दीवांशी और उनके ब्रिटिश पति माइकल ने करीब तीन साल पहले जब अपने फार्मस्टे की शुरूआत की थी, तो उनके ज़ेहन में आने वाले दिनों-सालों की तस्वीर बहुत साफ थी। वैसे भी हिमाचल जैसे राज्य में पर्यटन की जड़ें पहले से गहरी पैठ जमाए हैं, और हेरिटेज प्रॉपर्टीज़ से लेकर फाइव स्टार होटलों तक की यहां कोई कमी नहीं है। मगर उन्हें कुछ अलग करना था, कुछ ऐसा जो एप्पल कंट्री यानी सेबों के बागानों से पटे पड़े कोटखई में पर्यटन की एक अलग इबारत लिखे। और फिर शुरुआत हुई हिमाचल में ‘हिमालयन ऑर्चर्ड’ होमस्टे की!
हिमाचल क्या, अब तो देश के कोने-कोने में, लद्दाख से मेघालय तक और गुजरात से केरल तक की धरती पर इसी तरह के ठौर खूब लोकप्रिय हो चले हैं जिनमें न कोई वेलकम डेस्क होती है और न ट्रैवल आइटनरी जैसे मकड़जाल।
स्वागत है नए दौर में पर्यटन का फलसफा बदलने वाले ऐसे ठौर-ठिकानों में जो जिम्मेदार पर्यटन की कहानी के किरदार हैं।
1. ‘हिमालयन ऑर्चर्ड’, हिमाचल प्रदेश
यहाँ ठहरने वाले वॉलन्टियर्स सेबों की तुड़ान से लेकर फैक्ट्री में इन सेबों की ग्रेडिंग, पॉलिशिंग और पैकेजिंग तक में हाथ बंटाते हैं। फिर मालिक और मेहमान मिलकर खान-पीन की तैयारी में जुट जाते हैं। माइकल अपनी जीप में मेहमानों को लेकर निकल जाते हैं सराड़ू दर्रे के आसपास गर्मियों की आहट सुनकर डेरा डालने वाले खानाबदोश गुज्जरों के ठिकानों तक। यहां से दूध-पनीर खरीदा जाता है जिससे दीवांशी चीज़ बनाती है।
सप्ताह का एक दिन मुकर्रर होता है नज़दीकी जंगल में उगने वाले मशरूमों को बटोरने का और इसमें भी माइकल की ‘विशेषज्ञता’ काम आती है। मेहमानों को खाने योग्य और ज़हरीले मशरूमों की पहचान कराते हुए वे बीते सालों में इस इलाके में कितनी ही हाइकिंग-ट्रैकिंग ट्रेल्स खोज चुके हैं। इन जंगलों से गुजरते हुए पेड़ों के तनों पर निशानदेही बताती है कि माइकल अपने इस काम को कितनी संजीदगी से लेते हैं।
अभी आप इस जोड़े के इकोटूरिज़्म के जुनून के बारे में सोच ही रहे होते हैं कि इस बीच, दीवांशी की रसोई से मशरूम-चीज़ पास्ता की महक उठने लगती है। डाइनिंग हॉल के एक कोने से पियानो की धुन चारों तरफ पसरने लगती है। किसी शाम गिटार पर माइकल की धुनें आपको खींच लाती हैं इस तरफ तो किसी रोज़ हिमाचली पारंपरिक व्यंजन सिड्डू के बहाने सारे मेहमान साथ हो लेते हैं।
रसोई समेटने से लेकर सेब के जूस, जैम, स्क्वैश, विनिगर, अचार-चटनी बनाने और इस अनोखे होमस्टे के रखरखाव की जिम्मेदारी वॉलन्टियर्स बखूबी निभाते हैं। और हाँ, यहां रूम-सर्विस के लिए कोई नहीं है। फार्मस्टे पर मौजूद हर शख़्स इसी डाइनिंग रूम में ब्रेकफास्ट से डिनर पर मिलते हैं।
मेहमानों और सेब के अर्थशास्त्र तथा फार्मस्टे के रखरखाव के बीच एक गज़ब का ताना-बाना यहां दिखायी देता है, जिसमें सत्कार परंपराओं की सोंधी-सोंधी महक है। और कंज्यूमरिज़्म की बू ज़रा भी नहीं है।
दीवांशी कहती हैं, ”इन विदेशी युवाओं को स्थानीय रंग में रचे-बसे देखना सुकून से भर देने वाला अहसास होता है। और उन्हें इस तरह हमारा रहन-सहन, खान-पान नज़दीक से देखना पसंद आता है। हमारे फार्मस्टे में ठहरने वाले अन्य मेहमानों को भी ऐसी तमाम गतिविधियों से जुड़ने का मौका मिलता है जो उन्हें अपनी शहरी जिंदगी की बोरियत, एकरूपता और मशीनीपन से दूर ले जाती हैं। यहां बेशक, उनके स्मार्टफोन के कनेक्शन ढीले पड़ जाते हैं मगर आपस में और कुदरत के साथ उनके कनेक्शन वाकई मजबूत बनते हैं।”
Himalayan orchard, Kotkhai
Owners –
Devanshe and Michael
Contact:+91 98681 50329
www.himalayanorchard.com
2. आधुनिकता और लग्ज़री से परे ‘रिस्पॉन्सिबल टूरिज़्म’ की डगर – ‘माउंटवेज़ कोट नैकाना’, उत्तराखंड!
