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एक साल पहले दिल्ली में यमुना नदी सफेद बर्फ जैसी परत से ढक गई थी। इस घटना ने पूरी दुनिया को चौंका दिया था। दरअसल, बर्फ की तरह दिखने वाली परत एक विषैला झाग था। दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) के अनुसार इस समस्या के पीछे अनट्रीटेड सीवेज एक मुख्य कारण था। इसके कारण शहर की नदियों और झीलों में कई सालों से प्रदूषण का स्तर बढ़ गया था।
हालाँकि पिछले कुछ सालों में, दिल्ली सरकार ने डीजेबी, सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग (आईएफसीडी) और कई नागरिक समूहों द्वारा किए गए विभिन्न झीलों के कायाकल्प के प्रयासों के जरिए काफी हद तक स्थिति पर नियंत्रण कर लिया है। इसके साथ ही एक अग्रणी परियोजना 'रजोकरी लेक प्रोजेक्ट' ने भी सकारात्मक दिशा में काम किया। आज हम आपको उसी मॉडल प्रोजेक्ट की कहानी सुनाने जा रहे हैं।
कभी गंदे पानी का जलाशय था यह मॉडल प्रोजेक्ट
शहर से लगभग 30 किमी दूर दिल्ली-गुरुग्राम बॉर्डर के पास स्थित रजोकरी, साल 2017 तक गंदे पानी का जलाशय था, जो सालों से विषाक्त हालत में पड़ा था। प्लास्टिक के कचरे और सड़ते पानी से जाम नालियों के कारण तालाब पूरी तरह प्रदूषित हो चुका था।
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डीजेबी के तकनीकी सलाहकार अंकित श्रीवास्तव और आर्किटेक्ट मृगांका सक्सेना की टीम ने देखा कि जलाशय में कूड़े कचरे और गंदगी का अंबार है। उनकी देखरेख में डीजेबी ने आईएफसीडी के साथ मिलकर दिल्ली के पहले डीसेंट्रलाइज्ड सीवर सिस्टम में रजोकरी तालाब के कायाकल्प की शुरुआत की।
आईआईटी बॉम्बे से एनवॉयरमेंटल साइंस और इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट अंकित कहते हैं, “दिल्ली में लगभग 600 जल निकाय हैं और इन सभी को पुनर्जीवित करना अंतिम लक्ष्य है। हालाँकि हमारे पास ऐसा कोई मॉडल नहीं था जिसके जरिए हम इन्हें पूरी तरह बदल सकते थे। इसलिए, हमने शहर की स्थिति के अनुसार अपने खुद के मॉडल को बेहतर बनाने के लिए एक इन-हाउस टीम बनाई, और 2017 में रजोकरी परियोजना, पायलट प्रोजेक्ट के रुप में शुरू की गई।”
अंकित बताते हैं कि दिल्ली में कम बारिश होती है। ऐसे में जलाशय के कायाकल्प के लिए पारंपरिक तरीकों पर निर्भर नहीं रहा जा सकता था। इसके अलावा जलाशय के प्रभावित हिस्से की सफाई और इसे बारिश के पानी से रीचार्ज करने की भी जरूरत थी। उन्होंने कहा, “हमारा मकसद एक ऐसी झील का निर्माण करना था, जिससे सीवेज वाटर का निपटारा हो सके और पूरे साल झील में पानी बहे। यह एक समावेशी सामुदायिक केंद्र और नेचुरल इकोसिस्टम के रूप में भी काम करने वाला था।"
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इस प्रोजेक्ट को दो भागों में बाँटा गया - प्यूरीफिकेशन सिस्टम का निर्माण और आसपास के क्षेत्रों में लैंडस्केप बनाना, जिससे न सिर्फ इसकी सुंदरता बढ़े बल्कि झील का लंबे समय तक उचित रखरखाव के साथ यह अधिक सस्टेनेबल हो सके।
