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स्टैनजिन लद्दाख की नुब्रा घाटी से है और समयुक्ता तमिलनाडु के कोयंबटूर की रहने वाली हैं। देश के दो अलग-अलग छोर से होने के बावजूद उनका एक ही मकसद है-पर्यावरण के अनुकूल घर का निर्माण करना।
लद्दाख की नुब्रा घाटी के ‘आयी’ गाँव के रहने वाले 24 साल के स्टैनजिन फुंटसोग ने खुद ही इको-आर्किटेक्चर सीखा। उन्होंने कोयम्बटूरकी रहने वाली अपनी को-वर्कर समयुक्ता एस (29) को इको-आर्किटेक सिखाया और आज दोनों का एक ही मकसद है- पर्यावरण के अनुकूल घर का निर्माण करना।
2017 में इन्होंने मिलकर ‘अर्थ बिल्डिंग’ की स्थापना की। यह एक ऐसा अनूठा प्रयास है जिसमें भवन निर्माण के प्राकृतिक तरीकों से लोगों का परिचय कराया जाता है। अपने काम के जरिए उन्होंने कॉब, अर्थबैग, एडोब, स्टोन की चिनाई , रैम्ड अर्थ, कोब ओवन और रॉकेट स्टोव जैसी कई मिट्टी की तकनीकों का पता लगाया है। ‘अर्थ बिल्डिंग’ का उद्देश्य पर्यावरण के अनुकूल घर का डिजाइन तैयार करना है।
‘अर्थ बिल्डिंग’ ने जहाँ लद्दाख में अर्थबाग डोम का निर्माण किया है वहीं तमिलनाडु में एडोब फार्महाउस तैयार किया है। भवन निर्माण में ‘अर्थ बिल्डिंग’ ने जिस तरह की वास्तुकला का प्रयोग किया है, उसकी चर्चा देश भर में है। महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के तलावली गाँव के लोग भी इनके इंटीरियल वर्क के बारे में जानते हैं।
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स्टैनज़िन ने पढ़ाई पूरी करने के बाद शिक्षाविद् सोनम वांगचुक द्वारा शुरू वैकल्पिक शिक्षा केंद्र SECMOL से वास्तुकला, कम्युनिटी बिल्डिंग का ज्ञान हासिल किया।
स्कूल की पढ़ाई पूरा करने के बाद उन्होंने उदयपुर स्थित स्वराज विश्वविद्यालय में दो साल के एक पाठ्यक्रम (2015-17) में दाखिला लिया जहाँ उन्होंने आर्किटेक्चर में प्रशिक्षण प्राप्त किया।यह कोर्स छात्रों को खुद से सीखने की प्रक्रिया को सामने लाने का मौका देता है।
वह बताते हैं, “यदि आप वैकल्पिक स्किल सीखना चाहते हैं या लीक से हटकर कुछ करना चाहते हैं, तो यह जगह आपके लिए है। आपको आवेदन करने के लिए किसी डिग्री या योग्यता की भी आवश्यकता नहीं है। केवल उम्र की सीमा है। मेरे बैच में कई लोग जॉब छोड़कर आए थे जो अन्य कौशल (जैविक खेती, सामुदायिक जीवन, प्राकृतिक वस्त्रों के साथ काम करना आदि) सीखना चाहते थे। मैंने वर्कशॉप के माध्यम से वास्तुकला और इसकी अवधारणाओं के बारे में सीखा, देश भर की यात्रा की और विभिन्न प्रोजेक्ट पर काम किया।”
यहीं स्टैनजिन की मुलाकात समयुक्ता से होती है। समयुक्ता के पास पहले से ही आर्किटेक्चर में डिग्री थी और एक वर्ष के काम का अनुभव भी था।
