Powered by

Home स्वच्छ भारत इंदौर ने बनाया देश का पहला Zero Waste वार्ड, कचरे से होती है अब वार्ड-वासियों की कमाई

इंदौर ने बनाया देश का पहला Zero Waste वार्ड, कचरे से होती है अब वार्ड-वासियों की कमाई

गंदगी से जूझ रहे शहरों के लिए इंदौर का एक वार्ड नई मिसाल बनकर उभरा है। 4400 से अधिक घरों का वार्ड नंबर 73, देश का पहला जीरो वेस्ट वार्ड है।

New Update
Zero Waste

आज देश के अधिकांश शहर गंदगी की भीषण समस्या से जूझ रहे हैं। इसके निपटने के लिए निचले स्तर से प्रयास करना कितना जरूरी है, इसे साबित किया है मध्य प्रदेश के इंदौर शहर के इस वार्ड ने।

इंदौर के 4400 से अधिक घरों का वार्ड नंबर 73, देश का पहला जीरो वेस्ट वार्ड बन गया है। इस वार्ड में 600 घर ऐसे हैं, जहाँ गीले कचरे से खाद बन रहा है, तो सूखा कचरा कमाई का साधन बन रहा है।

जल्द ही, स्थानीय नगर निगम, स्वतंत्र एजेंसी से वार्ड की जाँच करा कर, इसकी औपचारिक घोषणा भी कर देगा।

Zero Waste
अपने वार्ड को स्वच्छ करने का संकल्प लेते बच्चे

इस प्रोजेक्ट को अंजाम देने में श्रीगोपाल जगताप का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, जो बेसिक्स नाम के एक गैर सरकारी संस्था को चलाते हैं।

इस कड़ी में वह कहते हैं, “हम पिछले 5 वर्षों से इंदौर नगर निगम के साथ मिलकर स्वच्छता संबंधी अभियानों में काम कर रहे हैं। इसी सिलसिले में, कुछ महीने पहले यहाँ की नई आयुक्त प्रतिभा पाल जी ने जीरो वेस्ट वार्ड बनाने की इच्छा जताई, जो कि समाज के सामने एक उदाहरण पेश करे।”

इसके बाद, उन्होंने इस प्रोजेक्ट को जुलाई 2020 में शुरू किया और इसके लिए पाँच वार्डों को चयनित किया गया - वार्ड 73, 32, 47, 66 और 4। ये सभी वार्ड जिले के अलग-अलग क्षेत्रों में हैं।

क्या था उद्देश्य

इस प्रोजेक्ट के तहत, यह उद्देश्य निर्धारित किया गया कि वार्ड में कचरा कम हो और जो हो, उससे स्थानीय स्तर पर खाद बनाया जा सके।

Zero Waste
घर में लगा कम्पोस्टिंग बिन

जगताप बताते हैं, “इस प्रोजेक्ट के लिए हमने वार्ड के सभी घरों, बस्तियों, दुकानों और बगीचों को निर्धारित किया और सफाई मित्र की मदद से गीला कचरा और सूखा कचरा को अलग किया।”

वह बताते हैं, “आज यह प्रोजेक्ट वार्ड 73 में काफी सफल है और शेष में काम जारी है। इसके तहत, लोग गीले कचरे से अपने घरों में ही खाद बना रहे हैं। वहीं, प्लास्टिक, सेनेटरी नैपकिन जैसे सूखे कचरों को रीसायकल करने के लिए खरीदा जाता है।”

कैसे बनाते हैं खाद

जगताप बताते हैं कि इसके लिए दो कम्पोस्टिंग सेट है - टेराकोटा बिन और प्लास्टिक बिन। 

टेराकोटा बिन में मिट्टी के तीन स्तर होते हैं। इसमें कचरा डालने के बाद, बायो कल्चर दिया जाता है। फिर, इसे ढंक दिया जाता है। यह प्रक्रिया हर दिन दोहराई जाती है।

Zero Waste
लोगों को जरूरी सलाह देते अधिकारी

वहीं, प्लास्टिक बिन में कचरा डालने के बाद, इसमें बायो कल्चर दिया जाता है। इसके नीचे एक नल लगा होता है, जिससे लिक्विड फर्टिलाइजर निकलता है।

