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कृष्ण कन्हैया
देश में रोजगार सृजन और किसानों की आय को बढ़ाने के लिए आज सरकार द्वारा कई योजनाओं को लागू किया जा रहा है, लेकिन इस दिशा में कृषि आधारित उद्यमशीलता को बढ़ावा दिए बिना कोई सार्थक बदलाव लाना आसान नहीं है।
आज हम आपको एक ऐसे शख्स से मिलाने जा रहे हैं, जिन्होंने लगभग 20 वर्षों तक, कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में पत्रकारिता करने के बाद, किसानों को उद्यमी बनने में मदद करने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी।
यह कहानी है मूल रूप से बिहार के बेगूसराय रहने वाले कृष्ण कुमार कन्हैया की, जो फिलहाल, झारखंड के देवघर जिला में रहते हैं। कन्हैया ने देश के कई न्यूज चैनलों में काम किया। उन्होंने ईटीवी न्यूज, सहारा न्यूज जैसे कई संस्थानों में कृषि आधारित कार्यक्रमों को चलाया है। लेकिन, जब उन्हें लगा कि किसानों की बेहतरी के लिए उन्हें कुछ अलग पहल करनी चाहिए, उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ी और लग गए किसानों को नई राह दिखाने में।
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कन्हैया ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैंने आगरा के एक कॉलेज से एग्रीकल्चर में ग्रेजुएशन किया है। पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने मीडिया संस्थानों में कई कृषि आधारित कार्यक्रमों को चलाया है। जिसमें ईटीवी का अन्नदाता, सहारा समय का चौपाल, कार्यक्रम सबसे खास है। लेकिन, 2012 में मैंने अपनी नौकरी छोड़ कर किसानों को उद्यमशीलता सिखाने का फैसला किया, ताकि मैं अपनी ट्रेनिंग का बड़े स्तर पर इस्तेमाल कर सकूं।”
इसके बाद, कन्हैया ने महज एक लाख रूपए की लागत से अपनी कंपनी ‘जीई एग्री मीडिया’ की शुरूआत की, इसके तहत वह किसानों को जैविक खेती से संबंधित जरूरी तकनीकी जानकारी और प्रशिक्षण देते हैं।
वह बताते हैं, “पिछले 8 वर्षों में मैंने देश के विभिन्न हिस्सों के 2500 से अधिक किसानों को जैविक खेती और कृषि आधारित उद्यमशीलता को लेकर प्रशिक्षित किया है। किसान हमारी बातों को मानते हैं और इसके कई बेहतर परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं।”
तो, आइये कुछ ऐसे किसानों से मिलते हैं, जो कन्हैया से बारीकियाँ सीख, खेती के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं।
बिहार के बेगूसराय जिला के कुड़ई गाँव के रहने वाले ब्रजेश, इलेक्ट्रॉनिक्स एंड टेलीकम्युनिकेशन में डिप्लोमा करने के बाद जॉब कर रहे थे, लेकिन खेती करने की चाहत में उन्होंने नौकरी छोड़ दी, उनके इस फैसले को लेकर परिवार वाले शुरू में नाराज भी हुए।
ब्रजेश बताते हैं, “मैं कन्हैया जी से 2013 में मिला। वह पहले शख्स थे, जिन्होंने मुझे खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके बाद, मैंने लीज पर जमीन लेकर जैविक खेती शुरू की। इसमें उन्होंने वर्मी कम्पोस्ट, प्रोडक्शन यूनिट बनाने और अन्य जरूरी विषयों में तकनीकी ज्ञान दिया।”
फिलहाल, ब्रजेश काफी बड़े पैमाने पर जैविक खेती करने के साथ ही, उन्नत तरीके से पशुपालन भी करते हैं, जिससे उन्हें हर साल 5 करोड़ की कमाई होती है। खास बात यह है कि खेती के क्षेत्र में उनके कार्यों को प्रधानमंत्री द्वारा भी सराहा जा चुका है।
वहीं, बिहार के बाँका के रहने वाले दिवाकर चौधरी कहते हैं, “हमारे पास 4 एकड़ जमीन है, लेकिन पहाड़ी क्षेत्र होने की वजह से उपज अच्छी नहीं होती है। इसलिए मुझे कुछ अलग करने की इच्छा थी। इसी कड़ी में, एक साल पहले मेरी कन्हैया जी से मुलाकात हुई।”
