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Ajanta Caves: वह ऐतिहासिक कहानी, जब अंग्रेज बुद्ध की हजारों छवियां देख रह गए थे हैरान

अजंता की गुफाओं की खोज 1819 में एक सैनिक अधिकारी जॉन स्मिथ ने की। सह्याद्रि पर्वतमाला में बनीं ये गुफाएं सदियों से निर्वाण का प्रवेश द्वार बनी हुई हैं। पढ़िए इसके खोज की रोचक कहानी।

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Ajanta Caves

विश्व प्रसिद्ध अजंता की गुफाएं (Ajanta Caves), मानवीय इतिहास में शिल्पकला और चित्रकला के सबसे शानदार उदाहरण हैं। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई से करीब 450 किलोमीटर दूर, अजंता की गुफाओं को बड़े-बड़े पहाड़ों और चट्टानों को काटकर तैयार किया गया था, जो आकार में एक घोड़े की नाल की तरह है।

सह्याद्रि पर्वतमाला में बनीं ये गुफाएं, औरंगाबाद के पास वघोरा नदी के पास स्थित हैं। यहीं से कुछ दूरी पर ‘अजिंठा’ नाम का एक गांव बसा है और इसी के आधार पर अजंता की गुफाओं का नामकरण किया गया है। 

इसमें कुल 29 गुफाएं हैं। यहां की दीवारों और छतों पर भगवान बुद्ध से जुड़ी विभिन्न घटनाओं को बखूबी दिखाया गया है। यहां दो तरह की गुफाएं हैं - विहार और चैत्य गृह।

Ajanta Caves Situated in Aurangabad district of Maharashtra
अजंता की गुफाएं

विहार की संख्या 25 है, तो चैत्य गृहों की संख्या चार है। एक ओर विहार का इस्तेमाल बौद्ध रहने के लिए करते थे, तो चैत्य गृह का इस्तेमाल ध्यान स्थल के रूप में किया जाता था। इन गुफाओं के अंत में स्तूप बने हैं, जो भगवान बुद्ध का प्रतीक है।

कब हुई खोज

जंगली जानवरों और स्थानीय भील समुदायों को छोड़कर अजंता की गुफाएं (Ajanta Caves) हजारों वर्षों तक अज्ञात रही। इन गुफाओं की खोज 1819 में मद्रास रेजीमेंट के एक युवा सैन्य अधिकारी जॉन स्मिथ ने की थी। फिर, 1983 में इसे यूनेस्कों द्वारा विश्व विरासत स्थल की सूची में शामिल किया गया।

कहा जाता है कि जॉन स्मिथ शिकार की तलाश में निकले थे, तभी उन्हें वघोरा नदी के सामने एक गुफा के मुहाने को देखा, जो इंसानों द्वारा बनाया हुआ लग रहा था। इसके बाद, वह अपनी टीम के साथ गुफा में गए। वहां उन्होंने दीवारों में शानदार नक्काशी देखी और उनके सामने ध्यान लगाते बुद्ध की एक प्रतिमा थी।

English soldier John Smith<br />
अजंता की गुफाओं की खोज करने वाले जॉन स्मिथ

उन्होंने अपने नाम को बोधिसत्व की एक मूर्ति पर उकेरा। स्मिथ के इस खोज की खबर दुनिया में तेजी से फैलनी लगी। फिर, 1844 में रॉयल एशियाटिक सोसाइटी ने मेजर रॉबर्ट गिल को यहां बनी चित्रों की प्रतिकृतियां बनाने के लिए नियुक्त किया गया।

लेकिन, रॉबर्ट गिल के लिए यहां काम करना आसान नहीं था, क्योंकि यहां भीषण गर्मी और वन्यजीवों का खतरा होने के साथ ही भील आदिवासियों का भी खतरा था। भील आदिवासी काफी उग्र थे और उन पर न तो कभी किसी भारतीय शासक ने हमला करने की हिम्मत दिखाई और न ही आधुनिक हथियारों से लैस अंग्रेजी सेना ने। 

रस्सियों और सीढ़ियों की मदद से रॉबर्ट गिल गुफा के अंदर गए और वहां शानदार वास्तुकला और मूर्तिकला (Ajanta Caves Paintings) को देख कर हैरान रह गए। यहां बुद्ध की हजारों छवियां थी, जो आज दुनिया में करोड़ों लोगों को एक सोच के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

ग्रीक कलाओं से समानता

यहां बुद्ध की छवियों के अलावा कई जानवरों, आभूषणों, पहनावों को भी दर्शाया गया था। इनमें ग्रीक कलाओं की तरह समानताएं नजर आ रही थी। जिसे महज संयोग नहीं कहा जा सकता है।  

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यह इस बात की ओर इशारा करता है कि भारतीय-यूनानी संस्कृति का विस्तार करीब 400 ईसा पूर्व सिकंदर महान के दौरान हो गया था। फिर, हेलेनिस्टिक काल में यह अफगानिस्तान और भारत के व्यापारिक मार्गों के अलावा चीन और जापान तक तेजी से फैला।

