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अहमदाबाद की कंपनी ने बनाया सूखे और गीले कचरे को अलग करने वाला रोबोटिक मशीन!

रीसाइक्लिंग की समस्याओं को कम करने और कूड़ा बीनने वालों की सेहत के जोखिम को कम करने के लिए अहमदाबाद स्थित स्टार्टअप ने एक नई टेक्नोलॉजी विकसित की है।

प्लास्टिक का हर टुकड़ा लंबे समय तक प्रकृति में बिना मिले वैसे ही बना रहता है। यदि हमने इसका उपयोग कम नहीं किया तो यह अगले 500 सालों तक पर्यावरण में उसी अवस्था में बने रहकर नुकसान पहुँचा सकता है।

बेशक कचरे को इस्तेमाल में लाने के लिए रीसाइक्लिंग पहला विकल्प है, जिसे दुनिया भर की सरकारें अपना रही हैं। लेकिन भारत जैसे देश का क्या जहाँ रीसाइकिल दर केवल 30 प्रतिशत है?

भारत की आबादी 1.3 बिलियन है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार, देश में हर साल लगभग 62 मिलियन टन कचरा निकलता है। हालाँकि केवल 43 मिलियन टन कचरा एकत्र किया जाता है। जिसमें से 11.9 मिलियन का उपयोग किया जाता है और बाकी कचरे को गड्ढों या समुद्र में फेंक दिया जाता है।

यदि आप यह सोच रहे हैं कि कितनी मात्रा में कचरा फेंक दिया जाता है, तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि तीन मिलियन ट्रकों के बराबर कचरे का कोई इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इसके साथ ही रीसाइक्लिंग इंडस्ट्री की अपनी अलग चुनौतियाँ हैं, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण तो कचरा बीनने वालों के काम करने की स्थिति है। भारत भर में कचरा बीनने वाले हजारों लोग प्लास्टिक, कागज, कांच इत्यादि जैसे सूखे कचरे को इकट्ठा करके, छांटकर, अलग करके और बेचकर अपनी आजीविका कमाते हैं।

सबसे चिंता की बात यह है कि कचरे की छंटाई करने वालों को किसी तरह की स्वास्थ्य सुरक्षा नहीं प्रदान की गई है। चूंकि वो यह काम हाथों से करते हैं इसलिए अक्सर खतरनाक अपशिष्ट जैसे कि सिरिंज, सैनिटरी नैपकिन और ऐसे ही अन्य कचरों के सीधे संपर्क में आते हैं।

रीसाइक्लिंग की समस्याओं को कम करने और कूड़ा बीनने वालों के सेहत की जोखिम से बचाने के लिए अहमदाबाद स्थित स्टार्टअप इशित्व रोबोटिक सिस्टम्स (Ishitva Robotic Systems) ने एक नई टेक्नोलॉजी विकसित की है।

इस डिवाइस कोसंजीवनीनाम दिया गया है जो एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग (एमएल), IoT- इनेबल डिवाइस है। यह अपने आप उस कूड़े को छांटकर अलग करता है जिसे रीसाइकिल किया जा सकता है।

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आईआरएस के संस्थापक जितेश ददलानी ने द बेटर इंडिया को बताया,खासतौर से इस महामारी के दौर में कूड़े को अलग करना काफी खतरनाक काम है। हम क्वालिटी को ध्यान में रखकर अधिक से अधिक कचरे की छंटाई के लिए एक आसान, स्केलेबल और सस्ती तकनीक प्रदान करते हैं।संजीवनीबिना किसी इंसानी मदद के पॉलिमर टाइप और ब्रांड के आधार पर अपने आप कई डिब्बे या चेंबर में कचरे को अलग करती है। इस सिस्टम में एक मॉड्यूलर डिजाइन है और इसलिए यह छोटे और बड़े शहरों के लिए अनुकूल है।

दूसरे शब्दों में अगर 7-8 लोग अपने रीसाइक्लिंग दर के अनुसार 8-10 घंटे में एक टन सूखे कचरे को अलग कर सकते हैं, तो संजीवनी एक घंटे में पांच टन कचरा अलग कर सकती है और वो भी सेहत को नुकसान पहुंचाए बिना।

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रोबोट सूखे कचरे की पहचान कर सकता है और उन्हें रीसाइकिल और नॉन-रिसाइकिल की कैटेगरी में अलग कर सकता है।

इशित्व का स्मार्ट कचरा प्रबंधन तकनीक खासतौर से मैटेरियल रिकवरी फैसिलिटी (MRF) के लिए बनाया गया है। ये वो प्लांट हैं जो कचरे को लेकर उसे अलग करते हैं और फिर रिसाइकिल करने योग्य सामग्रियां बनाकर अन्य कंपनियों को बेचते हैं।

कंपनी के सीईओ संदीप सिंह कहते हैं, “इसका उद्देश्य एक सर्कुलर अर्थव्यवस्था बनाना है, जहाँ निर्माताओं को एक नए उत्पाद में कचरे को इकट्ठा करने और रीसायकल करने के लिए प्रेरित किया जाता है। उदाहरण के लिए, इस्तेमाल हो चुकी शैम्पू की एक बोतल को एक नई बोतल में रिसाइकिल किया जा सकता है।” 

