“लोग दूध को ‘सफ़ेद सोने’ की तरह देखते हैं और हम गोबर को ‘हरे सोने’ के जैसे इस्तेमाल कर रहे हैं,” यह मानने वाले नवल किशोर अग्रवाल ने साल 1984 में हरियाणा में करनाल के कुंजपुरा गाँव में टीसी इंडस्ट्री के नाम से अपनी कंपनी शुरू की थी, जिसमें स्क्रू बनाये जाते हैं।
जैसे-जैसे वक़्त आगे बढ़ा इस कंपनी की ज़िम्मेदारी उनके तीनों बेटों ने संभाल ली। नवल किशोर के पास अब थोड़ा वक़्त रहने लगा, तो वह कुछ सामाजिक संगठनों से जुड़ गये। धीरे-धीरे जब उनका आना-जाना बढ़ा तो उन्होंने देखा कि गाँवों में और गौशालाओं में उत्पन्न होने वाले गोबर का ठीक से मैनेजमेंट नहीं हो रहा था।
गाँवों में गोबर के बहुत बार ढेर लग जाते थे और नालियां या फिर सीवरेज रुकने का एक बड़ा कारण यह भी था कि यहाँ गोबर अक्सर नालियों में भर जाता था और इन्हें ब्लॉक कर देता था। दूसरी तरफ गौशालाओं को भी अपने यहाँ से गोबर उठवाने के लिए काफी पैसे खर्च करने पड़ते थे। इस समस्या के बारे में जान-समझ कर नवल किशोर के बेटे आदित्य अग्रवाल ने रिसर्च करना शुरू किया कि आख़िर कैसे इसका सही मैनेजमेंट हो सकता है?
बहुत सोच-समझकर उन्होंने अपने बड़े भाई अमित अग्रवाल के साथ मिलकर एक प्लान तैयार किया। साल 2014 में उन्होंने अपनी फैक्ट्री के पास ही एक बायोगैस प्लांट, अमृत फ़र्टिलाइज़र की शुरुआत की। सबसे पहले तो उन्होंने गौशाला से गोबर खरीदना शुरू किया और साथ ही, अन्य तरह का बायो और एग्रो-वेस्ट इकट्ठा करके अपने बायोगैस प्लांट में डालने लगे।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए अमित अग्रवाल ने बताया, “सबसे पहले हमने इसे प्रोसेस करके इससे खाद बनाना शुरू किया। हमने यह जैविक खाद बाज़ारों के साथ-साथ गाँव के किसानों को देना शुरू किया। अपने गाँव के किसानों से हम इस खाद के बदले पैसे नहीं लेते बल्कि हम उनसे कहते कि वे हमें हरा चारा दें जिसे हम उन गाय-भैंस के लिए दे देते, जहां से हम गोबर लेते हैं।”
पहले तो किसान कम ही खाद उनसे ले रहे थे, पर जब उन्होंने अपने खेतों में जैविक खाद की वजह से उपज में बढ़त देखी तो वे अपनी पूरी ज़मीन के लिए उनसे खाद लेने लगे। अमित के मुताबिक जिन गन्ना किसानों के यहाँ एक एकड़ में 300 क्विंटल गन्ना होता था, अब उनके यहाँ 400-450 क्विंटल गन्ने का उत्पादन होने लगा है, जिससे किसानों की आय बढ़ी है।
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उनके जैविक खाद, ‘अमृत फ़र्टिलाइज़र’ के कामयाब होने के बाद उन्होंने बायोगैस बनाने पर काम किया। साल 2016 में उन्होंने बायो-गैस को ट्रैप करना शुरू किया और फिर जनरेटर की मदद से बिजली बनानी शुरू कर दी। अमित बताते हैं कि इस बिजली से उनकी दूसरी कंपनी में ऊर्जा की आपूर्ति हो जाती है और उनकी सरकारी बिजली पर निर्भरता ख़त्म हो गयी है।
