पुणे से एस्टोनिया तक बस एक विचार को साथ लिए बदलाव की नयी परिभाषा लिख रहे है तरुण !

पुणे से एस्टोनिया तक बस एक विचार को साथ लिए बदलाव की नयी परिभाषा लिख रहे है तरुण !

ऐसे छात्रों से लेकर जिन्होंने इसे घंटो भूखा खड़ा देख कर खाना दिया, से उन लोगों तक, जिन्होंने इसे वापिस न दिखने की धमकी दी, तरुण गिडवानी ने लोगो का हर रूप देखा है- अच्छा और बुरा। बावजूद इसके, यह उनसे सिर्फ एक बात कहना चाहता है – “you're perfect!"

ज़रूरी नहीं कि हमारे पास कई संसाधन हों या कोई बड़ा प्लान दिमाग में हो। अच्छाई इनके बिना भी बांटी जा सकती है। ज़रूरत है सिर्फ एक नेक सोच और एक वाक्य "- you're perfect" की, जो हर राह चलते आम इंसान के अन्दर ये आत्मविश्वास पैदा करे कि वे जैसे हैं.. वैसे ही अच्छे हैं.. ।  बिना किसी धारणा के, बिना किसी पक्षपात के।

२८ वर्षीय तरुण गिडवानी के बारे में शायद आप में से कुछ लोगो ने सुना भी होगा। वह व्यक्ति जो चाहे कहीं भी जाए पर आशा और सकारात्मकता से भरपूर यह सन्देश देना नहीं भूलता कि ' you are perfect' ।

कभी पुणे, कभी बंगलुरु, कभी हैदराबाद के किसी नुक्कड़ या बस स्टॉप या फिर किसी कैफ़े के पास खड़ा यह व्यक्ति जिज्ञासा का भी कारण बना और मजाक का भी। पर फिर भी उतनी ही दृढहता के साथ ये सन्देश फैलाता रहा जो उसे लगता है कि हर व्यक्ति को सुनना चाहिए।

Source: Saurav Bhattacharjee on Facebook

Pic source: Saurav Bhattacharjee on Facebook

पहली बार तरुण ने साइन बोर्ड ५ साल पहले पुणे के कोरेगांव पार्क में पकड़ा था। उस समय कुछ लोगों ने तो उस पर ध्यान तक नहीं दिया, कुछ ने रुक कर उसे पढ़ा और मुस्कुरा कर आगे बढ़ गए और कुछ ने उसका धन्यवाद किया। उसी बीच उसके पास एक महिला आई और रोने लगी। उसने तरुण से कहा कि उसे इन शब्दों की उस दिन बहुत ज़रूरत थी। तरुण, जो अब तक इस बोर्ड को पकड़ने में थोडा झिझक रहा था, उसे अचानक यह एहसास हुआ कि इन शब्दों में कितनी ताकत है।
इसके बाद उसने कभी पीछे मुड कर नहीं देखा- उसे पता था उसका सन्देश बदलाव ला रहा है - और उसने घंटो इस साइन बोर्ड के साथ खड़े रहने के लिए बाहर निकलना जारी रखा ।

उसके लिए ये दो शब्द  " You're perfect"  क्या मायने रखते हैं?  " तीन !" उसने बिना रुके इस वाक्य में सुधार किया।  "इस वाक्य में 'are' भी उतना ही ज़रूरी है जितना की बाकी के शब्द! ये शब्द मेरे लिए वो सार हैं  जिसे समझने के बाद मेरी आध्यात्मिक खोज रुक गयी। एक सीधा सा भाव कि जो जैसा है उसे वैसे ही अपनाओ, बिना किसी आशा के, बिना किसी पूर्वाग्रह के। एक आम इंसान के लिए इन शब्दों के मायने अलग हैं कि किस प्रकार हर एक व्यक्ति खुद में ही ख़ास है, उसके जैसा अभी न कोई और है और न पहले कभी हुआ है।“

