मधुबाला : सिर्फ़ 36 साल की ज़िंदगी की वो सुनहरी यादें!

14 फरवरी को हिंदी सिनेमा की सबसे बेहतरीन अभिनेत्री मधुबाला का जन्मदिन भी होता है। वह हीरोइन, जो न केवल अपनी खूबसूरती, बल्कि परदे पर अपनी अविश्वसनीय अदाकारी और प्रभावशाली अभिनय के कारण हिंदी सिनेमा की आइकन मानी जाती है।

14 फरवरी, ‘वेलेंटाईन डे’ को दुनिया भर में प्रेम और मोहब्बत का दिन माना जाता है। भारत जैसे देश में जहाँ अक्सर प्यार करने वालों को तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ता है- वहाँ प्यार का यह दिन हमारी संस्कृति का हिस्सा बन गया है।

और शायद यह किसी संयोग से कुछ ज़्यादा ही है कि इसी दिन हिंदी सिनेमा की सबसे बेहतरीन अभिनेत्री मधुबाला का जन्मदिन भी होता है। वह हीरोइन, जो न केवल अपनी खूबसूरती, बल्कि परदे पर अपनी अविश्वसनीय अदाकारी और प्रभावशाली अभिनय के कारण हिंदी सिनेमा की आइकन मानी जाती है। हिंदी सिनेमा के परदे पर ‘प्रेम’ जैसी कोमल भावनाओं की साहसनीय अभिव्यक्ति में मधुबाला का शायद ही कोई मुक़ाबला हो।

मधुबाला (फोटो साभार)
साल 1933 में जन्मीं, मुमताज जहाँ बेगम देहलवी उर्फ़ मधुबाला ने महज़ 9 साल की उम्र में ही अपने अभिनय करियर की शुरुआत की। इसकी वजह थी– परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति। अपने पिता अता उल्ला ख़ान की कड़ी निगरानी में उनका फ़िल्मी सफ़र शुरू हुआ था। हालांकि, अपने छोटे-से फ़िल्मी करियर में पिता की विवादस्पद भूमिका के कारण, वे उस सुपरस्टारडम को नहीं पा सकीं, जिसकी वे हकदार थीं।

उस वक़्त की एक बड़ी कलाकार, देविका रानी ने इस युवा अभिनेत्री की अपार क्षमता और अभिनय कौशल को देख कर, उन्हें अपना ऑन-स्क्रीन नाम ‘मधुबाला’ रखने की सलाह दी। मधुबाला, साल 1947 में फिल्म ‘नील कमल’ में राज कपूर के साथ पहली बार मुख्य भूमिका में आई और आख़िरी बार उन्हें ‘मुमताज़’ की भूमिका में देखा गया। महज 36 साल की उम्र में ही, उन्होंने कई यादगार फ़िल्में दीं, जिसमें महल (1949), अमर (1960), मिस्टर एंड मिसेज’ 55 (1955), चलती का नाम गाड़ी (1958), हावड़ा ब्रिज (1958), मुग़ल-ए-आज़म (1960) व बरसात की रात (1960) प्रमुख हैं।

जिस समय मधुबाला ने सिनेमा जगत में कदम रखा, वह आज़ादी के तुरंत बाद का दौर था। देश बेहद कठिन आर्थिक और सामजिक हालातों से गुज़र रहा था। ऐसे समय में, मधुबाला की फ़िल्में दर्शकों के मन पर अमिट छाप छोड़ी। मधुबाला ने जिन कहानियों और किरदारों को अपने अभिनय के माध्यम से परदे पर उतारा, उनमें से कई ऐसी प्रेम कहानियाँ थीं जो गरीबी, शोषण, जटिल पारिवारिक संबंधों और दुखों की पृष्ठभूमि स जन्मीं थीं, जिसे आज भी हम अपने समाज में देख सकते हैं!

इतना ही नहीं, अमेरिका की मैगज़ीन, थिएटर आर्ट्स ने उनको ‘दुनिया की सबसे बड़ी स्टार’ होने की उपाधि दी।

एक समारोह के दौरान, ‘प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया’ से बात करते हुए मधुबाला की बहन, मधुर ब्रिज ने बताया, “मधुबाला ने बहुत छोटी ज़िंदगी जी, मगर उस छोटी-सी उम्र में ही उन्होंने बहुत कुछ हासिल किया। उन दिनों महिलाओं का अभिनय क्षेत्र में जाना अच्छा नहीं माना जाता था, लेकिन अपने बेहतरीन कौशल एवं अप्रतिम सौन्दर्य के चलते, उन्होंने अपनी एक अलग छवि बनाई, जिसे आज भी सम्मान के साथ याद किया जाता है।

फोटो साभार

परदे पर शानदार भूमिकाएं निभाने के बाद, उनके आख़िरी कुछ साल बहुत दर्द में गुज़रे। दिलीप कुमार के साथ एक टुटा हुआ रिश्ता, अपने ही पिता का रुखा व्यवहार, साल 1954 में गायक/अभिनेता किशोर कुमार के साथ शादी और फिर, उसी साल उनकी दिल की बीमारी का उजागर होना, इस सबने उनकी ज़िंदगी को बहुत संघर्षमय बना दिया था।