बीते साल हिमाचल से उत्तराखंड की तरफ बढ़ चले मेरे कदम अटके थे अल्मोड़ा से बीस मील के फासले पर खड़े होमस्टे ”माउंटवेज़ कोट नैकाना” में।
यहां पहले से ठहरी एक मेहमान को देखकर मेरे मन ने सवाल किया था कि क्या सिर्फ बिच्छू घास का सूप, झोली, दाल के डुबके, मडुवे की रोटी, चौलाई का साग और झिंगोरे की खीर का लुत्फ लेने ही एयर इंडिया की वो वरिष्ठ क्रू मैनेजर अपने आशियाने से इतनी दूर चली आयी थीं? या निजी जीवन के संकट, काम के मोर्चे पर उपजे घनघोर तनाव और शहरी जिंदगी की अजनबियत से दूर कुछ दिन कुदरत का ‘हीलिंग टच‘ लेने पहुंची थीं?
थोड़ी पड़ताल की तो इस राज़ पर से भी पर्दा उठा। दरअसल, नौकरी उन्हें दुनियाभर में ले जाती है, आज पेरिस तो कल लग्ज़मबर्ग, परसों मिलान और फिर सैन-फ्रांसिस्को या लंदन-बुसान। यहां-वहां की चमक-दमक, यात्रियों की भागमभाग, हवाईअड्डों की रौनकें, शोर और भीड़-भाड़ के बीच जिंदगी गुजर-बसर करते-करते उन्हें खुद को सहेजने के लिए ऐसे आशियाने की तलाश होती है जहां वक्त ठहर जाता हो। जहां वे मशीनी परफैक्शन वाली रूम सर्विस की बजाय इंसानी स्पर्श महसूस कर सकें। और हिमालय की पंचचूली श्रृंखलाओं को ताकते इस होम स्टे में तीन-चार दिन गुजारकर वे ऐसा ही कुछ महसूस करती हैं।
निकू सिद्धू कहती हैं – ‘’माउंटवेज़ कोट नैकाना में खाना पकाने-परोसने वाला धनसिंह हो या विलेज और फॉरेस्ट ट्रेल पर मार्गदर्शक गोविंद, सहायक राजन या खुद होमस्टे की सह-संस्थापक पुष्पांजलि सिंह, मुझे उनका खांटीपन पसंद आता है। वे किसी होटल मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट से नहीं आए हैं बल्कि इस होमस्टे के खुलने के बाद इससे जुड़े हैं। लिहाज़ा, उनमें एक अनगढ़ता है, मगर साफगोई भी है, वहां कुछ भी कृत्रिम नहीं है … पहाड़ों और पहाड़ी झरनों-नदियों की मानिंद सब निश्छल है। …. इस होमस्टे का सबसे आकर्षक दिन होता है जब नज़दीक के ही गाँव में राजन अपने घर खाने पर ले जाता है। वहां उसका पूरा परिवार मेहमानों को खाना खिलाने में जुट जाता है। कुमाऊंनी व्यंजनों को हिमालय की शरण में चखने का अनुभव अमरीका-यूरोप के हाइ एंड रेस्तराओं में डिनर-लंच को भी पीछे छोड़ देता है। बस, इसीलिए यहां चली आती हूँ मैं, कभी अकेले तो कभी दोस्तों-परिवार के संग।”
Mountways kot Naikana, Almora
Pushpanjali (Co-owner) – +91 98717 14872
https://www.mountways.com/
3. व्यू पॉइंट होमस्टे, अरुणाचल प्रदेश
हाल में, अरुणाचल में कल्चरल ट्रेल के दौरान खूबसूरत ज़ीरो घाटी जाना हुआ और वहां ”सिल्वर व्यू होमस्टे” चला रहे आपातीनी जनजाति के एक पति-पत्नी के जज़्बे-जुनून को करीब से जानने-समझने का मौका मिला।
ऑर्गेनिक खेती करने वाले इस जोड़े के लिए रफ्तार बेमायने हो चुकी है। वे मेहमानों को हौले-हौले जिंदगी का लुत्फ लेने का जैसे मंत्र सौंपते हैं। नाश्ते-खाने पर अरुणाचली दंत-कथाओं, किस्सों-रिवायतों और परंपराओं से रूबरू कराने में उन्हें खूब आनंद आता है। भोजन खालिस स्थानीय और हर व्यंजन-पेय ऑर्गेनिक होता है। जैसे कीवी, शहतूत, आलूबुखारे की वाइन, रागी का दलिया और उनकी क्यारी में उगने वाले शाक-पत्तों का साग। बांस के पारंपरिक रसोईघर में किस्सों की जो बिसात बिछती है तो खाने-पीने के दौर घंटों खिंच जाते हैं। और आप सोचते रह जाते हैं कि क्या है इस जोड़े का मकसद – पैसा कमाना या कुछ और?
