तेलंगाना का पेद्दापल्ली जिला राष्ट्रीय स्वच्छ सर्वेक्षण सर्वे 2019 के अनुसार देश का सबसे ज़्यादा साफ़-सुथरा जिला है। और इस उपलब्धि का पूरा श्रेय जाता है यहाँ की डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर ए. देवसेना को, जिन्होंने साल 2018 की शुरुआत में यहाँ का चार्ज सम्भाला था।
सिर्फ़ डेढ़ साल में ही उन्होंने अपने प्रयासों और मेहनत से इस जिले का पूरा कायाकल्प ही कर दिया। सस्टेनेबिलिटी, पर्यावरण संरक्षण, कचरा-प्रबंधन और तो और स्वच्छ माहवारी जैसे विषयों पर यहाँ के लोग न सिर्फ़ चर्चा करते हैं, बल्कि बदलाव लाने की मुहिम पर भी काम कर रहे हैं।
पेद्दापल्ली की कहानी:
साल 2016 में पेद्दापल्ली जिले को अस्तित्व मिला, इससे पहले यह करीमनगर जिले का भाग हुआ करता था। यहाँ की जनसंख्या लगभग आठ लाख है।
पेद्दापल्ली जिला श्रीराम सागर प्रोजेक्ट के अंतिम छोर पर बसा हुआ है, जिसे पूरे तेलंगाना की लाइफलाइन कहा जाता है।यह जिला भी अपनी पानी की ज़रूरतों के लिए इसी डैम पर निर्भर है और अक्सर गर्मियों में पानी के लिए जद्दोजहद करता है।
“एक वक़्त था जब यहाँ के गाँव बहुत ही दयनीय स्थिति में होते थे। ड्रेनेज सिस्टम पूरा भर जाता था और ओवरफ्लो करने लगता और इस वजह से हर मानसून में यहाँ डेंगू फ़ैल जाता। पेड़ कम हो रहे थे, भूजल का स्तर हर दिन गिरता ही जा रहा था। और कचरा-प्रबंधन न होने की समस्या तो सबके सामने ही थी, ” जिला आयुक्त के कंसलटेंट प्रेम कुमार ने बताया।
लेकिन अब की स्थिति बिल्कुल ही अलग है। यहाँ के 1.32 लाख घरों में से हर एक घर अब अपने आप में एक सस्टेनेबिलिटी यूनिट है। और यह सब सम्भव हो पाया है आईएएस देवसेना के प्रयासों की वजह से।
जैसे ही उन्होंने यहाँ का कार्यभार संभाला, पेदापल्ली को खुले में शौच मुक्त जिले का सर्टिफिकेट मिल गया। लेकिन जब वह अपनी टीम के साथ ग्राउंड सर्वे पर निकली तो हक़ीकत कुछ और ही नज़र आई।
उन्होंने बताया, “सिर्फ़ खुला शौच मुक्त होने का सर्टिफिकेट मिलना ही सब कुछ नहीं। हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि शौचालयों का इस्तेमाल और रख-रखाव, दोनों ही अच्छे से हो। लोगों को स्वच्छता का महत्व समझना होगा।”
जिले के कुछ लोगों ने उनसे शिकायत की, कि वे अक्सर काम के लिए घरों से दूर होते हैं तो इसलिए शौच के लिए खुले में जाना पड़ता है। ऐसे में, उन्होंने तुरंत जिले के 263 गाँवों में सामुदायिक शौचालय बनवाने का आदेश दिया।
इन गाँवों के सरपंचों को अपने-अपने गाँव के शौचालय के निर्माण और रख-रखाव की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी। ये सामुदायिक शौचालय गाँव के किसानों और दिहाड़ी-मजदूरों के साथ-साथ, अपने घर से दूर स्थित स्कूल में पढ़ने आने-जाने वाले छात्र-छात्राओं के लिए भी काफ़ी हितकर साबित हो रहे हैं।
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देवसेना ने ‘स्वच्छाग्रही प्रोग्राम’ भी लॉन्च किया और जिले के स्वयं-सहायता समूहों में से लगभग 1000 महिलाओं को अपने-अपने क्षेत्र में स्वच्छता का मुआयना करने के लिए लीडर बनाया गया है।