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फेसबुक पर लोहित वेद व्यास ने लिखा - मैंने स्टारबक्स के पास आज इस लड़के को देखा! ये बिलकुल अद्भुत था, वह घंटो इस साईन को पकडे सिर्फ लोगो को एक मुस्कुराहट देने के लिए खडा था
Pic source: Lohit Veda Vyas on Facebook

तरुण याद करते हैं कि किस प्रकार एक बार ओशो आश्रम के बाहर एक ब्रिटिश नागरिक उनसे मिला। वो पिछले ३० सालों से भारत आ रहा था मोक्ष की खोज में। तरुण के हाथ में पड़ा बोर्ड देख कर वह रो पड़ा और उसने बताया कि आज तक इसी खोज के पीछे वह कितना थक चुका था !

एक अन्य उदहारण में, एक महिला उसके पास आई और बताया कि उसका बेटा घर में हुए किसी छोटे से झगडे के कारण नाराज़ था और खुद को चोट पहुचना चाहता था। पर पुणे के जर्मन बेकरी के पास उसने तरुण के हाथ पे पड़े इस सन्देश को पढ़ा और उसने अपना इरादा बदल लिया।

तरुण इस साइन को पकड़ते हुए कहते हैं, "कुछ तो इसलिए क्यूंकि मुझे अपने आस पास की चीजों में सम्पूर्णता का भाव अच्छा लगता है.. हर चीज़ को इस अनुभव से देखना कि वे न पहले यहाँ आये थे न फिर कभी होंगे  बाकी इसलिए भी कि लोगो को यह याद दिलाऊं कि कोई भी तलाश गौण है, मुख्य बात आपका यहाँ होने का अनुभव है। "

सुयश कामत बताते हैं-

“तरुण गिडवानी ने अपना लोकप्रिय ‘you’re perfect’ साइन बोर्ड मुझे पकड़ने दिया। जहाँ एक ओर कई चीज़े हमें दुखी करती हैं वहीँ दूसरी ओर तरुण जैसे लोग और उनकी छोटी सी कोशिश हमारी ज़िन्दगी को खुशहाल बना देती हैं। जैसे ही मैंने इस साइन बोर्ड को पकड़ा , ऐसा लगा जैसे मैं लोगों को कोई मूवी दिखा रहा हूँ। कुछ रुक कर मुस्कुराए, कुछ चुप चाप निकल पड़े और कुछ ने रुक कर धन्यवाद कहा।  तरुण के पास ऐसे लोग भी आये जिन्होंने अपना दुःख बांटा , कुछ ने अपना अच्छा और बुरा अनुभव भी बांटा। आश्चर्य है कि किस प्रकार ये दो शब्द एक ही समय में साधारण और ख़ास दोनों हो सकते हैं। उन सभी लोगो ने लिए उपलब्ध रहने के लिए तरुण को बहुत बहुत धन्यवाद।”

तरुण का जन्म हैदराबाद के एक परिवार में हुआ और इन्होने अपनी पढाई एग्रो साइंस में पूरी की। इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए तरुण U.K गए और भारत में लौटने के बाद एकाध संस्थाओं के साथ जुड़ गए। आगे एक लॉ फर्म के साथ काम करने लगे।

तरुण अपने काम की वजह से हैदराबाद से बंगलुरु, बंगलुरु से पुणे जाते रहे पर यह साइन बोर्ड हर जगह उनके साथ ही रहा।

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Pic source: Suyash Kamat on Facebook

क्या इस कार्य में इनका परिवार इनका साथ देता है? जवाब में तरुण बताते हैं, "मेरा परिवार, मेरे मित्र और मेरी प्यारी गर्लफ्रेंड, सभी बहुत नेक हैं! हर बार जब मैं ये साइन ले कर निकलता हूँ, लौटने पर वे सभी उस दिन के अनुभव को सुनने को उत्सुक रहते हैं। "

