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आजादी के सात दशकों के बाद भी भारत की लगभग आधी आबादी खेती कार्यों पर निर्भर है। हालांकि, हाल के वर्षों में उद्योग-धंधों के बढ़ने के कारण ग्रामीण आबादी बड़े शहरों की ओर पलायन करने लगी है और इस मामले में बिहार का नाम सर्वोपरि है।
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इसी को देखते हुए बिहार के औरंगाबाद जिले के बरौली गाँव के रहने वाले अभिषेक ने साल 2011 में एक मैनेजमेंट प्रोफेशनल की नौकरी को छोड़कर, अपने गाँव में खेती करने का फैसला किया। तब उनकी सैलरी 11 लाख रुपए प्रति वर्ष थी।
फिलहाल, वह अपने 20 एकड़ पैतृक जमीन पर धान, गेहूँ जैसे परम्परागत फसलों के अलावा, तुलसी, लेमनग्रास, रजनीगंधा, गिलोय, जरबेरा, मोरिंगा, गेंदा फूल जैसे कई सुगंधित और औषधीय पौधों की प्राकृतिक रूप से खेती करते हैं, जिससे उन्हें हर साल 20 लाख रुपए से अधिक कमाई होती है।
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इस कड़ी में अभिषेक द बेटर इंडिया को बताते हैं, "मैं एक किसान परिवार से हूँ। पुणे में एचडीएफसी बैंक और एक अन्य बैंकिंग कंसल्टिंग फर्म में नौकरी करने के दौरान मैंने देखा कि यहाँ सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करने वाले अधिकतर लोग बिहार से हैं, जबकि ऐसे लोगों के पास उनके गाँव में खेती से अपना जीवनयापन करने के लिए पर्याप्त जमीन रहती है।"
वह बताते हैं, "इसके बाद मुझे अहसास हुआ कि बिहार में जितनी जमीनें हैं, उस पर क्षमता के अनुसार उत्पादन नहीं होता है। इसी एक विचार के साथ, मैंने नौकरी छोड़ कर खेती करने का फैसला किया, ताकि बिहार में पलायन को रोकने में थोड़ी मदद हो।"
अक्सर यह देखा जाता है कि यदि कहीं सालों भर खेती हो सकती है, तो वहाँ सिर्फ एक ही मौसम में खेती होता है, इस तरह जमीन के सार्थक उपयोग को भी बढ़ावा देना अभिषेक की मुख्य चिंता थी।
अभिषेक बताते हैं, "बिहार आने के बाद मैंने लोगों को खेती संबंधित सलाह देने के बजाय खुद ही खेती करना शुरू किया, इससे लोगों का मुझ पर भरोसा बढ़ता गया और शायद यही एक कारण है कि आज मुझसे देश के लाखों किसान जुड़े हुए हैं।"
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शुरूआत में अभिषेक ने अपनी एक तिहाई जमीन पर लिमियम, जरबेरा, ऑर्किड, हार्टिनिशिया जैसे पौधे लगाए, जिससे कि उन्हें 3-4 लाख रुपए की कमाई हुई और इससे उनका उत्साहवर्धन भी हुआ।
क्यों चुना औषधीय पौधों के विकल्प को
अभिषेक कहते हैं, "मैं अपने जमीन के लगभग एक चौथाई हिस्से में औषधीय पौधों की खेती करता हूँ। औषधीय पौधों की खेती मैंने इस विचार के साथ शुरू किया, क्योंकि इसे एक बार लगाने के बाद 2-3 वर्षों तक सोचना नहीं पड़ता है। साथ ही, इनकी पत्तियां भारी बारिश और ओलावृष्टि में भी बर्बाद नहीं होती हैं और यदि 20-25 दिनों के बाद भी पानी मिले तो ये पौधे सक्षम होते हैं।"
अभिषेक बताते हैं, "एक और मूल कारण यह है कि हमारे यहाँ पशुओं की वजह से खेती में काफी दिक्कतें होती हैं, लेकिन पशु, औषधीय पौधों को नहीं खाते हैं, इस तरह यह पूरी तरह सुरक्षित है।"
शुरू किया खुद की ग्रीन टी
अभिषेक के सबसे खास उत्पादों में है - टी-तार (Tea-tar) ग्रीन टी। इस उत्पाद की शुरूआत उन्होंने 2 वर्ष पहले की थी। उनका यह उत्पाद ब्लड प्रेशर, इम्यूनिटी बढ़ाने और ट्यूमर आदि के इलाज में भी प्रभावकारी है।
