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पंजाब: तीन तरह के गुड़ बना कमा रहे लाखों, बदली 300+ किसानों की जिंदगी

Sugarcane farming By Punjab Farmer

किसान यदि फसलों के प्रोसेसिंग और वेल्यू एडिशन पर ध्यान दें, तो किसानी की तस्वीर बदली जा सकती है। ऐसे कई किसान हैं, जो इस तरह का काम कर रहे हैं। आज हम आपको पंजाब के एक ऐसे ही किसान की कहानी सुनाने जा रहे हैं। यह कहानी पंजाब के होशियारपुर के 65 वर्षीय प्रेमचंद की है। 1972 में स्थानीय कॉलेज से बीएससी-बीएड करने के बाद, सरकारी नौकरी करने के बजाय उन्होंने खेती (Sugarcane farming) की राह चुनी और आज वह न सिर्फ लाखों की कमाई कर रहे हैं, बल्कि कई किसानों को आमदनी बढ़ाने का जरिया भी दिया है। 

प्रेमचंद ने द बेटर इंडिया को बताया, “हमारे घर में सभी खेती के काम से जुड़े रहे हैं। इसलिए अपनी पढ़ाई पूरी होने के बाद, मैंने भी खेती करने का फैसला किया। मेरे पास 25 एकड़ जमीन है और मैं इसपर दशकों से मूल रूप से गन्ना, आलू, गेहूं और बीट की खेती कर रहा हूं।”

वह आगे बताते हैं, “मैं खेती कुछ अलग तरीके से करता हूं। मैं अपने खेतों को फसल के हिसाब से बांट देता हूं। साथ ही, फसल के लिहाज से हर साल जमीन भी बदलती रहती है। यह मेरी कामयाबी का सबसे बड़ा राज है।”

बनाते हैं तीन तरह के गुड़

प्रेमचंद बताते हैं कि वह अपनी लगभग आधी जमीन पर गन्ने की खेती (Sugarcane Farming) करते हैं। उनका यह काम दिसंबर से लगातार अप्रैल-मई तक चलता है। वह न सिर्फ गन्ने की खेती (Sugarcane Farming) करते हैं, बल्कि तीन तरह के गुड़ भी बनाते हैं। जिससे उनका वैल्यू एडिशन होता है और कमाई अधिक होती है।

प्रेमचंद

वह बताते हैं, “मैं सादा गुड़, मसाला गुड़ और तीसरा गुड़ चीनी मिलों के लिए बनाता हूं। तीनों के लिए बाजार में अलग-अलग दाम मिलते हैं। जैसे सादा गुड़ यदि 60 रुपए प्रति किलो है, तो चीनी मील वाले गुड़ के लिए 70-80 रुपए प्रति किलो मिलते हैं। वहीं, हम मसाला गुड़ को 150 रुपए प्रति किलो बेचते हैं। इस तरह, थोड़ी सी अधिक लागत के जरिए दोगुनी कमाई होती है।”

प्रेमचंद बताते हैं कि मसाला गुड़ बनाते समय अजवाइन, सौंफ, मूंगफली, तिल जैसी चीजों को उसमें डाल दिया जाता है। फिर, उसे 25-30 ग्राम का छोटा-छोटा पीस बना दिया जाता है। यह चौकोन आकार का होता है। यह काफी स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है।

समझें फर्क

प्रेमचंद बताते हैं, “यदि मैं चीनी मीलों को सीधे गन्ना बेचूं, तो मुझे 10 एकड़ में 9-10 लाख रुपए का फायदा हो सकता है, लेकिन यदि मैं उसी गन्ने से गुड़ बनाकर बेचूं तो मुझे करीब 15 लाख रुपए का फायदा हो सकता है। यही कारण है कि मैं सीधे गन्ना बेचने के बजाय, वैल्यू एडिशन पर ध्यान देता हूं।”

वह गुड़ बनाने के लिए परंपरागत मशीनों का इस्तेमाल करते हैं, जिससे 100 किलो गन्ने में करीब 65 फीसदी रस प्राप्त होता है। साथ ही, यह अत्याधुनिक मशीनों के मुकाबले अधिक मीठा भी होता है। 

10 गायें भी हैं प्रेमचंद के पास

प्रेमचंद मवेशी पालन भी करते हैं। उनके पास 10 गाय है। वह बताते हैं कि गन्ने की खेती (Sugarcane Farming) के कारण उन्हें गायों के लिए साल में छह महीने तक चारे की कोई समस्या नहीं होती है। गन्ने का चारा गायों के लिए काफी पौष्टिक होता है और इससे दूध का उत्पादन बढ़ता है। वह गाय से प्राप्त गोबर का इस्तेमाल खेत में करते हैं। साथ ही, हर साल एक-दो गायों को अच्छी कीमत पर बेचने से उनकी आमदनी और बढ़ जाती है।

