जब भी हम नदी किनारे जाते हैं, तो अक्सर ढेर सारे पत्थर दिखाई पड़ते हैं। छोटे-बड़े आकार के इन पत्थरों का शायद ही कोई खास इस्तेमाल होता है। लेकिन जरा सोचिए अगर इन पत्थरों की मदद से क्रिएटिव आर्ट तैयार की जाए तो वह कैसा होगा? आज हम आपको एक ऐसे ही कलाकार से रूबरू करवाने जा रहे हैं जो नदी किनारे पड़े पत्थरों से अलग-अलग तरह के क्रिएटिव प्रोडक्ट बना रहे हैं। देशभर में उनके प्रोडक्ट की डिमांड भी है। इससे उनकी अच्छी कमाई हो जाती है। इतना ही नहीं अपनी क्रिएटिविटी से वह समाज में जागरूकता भी फैला रहे हैं।
यह कहानी महाराष्ट्र के परभणी जिला स्थित वाजुर गांव में रहने वाले प्रल्हाद पवार की है। उन्होंने द बेटर इंडिया को बताया कि पत्थरों से कलाकृति बनाना उनका शौक रहा है और अब यही शौक उनका रोजगार बन चुका है।
प्रल्हाद का गांव गोदावरी नदी के किनारे बसा है। इसलिए बचपन से ही उनका जुड़ाव नदी से रहा है। वह कहते हैं, “बचपन में हम लोग नदी किनारे घूमने और खेलने जाते थे। हमारे यहां गोदावरी नदी है। वापस घर लौटते समय कुछ कंकड़-पत्थर उठाकर ले आते। चूंकि मुझे कला में रूचि थी इसलिए मैं सोचता रहता था कि काश इन सुंदर पत्थरों से कुछ क्रिएटिव चीज बनाई जाए। इसलिए शौक से मैं अलग-अलग कलाकृति बनाने लगा।”
शुरुआत में वह पत्थरों से बनाई कलाकृति आसपास के लोगों को भेंट में देने लगे। कॉलेज के दिनों में उन्होंने एक बार ऐसी ही कलाकृति यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर को दी। उन्होंने इसकी खूब तारीफ की और कहा कि इस क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहिए। इसके बाद से वह इस कला में खुद को निखारने में जुट गए।
पत्थरों से बनाने लगे सुन्दर कलाकृति
प्रल्हाद ने हॉर्टिकल्चर की पढ़ाई की है। बीएससी हॉर्टिकल्चर करने के बाद 2017 में उन्हें ‘चीफ मिनिस्टर रूरल डेवलपमेंट प्रोग्राम’ के तहत फेलोशिप मिली थी। तीन साल की फेलोशिप के दौरान वह गांव में सफाई और कृषि से जुड़े प्रोग्राम पर काम कर रहे थे। इस दौरान वह सरकार की अलग-अलग योजनाओं को गांव में पहुंचाने का काम करते थे।
उन्होंने बताया, “अपनी फेलोशिप के दौरान ही मुझे ख्याल आया कि क्यों न अपनी कला का उपयोग इन सामाजिक संदेशों को लोगों तक पहुंचाने में किया जाए। आमतौर पर हर आर्ट के पीछे कोई न कोई मैसेज या मकसद जरूर होता है।”
इसके बाद साल 2020 में उन्होंने अपने स्टार्टअप ‘सृष्टि आर्ट’ की शुरुआत की। वह नदी किनारे पड़े पत्थरों से मूर्ति, सोशल अवेयरनेस से जुड़े आर्ट, होम डेकोरेशन आइटम्स तैयार करने लगे। उन्हें इसके लिए किसी तरह की कोई ट्रेनिंग लेने की जरूरत नहीं पड़ी। वह हर दिन कुछ न कुछ नया करने की ललक से काम करते रहते हैं।
उनके साथ उनकी पत्नी मोहिनी पवार और उनके पिता भगवान पवार इन कलाकृतियों को बनाने में उनकी मदद करते हैं।
जिला स्तर पर मिली अलग पहचान