इन दोनों प्रक्रियाओं में, खाद तैयार होने में करीब 45 दिन लगते हैं।

जगताप बताते हैं कि यहाँ 140 से अधिक अपार्टमेंट हैं और जगह की कमी की वजह से, उनके लिए कंपोस्टिंग संभव नहीं है। इसलिए, उन्होंने आईटी कंपनी इंसीनरेटर स्वाहा की टीम को हायर किया है, जो ओडब्ल्यूसी मशीन के जरिए मौके पर ही कचरे को खाद में बदल देती है।

क्या थी समस्या

शुरुआती दिनों में लोगों को डर था कि इससे काफी बदबू आएगी, लेकिन नगर निगम और सभी हितधारकों ने मिलकर लोगों को इसके प्रति जागरूक किया। 

publive-image

इस कड़ी में, इंदौर के चीफ सेनेटरी इंस्पेक्टर लोधी बताते हैं, “आज शहरों में कचरे की समस्या आम है। इसलिए हमने लोगों को कचरे को बागवानी कार्यों में फिर से इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया। इससे लोगों का रूझान इसके प्रति बढ़ता गया। वहीं, सूखे कचरे को  रीसायक्लिंग के लिए लोगों से 2 रुपए से 2.5 रुपए प्रति किलो की दर पर लिए खरीदा जा रहा है। जिससे उन्हें आर्थिक लाभ भी होती है।”

कम्यूनिटी कम्पोस्टिंग यूनिट का निर्माण

जगताप बताते हैं कि आज वार्ड 73 में हर दिन करीब 8 टन कचरे का उत्पादन होता है। इसमें कई ऐसे घर हैं, जहाँ कचरा खुद से नहीं बनाते। इसके लिए हमने एक कम्पोस्टिंग यूनिट को बनाया है। यहाँ बने खाद का इस्तेमाल सार्वजनिक स्थानों पर लगे पेड़-पौधों के लिए किया जाता है।

वह कहते हैं कि हमने सूखे कचरे के लिए एक स्वच्छता केन्द्र बनाया है, जहाँ कुछ पैमाने पर प्लास्टिक को रीसायकल करने के लिए भेजा जाता है और अतिरिक्त उत्पादों को कई दूसरे संस्थाओं द्वारा खरीदा जाता है।

publive-image
कम्पोस्टिंग यूनिट

इस कड़ी में, एक स्थानीय हरमीत सिंह छाबड़ा कहते हैं, “मुझे बागवानी से बेहद लगाव है और इसके फर्टिलाइचर के लिए मुझे पहले बाजार पर निर्भर रहना पड़ता था। लेकिन, अब मैं खुद से ही घर के कचरे से हर महीने 7-8 किलो खाद बना रहा हूँ, जिससे पेड़-पौधों को काफी लाभ हो रहा है।”

इसके साथ ही, वह लोगों से अपील करते हैं कि नगर निगम ने कचरा प्रबंधन के लिए जिस अभिनव प्रयास को शुरू किया, उसे सार्थक बनाना लोगों की नैतिक जिम्मेदारी है।”

क्या है प्रभाव

जगताप कहते हैं, बेशक यह काफी साधारण पहल है, लेकिन इससे अपशिष्ट प्रबंधन में परिवहन लागत की बचत होने के साथ-साथ लोगों को भी आर्थिक लाभ हो रहा है। जिससे लोगों को इस व्यवहारों को अपनाने की प्रेरणा मिलेगी।

publive-image

वह अंत में कहते हैं, “लॉकडाउन के दौरान, लोगों का ध्यान बागवानी की ओर बढ़ा है और वह अब खुद से ही खाद तैयार कर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि इस पहल से अन्य वार्डों के लोग भी बड़े पैमाने पर जुड़ेंगे।”

संपादन - जी. एन झा 

यह भी पढ़ें - सरकारी शौचालयों की बदहाली देख, खुद उठाया जिम्मा, शिपिंग कंटेनरों से बनायें सैकड़ों शौचालय

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें [email protected] पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।