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जानिए कैसे भागीरथ प्रयासों से सूखाग्रस्त गाँव बन गया देश का पहला ‘जलग्राम’!

उत्तरप्रदेश में बुंदेलखंड का जल-संकट किसी से भी नहीं छिपा है। हद से ज्यादा गिरता भूजल-स्तर, सूखे पड़े कुएं और तालाब, दम तोड़ती नदियाँ ही मानो आज सबसे यही पुकार कर रही हैं कि कोई उन्हें बचा ले। हज़ारों-करोड़ों रुपयों की योजनाएं भी विफल होती नज़र आ रही हैं। लोगों को अपने पुश्तैनी गाँव छोड़कर पलायन करना पड़ रहा है क्योंकि बुंदेलखंड में तो किसान होना भी आज किसी अभिशाप से कम नहीं।

ऐसे हालातों में, बुंदेलखंड की प्यासी धरती की आस सिर्फ एक गाँव ने बाँध कर रखी है, जिसे आज पूरे भारत में जलग्राम के नाम से जाना जाता है। बांदा जिले में मुख्यालय से महज 14 किलोमीटर की दूरी पर बसा जखनी गाँव भारत का पहला ‘जलग्राम’ है यानी कि पानी से लबालब गाँव। गर्मी के मौसम में जब सूरज की तपिश बाकी बुन्देलखण्ड की आत्मा तक को जला रही होती है, तब भी जखनी गाँव में पानी की कोई कमी नहीं होती। न पीने के लिए और न ही सिंचाई के लिए।

अक्सर लोग सोचते हैं कि आखिर यह कैसे हो सकता है कि पूरा बुंदेलखंड सूखा है और यह एक गाँव पानी से तृप्त। इसका जवाब सिर्फ एक है- जन भागीदारी और सामुदायिक पहल, जिनकी वजह से जखनी गाँव में आज पानी की कोई कमी नहीं। गाँव के एक विकास पुरुष ने सब लोगों को जोड़कर अभियान चलाया और जखनी ‘जलग्राम’ बन गया।

एक जल-प्रहरी की कोशिश

Uma Shankar Pandey, Social Activist

52 वर्षीय उमा शंकर पांडेय ने बचपन से ही कर्मठता की शिक्षा पाई थी। उनके दादाजी की देश के स्वतंत्रता संघर्ष में भागीदारी थी और विनोबा भावे के ‘भूदान आंदोलन’ से जुड़कर देश भर की यात्रा की। उनके पिता किसान थे और उन पर भी ‘सर्वोदय’ की भावना का पूरा-पूरा प्रभाव था। उमा शंकर को सामुदायिक सहभागिता से जनकल्याण की सोच शायद विरासत में ही मिली थी। तभी तो वह हमेशा ही सामाजिक कार्यों से जुड़े रहे।

द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया, “मैंने कई प्रसिद्ध समाजसेवियों के साथ जुड़कर काम किया। अपनी गुरु पद्मविभूषण निर्मला देशपांडे जी के साथ पूरे देश का भ्रमण किया। मेधा पाटेकर जी, सुंदरलाल बहुगुणा जी का काम देखा और वहीं से मुझे अपने प्राकृतिक स्त्रोतों और पारंपरिक शिक्षा को बचाने की प्रेरणा मिली।”

साल 2000 के बाद उमा शंकर अपनी माँ से मिलने के लिए गाँव पहुंचे। वह काफी समय बाद अपने गाँव लौटे थे तो उन्होंने गाँव को बिल्कुल बदला हुआ पाया। किसी के यहाँ अंतिम संस्कार में गए तो देखा कि मुखाग्नि के लिए बेटा नहीं है, उसे आने में एक दिन का समय लगेगा इसलिए शव को रखा गया है। सिर्फ एक घर में ही नहीं बल्कि हर एक घर से नौजवान रोज़ी-रोटी कमाने के लिए पलायन कर चुके थे। उन्हें यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ। तभी उनकी माँ ने उनसे कहा, ‘बेटा, दूसरों के लिए बहुत काम कर लिया। अब अपने गाँव के लिए काम करो। यहाँ पर रहो और इसे खुशहाल बनाओ और सबसे पहले यहाँ के नौजवानों को गाँव वापस लेकर आओ।’

Drought-prone Jakhani 15 years ago

इस पर उन्होंने पूछा कि वह कैसे किसी को वापस ला सकते हैं? तो उनकी माँ ने जवाब दिया, ‘हसिया पर धार लगाना कोई किसी को नहीं सिखाता।’ और ऐसे शुरू हुआ, पानी और विकास के तरसते जखनी गाँव के जीवन का एक अन्य अध्याय।

माँ की बात पर गौर कर उमा शंकर गाँव में ही रहने लगे और वहां पर लोगों से बात करते। जब कभी त्योहारों पर युवा लौटते तो उनके साथ उठते-बैठते। उन्होंने सबसे पहले उत्तर-प्रदेश के बाहर राज्यों में काम करने वालों को अपने संपर्कों से गाँव के आस-पास बाँदा जिले में ही नौकरियां दिलवाई। साल 2004 तक यही क्रम चलता रहा कि गाँव के युवाओं को गाँव के आस-पास रहकर ही काम करने के लिए रोका जाए।