समयुक्ता कहती हैं, “जब मैंने आर्किटेक्चर की पढ़ाई शुरू की तो मैं कुछ ऐसा करना चाहती थी जो पर्यावरण के अनुकूल हो। इंटर्नशिप के दौरान और कॉलेज के बाद भी मैं चूने के प्लास्टर जैसी प्राकृतिक तकनीकों का इस्तेमाल सीखने के लिए अपने प्रोफेसर के साथ जुड़ी रही। लेकिन मैं और सीखना चाहती थी। एक दिन मेरे प्रोफेसर ने मुझे उदयपुर में स्वराज विश्वविद्यालय के बारे में बताया। एक साल काम करने के बाद मैंने वहां दाखिला लिया।
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वह बताती हैं, “मुझे काम करने का बहुत कम अनुभव था। स्वराज में मुझे स्टैनजिन की मिट्टी और प्राकृतिक सामग्री के बारे में बारीक समझ देखकर आश्चर्य हुआ। कई मायनों में वह मेरे सलाहकार थे जिसने मुझे संरचनाओं को डिजाइन करने से लेकर मिट्टी के चीजों को बनाने में मेरी मदद की। उनके साथ काम करके प्राकृतिक सामग्री और प्राकृतिक इमारतों के कॉन्सेप्ट के बारे में मेरी समझ बढ़ी। अगर स्टैनजिन ने मेरी मदद न की होती तो शायद ही मैं इतना कुछ सीखकर आगे बढ़ पाती।”
पहला प्रोजेक्ट
उनका पहला बड़ा प्रोजेक्ट, कोयम्बटूर से 18 किमी दूर वलूकुपरई गाँव में समयुक्ता का घर था। उन्होंने अक्टूबर 2017 में काम शुरू किया और मई 2018 तक पांच-कमरे वाला अर्थबैग (सीमेंट की थैलियों में भरी मिट्टी) डोम होम बनाया।
समयुक्ता बताती हैं, “रिटायर होने के बाद मेरे पिता मेरी माँ के गांव वालुकुपरई में एक घर बनाना चाहते थे और वहीं रहना चाहते थे। शुरू में मेरे लंबे चौड़े परिवार ने अर्थबैग डोम हाउस बनाने के मेरे डिजाइनों का विरोध किया, लेकिन स्टैनजिन के साथ ही मेरे माता-पिता ने मेरा सहयोग किया। ”
घर के केंद्र में गुंबद के साथ इसे एक फूल की तरह डिजाइन किया गया है और पंखुड़ियों की तरह दोनों तरफ दो कमरे हैं। पूरे ढांचे को 15 लाख रुपये की लागत से बनाया गया था, जिसकी माप 1,200 वर्ग फुट थी। यहीं पर अर्थ बिल्डिंग ने नैचुरल भवन निर्माण में अपने शुरूआती प्रयोगों का भरपूर उपयोग किया और भविष्य के प्रोजेक्ट की नींव रखी।
स्टैनजिन बताते हैं, “यह अर्थबैग हाउस बीच से एक फूल के आकार का है और इसके दोनों ओर दो पंखुड़ियाँ हैं। शुरू में हम प्रत्येक कमरे के लिए पांच अलग-अलग गुंबद बनाना चाहते थे। इन अर्थबैग के गुंबदों को बनाना लकड़ी या स्टील के उपयोग की तुलना में बहुत अधिक किफायती है। लेकिन हमने कई अनुभवी आर्किटेक से बात की जिन्होंने कहा कि बारिश के संपर्क में आने के कारण उनके गुंबद खराब हो गए थे। इसलिए हमने गुंबद को केंद्र पर छोड़ दिया और हमारे पास अन्य सभी चार कमरों में ढलान वाली छत हैं।”
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आप गुंबद और ढलान वाली छतों को बारिश से कैसे बचाते हैं?