अभिषेक बताते हैं, "हम अपने औषधीय उत्पादों से तेल का भी निर्माण करते हैं, लेकिन हमसे जुड़े छोटे किसानों के लिए इसके प्रोसेसिंग यूनिट को अधिक लागत की वजह से स्थापित करना मुश्किल था। इसी के मद्देनजर हमने तुलसी, लेमनग्रास, मोरिंग आदि की पत्तियों को सूखाकर ग्रीन टी बनाने का फैसला।"
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वह बताते हैं, "इस उत्पाद को मैंने एफडीए के नियमानुसार बनाया और कुछ यूरोलॉजिस्ट के सराहने के बाद मैंने इसका दायरा बढ़ाने का विचार किया। आज टीतार के ग्राहक पूरे भारत में हैं, जिन्हें हम कुरियर के जरिए अपने उत्पाद की आपूर्ति करते हैं। जबकि, इससे हमारी सलाना आय 6-7 लाख रुपए हैं।"
टीतार को बनाने का तरीका बेहद साधारण है - इसमें औषधीय पत्तियों को मवेशियों के लिए चारा काटने में इस्तेमाल लाए जाने वाले चाप कटर में काट कर, सोलर ड्रायर से सुखाया जाता है। बाजार में ये सोलर ड्रायर 15-20 हजार रुपए में काफी आसानी से उपलब्ध होते हैं। अभिषेक की जल्द ही, उड़हुल, हल्दी आदि से भी ऐसा ही उत्पाद बनाने की योजना है।
शुरू की खुद की फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी
अभिषेक ने किसानों को एकजुट करने के लिए अपनी 'औरंगाबाद कादिम्बमी फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी' की शुरूआत की। इस कंपनी से फिलहाल पूरे देश में 2 लाख से अधिक किसान जुड़े हुए हैं। वह अपने उत्पादों की नेटवर्किंग के लिए, फेसबुक, व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म का इस्तेमाल करने के साथ-साथ किसानों के इस मंच का भी इस्तेमाल करते हैं।
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इससे जुड़े किसान संतोष, जो कि पटना के रहने वाले हैं, का कहना है, "मैं अभिषेक जी को 3 वर्षों से जानता हूँ, उन्होंने मुझे अपना डेयरी फार्म को विकसित करने में मदद की। शुरूआत में हमारे पास 7 गाय थी, आज 40 गाय हैं, जिससे कि हर महीने दो-ढाई लाख रुपए की आमदनी होती है।"
वहीं, आरा के रहने वाले किसान विनय कुमार कहते हैं, "हम समूहगत होकर, पटना के पास बिहटा में 35 एकड़ और झारखंड के बरही में 70 एकड़ में कई फसलों और सब्जियों की खेती करते हैं। इस तरह हमारा टर्न ओवर लगभग 3 करोड़ रुपए और मेरी व्यक्तिगत आय लगभग 10 लाख रुपए होती है। अभिषेक जी से मैं 4 साल पहले मिला था, उन्होंने शुरूआती दिनों में हमारी काफी मदद की थी।"
मिल चुका है कृषि रत्न पुरस्कार
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अभिषेक को खेती कार्यों में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए 2014 में बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर से सर्वश्रेष्ठ किसान का अवार्ड मिला था। इसके अलावा 2016 में उन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कृषि रत्न पुरस्कार से भी सम्मानित किया था।
सफर नहीं था आसान
अभिषेक जब पुणे में नौकरी छोड़कर बिहार आए थे, तो कुछ ही महीनों के बाद उनके साथ एक भीषण सड़क हादसा हो गया, जिसमें उनकी स्थिति बेहद नाजुक हो गई थी। लेकिन, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने बैसाखी के दम पर सपनों को साकार करने के लिए एक नई मजबूती के साथ आगे बढ़े। इस दौरान उन्हें प्रशासन से भी पूरी मदद मिली।
किसानों के लिए लगातार काम करने वाले अभिषेक के जज्बे को द बेटर इंडिया सलाम करता है।
अभिषेक से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
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