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वह आगे बताते हैं, “मैंने अपनी समस्या को जब कन्हैया जी से साझा किया, तो उन्होंने मुझे बागवानी शुरू करने का सुझाव दिया, क्योंकि इसमें ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है। इसके बाद मैंने, उनके पास से 150 से अधिक उन्नत किस्म के आम, अमरूद, पपीते, आदि के पेड़ मंगाए, आज इन पौधे हमारी खेतों में लहलहा रहे हैं, उम्मीद है कि काफी अच्छी उपज होगी।”
बिहार के टाल क्षेत्रों में जैविक खेती को दे रहे बढ़ावा
बिहार के मोकामा के रहने वाले मुरारी सिंह बताते हैं, “मोकामा में गंगा नदी का लगभग एक लाख हेक्टेयर का टाल क्षेत्र है और पिछले साल, मैंने अपनी ‘टाल फार्मर प्रोड्यसर कंपनी‘ के तहत कन्हैया जी को एक कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया था। इसके बाद से हम लगातार संपर्क में हैं। उनसे जैविक खेती के तकनीकों को जानने के साथ ही, पानी के बेहतर इस्तेमाल, फसल आदि के बारे में कई जरूरी जानकारी मिलती है।”
महाराष्ट्र के किसान को भी सीखा रहे हैं खेती के गुर
मुंबई से 102 किलोमीटर दूर वनगाँव में रहने वाले रवि प्रकाश 3 एकड़ जमीन पर जैविक विधि से कई सब्जियों की खेती करते हैं और उनके उत्पादों के आपूर्ति मुम्बई में भी की जाती है।
इसके बारे में वह कहते हैं, “कन्हैया जी से मेरी मुलाकात, कुछ साल पहले फेसबुक के जरिए हुई थी। मेरी उनसे हर हफ्ते 2-3 बार बात होती है। उनकी बातों से प्रेरित होकर मैंने पिछले साल अपनी 3 एकड़ जमीन पर सब्जियों की खेती शुरू कर दी। मैंने बीज उनसे ही मंगवाया था। साथ ही, उन्हें जैविक खेती की सभी जरूरी जानकारी दी, जिसका फायदा मुझे हो रहा है। मैं जल्द ही, 200 एकड़ पर जैविक खेती शुरू करने की योजना बना रहा हूँ।”
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कन्हैया ने लगभग 3 साल पहले एक एकड़ जमीन पर नर्सरी की भी शुरूआत की, जिसके तहत आम, पपीता, अनार जैसे 5000 से अधिक पौधे हैं। आज बिहार-झारखंड के अलावा उनके ग्राहक, आंध्र प्रदेश, यूपी, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भी हैं। जिससे उन्हें हर साल 4-5 लाख रूपये की कमाई हो जाती है।
इसके अलावा, वह झारखंड सरकार की आत्मा योजना के तहत गिरिडीह और दुमका जिले के 30 गाँवों के किसानों को भी जैविक खेती का प्रशिक्षण दे रहे हैं।
क्या है काम का तरीका
कन्हैया बताते हैं, “आज के समय में, किसानों के उत्थान के लिए जो भी पॉलिसी बनाई जाती हैं, वह हर जगह के किसानों के लिए उपयुक्त नहीं है। इसी वजह से योजना का पूरा लाभ किसानों को नहीं मिल पाता है। इस चुनौती का सामना करने के लिए हम सबसे पहले यह समझते हैं, उस विशेष क्षेत्र में कौन सी फसल अच्छी होगी। इसके बाद हम कुछ किसानों को चयनित करते हैं और उन्हें वर्कशॉप आदि कर प्रशिक्षित करते हैं। फिर, वही किसान गाँव के अन्य किसानों को जानकारी देते हैं। इस तरह, हमारे काम का विस्तार काफी सीमित संसाधनों में हो जाता है।”
क्या है भविष्य की योजना
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कन्हैया अपनी भविष्य की योजनाओं को लेकर कहते हैं, “देश में बेकरी उत्पादों की माँग हर साल 15 प्रतिशत से अधिक गति से बढ़ रही है, इसलिए मैं जल्द ही अपनी बैकरी शुरू करने की योजना बना रहा हूँ। इसके लिए, आम, अमरूद, पपीता आदि की प्रोसेसिंग करने की भी योजना है।”
यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है और कृष्ण कुमार कन्हैया से खेती-किसानी के बारे में जानकारी हासिल करना चाहते हैं तो उनसे 7717747271 पर संपर्क कर सकते हैं।
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