‘जलग्राम’ के लिए बनाई जल समिति

वह आगे बताते हैं कि साल 2005 में उन्हें दिल्ली के विज्ञान भवन में एक आयोजन में जाने का मौका मिला। यहाँ तत्कालीन राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने अपने भाषण में भारत की जल-स्थिति पर चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने कहा कि भारत के हर एक गाँव को ‘जलग्राम’ बनाने पर हमें जोर देना चाहिए क्योंकि पानी ही जीवन का मूल है और विकास का भी। इस सभा में देश के मंत्रियों के साथ-साथ कुछ नामी सामाजिक कार्यकर्त्ता भी थे जैसे निर्मला देशपांडे, वंदना शिवा, और अनुपम मिश्र आदि।

आज भी खरे हैं तालाब, लेखक- अनुपम मिश्र

“सभी की सुनने के बाद मैंने मंच पर जाकर घोषणा कर दी कि मैं गाँववालों के सहयोग से अपने जखनी को ‘जलग्राम’ बनाऊंगा। क्योंकि वहां मुझे समझ में आ गया था कि जखनी के विकास का रास्ता भी यही है। चुनौती बड़ी थी पर मैंने ठान लिया था। फिर मुझे दूसरों का साथ भी मिला। वहां उपस्थित अनुपम मिश्र ने तुरंत कहा कि वह इस भागीरथ काम के लिए हमें तकनीक देंगे। अनुपम मिश्र की किताब, ‘आज भी खरे हैं तालाब’ वर्तमान संदर्भ में बिल्कुल सटीक है। उन्होंने जल-संरक्षण की पारंपरिक तकनीकों के बारे में विस्तार से लिखा है,” उमा शंकर ने आगे बताया।

अपने गाँव वापस पहुंचकर उन्होंने ‘सर्वोदय आदर्श जलग्राम स्वराज अभियान समिति’ का गठन किया। गाँव के बच्चों, महिलाओं से लेकर युवाओं और बुजुर्गों सभी को इस समिति से जोड़ा। समिति ने जल-संरक्षण के लिए गाँव वालों को जागरूक करना शुरू किया। सबने साथ मिलकर विचार-विमर्श करके योजना बनाई:

1. सबसे पहले घरों से नहाने, कपड़े धोने या फिर बर्तन आदि धोने के बाद निकलने वाले पानी को नालियां बनाकर खेतों में पहुँचाया गया। इस पानी को खेती के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा।

Jakhani People connecting drainage to farms

2. गाँव के सभी पुराने जल-स्त्रोतों को दुरुस्त किया गया। उमा शंकर बताते हैं कि जखनी गाँव में 30 कुएं, 6 बड़े तालाब और 2 नाले हैं, जो लोगों की अनदेखी के कारण सुखकर कूड़े-कर्कट से भर गए थे। इन सभी को साफ़ करके सही किया गया और साथ में जोड़ा गया ताकि अगर बारिश हो तो बूंद-बूंद को सहेजा जा सके।

3. तीसरी और सबसे मुख्य योजना थी, ‘खेत पर मेढ़, और मेढ़ पर पेड़!’

Khet par medh aur medh par ped

‘खेत पर मेढ़, और मेढ़ पर पेड़’

इस योजना के तहत, गाँव के सभी किसानों ने अपने खेतों की मेढबंदी की ताकि बारिश के पानी को खेत में ही रोका जा सके। मेढबंदी करने के बाद इन मेढ़ों के ऊपर कम छाया वाले ऐसे पेड़ लगाए गए, जिनकी जड़ मिट्टी को बांधकर रखती हैं और पानी को भी सहेजती हैं।

गाँव के एक किसान और जल समिति के सदस्य, अशोक अवस्थी कहते हैं, “यह हमारे बुजुर्गों का तरीका है। खेतों पर मेढ़ बनाकर उस पर पेड़ लगाना। हमने भी अपने खेतों की मेढबंदी करके इन पर आंवला, निम्बू, शहजन और अमरुद जैसे पेड़ लगाए हैं। ये पेड़ पर्यावरण को स्वच्छ रखते हैं और खेतों के लिए भी अच्छे हैं।”

Villager watching the pond after rain in Jakhani

गाँव की मेहनत चंद सालों में ही रंग लाने लगी और गाँव की बूंद-बूंद संरक्षित होने लगी। आलम यह हुआ कि जिस जखनी में सालों तक धान नहीं लगा था, वहां धान की खेती शुरू हुई। पहली बार 2007-08 में गाँव में 500 क्विंटल बासमती और 300 क्विंटल गेंहू पैदा हुआ। इसके बाद, इस गाँव ने सिर्फ बदलाव की इबारत ही लिखी। गाँव से पलायन रुक गया और जो लोग बाहर मजदूरी करते थे, सभी अपने गाँव में लौट आए। पिछले साल गाँव में 20 हज़ार क्विंटल चावल की खेती हुई है और यह किसी उपलब्धि से कम नहीं।