ये जो कुछ और है, यही उन्हें अलग बनाता है।
Address – MR TILLING CHADA, VIEW POINT HOME STAY, VILL: DUKU (ABULYANG), LOWER SUBANSIRI DISTRICT, ZIRO-791120, ARUNACHAL PRADESH.
Contact number: 9856846072.
4. पहाड़ी हाउस साकार कर रहा है सस्टेनेबिलिटी की ‘पंचवर्षीय योजना’, गढ़वाल!
उत्तराखंड के गढ़वाल में ही ‘पहाड़ी हाउस’ जैसी पहल सामने आयी है जो पुराने, खंडहर हो रहे, बीरान पड़े पहाड़ी घरों की मरम्मत, साज-सज्जा कर उन्हें सत्कार उद्योग का हिस्सा बना रहे हैं। इस तरह नए निर्माण पर साधनों की फिज़ूलखर्ची की बजाय कम खर्च में काम चलाने की यह पहल पर्यावरण पर कम से कम दबाव डालती है। साथ ही, बर्बाद हो रहे ठौर अब टूरिस्ट ठिकानों में बदलने लगे हैं।
2014 में टिहरी जिले के काणाताल में पहला ‘पहाड़ी हाउस’ खुला और अगले पांच साल इसे होमस्टे के तौर पर लोकप्रिय बनाने के बाद अब उस परिवार को चलाने के लिए लौटाया जा चुका है, जिनका कभी यह घर हुआ करता था।
(बीच में, बाएं से दाएं अभय शर्मा, काणाताल होमस्टे के मालिक पुंडीर जी और पहाड़ी हाउस के सह-संस्थापक यश भंडारी के साथ)
4. पहाड़ी हाउस, डांडाचली
उत्तराखंड के नाजुक हिमालयी इकोसिस्टम में पहाड़ी हाउस के जरिए सस्टेनेबिलिटी का सबक बुलंद करने वाले अभय शर्मा अब टिहरी के ही एक अन्य गाँव डांडाचली (रानीचूरी) में गांववालों से तीन ‘बेकार, बदहाल, बर्बाद’ हो चुके ‘खंडहरों’ को खरीदने के बाद उन्हें होमस्टे में बदल चुके हैं। यानी एक और पंचवर्षीय प्लान चालू हो चुका है जो योग, मेडिटेशन रिट्रीट की शक्ल ले रहा है।
www.pahadihouse.com
Email: depahadihouse@gmail.com
Co-founder: Abhay Sharma +91 99973 06041
अलग-अलग प्रदेशों में, पर्यटन मानचित्र पर तेजी से जगह बनाने वाले कितने ही होमस्टे या फार्मस्टे ऐसे हैं जहां रहने—सोने—जागने—खाने—पीने का अनुभव करने के बाद आपको ‘जिम्मेदार पर्यटन’ जैसी संकल्पना दूर की कौड़ी नहीं लगती। स्थानीय अर्थव्यवस्था में इनके योगदान से लेकर सैलानियों को नायाब अनुभव परोसने की इनकी अनूठी पेशकश एक नई उम्मीद जगाती है। कूड़े के निपटान से लेकर पास-पड़ोस के गांवों-बाज़ारों से जरूरत का सामान खरीदने, आजू-बाजू के देहातों के लोगों को काम पर रखने, कम में ज्यादा का मंत्र जीने वाले ये ठौर-ठिकाने सस्टेनेबल टूरिज़्म को साकार कर रहे हैं।
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