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मदुरई: 26 वर्षीय युवा आर्किटेक्ट ने बना दिया गर्मियों में ठंडा रहने वाला घर!

हर मौसम में घर के तापमान को एक जैसा बनाए रखने के लिए कैसे कई पारंपरिक तरीकों का पुनर्जीवित किया गया है।

By पूजा दास
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मदुरई: 26 वर्षीय युवा आर्किटेक्ट ने बना दिया गर्मियों में ठंडा रहने वाला घर!

60 वर्षीय सुरेश वीरप्पन एक पक्के चेट्टियर हैं और वह हमेशा से एक चेट्टियर स्टाइल के घर में रहना चाहते थे। साथ ही वह एक ऐसा घर भी चाहते थे जो आधुनिक भी हो और जिसमें सारी सुविधाएं भी हो। इन दोनों का मेल असंभव लग रहा था। 

यह विचार उनके लिए तब तक असंभव लग रहा था जब कि वो STOMP (स्टूडियो फॉर माडर्निज़म एंड  प्रैक्टिकल एस्थेटिक्स ) के संपर्क में नहीं आए। 26 वर्षीय विग्नेश सेकर के नेतृत्व में यह आर्किटेक्चरल फर्म चार युवा आर्किटेक्ट मिलकर चलाते हैं। थिरुपथुर में सुरेश वीरप्पन के नए घर को इन्होंने काफी अनोखे तरीके से बनाया है जो सबके लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। 

यह घर आधुनिक और पारंपरिक आर्किटेक्चर का बेहतरीन इस्तेमाल करते हुए बनाया गया है। साथ ही, 4,000 वर्ग फुट में बना यह घर 100 प्रतिशत जलवायु के अनुकूल है।

घरों का शानदार तरीके से निर्माण करने के लिए ये आर्किटेक्ट पहले से ही दो राष्ट्रीय पुरस्कार हाँसिल कर चुके हैं। इसके साथ ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी चार नॉमिनेशन में नाम दर्ज करा चुके हैं। यहाँ हम एक बात और बता दें कि थिरुप्पथुर का घर, इस फर्म का पहला आवासीय प्रोजेक्ट था।

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घर की पीछे का हिस्सा

इससे पहले, विग्नेश और उनकी टीम ने कुछ सरकारी और सार्वजनिक प्रोजेक्ट पर काम किया था। एक मुख्य चीज़ जिसने विग्नेश को आकर्षित की वह थी आधुनिकता के साथ परंपरिक तरीके को मिलाना। इस विचार को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अपने सपनों का घर बनाने के लिए युवा टीम से संपर्क किया।

एक आधुनिक घर

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सूरज की रौशनीयुक्त इंटीरियर्स

द बेटर इंडिया से बात करते हुए, चीफ आर्किटेक्ट विग्नेश सेकर ने अपने असाधारण प्रोजेक्ट की पेचिदा विशेषताओं को साझा किया है। उन्होंने बताया कि हर मौसम में घर के तापमान को एक जैसा बनाए रखने के लिए कैसे उन्होंने पारंपरिक तरीके को पुनर्जीवित किया। 

सुरेश वीरप्पन पारंपरिक चेट्टियार स्टाइल के साथ एक आधुनिक घर चाहते थे और इसलिए इस घर के लिए ऐसा लेआउट अपनाया गया जैसे विशेष रूप से चेट्टीनाड में होते हैं। साथ ही यह घर जलवायु के अनुकूल भी है। विग्नेश ने क्षेत्र के जलवायु विज्ञान का अध्ययन किया और उन्होंने पाया कि इसके उत्तर-पूर्व खंड में सबसे ज़्यादा सोलर रेडिएशन था। वहां सामान्य कंक्रीट छत की बजाय एक भराव स्लैब छत स्थापित किया गया।

