कोरोना से लड़ने के लिए देश में हर रोज नई-नई तैयारियाँ हो रही है। गंभीर हालत में पहुँच चुके कोरोना मरीज को प्लाज्मा की जरूरत हो तो उसके लिए डोनर ढूंढ़ने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है, इसके बाद भी कोई गारंटी नहीं होती कि डोनर मिल ही जाए। ऐसे मरीजों के लिए COPAL-19 नाम का एक एप तैयार किया गया है।
कोविड-19 के इलाज में प्लाज्मा ट्रांसफ्यूजन से बहुत से मरीज़ों को मदद मिली है। प्लाज्मा ब्लड का एक तत्व है। इस प्रक्रिया में डोनर के शरीर से ब्लड लिया जाता है, जिसमें उस इन्फेक्शन के लिए एंटीबॉडी होती है, जिससे वह अभी अभी ठीक हुआ है। इस ब्लड में से प्लाज्मा को अलग किया जाता है, क्योंकि प्लाज्मा में ही वह एंटीबॉडी होती है और इसे डॉक्टर उस मरीज़ के शरीर में डालते हैं जो अभी भी उसी बीमारी/वायरस से जूझ रहा है।
यह प्रक्रिया कारगर है लेकिन सबसे ज्यादा मुश्किल है डोनर्स का सही समय पर मरीज़ और डॉक्टरों के पास पहुँच पाना। इसलिए कुछ छात्रों और डॉक्टरों की एक टीम ने मिलकर एक एप्लीकेशन- COPAL-19 बनाई है, जिसे ज़रिए सही समय पर डोनर्स मरीज़ों की मदद के लिए पहुँच सकते हैं।
इस टीम में, IIT दिल्ली की छात्र काशिका प्रजापति और तुषार चौधरी, महाराजा सूरजमल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, नई दिल्ली के छात्र तनय अग्रवाल ने एम्स के डॉक्टर अभिनव सिंह वर्मा और डॉ. वृध कटियार के साथ मिलकर इस एप पर काम किया है।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए काशिका ने बताया, “शुरूआत में मैं एक मेडिकल फैसिलिटी ट्रैकर एप पर काम कर रही थी ताकि अस्पतालों में बेड्स, वेंटीलेटर और अन्य ज़रूरी चीजों के नंबर उपलब्ध कराए जा सकें। यह एप्लीकेशन का शुरूआती आईडिया था लेकिन जल्द ही यह एक प्लाज्मा बैंक एप में तब्दील हो गया।”
एम्स के डॉ. अभिनव सिंह ने एक घटना ने बारे में बताया, जिसके बाद उन्होंने प्लाज्मा डोनर्स और मरीज़ों को तकनीक के सहारे एक-दूसरे से जोड़ने की पहल पर काम किया। उन्होंने कहा, “एम्स के सीनियर डॉक्टर और डॉ. वर्मा के साथी को प्लाज्मा डोनर की ज़रूरत थी लेकिन उन्हें एक डोनर ढूंढने में लगभग 12 घंटे लग गए। उस समय डॉ. वर्मा को महसूस हुआ कि इस गैप को भरने की ज़रूरत है।”
इन घटनाओं के बाद काशिका ने महसूस किया कि इलाज में देरी इस वजह से नहीं है कि डोनर नहीं मिल रहे हैं बल्कि जानकारी के अभाव में यह परेशानी हो रही है। काशिका और उनकी टीम ने मरीजों और डोनर्स, दोनों को ही एक प्लेटफार्म मुहैया कराने का काम किया और COPAL-19 बनाई।
फ़िलहाल, यह एप्लीकेशन एंड्राइड और ऑनलाइन वेब पोर्टल- https://www.copal19.org/ के तौर पर उपलब्ध है। यह एप्लीकेशन दो लोगों के लिए है- पहले, डोनर्स जो अपनी सभी जानकरी इसमें भर सकते हैं और दूसरे डॉक्टर्स जो कोरोना के मरीज़ों का इलाज कर रहे हैं। डोनर्स के रजिस्ट्रेशन के बाद, यह सभी जानकारी भरनी होगी:
*नाम
*सम्पर्क सूत्र- नंबर/ईमेल
*कहाँ रहते हैं
*अपने इलाज की एक कॉपी
*यह भी बताना होगा कि आपको लक्षण थे या फिर नहीं
*आखिरी तारीख जब आपको बीमारी के लक्षण थे
काशिका आगे कहतीं हैं कि दिशा-निर्देशों के मुताबिक, कोई भी इंसान कोविड- 19 के लिए नेगेटिव होने के 14 दिन बाद या फिर आखिरी बार बीमारी के लक्षण दिखने के 28 दिन बाद प्लाज्मा डोनेट कर सकता है। योग्य डोनर हर 14 दिन में प्लाज्मा डोनेट कर सकते हैं।
जब भी ज़रूरत होगी तो रजिस्टर्ड डोनर्स को व्हाट्सएप, टेक्स्ट मैसेज या फिर ईमेल आदि के ज़रिए सूचित किया जाएगा। उन्हें सभी तरह की जानकारी दी जाएगी कि किस अस्पताल में कहाँ प्लाज्मा डोनेट करना है। अगर डोनर उस वक़्त अस्पताल नहीं पहुँच सकता तो वह मैसेज पर मना कर सकते हैं, इसके बाद किसी और उपलब्ध डोनर से जानकारी साझा की जाएगी।
शुरूआती चुनौतियाँ:
काशिका कहतीं हैं कि बहुत-सी चुनौतियाँ रहीं। सबसे बड़ी चुनौती है प्रशासन को इस प्रोजेक्ट पर साथ में लेकर काम करना। इसके लिए डॉक्टर, राज्य सरकार और प्रशासन का एक साथ समन्वय में कार्य करना ज़रूरी है लेकिन यह आसान काम नहीं है।
काशिका बतातीं हैं कि उन्होंने 26 जून से काम शुरू किया और एक हफ्ते में प्रोटोटाइप बना। इसके लगभग 10 दिन बाद जुलाई में एप्लीकेशन को लॉन्च किया गया। एम्स में न्यूरोसर्जरी डिपार्टमेंट के सीनियर डॉक्टर वृध कटियार कहते हैं कि प्लाज्मा डोनेशन इसलिए कम नहीं है कि लोग डोनेट नहीं करना चाहते। डोनेशन में कमी की सबसे बड़ी वजह है जागरूकता और एक प्लेटफार्म की कमी। उन्हें उम्मीद यही कि इस एप्लीकेशन के ज़रिए इस समस्या को हल किया जा सकेगा।
सबसे अहम बात यह है कि इस एप्लीकेशन को टीम के सदस्यों ने अपने-अपने शहरों में अपने घरों पर रहकर बनाया है। अभी भी कोविड-19 की कोई वैक्सीन अस्तित्व में नहीं आई है। ऐसे में, इस तरह की पहल काफी मददगार और कारगर साबित हो रही हैं।
इस एप के बारे में किसी भी तरह की जानकारी के लिए आप copal19dev@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं!
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