प्रल्हाद लगातार अपने आर्ट पर काम करते रहे। इसी बीच वह जागरूकता के प्रचार-प्रसार से संबंधित अपनी कलाकृतियों को जिला कलेक्टर ऑफिस में और स्थानीय अधिकारियों तक पहुंचाने लगे। इस वजह से स्थानीय स्तर पर उनकी कलाकृतियों के बारे में लोग बात करने लगे।
वह कहते हैं, “मैंने पिछले साल कोरोना के दौरान सामाजिक जागरूकता के लिए भी काम किया है। जिला कलेक्टर ऑफिस के माध्यम से मेरी कलाकृति महाराष्ट्र से बाहर राज्यों में भी भेजी गई। जिसे काफी पसंद किया गया। इस तरह मेरी कला परभणी की कला बन गई।”
जिला स्तर से उन्हें भोपाल, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में आयोजित होने वाले मेलों में अपने आर्ट को प्रदर्शित करने का मौका मिला है।
परभणी जिला की कलेक्टर आँचल गोयल ने बताया, “मराठवाड़ा क्षेत्र का परभणी जिला पिछड़े इलाके में आता है। क्षेत्र में संसाधनों का अभाव होते हुए भी यहां के प्रल्हाद पवार की कला विश्वस्तरीय है जो हमारे लिए गर्व का विषय है। यही वजह है कि हमने इसे अपने जिले की पहचान बनाया है। अब हम इसे देशभर में पहचान दिलाने का काम भी कर रहे हैं।”
ऑनलाइन के जरिए करते हैं मार्केटिंग
प्रल्हाद ‘सृष्टि आर्ट’ के नाम से सोशल मिडिया के जरिए अपने आर्ट को प्रोमोट भी करते हैं। इस आर्ट के लिए वह गोदावरी, बोरी और बेतवा जैसी नदियों से पत्थर इकट्ठा करते हैं। सबसे पहले वह अपनी थीम सेट करते हैं, उसके बाद थीम के अनुसार सही आकार और डिजाइन में पत्थर ढूंढ़ते हैं। खास बात यह है कि वह बिना किसी पत्थर को काटे उसके प्राकृतिक रूप से ही आर्ट तैयार करते हैं।
अपने आर्ट को 9×12 आकार के साइज में फ्रेम करते है। उन्होंने बताया कि एकफ्रेम को बनाने में तीन दिन तक का समय लगता है। अपने इस आर्ट प्रोड्क्ट की कीमत वह 1000 रुपये से 5000 रुपये के बीच रखते हैं।
प्रल्हाद बताते हैं कि पिछल दो साल में उन्होंने तक़रीबन 300 कलाकृतियां बेची हैं। इसी महीने 16 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के उत्तर प्रदेश के रामपुर में आयोजित एक मेले में उन्होंने हिस्सा लिया था। जहां परभणी की कला के नाम से अपना स्टॉल लगाया था। इस मेले से भी उन्होंने 30 हजार का मुनाफा कमाया। पिछले साल उनके स्टार्टअप ने ऑनलाइन बिक्री के जरिए तीन लाख का टर्नओवर कमाया था।
उन्होंने बताया, “अलग-अलग प्रदर्शनियों और सोशल मीडिया में मेरे प्रोडक्ट्स को काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है। हाल ही मैंने पुणे के एक नवोदय विद्यालय के बच्चों को ऑनलाइन पेबल आर्ट की ट्रेनिंग दी थी। आने वाले समय में, मैं कुछ और सरकारी प्रोजेक्ट्स पर भी काम करने वाला हूं। ”
यदि आप प्रल्हाद की इस अनोखी कला के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं या फिर उनसे जुड़ना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।
संपादन- जी एन झा
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