जखनी की सफलता के बारे में जब चर्चाएँ होने लगीं तो जिला-प्रशासन के अधिकारी भी गाँव में पहुंचकर स्थिति का जायजा लेने लगे। साल 2012 में तत्कालीन बाँदा जिला कलेक्टर ने जखनी की सराहना करते हुए जिले के 470 गांवों में इस मॉडल को अपनाने के आदेश दिए।

इतना ही नहीं, नीति आयोग ने जखनी को भारत का पहला ‘जल-ग्राम’ घोषित किया है। नीति योग के अधिकारी डॉ. अविनाश मिश्रा का कहना है कि जखनी गाँव ने बिना किसी सरकारी अनुदान और मदद के सिर्फ पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल कर जिस तरह जल-संरक्षण किया है। वह पूरे देश को सूखारहित बनाने के लिए बहुत ही उम्दा मॉडल है। खेत के पानी को मेढ बनाकर खेत में ही रोकना और गाँव के पानी को तालाबों में सहेजना सफल मॉडल है, जिसमें किसी आधुनिक तकनीक या मशीन की ज़रूरत नहीं है।

‘सरकार का नहीं समाज का मुद्दा है पानी’:

Water Village Jakhani

जखनी गाँव की सफलता के बारे में सुनने के बाद आम किसानों से लेकर बड़े-बड़े अधिकारियों तक, हर कोई जखनी को देखने के लिए आता है। सबको यह जानकर हैरत होती है कि इस काम में गाँव वालों ने सरकार से एक रुपया भी नहीं लिया है। यह गाँव के अपने लोगों का श्रमदान है, जिसे जखनी को जलग्राम बनाया है।

इस बारे में पूछने पर उमा शंकर कहते हैं, “पानी सरकार का नहीं समाज का मुद्दा है और जो समाज की ज़िम्मेदारी है उसके लिए सरकार से अनुदान कैसा? जब से हम हमारे प्राकृतिक संसाधनों के लिए सरकार पर निर्भर होने लगे हैं तब से ही हमारे नदी, तालाब सूखने लगे हैं। जब तक इन सभी साधनों की ज़िम्मेदारी गाँव के लोग अपने पर लेते थे, तब तक सभी कुछ सही था। सालों से पानी बचान एकी करोड़ों रुपयों की योजनाएं भले ही देश में सफल नहीं हो रही हैं। लेकिन जखनी के लोगों की 15 सालों की मेहनत ने इतिहास रच दिया है।”

Jal-goshthi in Jakhani

जखनी गाँव को मॉडल बना देश में लगभग 1034 गांवों को जलग्राम बनाने की घोषणा की गई है। जल-शक्ति मंत्रालय ने देश के हर जिले में कम से कम दो गांवों को इसकी तर्ज पर जल-संरक्षण की राह देने का फैसला किया है। जल-शक्ति मंत्रालय के गठन के बाद, जल सचिव यु. पी. सिंह जब पहली बार जखनी गाँव गए तो वह यहाँ के पानी से भरे तालाब और हरे-भरे खेत देखकर अचम्भित रह गए। उन्होंने लोगों को संबोधित करते हुए कहा, ‘मेरे लिए जखनी गाँव किसी ‘मक्का-मदीना’ से कम नहीं। यह हमारे देश का ‘जल-तीर्थ’ है।”

जनसहयोग से बदली गई तस्वीर

गाँव में पानी होने से मानो हर एक सुख-सुविधा का रास्ता खुल गया। उमा शंकर कहते हैं कि पानी के सहारे उनका उद्देश्य गाँव में किसानी और पलायन को रोकना था। एक बार जब यह हो गया तो बाकी बदलाव खुद-ब-खुद हो गए। पहले गाँव में प्राइमरी स्कूल तक नहीं था लेकिन आज यहाँ इंटरमीडिएट कॉलेज है। गाँव के लोग यहाँ एक डिग्री कॉलेज खुलवाने के लिए भी प्रयासरत हैं। गाँव के हर छोटे-बड़े किसान के पास ट्रैक्टर और अन्य कृषि उपकरण हैं। गाँव में 7 महिला स्वयं सहायता समूह हैं और महिलाएं कृषि से लेकर अन्य हस्तशिल्प के सभी कार्यों द्वारा खुद को सशक्त करने में जुटी हैं।

Jakhani Village

“आगे हमारी योजना दुग्ध सहकारी समिति और किसान उत्पादक संगठन बनाना है। इस पर हम काम कर रहे हैं और साथ ही, बाँदा के दूसरे गांवों को भी सिखा रहे हैं कि वह कैसे खुद को आत्मनिर्भर बनाएं। मैं सबसे यही कहता हूँ कि अगर समाज के लिए काम करना है तो आपको तपना ही पड़ेगा। पहले के लोग नकल नहीं अनुकरण किया करते थे, हमें आज फिर वैसी ही सोच और हौसले की ज़रूरत है,” उन्होंने अंत में कहा।

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है और इस बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं तो उमा शंकर पांडेय से 9450514844 पर संपर्क कर सकते हैं!

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