“हम हर दिन लगभग 40 टन सॉलिड वेस्ट जैसे गोबर, एग्रो-वेस्ट आदि का मैनेजमेंट कर रहे हैं। इससे लगभग 2000 यूनिट बिजली प्रतिदिन बनती है। साथ ही, गाँव का लगभग 40, 000 लीटर गंदा पानी भी हम प्रतिदिन इस काम में इस्तेमाल करते हैं ताकि स्वच्छ पानी पर निर्भरता न हो,” उन्होंने आगे बताया।
उन्होंने आगे बताया कि साल 2018 में केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गयी ‘गोबर-धन’ और ‘सतत योजना’ के लिए भी उनके बायोगैस प्लांट का रेफ़्रेन्स लिया गया है। सतत योजना का उद्देश्य बायो-फ्यूल को पारम्परिक ईंधन की जगह बढ़ावा देना है, क्योंकि यह पर्यावरण के अनुकूल है। वहीं गोबर-धन योजना के तहत सरकार बायो-वेस्ट को लोगों के लिए अतिरिक्त आय के साधन के तौर पर इस्तेमाल करना चाहती है।
“सतत पॉलिसी के अंतर्गत सरकार की योजना है कि साल 2025 तक पूरे देश में 5000 बायोगैस प्लांट लगाए जाएं। इन प्लांट्स से उत्पन्न होने वाली बायो-गैस को कॉम्प्रेस करके सीएनजी गैस के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे ईंधन के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरता बहुत हद तक घट जाएगी और साथ ही, वेस्ट मैनेजमेंट भी हो जायेगा,” अमित ने कहा।
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अमृत फ़र्टिलाइज़र से फ़िलहाल लगभग 1000 किसान जुड़े हुए हैं, जिनकी आमदनी में पहले से 60% तक की बढ़ोतरी हुई है। साथ ही, यहाँ पर ज़मीन की उपजाऊ शक्ति भी काफ़ी बढ़ी है।
“हमारे प्लांट की सफलता को देखते हुए बहुत से लोग यहाँ दौरे पर आते हैं। सरकार ने भी अपनी योजनाओं में हमारे प्लांट की सफलता को उदाहरण के तौर पर लिया है। इसके अलावा अन्य देशों तक भी हमारा यह मॉडल पहुंचा है और कुछ समय पहले यूगांडा के कुछ डेलिगगेट्स ने हमारे यहाँ का दौरा किया था। देश के उच्च संस्थान, IIT आदि से भी छात्रों को यहाँ विजिट के लिए लाया जा चूका है,” अमित ने बताया।
वेस्ट-मैनेजमेंट भारत में एक सफल उद्यम के तौर पर उभर रहा है। इसलिए गाँवों में लोगों को इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के बारे में सोचना चाहिए। इससे कचरा तो प्रोसेस होगा ही, साथ ही, रोज़गार के अवसर भी बढ़ेंगे।
अपनी आगे की योजना पर अमित कहते हैं कि वे और तीन बायोगैस प्लांट लगाने के प्लान पर काम कर रहे हैं। इसके अलावा, वे बड़ी इंडस्ट्रीज, जैसे कोई प्रोडक्शन कंपनी, अस्पताल, होटल आदि के लिए संदेश देते हैं,
“उन्हें वेस्ट-मैनेजमेंट प्लांट लगाकर खुद अपना कचरा-प्रबंधन करना चाहिए। इससे वे अपनी ज़रूरत के हिसाब से खुद अपनी गैस और बिजली बना सकते हैं। सभी कंपनी और स्टार्ट-अप्स को सेल्फ-सस्टेनेबल मॉडल पर काम करना चाहिए, इससे वे देश के लिए कुछ अच्छा करने में भी योगदान दे पाएंगे।”
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यदि आप अमित अग्रवाल से सम्पर्क करना चाहते हैं तो आप ‘अमृत फ़र्टिलाइज़र’ के फेसबुक पेज पर उन्हें मैसेज कर सकते हैं!
संपादन – मानबी कटोच