फिल्मफेयर से बात करते हुए, मधुबाला की बहन बताती हैं, “साल 1960 तक आते-आते उनकी हालत काफ़ी बिगड़ गई थी। उनके दिल में छेद था और जिसके चलते उनके शरीर में अनावश्यक और अप्रत्याशित रूप से खून बढ़ने लगा, जो कभी नाक से, तो कभी मुँह से बाहर आ जाता था। डॉक्टर उनके घर आते थे और बोतलों में उनके शरीर से खून निकाला करते थे। हर वक्त उन्हें खांसी रहती थी। हर 4 से 5 घंटे में उन्हें ऑक्सीजन दिया जाता था, वरना उनकी सांसें फूलने लगती थी। 9 साल तक वो बिस्तर पर पड़ी रहीं, जिससे वे हड्डियों और चमड़ी का ढांचा मात्र थीं।“

23 फरवरी 1969 को अपने 36वें जन्मदिन के तुरंत बाद, ‘फर्ज़ और इश्क’ फिल्म से निर्देशन में डेब्यू करने से पहले ही उनका निधन हो गया।

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उनकी मृत्यु के बाद उनकी विरासत, आज भी हमारे दिलों में खूबसूरत यादों के तौर पर महफूज़ है। सुनिए उनकी फ़िल्मों के कुछ मशहूर गीत,

प्यार किया तो डरना क्या ( मुग़ल-ए-आज़म, 1960)

यह गीत आज भी प्यार के उत्तम गीतों में गिना जाता है। यह प्रेम में उन्मुक्त होना सिखाता है। साथ ही, प्यार के रास्ते में आने वाली किसी भी बाधा का सामना करने की हिम्मत देता है। वास्तव में इस गीत का शाब्दिक अर्थ ही है- “मैंने प्यार किया है, तो मुझे डरने की क्या जरुरत है?”

इस गीत को नौशाद साहब ने संगीतबद्ध किया है तथा सुर साम्राज्ञी लता मंगेश्कर ने अपनी आवाज़ दी है।

आइये मेहरबां (हावड़ा ब्रिज, 1958)

इस फ़िल्म में मधुबाला ने अशोक कुमार के साथ एंग्लो इंडियन कैबरा डांसर की भूमिका निभाई है। संगीतकार ओ. पी. नैय्यर ने इसे कंपोज़ किया है और आशा जी ने इसमें अपनी आवाज दी है। गोल्डन इयर्स: 1950- 70 के एक एपिसोड में गीतकार जावेद अख्तर ने कहा है,

“आइये मेहरबां एक ऐसा गीत है जो समय की कसौटी पर खरा उतरता है। आशा जी ने मधुबाला के लिए कई खूबसूरत और प्यारे गाने गाए हैं। मधुबाला की शरारती मुस्कान और मोहर अदाकारी आशा जी की आवाज के साथ बहुत मेल खाती थी।”

अच्छा जी मैं हारी चलो मान जाओ न (काला पानी, 1958)

इस कल्ट क्लासिक में मधुबाला ने आशा का किरदार निभाया है, जो कि एक पत्रकार और मकान मालकिन है। देव आनंद और मधुबाला का यह एक ऐसा गीत है, जिसे लोग अक्सर किसी को मनाने के लिए गुनगुनाते हैं। एस. डी. बर्मन ने इसमें संगीत दिया है। मोहम्मद रफ़ी और लता द्वारा गाया गया यह गीत, लय-ताल के अनूठे संयोजन और देव साहब व मधुबाला के बेहतरीन अभिनय के लिए याद किया जाता है।

 

एक लड़की भीगी-भागी सी (चलती का नाम गाड़ी, 1958)

इस गीत में किशोर कुमार एक कार मैकेनिक की भूमिका निभाते हैं, जो मधुबाला की गाड़ी को ठीक करता है। इस गाने में एस. डी. बर्मन ने संगीत दिया है और किशोर कुमार ने अपनी आवाज दी है।

मधुबाला को उसके अभूतपूर्व सुंदरता के कारण ‘भारतीय सिनेमा की सौंदर्य देवी’ के नाम से जाना जाता है। वे 50 के दशक के अंत में और 60 के दशक की शुरुआत में, ग्रीस में काफी लोकप्रिय थीं। उनकी लोकप्रियता ऐसी थी कि एक हिंदी फिल्म में उनको देखने के बाद ग्रीक गायक स्टोलिस कंजाटीडीस ने रेबेटिको/लाइको की क्लासिक ग्रीक शैली में मधुबाला के अप्रतिम सौंदर्य को समर्पित करते हुए एक गीत भी लिखा था।

मूल लेख: रिनचेन नोरबू वांगचुक 
संपादन: निशा डागर


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