सहरसा में मात्र 55 प्रतिशत साक्षरता है, वहीं डिजिटल साक्षरता इससे भी काफी कम, लेकिन डॉ० शैलजा ने इन बाधाओं के बाद भी ज्यादा से ज्यादा ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं की मदद पहुंचाई।
'आदिवासी जनजागृति' ने पिछले 3 महीनों में न सिर्फ कोरोना पर जागरूकता लाने का काम किया है बल्कि फेक न्यूज, मजदूरों की समस्या सहित इस दौरान बढ़े करप्शन को भी उजागर किया है।