क्या कभी कोई ऐसा भी अनुभव रहा है जो इतना सकारात्मक न हो? तरुण जवाब में बताते हैं, " पुणे में कुछ लड़के मेरे इस साइन बोर्ड से बहुत गुस्से में आ गए थे। वे एक नुक्कड़ पर खड़े होकर लडकियों को छेड़ रहे थे और मेरा यह साइन बोर्ड उनके ध्यान को भटका रहा था।"  पर इन लडको के साथ बात कर के तरुण ने उनके मनोस्थिति को समझना चाहा और इस बातचीत ने तरुण का ध्यान दूसरी ओर खिंचा। तरुण ने बताया, “ पहली नज़र में मुझे वो लड़के लोफर लग रहे थे और मैं यक़ीनन उन्हें बुरा समझता, पर उनसे बात करने के बाद मुझे पता चला कि यह हमारे समाज की परछाई है, जिसमे बहुत सी असमानता है और यही असमानता ही लोगों का व्यवहार तय करती है।”

एक और बार पुणे के पुलिस वालों ने मुझसे तीन घंटे तक पूछताछ की। इसके बाद ही उन्हें तसल्ली हुई कि मैंने यह साइन लडकियों को आकर्षित करने के लिए नहीं लगाया है। तब उन्होंने सड़क पर एक मिनट तक लाउडस्पीकर पर "you are perfect" की आवाज़ लगायी। " कहते हुए तरुण हंस पड़ते हैं।

Manoj Verulkar

Pic source: Manoj Verulkar on Facebook

हाल के दिनों में तरुण ने दर्शनशास्त्र की पढाई करने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी। " मैं हमेशा से ही लोगो के दर्द को समझना चाहता था। मेरी इसी उत्सुकता ने मुझे कभी शिक्षको की ओर, कभी किताबो की ओर, कभी नयी जगहों की ओर, और अब दर्शनशास्त्र की ओर मोड़ दिया।"

पर इस साइन बोर्ड को पकड़ना, अंग्रेजी या किसी भी अन्य भाषा में, तरुण की दिनचर्या में शामिल हो चूका है। एस्टोनिया में अपनी यूनिवर्सिटी से बात करते हुए तरुण द बेटर इंडिया को एक किस्सा भी सुनाते हैं।

" कल, जब मैंने एस्टोनिया की भाषा में ये साइन बोर्ड पकड़ कर खड़ा था, तभी एक बेघर व्यक्ति मेरे पास आया और मुझे पकड़ कर रोने लगा। उसने फिर मुझे बताया की किस प्रकार उसका पारिवारिक जीवन कठिनायियो से भरा रहा है और किस प्रकार इस से वह एक गुस्सैल इंसान में बदल गया है। मैंने पूछा उससे कि क्या उसे खाना चाहिए तो उसने ना में जवाब देते हुए कहा की उसके लिए इतना ही काफी है की किसी ने उसकी बात सुनी।"

Holding up the sign in Estonia

Pic credit: George Linos

भविष्य में वह क्या करना चाहते हैं? तरुण बताते हैं, " मैं पूरी दुनिया घूमना चाहता हूँ, अलग अलग भाषाओँ में लिखे  इस साइन बोर्ड के साथ! यह एक जीता जागता जादू है। मैं कहीं भी रहूँ यह वहां का वातावरण बहुत ही सुन्दर बना देता है। आशा करता हूँ मुझे ऐसे करने के लिए उचित संसाधन मिले। "

तरुण ने इस पुरी प्रक्रिया में लोगो से जो भी बातें की, उनसे प्रभावित हो उसने कई नोट्स बनाये हैं। तरुण उन्हें संकलित कर एक मैनुस्क्रिप्ट बनाना चाहते है जिसे दुसरे लोगों तक भी ये कहानियाँ पहुँच पाए।

अगर आप तरुण गिडवानी से संपर्क करना चाहते हैं तो आप उन्हें  tarun.gidwani@gmail.com पर लिख सकते हैं।


मूल लेख - निशि मल्होत्रा द्वारा लिखित

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