एआई-टूल के फीचर

संजीवनी में NETRA, YUTA, और SUKA नामक तीन सब-सेट प्रोडक्ट हैं।

NETRA (एआई-पावर्ड विजन) एक सेल्फ-लर्निंग कंप्यूटर है जिसमें इंडस्ट्रियल कैमरा, सेंसर और न्यूरल नेटवर्क लगा होता है। यह कचरे की फोटो लेकर उनकी पहचान करता है और फिर रीसाइकिल करता है।

ददलानी बताते हैं, “इस प्लेटफॉर्म को पहले से ही दो मिलियन से अधिक चित्रों के साथ प्रशिक्षित (ट्रेंड) किया गया है। प्लेटफ़ॉर्म तेजी से कन्वेयर बेल्ट पर मौजूद रिसाइकिल करने योग्य कचरे की पहचान करता है और एयर सॉर्टर / रोबोट सिस्टम को सटीक निर्देश भेजता है।

जबकि YUTA एआई-पावर्ड रोबोटिक सार्टिंग मशीन है जो हाई स्पीड वाले कन्वेयर बेल्ट पर रिसाइकिल कचरे को उठाने और अलग करने के लिए NETRA के विज़न सिस्टम का इस्तेमाल करता है। इसी तरह SUKA एक मॉड्यूलर सॉर्टिंग मशीन न्यूमेटिक छंटाई के लिए हवा का इस्तेमाल करता है।

कंपनी अब तक कई कमर्शियल एमआरएफ प्लांट में अपनी डिवाइस को इनस्टॉल कर चुकी है। अगर कीमत की बात की जाए तो यह प्लांट के आकार और कचरे के छंटाई की मात्रा पर निर्भर करता है।

इशित्व की शुरुआत कैसे हुई

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कम्प्यूटर एप्लिकेशन में मास्टर्स पूरा करने के बाद ददलानी ने इस क्षेत्र में प्रवेश करने से पहले एक दशक से अधिक समय तक टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज और कमर्शियल बैंक ऑफ दुबई जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ काम किया।

सॉफ्टवेयर इंजीनियर होने के नाते ददलानी की रुचि टेक्नोलॉजी और इनोवेशन बेस्ड प्रोडक्ट विकसित करने में थी। हालांकि काम के दबाव के कारण वह इसकी शुरूआत नहीं कर पाए।

आखिरकार, 2017 में उन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में आने के लिए अपनी अच्छी नौकरी छोड़ दी। इसी दौरान वह अपने स्कूल के दोस्त संदीप पटेल संपर्क में आए जो स्मार्ट-बिन टेक्नोलॉजी पर प्रयोग कर रहे थे।

ददलानी बताते हैंस्मार्ट-बिन के डिजाइन के दौरान ही मुझे कचरे की छंटाई में समस्या आती थी। मुझे पता चला कि भारत का कचरा संग्रह दर तेजी से बढ़ रहा है लेकिन रीसाइकिल दर स्थिर थी। इसका मतलब था कि लैंडफिल पर अधिक कचरों का ढेर लगना। आगे के शोध में मुझे पता चला कि रीसाइक्लिंग दर कम थी क्योंकि छंटाई प्रभावी ढंग से नहीं की गई थी। मैंने एक टेक्नोलॉजी पर काम करना शुरू किया और इस तरह से इशित्व का जन्म हुआ।

इस दौरान उन्हें ध्यान आया कि कई प्रकार के प्लास्टिक के सामान, जैसे दूध के पाउच या शैम्पू की बोतलें आठ से अधिक बार रीसाइकिल की जा सकती हैं।

दरअसल, हर वर्जिन प्लास्टिक पेट्रोलियम से बनाई जाती है, जो एक सीमित संसाधन है। इस प्रकार, रिसाइकिलिंग संसाधन की कमी से बचने के लिए यह एक बेहतर तरीका है,” ददलानी कहते हैं।

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इसके अलावा, रीसाइक्लिंग के फायदों और कचरा बीनने वालों के स्वास्थ्य के खतरों ने भी ददलानी को संजीवनी विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया।

2018 में उन्होंने अपने गुरु और एंजल इनवेस्टर, संदीप पटेल के साथ मिलकर धन जुटाया और आधिकारिक तौर पर इशित्व की शुरूआत की। 

पिछले दो सालों में उनकी कंपनी में लोगों की संख्या बढ़कर 15 हो गई है। पिछले साल कंपनी ने नैसकॉम फाउंडेशन का टेक फॉर गुडअवार्ड भी जीता।

ददलानी, सिंह और उनकी टीम को उम्मीद है कि वो अपने उद्यम को बढ़ाएंगे और पूरे भारत के कई शहरों में इस स्मार्ट सिस्टम को चलाएंगे।

ददलानी कहते हैंहम जो काम कर रहे हैं, वो हमें पसंद है। हम जिस लगन से काम कर रहे हैं वह कचरा प्रबंधन उद्योग में गेमचेंजर साबित होगा। लॉकडाउन के कारण हमारा काम धीमा हो गया है, लेकिन हमारे पास पाइपलाइन में कुछ सॉफ्टवेयर और प्रोजेक्ट हैं।

यदि आप इनके उद्यम के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो www.ishitva.in पर क्लिक करें।

मूल लेख-

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