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6 बरस की उम्र में सगाई, 11 बरस में मां का निधन, 16 बरस की उम्र में पहली किताब और सोलह बरस की उम्र में ही प्रीतम सिंह से विवाह। आजीवन साहिर से उत्कट प्रेम और जीवन के अंतिम पलों तक लगभग 50 बरस तक इमरोज का साथ।
बस इतनी सी थी 31 अगस्त 1919 को पंजाब के गूंजरांवाला में जन्मी अमृता प्रीतम की कहानी। पर इतनी सी कहानी में वे अपनी खुद की इतनी सारी कहानियाँ छोड़ गयी कि साहित्य जगत उनके उल्लेख के बगैर अपूर्ण सा लगने लगा।
कहा जाता है कि लेखक खुशवंत सिंह ने एक बार हंसी ठिठोली में कहा था कि अमृता की जीवनी तो इतनी सी है कि एक डाक के टिकट पर लिखी जा सकती है। यहीं वजह थी कि जब अमृता ने अपनी जीवनी लिखी तो नाम रखा, 'रसीदी टिकट'।
अमृता सिर्फ साहित्य प्रेमियों की ही चहेती नहीं थी बल्की प्रेमी युगलों की भी प्रिय थी। कारण था उनका ताउम्र मशहूर शायर, साहिर लुधियानवी के लिए निष्पाप, निःस्वार्थ और समर्पित प्रेम। हैरानी की बात ये थी कि एक ऐसे समय में जब महिलायें किसीके लिए अपने प्यार को छुपायें रखने में ही अपनी भलाई समझती थी, अमृता ने साहिर से अपने प्रेम भाव को खुलेआम स्वीकारा।
हालांकी साहिर और अमृता का मेल शायद समय को मंज़ूर न था। और ऐसे समय में अमृता के जीवन में इमरोज़ दाखिल हुए। इमरोज़ पेशे से एक चित्रकार थे। उनका असली नाम इंदरजीत था, पर क्यूंकि 'इमरोज़' का मतलब 'आज' होता है तो वे अमृता के जीवन में हमेशा उनके इमरोज़ बनकर रहे। इन दोनों का प्रेम भी अद्भुत था या फिर कह लीजिये कि आज भी है।
अपनी जीवनी में अमृता ने एक वाकया लिखा है, जिससे ये साफ़ जाहिर होता है कि अमृता और इमरोज़ का रिश्ता कितना सच्चा, कितना मासूम और दुनिया की रस्मो रिवाजों से परे था।
बात उन दिनों की है जब अमृता, इमरोज़ की स्कूटर के पीछे बैठकर जाया करती थी। एक बार अमृता ने स्कूटर के पीछली सीट पर बैठे बैठे, इमरोज़ की पीठ पर 'साहिर' लिख दिया। इस पर जब इमरोज़ कुछ न बोले तो अमृता ने उनसे पूछा कि क्या उन्हें इस बात का बुरा नहीं लगा। तब इमरोज़ ने उत्तर दिया कि, "साहिर भी तुम्हारे और मेरी पीठ भी फिर किस बात का बुरा मानु। "
शायद यही वो प्रेम था, जो एक जनम में पूरा नहीं हो सकता था और इसलिए जाते जाते अमृता इमरोज़ के लिए लिख गयी थी, "मैं तैनू फ़िर मिलांगी" (मैं तुझे फ़िर मिलूंगी)!
पढ़िए अमृता की लिखी हुई इस पंजाबी कविता का हिंदी अनुवाद -
मैं तुझे फिर मिलूँगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
शायद तेरे कल्पनाओं
की प्रेरणा बन
तेरे केनवास पर उतरुँगी
या तेरे केनवास पर
एक रहस्यमयी लकीर बन
ख़ामोश तुझे देखती रहूँगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
या सूरज की लौ बन कर
तेरे रंगो में घुलती रहूँगी
या रंगो की बाँहों में बैठ कर
तेरे केनवास पर बिछ जाऊँगी
पता नहीं कहाँ किस तरह
पर तुझे ज़रुर मिलूँगी
या फिर एक चश्मा बनी
जैसे झरने से पानी उड़ता है
मैं पानी की बूंदें
तेरे बदन पर मलूँगी
और एक शीतल अहसास बन कर
तेरे सीने से लगूँगी
मैं और तो कुछ नहीं जानती
पर इतना जानती हूँ
कि वक्त जो भी करेगा
यह जनम मेरे साथ चलेगा
यह जिस्म ख़त्म होता है
तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है
पर यादों के धागे
कायनात के लम्हें की तरह होते हैं
मैं उन लम्हों को चुनूँगी
उन धागों को समेट लूंगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहींमैं तुझे फिर मिलूँगी!!
अमृता का जीवन विवादों से भरा रहा। 31 अक्टूबर 2005 को उन्होंने इमरोज़ की बाहों में ही दम तोड़ा। तमाम उम्र एक ही छत के नीचे रहकर भी अमृता और इमरोज़ अलग अलग कमरे में रहा करते। पर उनका ये प्रेम कईयों की समझ से परे था।