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मध्य प्रदेश का बेदिया समुदाय हर लड़की के जन्म पर उत्सव मनाता है –पर यहाँ वजह कुछ और ही है। एक संस्था- 'संवेदना' ने पहल की है और बीड़ा उठाया है इस समुदाय को शिक्षा एवं जीविका के दूसरे विकल्प प्रदान करने का। आईये देखे कैसे -
मध्य प्रदेश के ह्रदय में स्थित इस जगह पर हर बार जब कोई महिला गर्भवती होती है, तो उसका परिवार उम्मीद करता है कि वो लड़का न हो। जबकि देश के कई हिस्सों में आज भी कन्या भ्रूण हत्या एवं नवजात बालिकाओं को मार देने का रिवाज है। लेकिन बेदिया समुदाय इन सब से बेखबर होकर ज्यादा से ज्यादा लड़कियों की आशा करता है।
पहली नज़र में ये मामला आपको बदलाव की लहर लग सकता है पर असलियत बहुत भयावय और इससे बिल्कुल विपरीत है।
बेदिया समुदाय को अलग करने वाली उनकी वर्षों पुरानी परम्परा है, जिसके अनुसार लड़कियों को बेहद कम उम्र में ही वेश्यावृति के व्यवसाय में धकेल दिया जाता है।
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जैसे ही लड़कियां तरुणावस्था में प्रवेश करती हैं, उन्हें उस धंधे के लिए तैयार मान लिया जाता है जो उनके यहाँ पीढ़ियों से चला आ रहा है। लडकियाँ वेश्यावृति के द्वारा घर चलाने की ज़िम्मेदारी उठा लेती हैं, जबकि पुरुष घर पर रह कर उनकी दलाली करते हैं।
ऐसे समुदायों में सदियों पुरानी परम्पराओं को तोडना एवं लोगों की सोच को बदलना असंभव होता है, विद्रोह करने वालों को तुरंत ही कुचल दिया जाता है।
पर रागिनी (बदला हुआ नाम ) एक ऐसी लडकी है, जिसने न केवल अपनी दो बहनों और माँ के नक्शेकदम पर चलने से इंकार किया बल्कि उच्च शिक्षा के लिए अपना गाँव भी छोड़ दिया।
जब अपने परिवार की तीसरी बेटी रागिनी को अपनी दो बड़ी बहनों की तरह वेश्यावृति के धंधे में उतरने को कहा गया तो उसने “ना “ कह दिया। वो कहती है –इस मामूली से दो अक्षर के शब्द को कहने के लिए हिम्मत जुटाना बेहद कठिन काम था।
पर संवेदना संस्था के हस्तक्षेप से, रागिनी न केवल एक वेश्या बनने से इंकार किया बल्कि आगे की पढाई पूरी करने के लिए अपने गाँव को छोड़ कर भोपाल भी चली आई।
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वो अब कॉलेज की तृतीय वर्ष में है और इंजीनियरिंग की पढाई कर रही है। वो आगे चल कर एक आई.ए.एस अफ्सर बनना चाहती है। हाल ही में उसे, नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने उसकी हिम्मत और इच्छाशक्ति के लिए सम्मानित भी किया था।
रागिनी शायद अपने समुदाय की पहली लडकी होगी जिसने बाहर निकल कर वेश्यावृति के अलावा किसी पेशे को चुना है। उसने ऐसा कर के अपने गाँव की कितनी ही लड़कियों के लिए नये रास्ते खोल दिए हैं।
रागिनी की सफलता का काफी श्रेय मध्य प्रदेश की एक संस्था संवेदना को जाता है जो मानव तस्करी और आर्थिक देह व्यापर के उन्मूलन के लिए काम करती है। २००९ में एक आईपीएस अफसर वीरेंदर मिश्र के द्वारा शुरू की गयी ये संस्था संवेदना बेदिया समुदाय के साथ काम कर रही है।
बेदिया समुदाय में आय का एकमात्र साधन वेश्यावृति है। वो लोग पढ़े लिखे नही हैं और चूँकि आज तक वे लोग वही परम्परा निभाते आये हैं, इसलिए वो लोग पैसे कमाने के दुसरे तरीकों के बारे में न जानते हैं न जानना चाहते हैं।
संवेदना के प्रोग्राम मेनेजर, सागर साहू कहते हैं -
“बेदिया बच्चों के पास पढाई न करने के कई कारण हैं- चाहे वो लडके हों या लड़कियां। लड़को ने अपने बड़ों को औरतों के द्वारा वेश्यावृतिव् से कमाए हुए पैसों पे निर्भर देखा हैं। और लड़कियों के पास केवल दो ही विकल्प होते हैं –या तो विवाह करना या वेश्या बनना। शादी में औरत की भूमिका पहले से तय होती है–खाना बनाना और परिवार की सेवा करना। शिक्षा उनके लिए कभी भी विकल्प नहीं रहा है।”