ट्रॉपिकल क्लाइमेट के कारण गुंबद इसके ऊपर बने छत से सुरक्षित रहता है। ढलान वाली इन छतों में मैंगलोर टाइलें होती हैं जिन्हें अर्थ बैग के ऊपर रखा जाता है और नीचे की ओर खिसकाया जाता है और बारिश से गुंबद और अन्य सभी कमरों को बचाया जाता है।
समयुक्ता ने बताया, "नींव डालने के लिए हमने जमीन को छह फीट तक खोदा जब तक हमें एक सख्त सतह नहीं मिल गयी। इसके बाद हमने पत्थर की चिनाई करने के लिए प्रशिक्षित मजदूरों को काम पर लगाया। जब आप विभिन्न क्षेत्रों में मिट्टी की परतों की खुदाई करते हैं तो आप पत्थर वाली सतह पहुंचते हैं। हम आम तौर पर नींव बनाने के लिए उसी कठोर सतह का प्रयोग करते हैं। आपको नींव डालने के लिए कितनी गहरी खुदाई करनी है, यह वहां की भौगोलिक स्थिति पर निर्भर करता है। कभी-कभी सिर्फ दो फीट खुदाई ही पर्याप्त होती है जबकि कई बार हमें छह फीट तक खुदाई करनी पड़ती है। इस तरह अब तक हमने अपनी सभी प्रोजेक्ट की नींव बनाई है। यहां हमने पत्थर की चिनाई के साथ प्लिंथ भी किया। दीवारें अर्थबैग से बनी थीं जिसके लिए हमने राजस्थान, मैक्सिको और फ्रांस जैसी दूरदराज जगहों के वालंटियर के लिए वर्कशॉप आयोजित की। कुल पांच कमरों के साथ इस प्रोजेक्ट में 3,500 से अधिक सीमेंट बैग का इस्तेमाल किया गया था। यहां तक ​​कि मेरे माता-पिता भी प्रोजेक्ट से जुड़ गए। मेरी मां ने हम सभी के लिए खाना भी बनाया।”
हालांकि, अर्थबैग से घर बनाने के लिए उस क्षेत्र की मिट्टी की गुणवत्ता भी अच्छी होनी चाहिए। इन सीमेंट की थैलियों को मिट्टी से भर दिया जाता है ताकि इनमें नमी न पकड़े और यह अधिक मजबूत बन सके। उन्हें सेट करने में बहुत मेहनत नहीं लगती है और कोई भी इसे सेट कर सकता है। ईंट की तुलना में यह सस्ता है। समयुक्ता कहती हैं कि सीमेंट के घर के विपरीत यह अधिक ठंडा और आरामदायक है। ट्रॉपिकल ज़ोन में ऐसे घरों के अंदर का तापमान अक्सर बाहर की तुलना में बहुत अधिक ठंडा होता है। हालांकि मुख्य संरचना में परिवर्तन करना कठिन है लेकिन समय के साथ दीवारें मजबूत हो जाती हैं।
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घूमंतू आर्किटेक्ट
लगभग सभी वास्तुशिल्प फर्मों के विपरीत, ‘अर्थ बिल्डिंग’ का कहीं भी कोई मुख्यालय या हेड ऑफिस नहीं है। इसके लिए कोई ख़ास शहर निर्धारित नहीं किया गया है बाकि जहां भी प्रोजेक्ट पर काम चल रहा होता है, वे वहां चले जाते हैं।
समयुक्ता कहती हैं, “जब हमने शुरुआत की तो हम एक सामुदायिक भवन की स्थापना करना चाहते थे। यदि हमें जगह नहीं मिलती तो शायद ऐसा नहीं होता। हमारे कई प्रोजेक्ट कार्यशाला और वालंटियर आधारित हैं। हम साइट पर बने रहना चाहते हैं और यह मायने नहीं रखता कि वह जगह कहां स्थित है। हम दोनों भी बहुत ट्रैवल करना पसंद करते हैं। इससे जगह, वहां के निवासियों और उनके पारंपरिक वास्तुकला को समझने में काफी मदद मिलती है। अपने ग्राहकों के लिए संरचना बनाते समय हम वर्कशॉप भी आयोजित करते हैं। हम दोनों ने वर्कशॉप के जरिए ही विभिन्न प्रोजेक्ट पर काम करना सीखा और इसीलिए हमने यह तरीका अपनाया है।”