गन्ने की खेती (Sugarcane farming) पर क्यों देते हैं अधिक ध्यान

प्रेमचंद कहते हैं, “खेती प्रकृति से जुड़ा हुआ है। हमने इस साल बड़े पैमाने पर आलू लगाए थे। लेकिन, बेमौसम वर्षा ने पूरी फसल बर्बाद कर दी और पिछले साल के मुकाबले इस बार आधा उत्पादन भी नहीं हुआ। लेकिन, गन्ने की खेती (Sugarcane farming) के साथ अच्छी बात यह है कि यह नौ महीने का फसल है और इससे हमें पैसे इकठ्ठे मिल जाते हैं। वहीं, दूसरी फसलों में कभी मिलते हैं, कभी नहीं।”

जरूरत के हिसाब से लगाते हैं गन्ना

प्रेमचंद के अनुसार, पंजाब में COJ 85, 160, 3102, 95, 230 जैसी गन्ने की कई प्रजातियां लोकप्रिय हैं। 

वह बताते हैं, “हम चीनी मीलों के लिए COJ 230 गन्ना लगाते हैं, क्योंकि इसका वजन थोड़ा ज्यादा होता है। यदि सादा या मसाला गुड़ बनाना है, तो हम COJ 3102 या 95 लगाते हैं, क्योंकि यह काफी मीठा होता है और इससे गुड़ काफी स्वादिष्ट बनता है।”

किन बातों का रखते हैं ध्यान

प्रेमचंद बताते हैं, “यदि हमें सादा या मसाला गुड़ बनाना है, तो गन्ने की खेती (Sugarcane Farming) के दौरान हम काफी सीमित मात्रा में पानी और उर्वरक देते हैं। जिससे कि गन्ने में सुक्रोज की मात्रा बढ़ती है और यह ज्यादा मीठा होता है। वहीं, चीनी मील को देने के लिए हम अधिक सिंचाई करते हैं, जिससे इसका वजन बढ़ता है।”

अपने गन्ने के खेत में प्रेमचंद

वह आगे बताते हैं, “हमारे यहां की मिट्टी का पीएच वैल्यू 6.5 और 7 के बीच है, जो गन्ने की खेती (Sugarcane Farming) के लिए काफी अनुकूल है। यदि पीएच वैल्यू 6.5 से कम हो, तो गन्ना एसिडिक हो जाता है और रस फटने लगता है। वहीं, यदि 7 से ज्यादा हो, तो यह अल्काइन बन जाता है और गुड़ का रंग काला होने लगता है।”

प्रेमचंद कहते हैं कि वह अपने गुड़ के रंग या स्वाद को बढ़ाने के लिए बर्न सुगर या किसी अन्य केमिकल का इस्तेमाल नहीं करते हैं। यही कारण है कि उनपर ग्राहकों का विश्वास दशकों से बना हुआ है।

किसान एकता पर जोर

खेती से प्रेमचंद प्रति एकड़ करीब 60 हजार रुपए बचा लेते हैं। उनके उत्पाद मार्कफेड के जरिए चंडीगढ़, दिल्ली से लेकर कई खाड़ी देशों में भी जाते हैं।

साथ ही, वह किसान संगठन FAPRO के डायरेक्टर भी हैं। वह बताते हैं, “इस संगठन से फिलहाल 300 से अधिक किसान जुड़े हुए हैं। इसको हमने 2001 में खेती के क्षेत्र में वैश्वीकरण के खतरों को देखते हुए शुरू किया था। इसके तहत हम किसानों को प्रोडक्शन से लेकर प्रोसेसिंग और मार्केटिंग में बढ़ावा दे रहे हैं।”

वह आगे बताते हैं, “हम कंपनियों के लिए ऑर्डर बेसिस पर भी खेती करते हैं। इसके तहत फिलहाल गन्ना (Sugarcane Farming), हल्दी, आंवला जैसे 20 से अधिक फसलों की खेती हो रही है। हमें इस मुहिम में पांच-छह स्वयं सहायता समूहों की भी मदद मिलती है, जो हमारे उत्पादों को अपने इलाके में बेचते हैं और हम उनके उत्पादों को संबंधित कंपनी को।”

65 की उम्र में भी आसानी से खेती कर लेते हैं प्रेमचंद

इस संगठन से जुड़े होशियापुर के 60 वर्षीय जसबीर सिंह बताते हैं, “मैं 1980 से, अपने 15 एकड़ जमीन पर खेती कर रहा हूं। मैं FAPRO से शुरू से ही जुड़ा हुआ हूं। इससे मुझे अपने गन्ने को प्रोसेस कर, गुड़ बनाने और अपनी आमदनी को डेढ़ से दोगुना अधिक बढ़ाने की सीख मिली। साथ ही, इससे हमें अपने उत्पादों को आसानी से मार्केटप्लेस करने में भी सुविधा हो रही है।”

अंत में प्रेमचंद कहते हैं, “दक्षिण भारत में किसानों संघों के बीच काफी एकता दिखाई देती है। लेकिन उत्तर भारत में ऐसा नहीं है। किसान संगठनों में एकता की कमी का फायदा बिचौलिये उठा लेते हैं और किसानों को अधिक फायदा नहीं मिल पाता है। किसानों को ऐसे लोगों से दूर रहना होगा, जो संगठन में सिर्फ अपना रुतबा दिखाने के लिए शामिल होना चाहते हैं।”

संपादन- जी एन झा

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