गाँव के साइज़ के हिसाब से 50 से 100 घरों पर एक स्वच्छाग्रही को नियुक्त किया गया है। ये घर-घर जाती हैं और लोगों को खुले में शौच के चलते होने वाली गंभीर बिमारियों और अन्य परेशानियों के बारे में जागरूक करती हैं। साथ ही, इस अभियान के चलते लोगों को कुछ अन्य ज़रूरी बातें जैसे कि खाने से पहले हाथ धोना, सब्ज़ी पकाने से पहले उन्हें धोना आदि के बारे में भी जागरूक किया गया है।
कारगर रहे पांच ‘पी’:
देवसेना कहती हैं कि पाँच ‘पी‘ पेद्दापल्ली के विकास में बहुत कारगर रहे- पॉलिटिकल विल (यानी कि राजनैतिक समूहों का साथ), पार्टिसिपेशन (भागीदारी), पब्लिक फाइनेंस (चंदा इकट्ठा करना), पार्टनरशिप (सहभागिता) और परमेश्वरन अय्यर- वह अनुभवी अफ़सर जिन्होंने स्वच्छ भारत अभियान की अध्यक्षता की।
स्थानीय नेताओं को स्वच्छता के काम में लगाने के लिए देवसेना ने पूरे क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा का माहौल बना दिया ताकि सभी लोग अपने क्षेत्र को बेहतर बनाने के प्रयासों में जुट जाएं। सरपंच, लोकल एमएलए, और यहां तक कि एमपी ने भी अपने इलाके को पूर्णतः खुला शौच मुक्त इलाके की लिस्ट में स्थान दिलाने के लिए जी-जान लगा दी।
देवसेना बताती हैं कि इन लोगों ने सरकार से भी फंड मिलने का इन्तजार नहीं किया बल्कि उन्होंने खुद अपनी बचत के पैसों से अपने गाँव, ब्लॉक और विधान सभा क्षेत्र को साफ़ कराया। साथ ही, नागरिकों की सहभागिता भी तस्वीर बदलने में बहुत सहायक रही।
देवसेना कहती हैं, “जब लोगों ने अपने मुखिया और नेताओं को एक्शन में देखा तो उन्होंने भी अपने हाथ में झाड़ू उठा ली और स्वच्छता के कार्य में लग गए।” इसके अलावा, उनके द्वारा आयोजित की गयी गतिविधियां जैसे कि कूड़ा बीनना, पौधरोपण आदि में भी 100% जनभागीदारी दिखी।
खुला शौच मुक्त जिले के आलावा भी किये बहुत से उम्दा काम
जब एक बार पेद्दापल्ली के लोग शौचालयों के इस्तेमाल के आदि हो गए तो देवसेना ने अपना ध्यान बाकी कार्यों में लगाया, जैसे कि कचरा प्रबंधन, प्लास्टिक को कम से कम करना और सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट।
बदबू और ओपन ड्रेनेज की समस्या के हल के लिए जिले में हर घर के बाहर सोक पिट यानी कि गड्ढा खोदा गया हैं। इन गड्ढों को घर के मेन ड्रेनेज से जोड़ा गया है, ताकि सीवेज का पानी बाहर न बहे और मच्छर-मक्खियां न पैदा हों। इन गड्ढों का फायदा जल्द ही नज़र आने लगा क्योंकि एक वक़्त पर यह जिला डेंगू जोन कहा जाता था लेकिन अब यहां पर डेंगू के मामलों में 85% की कमी आयी है।
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ओपन ड्रेनेज सिस्टम से मुक्त होने वाला पेद्दापल्ली देश का पहला जिला है और इसका श्रेय जाता है देवसेना को, जिन्होंने 1 लाख सोक पिट्स बनवाए हैं।