विग्नेश बताते हैं, “भराव स्लैब की छत कंक्रीट और टेराकोटा से बनाई गई है जो ज्यादातर पुद्दुचेरी के पुराने घरों में पाई जाती है। पूरे कंक्रीट ढ़ांचे में टेराकोटा पॉट लगाए गए हैं जो पूरी संरचना को न केवल लचीला बनाता है बल्कि एक थर्मल इन्सुलेटर के रूप में भी काम करता है। दरअसल, बाहर की तुलना में यह कमरे के तापमान को 6-8 कम कर देता है।”

मानसून में भी, टेराकोटा नमी को बनाए रखेगा और अंदर ठंडक बनी रहेगी। जबकि सर्दियों के दौरान घर में रहने वाले थोड़ी गरमाहट का मज़ा ले सकेंगे।

धूप और हरियाली

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आसमान से घर का नज़ारा

रोशनी की बेहतर व्यवस्था के लिए, 16 रोशनदान लगाए गए हैं। जैसा कि घर पूर्व दिशा की ओर है, विग्नेश ने पूर्वी प्रवेश द्वार के पास एक टेराकोटा जाली लगाया है। सीधी गर्मी, धूप और धूल को रोकने के अलावा यह जाली अंदर की ओर खूबसूरत डॉयमंड-लाइट इफेक्ट भी देती है। घर में पूजा स्थल की तरफ भी ईंट की जाली लगाई गई है जो उस जगह तो बेहद खूबसूरत बनाती है। 

घर में मेडिटेशन करने के लिए एक अलग जगह भी है जहाँ पूरे दिन सूरज की रोशनी आती है। जबकि सुबह इस जगह सीधी धूप आती है और जैसे-जैसे दिन ढलता है रोशनदान से रोशनी और धूप आती रहती है।

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अन्दर का तापमान कम रहता है

टिकाऊ फैक्टर पर ध्यान देते हुए एक दीवार बनाई गई है जिसमें पोथोस और फ़र्न जैसे वायु-शुद्ध करने वाले पौधे लगाए गए हैं। यह हरे पौधों से भरी दीवार जगह की खूबसूरती तो बढ़ाती ही है साथ ही यह घर के भीतर ऑक्सीजन की निरंतर आपूर्ति भी सुनिश्चित करती है। इसके अलावा उन्होंने प्लॉट पर पहले से मौजूद पेड़ों को भी नहीं हटाया है। 

स्थानीय स्तर की सामाग्री

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दीवार पर इस तरह से पत्तियां लगाई गईं हैं।

विग्नेश और उनकी सहयोगी शामिनी, दोनों के अनुसार प्रोजेक्ट में सबसे खास बात घर बनाने में इस्तेमाल होने वाली सभी सामग्री स्थानीय स्तर पर लाना था। सारी चीज़ें 50 मील या 80 किमी के दायरे के भीतर से ली गई थीं। विग्नेश कहते हैं, “हमने सुनिश्चित किया कि सभी स्थानीय संसाधनों का इस्तेमाल किया जाए और स्थानीय कारीगरों को काम दिया जाए।”

घर के लिए टाइलें थिरुपथुर से 10 किमी की दूरी पर स्थित अथंगुडी से मंगाई गई थीं। यह शहर अपने सीमेंट टाइलों के लिए प्रसिद्ध है और यहां के कारीगर पूर्व-ब्रिटिश काल से टाइल बनाने के काम में शामिल रहे हैं। कहा जाता है कि पुराने समय में, कुलीन और रईस विदेशों से शानदार पत्थर और मार्बल लाते थे जिनसे अनूठे पैटर्न वाले टाइल्स बनाए जाते थे। चटकीले रंग और मनोविकृतिकारी डिजाइन वाले टाइल्स पारंपरिक चेट्टियार घरों की एक विशेषता है। इस संदर्भ में अथंगुडी पैलेस का विशेष उल्लेख करना ज़रूरी है। 