प्रोजेक्ट की सस्टेनबिलिटी पर काम कर रही मृगांका कहती हैं, "इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य एरिया के लैंडस्कैप को बढ़ाना और लोगों को लंबे समय तक लाभ पहुँचाना दोनों था। डिजाइन को इस तरह से तैयार किया गया था कि आसपास के लोग आसानी से जलाशय का रखरखाव कर सकें। इसके अलावा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के दिशानिर्देश के तहत हमें पर्यावरण और सस्टेनबिलिटी पर भी ध्यान देना था। देशी पौधों की प्रजातियों से ग्रीन लैंडस्कैप बनाने से लेकर ग्राउंड वाटर को रिचार्ज करने के लिए परलोकेशन पोर्स बनाया गया। इस प्रोजेक्ट के महत्व को बढ़ाने के लिए इसमें ऐसी ही कई चीजें शामिल की गई।"
झील और इसके आसपास इनोवेशन करना
रजोकरी एक खनन क्षेत्र था जो पहाड़ियों से घिरा हुआ था। इसलिए मानसून के मौसम के दौरान बारिश का पानी ढ़लानों के जरिए इस जलाशय में बह जाता था। कई सालों से इस क्षेत्र में चारों ओर बहुत सी बस्तियां बन गई थी। उनका सीवेज भी उसी पानी में बहता था जिससे जलाशय गंदा और दूषित हो गया।
अपनी डिजाइन स्ट्रैटजी के बारे में बात करते हुए अंकित कहते हैं, “दिल्ली में एक महीने से भी कम समय के लिए बारिश होती है, इसलिए बारिश के पानी पर पूरी तरह से भरोसा करने के बजाय हमने वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट पर ध्यान दिया। इसलिए योजना का पहला भाग एसटीपी में एक अनोखे SWAB (साइंटिफिक वेटलैंड सिस्टम विद एक्टिव बायो-डिजाइनल) तकनीक के माध्यम से सीवेज से आने वाले पानी को साफ करना था। मॉनसून के दौरान, झील को रिचार्ज करने वाला पानी वैसे भी 15-20 गुना अधिक होता है। हम अपना रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम साइट पर लगाकर स्टिल्ट को हटाकर रिसाव (परलोकेशन) को बढ़ाते हैं। साल के बाकी समय में एसटीपी का सिस्टम सीवेज वाटर को प्यूरीफाई करके पानी के प्रवाह को बनाए रखता है। ”
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स्वैब टेक्नोलॉजी, डीजेबी द्वारा पहले इस्तेमाल किए गए पारंपरिक केमिकल ट्रीटमेंट के लिए सीवेज प्यूरीफिकेशन का एक प्राकृतिक विकल्प है। इसमें पानी के ठोस अपशिष्ट घटकों को तोड़ने और विघटित करने के लिए बायो-डाइजेस्टर से लैस एक अंडरग्राउंड सेडिमेंटेशन टैंक लगाना शामिल है। यह तो वेटलैंड और एरिएशन सिस्टम से हवा और पानी को प्राकृतिक रुप से शुद्ध करता है।
रजोकरी झील के मामले में, वेस्टलैंड इकोसिस्टम का निर्माण स्पाइडर लिली और टाइफा लैटिफोलिया जैसे पौधों से किया गया था। इसकी टेढ़ी-मेढ़ी ग्रैवल लाइनिंग की परत और बायोफिल्म पानी को फिल्टर करने और अशुद्धियों को दूर करने का काम करती है। सोलर पंपों का इस्तेमाल करके पानी को सेडिमेंटेशन टैंक से वेटलैंड में छोड़ा जाता है, बजरी की परत पानी में भारी धातुओं और अन्य कार्बनिक पदार्थों को अलग करने और बाहर निकालने का काम करती है।
अंकित कहते हैं, “तीन टैरेस वाले बगीचे जैसे स्टेप के जरिए बनाया गया ज़िग-ज़ैग डिज़ाइन यह सुनिश्चित करता है कि पानी वेट लैंड में अधिक समय तक बना रहे। इस आउटलेट में पानी 20 पीपीएम बीओडी (बायो केमिकल ऑक्सीजन डिमांड) तक साफ है।”
रॉबर्ट एच. कडलेक, स्कॉट वालेस और रॉबर्ट एल. नाइट द्वारा 1996 में लिखी ट्रीटमेंट वेटलैंड्स नामक किताब के अनुसार, इस तरह के वेट लैंड अकार्बनिक पोषक तत्वों, भारी धातुओं, पार्टिकुलेट ऑर्गेनिक मैटर, सस्पेंडेड सॉलिड, डिसॉल्व ऑर्गेनिक कार्बन आदि को हटाने में बहुत प्रभावी हैं।
