, भविष्य का साथ नहीं बन पाया।
बॉम्बे में दो महीने रहने के बाद टैगोर ने अन्ना से विदा ली और इंग्लैंड चले गए। दो साल बाद, अन्नपूर्णा ने बड़ौदा हाई स्कूल और कॉलेज के स्कॉटिश उपाध्यक्ष हेरोल्ड लिटलडेल से विवाह किया। इसके बाद, वे अपने पति के साथ इंग्लैंड चली गयी और एडिनबर्ग में बस गयी। लेकिन साल 1891 में, मात्र 33 वर्ष की आयु में ही अन्ना की मृत्यु हो गयी थी।
वैसे कुछ दस्तावेज़ों की माने तो, अन्ना और रबीन्द्र के रिश्ते को आत्माराम तुरखुद ने अपना लिया था। लेकिन इनके रिश्ते के लिए रबीन्द्र के पिता देबेंद्रनाथ ने इंकार कर दिया, क्योंकि अन्नपूर्णा उम्र में रबीन्द्र से बड़ी थीं।

‘रबीन्द्रनाथ टैगोर: द मायरियड माइंडेड मैन’ (कृष्णा दत्ता और डब्ल्यू एंड्रयू रॉबिन्सन द्वारा लिखी गई पुस्तक) के मुताबिक, आत्माराम और अन्नपूर्णा साल 1879 की शुरुआत में कलकत्ता गए थे, जहां उन्होंने टैगोर के पारिवारिक निवास स्थान जोरासांको ठाकुर बारी में देबेन्द्रनाथ से मुलाकात की थी।
उनकी मुलाकात में क्या हुआ, यह तो रहस्य ही रहा। मगर लेखकों का मानना है कि उसी वक़्त उन दोनों के रिश्ते को ठुकरा दिया गया था।
अन्नपूर्णा ने अपना साहित्यिक उपनाम ‘नलिनी’ ही प्रयोग किया और इसके अलावा उन्होंने अपने एक भतीजे का नाम भी रबीन्द्रनाथ रखा। ये सब बातें दर्शाती हैं कि उनका रिश्ता महज़ कुछ वक़्त का आकर्षण नहीं था। टैगोर ने भी अपने लेखन में ‘नलिनी’ नाम को बहुत ही प्यार से इस्तेमाल किया है।
वास्तव में, टैगोर अन्नपूर्णा को कभी नहीं भूल पाए थे और अक्सर वृद्धावस्था में भी उनके बारे में बात किया करते थे। अपनी 80 साल की उम्र में भी उन्होंने नलिनी को याद करते हुए बताया कि कैसे नलिनी ने उन्हें कभी भी दाढ़ी न रखने के लिए कहा था।
“सब जानते हैं कि मैंने उस सलाह को नहीं माना। लेकिन वह स्वयं मेरे चेहरे पर उस अवज्ञा को देखने के लिए जीवित नहीं रहीं।”
उम्मीद तो यही जताई जा रही है कि यह कहानी कभी न भूलने वाली फिल्म बनेगी। साहेब भट्टाचार्य को युवा कवि और मराठी अभिनेत्री वैदेही पराशुरमी को अन्नपूर्णा की भूमिका के लिए कास्ट किया गया है। इस फिल्म का निर्देशन राष्ट्रीय पुरस्कार द्वारा पुरस्कृत फिल्म निर्माता उज्ज्वल चैटर्जी करेंगें।
चैटर्जी का दावा है कि ‘नलिनी’ लिखित दस्तावेजों और ‘व्यापक शोध’ पर आधारित है। हालाँकि, वे जानते हैं कि इस फिल्म से जुड़ा हर पहलु उतना ही भव्य होगा, जितना कि स्वयं टैगोर हैं। इसीलिए उन्होंने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि ज्ञानपीठ पुरुस्कार से सम्मानित कवि संख्या घोष सहित आठ सदस्यी पैनल, किसी भी परिवर्तन से पहले स्क्रिप्ट की समीक्षा करेगा।
फिल्म कब रिलीज़ होगी, इसके बारे में तो अभी नहीं बताया गया है। लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि यह फिल्म रबीन्द्रनाथ टैगोर के जीवन के एक महत्वपूर्ण पहलु को पूरी ईमानदारी के साथ दर्शाने में खरी उतरेगी।
( संपादन – मानबी कटोच )
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