“हमारे बच्चे भी इन सभी प्रैक्टिसेज का महत्व समझ रहे हैं। इसका मतलब यह है कि हमारी आने वाली पीढ़ी को स्व-स्वच्छता और गाँवों की स्वच्छता के प्रति अच्छी समझ होगी। मैंने कभी भी इतने बड़े बदलाव की कल्पना नहीं की थी। हमें गर्व होता है यह कहते हुए कि हमें पूरे राज्य में रोल मॉडल के तौर पर जाना जा रहा है,” यह कहना है धूलिकत्ता गाँव की गीसा लावण्या का।
कचरा-प्रबंधन के तरीके
स्वच्छाग्रही की तरह ही गाँव के लोगों को कचरा अलग करने की प्रक्रिया सिखाने के लिए स्वयं-सहायता समूह की लीडर्स को तैयार किया गया। उन्होंने हर एक घर में जाकर लोगों को सॉलिड वेस्ट को अलग-अलग करने के चार तरीकों के बारे में बताया और फिर उन्हें प्रैक्टिकल करके भी दिखाए।
हर एक परिवार को अपने घर के कूड़ा-करकट को गीले, कांच और मेटल, प्लास्टिक और पेपर- इन चार केटेगरी में अलग-अलग करने के लिए कहा गया। इस एप्रोच के चलते ज़्यादा से ज़्यादा कचरा रीसायकल हो पाता है।
सभी कचरा इकट्ठा करने वाले और कूड़ा बीनने वाले इसी तरह से कूड़ा-कचरा इकट्ठा करने लगे। जिस कचरे को बिल्कुल भी रीसायकल नहीं किया जा सकता है, उसे गाँवों में बनाये गये डंपिंग यार्ड में पहुँचाया जाता है। ये डंपिंग यार्ड गाँव के रहवासी इलाकों से बहुत दूर जंगलों में बनाये गये हैं।
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इसके अलावा, देवसेना ने हर एक परिवार को गीले कचरे से खाद बनाने के लिए प्रेरित किया और इस वजह से अब हर घर में किचन गार्डन है। ‘हरितहरण प्रोग्राम’ के तहत प्रशासन ने हर घर को फल, सब्ज़ियाँ और फिर फूल के पौधों के छह सैपलिंग दिए हैं।
“ज़्यादातर महिलाओं ने सब्जियों के पौधे लिए और इससे बहुत हद तक खून की कमी और कुपोषण जैसी समस्याओं से लड़ने में मदद मिली है। बहुत से लोगों ने किचन गार्डन के महत्व को समझते हुए, इसमें इन छह पौधों के अलावा और भी पेड़ लगाये हैं,” देवसेना ने कहा।
प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करने के लिए महिलाओं को जूट, कपड़े आदि के बैग बनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया, जिनका इस्तेमाल सिंगल-यूज पॉलिथीन की जगह किया जा सके। बसंतनगर गाँव के कपड़े के बैग बनाने वाली मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में काम करने वाली रजनी बताती हैं,
“मैं दिहाड़ी-मजदुर का काम करती थी और बहुत ही कम कमा पाती थी। इससे मैं अपने बच्चों को अच्छे स्कूल भी नहीं भेज पा रही थी। लेकिन, यहाँ पर अब मैं इतना कमा लेती हूँ कि मेरे दोनों बच्चे इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ रहे हैं।”
यहाँ प्लास्टिक की क्रोकरी जैसे कि प्लेट, गिलास, चम्मच आदि के इस्तेमाल पर भी कड़ी रोक है और इसकी जगह मिट्टी के बर्तनों को दी गयी है। इससे हर दिन दम तोड़ रहे कुम्हारों के व्यापार को भी सहारा मिला है।
महिलाओं के लिए योजनायें:
पेद्दापल्ली, देश का पहला जिला है जहां बड़े स्तर पर महिलाओं के लिए बायोडिग्रेडेबल सेनेटरी नैपकिन बांटे जा रहे हैं और वह भी सिर्फ़ 2.50 रुपये प्रति नैपकिन की कीमत पर। दो अलग-अलग आकारों और चौड़ाई में उपलब्ध, ‘सबला नैपकिन’ भी स्वयं सहायता समूहों की महिला-सदस्यों द्वारा बनाये जा रहे हैं।
“महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है और यह नैपकिन मुफ़्त में दिए जाते हैं। ये सैनिटरी नैपकिन टिम्बर और कागज से बने होते हैं। इन्हें डिस्पोज करने पर कोई बदबू या फिर कचरा नहीं होता है,” लावण्या ने बताया, जो खुद सबला नैपकिन इस्तेमाल करती हैं और अन्नपूर्णा स्वयं सहायता समूह की सदस्या हैं।
देवसेना बताती हैं कि सबला नैपकिन का इस्तेमाल बढ़ने से गाँव की औरतों को होने वाले यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन और रिप्रोडक्टिव ट्रैक्ट इन्फेक्शन जैसी बिमारियों के मामलों में कमी आई है। साथ ही, उनमें माहवारी से संबंधित जागरूकता भी काफ़ी बढ़ी है।
ग्रीन कवर भी बढ़ा है
देवसेना के हरित अभियान सिर्फ़ घरों के किचन गार्डन तक नहीं बल्कि पूरे जिले में फैले हैं। सबसे पहले, मिट्टी के कटाव और बारिश के पानी को रोकने के लिए पहाड़ी और घाटियों पर मशीनरी की मदद से ऊपर-नीचे ट्रेंच बनायीं गयीं। इससे मिट्टी को बांधे रखने में तो सहायता मिली ही, साथ ही, भूजल स्तर बढ़ाने में भी मदद हुई।
बाद में, इन पहाड़ियों और घाटियों में बीज बम फेंके गए और जल्दी ही, ये हरे-भरे पौधों का रूप लेने लगे। कुछ महिनों बाद ही जिले के हरित कवर में जो बढ़ावा हुआ, वह काबिल-ए-तारीफ़ है। पूरे जिले की 400 एकड़ ज़मीन पर पौधरोपण हुआ है।
फलों के पेड़ भी कुछ स्थानों पर लगाए गए हैं ताकि बंदर, पक्षी और अन्य जंगली जानवर खेत में जाकर फसलों को नष्ट न करें। देवसेना मानती हैं कि लोगों के बीच पौधारोपण के बारे में काफ़ी जागरूकता की कमी थी और इसलिए उन्होंने पौधों को धार्मिकता से जोड़ते हुए ‘हरित महालक्ष्मी’ के रूप में उनके सामने रखा, जो एक दिन उन्हें धन-धान्य से भर देंगे।
वह कहती हैं कि उन्हें यकीन ही नहीं होता कि उनके इस कॉन्सेप्ट के बाद सिर्फ़ एक दिन में 6 लाख पौधारोपण करवाने में वे सफल रहे।
देवसेना को राज्य के साथ-साथ केंद्र सरकार से कई पुरस्कार मिले हैं और इस साल स्टॉकहोम में विश्व जल सप्ताह में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का प्रतिनिधित्व करने के लिए पूरे देश में से चुने गए दो कलेक्टरों में से एक वह थीं। वहां पर उन्होंने विकासशील गाँवों में पानी की समस्या को सुलझाने के ऊपर भाषण दिया, जिसके लिए उनकी काफ़ी प्रशंसा हुई।
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देवसेना कहती हैं कि पेद्दापल्ली का बदलाव सिर्फ़ उनकी नहीं बल्कि प्रशासन से लेकर आम नागरिक तक, सभी की मेहनत का नतीजा है। लेकिन इस सब में यदि उनका सक्रिय योगदान और दूरदर्शी सोच नहीं होती, तो यह हो पाना सम्भव नहीं था।
द बेटर इंडिया, इस आईएएस अफ़सर की मेहनत और जज़्बे को सलाम करता है और आशा करता है कि देश का हर एक जिला पेद्दापल्ली की तरह विकास के पथ पर आगे बढ़ेगा।
संपादन – मानबी कटोच