स्टैनजिन बताते हैं, “कुशल श्रमिकों और छात्र वालंटियर के साथ काम करना पूरी तरह से एक अलग अनुभव है। दरअसल यह वालंटियर के साथ, आर्किटेक्चर स्कूलों में पढ़ाई करने वाले इंटर्न या प्राकृतिक इमारतों में दिलचस्पी रखने वाले व्यक्तियों का समूह है जो गंभीरता से कुछ सीखना चाहते हैं। यहां सीखने का माहौल है जिसमें एक दूसरे का सहयोग जरूरी है। चूंकि हमारे पास वालंटियर हैं जो सीखना चाहते हैं, वे हमसे सवाल करते रहते हैं और इससे हमारा भी ज्ञान बढ़ता है।”
वालंटियर के लिए अर्थ बिल्डिंग अपने फेसबुक और इंस्टाग्राम पेजों पर प्रोजेक्ट के लिए नोटिस डालता है और सभी जगहों से लोग रजिस्ट्रेशन करते हैं। अधिकांश क्लाइंट इससे संतुष्ट होते हैं जबकि कुछ नहींभी होते हैं।
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समयुक्ता कहती हैं, "हमारे पास अलीबाग में एक प्रोजेक्ट था जहां क्लाइंट वर्कशॉप नहीं चाहते थे। वे हमसे यह चाहते थे कि हम पूरी तरह से फिनिशिंग पर ध्यान दें। बहरहाल, हमारे ज्यादातर क्लाइंट चाहते हैं कि हम वर्कशॉप पोस्ट करें। जैसे कि जब हमने लेह में हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स (HIAL) के साथ मिलकर अर्थबाग डोम बनाने के लिए काम किया, तो वे चाहते थे कि हम इसे अपने छात्रों को सीखने के लिए प्रोजेक्ट तैयार करें। यह प्रोजेक्ट के स्केल पर भी निर्भर करता है। यदि प्रोजेक्ट बड़ा है, तो वालंटियर के साथ काम करना पर्याप्त नहीं होता।”
संरचनाएं बनाने के लिए सोच
स्टैनजिन बताते हैं, “हम जहां भी जाते हैं, हमारी पहली चुनौती स्थानीय स्तर पर उपलब्ध मिट्टी के प्रकार का पता लगाना होता है। हालांकि सीमेंट का फार्मूला तो हर जगह मौजूद है लेकिन प्राकृतिक इमारतों के निर्माण के लिए आपको यह पता लगाना होगा कि इन स्थानों पर किस प्रकार की मिट्टी है। मिट्टी के अलावा अर्थ बिल्डिंग स्थानीय स्तर पर अपनाएं जाने वाले तौर तरीकों को भी अपनाते हैं।”
उन्होंने बताया कि सामग्री और श्रम साधन जुटाने के बाद उनका अगला कदम बजट का पता लगाना होता है। वे ग्राहकों को अपनी संरचना बनाते समय वर्कशॉप आयोजित करने का विकल्प देते हैं। हालांकि यह सब जितना आसान लगता है, इसकी पूरी प्रक्रिया उतनी ही टेढ़ी है।
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स्टैनज़िन बताते हैं, "छत निर्माण के लिए आप बस आरसीसी (रीनफोर्स्ड सीमेंट कंक्रीट) का उपयोग कर सकते हैं और यह करना आसान है। प्राकृतिक इमारतों में हमें मिट्टी और लकड़ी जैसी सामग्री का उपयोग करना पड़ता है और इसके लिए बहुत काम की आवश्यकता होती है। हमें अपने घरों को सीमेंट संरचनाओं के विपरीत बहुत सावधानी से डिजाइन करना होता है। लद्दाख के बाहर बारिश सहित बहुत सारे जलवायु कारक हैं जो आपके काम को प्रभावित कर सकते हैं। हमें लकड़ी को दीमक के हमलों से बचाने के लिए अनोखे तरीके खोजने होंगे। कहीं से भी लकड़ी मिट्टी के संपर्क में नहीं होनी चाहिए क्योंकि इससे लकड़ी में दीमक लगना तय है।"
