/hindi-betterindia/media/post_attachments/uploads/2018/08/kolkata.png)
enewsroom.in
हाल ही में, पश्चिम बंगाल के कोलकाता के कूड़घाट क्षेत्र में 4 डॉक्टरों को मुस्लिम होने की वजह से परेशानी उठानी पड़ी। लेकिन ऐसे में उनके पड़ोसियों व मकान मालिक ने सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल कायम की। उन्होंने यह निश्चित किया कि इन चारों डॉक्टरों को घर खाली न करना पड़े।
दरअसल, आफताब आलम, मोज्तबा हसन, नसीर शेख और सौकत शेख, चारों डॉक्टर हैं और अभी अलग-अलग सरकारी अस्पतालों में अपनी स्टाफ शिप कर रहे हैं। इसलिए उन्होंने कोलकाता में एक घर किराये पर लिया। हालांकि, उन्होंने बताया कि उन्हें मुस्लिम होने की वजह से घर मिलने में भी काफी परेशानी हुई।
लेकिन जब उन्हें यह घर मिला तो वे बहुत खुश थे कि अभी रहने में कोई दिक्क्त नहीं होगी। पर ऐसा कुछ हुआ नहीं। क्योंकि शायद तब भी किसी पड़ोसी को उनका वहां रहना अच्छा नहीं लगा।
डॉ आफताब ने बताया, "एक दिन हमारा एक दोस्त अपने इंटरव्यू के लिए कोलकाता आया था। इसीलिए वह उस रात हमारे यहां रुका। लेकिन हमारे एक पड़ोसी ने उसे रोककर उसका पहचान पत्र दिखाने के लिए कहा। हमने भी अपनी आवाज उठायी कि हम सभी जरूरी दस्तावेज दिखाने के लिए तैयार हैं लेकिन अपने मकान मालिक को न कि उन्हें।"
इस सब तमाशे के बाद आफ़ताब ने सोशल मीडिया पर इस घटना के बारे में पोस्ट किया। "किसी ने एक एनजीओ संहति अभिजान को इस बारे में सूचित किया और वे हमारी मदद के लिए आगे आये," डॉ आफताब ने कहा।
लेकिन इस घटना में जो अच्छी बात हुई वह है स्थानीय लोगों का आगे आना। जब एनजीओ के लोगों ने क्षेत्र के अन्य लोगों से इस बारे में बात की तो सभी ने लड़कों का साथ दिया और कहा कि इन लड़कों की सबसे पहली पहचान डॉक्टर के रूप में होनी चाहिए।
यहां तक कि स्थानीय दुर्गा पूजा समिति के सदस्यों ने भी लड़कों को अपना समर्थन दिया। एक स्कूल शिक्षक और कुडघाट के निवासी भास्कर मजूमदार ने कहा, "अगर लड़कों को अपना फ्लैट खाली करना पड़ता तो यह हमारे लिए शर्म की बात होती। बाकी जिस पड़ोसी ने आपत्ति उठाई थी, उसने इस तरह की प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं की थी। लेकिन अब उन्हें भी इन लड़कों के यहां रहने से कोई समस्या नहीं है। हम सभी लोगों ने यह निश्चित किया है कि कभी भी किसी भी किरायेदार पर उसके धर्म के चलते सवाल नहीं उठाया जायेगा।"
जब लड़कों से इस बारे में बात की गयी तो उन्होंने कहा, "हम बहुत शुक्रगुजार हैं संहति अभिजान और स्थानीय दुर्गा पूजा समिति के, जिन्होंने समय रहते हमारा साथ दिया। अब हमें फ्लैट खाली करने की जरूरत नहीं है।"
इस तरह की घटनाएं आये दिन साबित करती हैं कि अभी भी भारत में सभी धर्मों के लोग मिलजुल कर रह सकते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि देश के अन्य भागों में भी लोग इस घटना से प्रेरित होकर मजहब के नाम पर नहीं बल्कि इंसानियत के आधार पर व्यक्ति की पहचान करेंगें।