डीजेबी टीम ने जलाशय में एक अनोखे प्यूरिफिकेशन आइलैंड की भी शुरूआत की। इसमें मूल रूप से जियो-नेटिंग के साथ 2X2 मीटर के पीवीसी पाइप ढांचे से बने राफ्ट हैं जो कि कन्ना और साइप्रस जैसे हार्मोन ट्रीटेड पौधों से जुड़े रहते हैं। ये पौधे न केवल पोषक तत्वों और अन्य लाभकारी जलीय पौधों की वृद्धि करते हैं, बल्कि प्रदूषकों को भी अवशोषित करते हैं और यूट्रोफिकेशन (खनिजों और पोषक तत्वों के साथ जल के अत्यधिक संवर्धन और ऑक्सीजन की कमी को पूरा करने की अनुमति देता है) को रोककर संतुलन बनाते हैं। अंकित के अनुसार, इसका उद्देश्य मछलियों को इसमें छोड़ना और उनके नेचुरल इकोसिस्टम को बढ़ाने के लिए पानी को साफ और उपयुक्त बनाना है।
इन सभी नवीन उपायों के कारण, रजोकरी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट अब 600 किलोलीटर (6 लाख लीटर) सीवेज को शुद्ध करने की सुविधा प्रदान करता है।
सामुदायिक भागीदारी और झील का प्रभाव
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यह पब्लिक स्पेस के 9,446 वर्ग मीटर में फैला है, जिसमें 2,000 वर्ग मीटर जलाशय भी शामिल है, रजोकरी झील अब जमीनी स्तर के सामाजिक विकास के लिए इनोवेशन का एक शानदार उदाहरण है।
रजोकरी झील को आसपास रहने वाले लोगों की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इसमें एक एम्फीथिएटर, एक ओपेन जिम, हरा भरा खेल का मैदान, बायोसवेल रेन गार्डन, चेंजिग रुम के साथ ही छठ घाट के लिए भी काफी जगह है।
मृगांका कहती हैं कि आसपास के लोगों से मिले फीडबैक के आधार पर उनकी टीम ने छठ पर्व के घाटों से ट्रीटेड वाटर बॉडी को अलग करने का काम किया। रेतीले पत्थरों से बने बाँध की मदद से मुख्य झील के साफ पानी को अलग किया जाता है और इसे नीचे बने छठ घाट वाली जगह में छोड़ा जाता है ।
अंकित कहते हैं कि हमें अपने प्रयासों के अनुकूल परिणाम मिले हैं। 2018 में परियोजना के पूरा होने के बाद पर्यावरण और सोशियोलॉजिकल प्रभाव को देखकर उन्हें सुखद आश्चर्य हुआ।
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वाटरबॉडी पूरी तरह से बदल जाने के बाद पक्षियों की 10 से 15 अलग-अलग प्रजातियों ने यहाँ प्रवास करना शुरू कर दिया। यह देखकर हमें काफी ताज्जुब हुआ। इसे बढ़ावा देने और पक्षियों एवं कीड़ों की अधिक प्रजातियों को आकर्षित करने के लिए ही वेट लैंड स्थापित किया गया था। ये सभी क्षेत्र की जैव विविधता को बढ़ाने में मदद करते हैं। इस परियोजना पर काम करते समय एक बड़ी चुनौती भारी अतिक्रमण से निपटने की थी। इसके अलावा यह असामाजिक तत्वों का अड्डा बन गया था जिससे इस जगह को काफी नुकसान पहुँच रहा था। इस परिवर्तन ने इस चीज को पूरी तरह खत्म कर दिया। हमने समुदाय पर भी इसके सोशियोलॉजिकल प्रभाव का ख्याल रखा। सबसे अच्छे फीडबैक में से एक यह था कि क्षेत्र की महिलाएँ सूर्यास्त के बाद वहाँ से गुजरने में अब सुरक्षित महसूस करती हैं।
डीजेबी अधिकारियों के अनुसार, इस स्तर की एक पारंपरिक परियोजना को पूरा करने में कम से कम 4 करोड़ रुपये का खर्च होता, जबकि रजोकरी झील के कायाकल्प का कुल खर्च 1.6 करोड़ रुपये आया। जिससे यह दूसरों के लिए एक कम लगत वाला इनोवेटिव मॉडल बन गया। इस कारण, हाल ही में, रजोकरी झील को जल शक्ति मंत्रालय से उत्कृष्टता पुरस्कार मिला। इस सफलता के साथ, अंकित और उनकी टीम अब अगले 5 महीनों में 50 और जल निकायों को पूरा करने की योजना बना रही है और वर्ष के अंत तक शहर भर में 6 झीलें भी बना रही हैं।
मूल लेख- ANANYA BARUA
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