काफ़ी दिनों से सोशल मीडिया पर एक ओपन माइक की छोटी-सी वीडियो वायरल हो रही है कि ‘मैं 2019 में साल 1999 ढूंढ रही हूँ।” आज जब घुम्मकड़ी यानी कि ‘ट्रेवल’ पर यह आर्टिकल लिखने बैठी तो अचानक ये लाइन जहन में आ गई। वैसे तो ये कविता वक़्त के साथ बदल रहे मोहब्बत के मायनों पर थी, पर अगर इस एक लाइन को पकड़ कर बैठ जाएं तो न जाने इस ‘स्मार्ट’ जमाने के कितने ही पहलू आप उस जमाने में ढूँढना चाहेंगे।
पहले ट्रिप्स सिर्फ़ मौज-मस्ती या फिर ‘आई नीड ए ब्रेक’ वाली नहीं होती थी। उस ज़माने में तो लोग ट्रेन के सफ़र में भी साथी बना लेते थे और फिर वो अजनबी दोस्त कब रिश्तेदार बनकर घर के शादी-ब्याह में शामिल होने लगते, पता भी नहीं चलता। आज भी पापा या मम्मी के साथ कहीं ट्रेवल करूँ तो रास्ते में उनका किसी न किसी से याराना होना तो पक्का है। मम्मी कोई तो नई रेसिपी लेकर लौटती हैं और पापा को कोई तो नया कोर्स मिलता है, जो वो ट्रेन वाले अंकल के किसी बच्चे ने किया है। क्योंकि उनकी जनरेशन, हमारी जनरेशन की तरह कानों में ईयरफ़ोन भरकर नहीं बैठती।
वे लोगों को, नजारों को, जगहों को सिर्फ़ देखते नहीं है और देखकर उसे अपने मोबाइल में कैद करने की जल्दी में नहीं होते हैं। देखने के अलावा वे सुनते हैं और अपने दिल की सुनाते भी हैं। तभी तो हमारे पास यादों के नाम पर फोटो होती हैं और उनके पास उन अजनबी लोगों के किस्से और कहानियाँ, जो उनकी यादों को अनुभव बना देती हैं।
अनुभव…. मने एक्सपीरियंस, जो हमारी जनरेशन का तकिया कलाम है। कॉलेज के पहले साल से तलब हो जाती है कि यार एक बार कुछ करे न करे पर गोवा एक्सपीरियंस करना है। सारे दोस्त जाएंगे, बीच पर पूरा दिन रहेंगे और वहां की नाईट लाइफ एन्जॉय करनी है। हाल में तो ये प्लान बहुत कम कामयाब होता है और अगर हो भी जाये तो बस इतना ही, इसके बाद क्या? वही रूटीन लाइफ?
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अक्सर मैं भी यही सोचती थी कि दो-चार दिन घूम भी लिए तो क्या? और फिर एक ‘अन-एक्सपेक्टेड ट्रिप’ ने मेरी सोच बदल दी। मैं भले ही बहुत ज़्यादा नहीं घूमती, पर फिर भी लगता है जितना घूमी हूँ, कम से कम वो सफ़र सिर्फ़ मेरे फ़ोन तक नहीं है।
जब भी कोई मेरे ट्रेवल एक्सपीरियंस के बारे में कोई पूछता है तो सबसे पहले जुबां पर ‘गोकर्णा’ का नाम आता है। आज भी वो शहर, वहां के लोग, खाना, समुद्र और वो पहाड़, जो वहां के समुद्र को बांटते भी हैं और जोड़ते भी हैं, सब एक के बाद एक मेरी आँखों के सामने आ जाते हैं जैसे कल की ही बात हो।
उस वक़्त समझ आया कि अगर किसी शहर को जानना है तो शहर के उस हिस्से को जानो, जहां आबादी बसती है। टूरिस्ट जगहों पर तो आपको सब यात्री ही नज़र आएंगे। पर उस शहर की विरासत, वहां के रहन-सहन और खान-पान की संस्कृति आपको वहीं के लोगों के बीच रहकर पता चलेगी। भले ही आप वहां की लोकल भाषा न समझें, पर उनके भाव, उनकी हंसी समझ जाएंगे।
और जब इन अजनबी लोगों से एक अनकहा रिश्ता बनने लगता है तो फिर ज़िंदगी की भाग-दौड़ से मन में पड़ी गांठें खुलने लगती हैं। फिर आप असल मायनों में अपना ट्रिप एन्जॉय करते हैं। कभी कोशिश करें, शहर की ‘द अदर साइड’ देखने की और साथ ही अपने परिवार को दिखाने की।
कार्निवल डॉट कॉम के ज़रिए आप ऐसे कई ट्रेवल टूर पर जा सकते हैं, जहाँ आपको गोवा, पुणे, गुवाहाटी, डिब्रूगढ़ जैसी टूरिस्ट जगहों की एक अलग ही तस्वीर देखने को मिलेगी। इन ट्रिप्स के ज़रिए आप अपनी ज़िंदगी के वो अनुभव सहेज सकते हैं, जो आपको ज़िंदगी भर की सीख देंगे।
गोवा फार्मस्टे हॉलिडे:
इस बार हमारे साथ कोशिश करें अपने पेंडिंग पड़े गोवा ट्रिप को पूरा करने की। लेकिन बाकी सब की तरह वही बीच, रिसोर्ट या क्लब में जाने की बजाय, हम आपको गोवा की विरासत से रु-ब-रु कराएंगे। 4 दिन के इस ट्रिप के दौरान आप यहाँ के दूधसागर फॉल्स, तम्बडी वॉटरफॉल और सदियों पुराने तम्बडी सुरला मंदिर देखेंगे।
ये वो नाम हैं जो बहुत से लोगों ने शायद कभी सुने भी न हों। पर यही तो है असल गोवा, जहां आप यहाँ का मसाला बागान देख सकते हैं और साथ ही, सबकी फेवरेट, गोवा की पारम्परिक फैनी, आख़िर बनती कैसे है, यह भी सीख सकते हैं।
आप यहाँ फार्मस्टे करेंगे और फिर खेती-किसानी भी कर सकते हैं। कभी नहीं सोचा होगा आपने कि आप अपने बच्चों के साथ मिट्टी में हाथ गंदे कर रहे हैं, पौधे लगा रहे हैं, उन्हें गेंहू, चावल और सभी तरह की दालों का फर्क बता रहे हैं। इस ट्रिप के बाद शायद ही आपके बच्चे खाने-पीने में नखरे करे क्योंकि यहाँ वे देख सकते हैं कि किसान कितनी मेहनत से फसल उगाते हैं।
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स्मार्ट फ़ोन के जमाने की जनरेशन, जिन्हें लगता है कि उनका खाना सुपर मार्केट से आता है। उनके लिए इस तरह की ट्रिप्स, असल भारत को जानने-समझने का एक मौका है क्योंकि ये अनुभव ज़िंदगी के तरफ उनका नज़रिया बदलते हैं।
आप जून से लेकर अक्टूबर महीने के बीच में अपने दोस्तों या फिर परिवार के साथ यह ट्रिप प्लान कर सकते हैं। ज़्यादा जानकारी के लिए यहाँ पर क्लिक करें!
भंगज्यंग झील ट्रेक :
अरुणाचल प्रदेश और भूटान की सीमा से गुजरने वाली यह झील और इस क्षेत्र की अन्य कई ग्लेसियल झीलें, आपके ट्रेकिंग के अनुभव को एक अलग ही उत्साह और उमंग से भर देंगी। इस ट्रिप के दौरान आप न सिर्फ़ पांच ग्लेसियल झीलों को देखेंगे, बल्कि यहाँ की गोरिचेन और कंगतो पीक से भी अद्भुत नज़ारे देख सकते हैं।
साथ ही, यह मौका है ब्रोकपा चरवाहा समुदाय को जानने-समझने का। एक ऐसा समुदाय, जो हमारी शहरी दुनिया से दूर अपनी ही दुनिया में मस्त है। उनकी ज़िंदगी हमारी तरह मेट्रो या बसों में भागती नहीं है, बल्कि वे तो पहाड़ों पर धीरे-धीरे अपनी ज़िंदगी का लुत्फ़ उठा रहे हैं।
अगर पहाड़ों से आपकी दोस्ती है और हर साल आप ट्रेकिंग के बहाने अपने दोस्तों से मिलने निकलते हैं तो इस बार, दुनिया की नज़रों से दूर इन अनजाने दोस्तों से मिलने जाइए। नौ दिन की इस ट्रिप का शेड्यूल 12 अक्टूबर से 20 अक्टूबर तक है।
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मैजिकल मेचुका :
अरुणाचल प्रदेश के डिब्रूगढ़ से 16 घंटे की दूरी पर स्थित यह वैली, बेइन्तिहाँ खूबसूरती की मिसाल है। हरियाली से लबरेज वादियाँ, जिन पर छोटे-छोटे गाँव बसे हैं, एक ही नज़र में आपका मन मोह लेंगी।
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यहाँ आप भले ही ट्रेकिंग के इरादे से आए हों, लेकिन यहाँ की संस्कृति से अछूते नहीं रह पाएंगे। मेचुका में आपको मेम्बा समुदाय के लोगों के यहाँ होमस्टे करने का मौका मिलेगा, जहां आप मोमोज या फिर और कोई पारम्परिक व्यंजन बनाना सीख सकते हैं।
मोमोज का नाम सुनते ही किसी के भी मुंह में पानी आ जाए। ऐसे में, नवंबर की सर्दी में ट्रेकिंग एक दौरान आपको न सिर्फ़ मोमोज खाने को मिलने वाले हैं, बल्कि आप बनाना भी सीखेंगे। बेशक, ये किसी के लिए भी सबसे यादगार पल हो।
तो अगर आप मोमोज लवर हैं और आपको ट्रेकिंग का भी ख़ूब शौक है, तो नवंबर का दूसरा सप्ताह (9 नवंबर से 17 नवंबर) इस ट्रिप के लिए मार्क कर लीजिए। बुकिंग के लिए आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं।
संपादन: भगवती लाल तेली