प्रोजेक्ट में मिट्टी या चूने के प्लास्टर का उपयोग होता है। लद्दाख में मिट्टी के प्लास्टर का उपयोग करना एक बहुत अच्छा विकल्प है क्योंकि यहां मिट्टी की गुणवत्ता बहुत अच्छी है। यहां भारी बारिश नहीं होती है इसलिए दीमक या पानी की कोई समस्या नहीं होती है। लेकिन वे प्राकृतिक जलवायु और मौसम की स्थिति के अनुसार प्लास्टर का इस्तेमाल करते हैं।
समयुक्ता कहती हैं, “दक्षिण भारत के गर्म भागों में भारी बारिश होती है और दीमक लगने की अधिक संभावना होती है। मेरे घर के अंदरूनी हिस्सों में मिट्टी के प्लास्टर का उपयोग करना बहुत अच्छा अनुभव नहीं रहा और हमें लकड़ियों में कई बार तेल डालना पड़ा। इसमें काफी असुविधा होती है। इसलिए इस तरह की जलवायु के लिए हम चूने के प्लास्टर का उपयोग करते हैं। इसी का एक प्रकार है लाइम सुरखी जो चूने और सुरखी (लाल ईंट पाउडर) के मिलने के बाद अच्छी फिनिशिंग देता है और पानी को रोकता है। इसके अलावा यह पानी को भी रोकता है और इसे बनाने में अधिक समय भी नहीं लगता है।”
वह कहती हैं कि वे कभी-कभी अधिक महंगे टेडलख्त लाइम प्लास्टर का भी इस्तेमाल करते हैं। यह एक वाटर प्रूफ मोरक्कन तकनीक है जिसमें चूना और जैतून का तेल मिलाया जाता है और पत्थर से बर्निशिंग की जाती है। यह पानी को रोकता है और इसलिए वे इसका उपयोग विशेष रूप से बाथरूम में करते हैं।
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पोलाची में एडोब फार्महाउस के लिए इन दोनों लोगों ने दीवारों के ऊपर कडप्पा पत्थर बिछाया जिससे यह मिट्टी और लकड़ी को दीमक से बचाने में भी मदद करता है। छत काठीदार होती है जो मैंगलोर टाइल्स के साथ ताड़ के लकड़ी के राफ्टरों से बनी होती है।
अंदर और बाहर के प्लास्टर के लिए वे चूने के प्लास्टर का उपयोग करते हैं और बाथरूम के लिए इसे टेडलख्त प्लास्टर का और फिर बाहरी दीवारों के लिए लाइम सुरखी प्लास्टर का उपयोग करते हैं।
इस फार्महाउस का कुल निर्मित क्षेत्रफल 840 वर्ग फुट है जिसमें मलबे की चिनाई के साथ नींव रखी गई है और स्थानीय कारीगरों की सहायता से प्लिंथ सूखे पत्थर की चिनाई की गई है। दीवारें कॉब, एडोब और पत्थर की चिनाई से बनी थीं, जबकि खिड़कियों और दरवाजों को पुराने घरों से निकालकर दोबारा लगाया गया था।
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समयुक्ता कहती हैं, “लॉकडाउन के बाद हम प्रोजेक्ट करना चाहते हैं और देश के विभिन्न हिस्सों में घूमना चाहते हैं। यह काफी प्रभावी है लेकिन इतना पर्याप्त नहीं है। यह तब सार्थक होगा जब हम अपने ज्ञान को दूसरों के साथ बांट सकें ताकि अधिक से अधिक लोग टिकाऊ वास्तुकला को अपनाना शुरू कर सकें। हम एक ऐसी जगह बनाना करना चाहते हैं जहां हम प्राकृतिक निर्माण सामग्री का इस्तेमाल करने पर विचारों का प्रयोग और आदान-प्रदान कर सकें। यदि अधिक आर्किटेक्ट हमारी तरह के काम में रुचि लेते हैं तो हमारा प्रभाव उतना ही अधिक होगा।”
मूल लेख- RINCHEN NORBU WANGCHUK
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