सुरेश वीरप्पन के घर के लिए, अथांगुडी के कारीगरों ने कच्चे माल और टाइल्स की संरचनात्मकता को बरकरार रखा और विग्नेश की STOMP टीम ने आधुनिक जियोमेट्रिकल डिजाइन बनाए। सभी स्थानीय संसाधनों का इस्तेमाल किए जाने के कारण प्रति टाइल्स की कीमत महज़ 25 रूपये थी।  

घर के करीब 80 प्रतिशत प्लास्टर में पारंपरिक रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले सीमेंट, मार्बल डस्ट, रेत और अंडे की सफेदी का मिश्रण इस्तेमाल किया गया है। विग्नेश बताते हैं, “घर की दीवारों को इस कोटिंग के कारण एक हल्के भूरे रंग के रंग में रंगा जाता है,जिसे हमने इमल्शन पेंट के ऊपर से रंगा। सफेद सीमेंट और मार्बल डस्ट आवश्यक रंग प्रदान करते हैं  और अंडे की सफेदी वेदर कोट की तरह काम करता है। 2-3 मिलीमीटर की मोटाई के साथ, कोटिंग सूरज, बारिश, और धूल को रोकता है। दीवारों पर किसी भी निशान या दाग को तुरंत मिटाया जा सकता है। ”

दिलचस्प बात यह है कि रंगाई तकनीक को क्षेत्र के वरिष्ठ कारीगरों द्वारा पूरा किया गया था।

अवार्ड्स

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वर्टिकल गार्डन वाली दीवार

प्रोजेक्ट के पूरा होने के बाद से, विग्नेश और उनकी टीम के काम की प्रशंसा हो रही है। टीम को मुंबई में फेस्टिवल ऑफ आर्किटेक्चर एंड इंटीरियर डिजाइनिंग (एफओएआईडी) 2019 में स्वर्ण पदक और इंडियन आर्किटेक्ट एंड बिल्डर पत्रिका से यंग डिजाइनर पुरस्कार भी दिया गया है। इस घर को दुनिया भर की प्रमुख आर्किटेक्ट पत्रिकाओं में भी कवर किया गया है।

इस प्रोजेक्ट में, विग्नेश को ड्रॉइंग और ब्लूप्रिंटिंग में मदद करने वाली शामिनी का मानना है, "शायद प्रोजेक्ट में स्थानीय पहलू को शामिल करने से हमें इतनी सराहना मिल रही है। हम अपने क्लाइंट को घर में पर्यावरण का महत्व समझाना चाहते थे।"

प्रोजेक्ट में स्थानीय संसाधनों का इस्तेमाल किया गया है और कारीगरों को सशक्त बनाने से लेकर लुप्त होती परंपराओं को पुनर्जीवित करने तक की कोशिश की गई है।

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IAB अवार्ड लेते विग्नेश

विग्नेश बताते हैं, “यह हमारे लिए सीखने वाला अनुभव था। हमने इन स्थानीय कलाकारों से पारंपरिक निर्माण के बारे में बहुत कुछ सीखा। हम इन पारंपरिक तरीकों पर काम करने की कोशिश कर रहे थे लेकिन उस स्तर तक नहीं जा पाए थे। इस प्रोजेक्ट के दौरान, हमने ग्रामीण कारीगरों के साथ बातचीत की और उनके काम को करीब से देखा। भविष्य के प्रोजेक्ट के माध्यम से निश्चत रूप से इस तरह की विरासत को संरक्षित करने की कोशिश जारी रखेंगे। ”

शामिनी वर्तमान समय के संदर्भ में टिकाऊ आर्किटेक्ट के महत्व पर जोर देती हैं। वह कहती हैं, “जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर, हमारी आर्किटेक्चर को अपने मूल ढांचे में टिकाऊपन को सामने लाना है। सभी आर्किटेक्ट को इन सिद्धांतों का दिल से पालन करना चाहिए। और इसके लिए पारंपरिक निर्माण विधियों का पालन करने से बेहतर और क्या हो सकता है? 

विग्नेश सेकर और उनकी शानदार टीम से [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है।

मूल लेख-

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