संवेदना की टीम को पूरा भरोसा है कि शिक्षा के द्वारा ही लड़कियों को वेश्यावृति के धंधे में उतरने से रोका जा सकता है।
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स्कुल बीच में छोड़ देने वाले बच्चों की संख्या भी बहुत है, क्यूंकि इन बच्चों को स्कूल में भेदभाव और अपमान का शिकार होना पड़ता है, जिसकी वजह से ये बच्चे स्कूल छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं। कुछ बच्चे अपनी पहचान बताते हैं तो कुछ खुद को किसी और समुदाय का बताते हैं पर ये उनके व्यक्तित्व के विकास पर एक गहरा प्रहार होता हैं।
संवेदना की टीम ने इन बच्चों को इकठ्ठा करके गाँव से दूर स्थित एक स्कूल में डालने का फैसला किया है। उन लोगों ने उन्हें भोपाल के एक स्कूल में डाला है ताकि उन लोगों को अपनी पहचान छुपाने की जरुरत न पड़े। यहाँ कोई उनसे उनके परिवार के बारे में नही पूछता इसलिए यहाँ उनका आत्मविश्वास बढ़ जाता है।
“हालाँकि एक मुश्किल यह भी थी की इन बच्चों के पास पिता का नाम नही था। स्कूलों ने बच्चो का दाखिला करने से इनकार कर दिया था। तब हमने हस्तक्षेप किया और उनसे अनुरोध किया कि बच्चों का दाखिला उनकी माँ के नाम से करें”
- सागर कहते हैं।
संवेदना की मदद से रागिनी जैसे कई बच्चों को एक बेहतर जीवन जीने का अवसर मिला है।
संवेदना फिलहाल १४ बच्चों की शिक्षा का जिम्मा उठा रही है, जिसमे से ८ लड़कियां हैं और ६ लड़के हैं।
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संवेदना न केवल इन बच्चों को मदद और सुरक्षा प्रदान करती है, बल्कि उनकी आर्थिक सहायता भी करती है।
रागिनी की तरह शिखर (बदला हुआ नाम ) ने भी संवेदना की मदद से बाहर की दुनिया देखी और अपना ग्रेजुएशन पूरा किया। अब वो शहर में एक नौकरी की तलाश में है।
शिक्षा के अलवा संवेदना, बेदिया समुदाय को स्वास्थ्य संबंधी जानकारी मसलन 'एच आइ वी' के बारे में भी जागरूक कर रही है। वे स्वास्थ्य शिवीर लगा कर महिलाओं को नियमित चेक अप के लिए प्रेरित करते हैं।
पर उनका मुख्य उद्देश्य उनके लिए जीविका के संसाधन उपलब्ध कराना है।
“यहाँ पर चुनौती यह है कि किस तरह उनके लिए जीविका के ऐसे साधन मुहैया कराए जाये जिससे की उनकी उतनी आय हो सके जितनी वेश्यावृति से होती है। वरना वो लोग बदलने को तैयार नही होंगे। ”
–सागर कहते हैं
संवेदना टीम इस समुदाय के लिए जीविका के समुचित साधन ढूँढने में लगी है। यह टीम २६९ परिवारों के साथ काम कर रही हैं और उन्हें मुख्यधारा में लाने का प्रयास कर रही हैं ताकि वो लोग सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ उठा सकें।
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सागर कहते हैं-
“बदलाव काफी धीमा है पर नज़रिए में फर्क जरुर आया है। यह समुदाय जो पहले बदलाव के लिए तैयार नही था अब धीरे धीरे खुल रहा है। अब यहाँ के सदस्य नयी चीज़ों के लिए तैयार हो रहे हैं। ऐसे छोटे परिवर्तन भी बहुत मुश्किल थे पर आखिरकार अब ये हो रहा है।
संवेदना टीम इस समुदाय के अधिक से अधिक बच्चों तक पहुंच कर उनकी पढाई में सहायता करना चाहती है। इस संस्था को आपके सहयोग की आवश्यकता है।
संवेदना ने पैसे इकट्ठे करने के लिए एक अभियान चलाया है ताकि १४ बच्चों की पढाई और विकास का ज़िम्म उठा सके। आप भी अपना सहयोग यहाँ दे सकते हैं।
संवेदना के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए आप उनकी वेबसाइट पर जा सकते है।