रॉबर्ट गिल ने अपने 27 कैनवास को दक्षिण लंदन के क्रिस्टल पैलेस में प्रर्दशित किया, लेकिन 1866 में 23 कैनवास आग में जलकर राख हो गए। इसी बीच, 1848 में रॉयल एशियाटिक सोसाइटी द्वारा गठित रॉयल केव टेम्पल कमीशन ने 1861 में  भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की नींव रखी।

अब तक अजंता की गुफाओं (Ajanta Caves) को लेकर चिन्ताएं काफी बढ़ चुकी थी और कुछ निडर विशेषज्ञ इस मुहिम में शामिल हो गए। कई चित्रें, दीवार टूटने से बर्बाद हो गए थे तो कुछ को उन्होंने बचा लिया था। 

Ajanta caves include paintings and rock-cut sculptures described as among the finest surviving examples of ancient Indian art
अजंता की गुफाओं में उकेरी गई बुद्ध की छवियां

इसके बाद, 1872 में बॉम्बे स्कूल ऑफ आर्ट के प्रिंसिपल जॉन ग्रिफिथ्स को नई प्रतिकृतियां बनाने की जिम्मेदारी दी गई। उन्होंने अपने छात्रों के साथ मिलकर 300 चित्रों को बनाया। इसके बाद, लेडी हेरिंगम ने कलकत्ता स्कूल ऑफ आर्ट की मदद से 1909 में अजंता की गुफाओं की और प्रतियां बनानी शुरू की। 

इसके बाद, हैदराबाद के इतिहासकार गुलाम याजदानी ने 1930 से 1955 के बीच अजंता की गुफाओं का व्यापक अध्ययन किया और अपने फोटोग्राफिक सर्वेक्षण को चार भागों में दुनिया के सामने रखा। याजदानी के योगदानों के लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से भी सम्मानित किया गया था।

वहीं, बीते दो दशकों में भारतीय पुरात्व सर्वेक्षण ने नई तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए हजारों साल पहले कलाकारों द्वारा इन चित्रों को बनाने के तकनीकों का खुलासा किया है। बताया जाता है कि इन छवियों को बनाने के लिए अफगानिस्तान में मिलने वाले लैपिस लैज्यूजली यानी राजावर्त पत्थर का भी इस्तेमाल किया गया है। नीले रंग के इस पत्थर को प्राचीन इतिहास में नवरत्नों का दर्जा हासिल है।

अलग-अलग काल में दिए गए हैं अंजाम

माना जाता है कि अजंता की गुफाओं (Ajanta Caves Built By) को सातवाहन काल और वाकाटक काल, दो अलग-अलग कालों में बनाया गया है। इस गुफाओं की ऊंचाई 76 मीटर तक है। ये गुफाएं जातक कथाओं के जरिए भगवान बुद्ध के जीवन को दर्शाती है। 

इन गुफाओं को प्रमुख वाकाटक राजा हरिसेन के संरक्षण में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा ही बनाया गया था। इतना ही नहीं, यहां चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल के दौरान भारत आए चीनी बौद्ध यात्री फाहियान और सम्राट हर्षवर्धन के दौर में आए ह्वेन त्सांग की जानकारी भी पाई जाती है। 

अजंता की गुफाओं में एक भाग में बौद्ध धर्म के हीनयान की झलक देखने के लिए मिलती है, तो दूसरे में महायान संप्रदाय की। ज्यादातर गुफाओं में ध्यान लगाने के लिए कमरों के आकार अलग-अलग हैं, जिससे साफ है कि ये कमरे को महत्व के आधार पर बनाए गए होंगे।

An ancient 24-foot reclining Buddha inside the Ajanta caves

यहां छवियों को बनाने के लिए 'फ्रेस्को' और 'टेम्पेरा', दोनों विधियों का इस्तेमाल किया गया है। इन तस्वीरों को बनाने से पहले दीवारों को रगड़कर साफ किया जाता था, फिर चावल के मांड, गोंद, पत्तियों और कुछ अन्य रासायनों का लेप चढ़ाया जाता था। सदियों बाद भी इन चित्रों की चमक पहले जैसी बनी हुई है।

वहीं, इससे करीब सौ किलोमीटर दूर एलोरा की गुफाएं हैं। यहां कुल मिलाकर 34 गुफाएं हैं, जिनमें 17 ब्राह्मण, 12 बौद्ध और 5 जैन धर्म से संबंधित हैं। इन गुफाओं को 5वीं से 11वीं सदी के बीच विदर्भ, कर्नाटक और तमिलनाडु के कई शिल्प संघों द्वारा बनाया गया है। हालांकि इसकी शुरुआत राष्ट्रकूट वंश के शासकों द्वारा हुई थी। ये गुफाएं वास्तुकला के रूप में भारत के विविधता में एकता को दर्शाती हैं।

अजंता और एलोरा की गुफाओं (Ajanta Ellora Caves) में सबसे खास है - गौतम बुद्ध की एक सोती हुई प्रतिमा। इस प्रतिमा की सुंदरता किसी को भी मंत्रमुग्ध कर देगी। सच में अजंता की गुफाएं सदियों से ‘निर्वाण का प्रवेश द्वार’ बनी हुई हैं।

संपादन- जी एन झा

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