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पिछले साल रिओ ओलंपिक्स में पी वी सिन्धु, साक्षी मलिक और दीपा करमाकर के शानदार प्रदर्शन के बाद पूरी दुनिया के सामने भारत की एक नयी तस्वीर सामने आई। वो तस्वीर जो भ्रूण हत्या के लिए जाने, जाने वाले भारत से बिलकुल विपरीत थी। वो तस्वीर जिसमे भारत की बेटियां भारत की शान बनी।
और फिर साल के अंत में फोगाट बहनों की कहानी पर आधारित फिल्म 'दंगल' ने सोने पर सुहागे का काम किया। आज देश में कई लड़कियां इन सभी से प्रेरणा लेकर कुछ बनना चाहती है।
पर हमारे देश में एक तपका ऐसा भी है जिन्हें न खबरे देखने की फुर्सत है और न फिल्मे देखने की सहूलियत। फिर इन लड़कियों को ये प्रेरणा कैसे मिलती?
इसका एक सरल सा उपाय ढूंड निकाला इंदौर के डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर पी नरहरी ने। उन्होंने 250 ऐसी लड़कियों को 'दंगल' फिल्म दिखाई, जो काफी गरीब घर से थी या अनाथ थी।
कलेक्टर नरहरी ने एक पूरा सिनेमाघर इन लड़कियों के लिए बुक कराया और उन्हें फिल्म दिखाने ले गए। इनमे से कुछ लड़कियों ने तो पहली बार किसी सिनेमाघर में कदम रखा था।
कलेक्टर साहब का कहना है कि वे ऐसा इसलिए करना चाहते थे ताकि फोगाट बहनों की इस कहानी को देखकर इन लड़कियों को भी इस बात पर विश्वास हो जाए कि यदि वो ठान ले तो कुछ भी कर सकती है।
"ये पहली बार नहीं है कि मैं कुछ ऐसा कर रहा हूँ। जब मैं ग्वालियर का कलेक्टर हुआ करता था तब भी मैंने महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कई काम किये थे," कलेक्टर नरहरी ने बताया।
नरहरी खुद एक गरीब परिवार से आते है और इसलिए इन लड़कियों के लिए कुछ करने का जज्बा उनमे प्रबल है।
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नरहरी एक लम्बे समय से फोगाट बहनों के प्रशंसक रहे है। वे अपने भाषणों में अक्सर लोगो को प्रेरित करने के लिए फोगाट बहनों की कहानी सुनाते थे और इसलिए जब उनपर फिल्म बनी तो उन्होंने तय कर लिया था कि वे इन बच्चियों को ये फिल्म ज़रूर दिखायेंगे।
फिल्म रिलीज़ होते ही नरहरी ने तुरंत एक सिनेमाघर बुक किया जहाँ ये सारी लड़कियां एक साथ बैठकर इस फिल्म को देख सके। इनमे से ज़्यादातर बच्चियां सरकारी अनाथालयो में रहती है।
"सिनेमाघर के मालिक ने भी इस बारे में सुनते ही तुरंत इस बात की अनुमति दे दी। कुछ लड़कियां पहली बार किसी मॉल या सिनेमाघर में कदम रख रही थी। उनके उत्साह की तो सीमा ही नहीं थी। हमने फिल्म के दौरान इनके लिए नाश्ते का भी इंतजाम किया था। हम इन लड़कियों को भी बुलंदियों तक पहुँचते देखना चाहते है और इसमें दंगल जैसी फिल्मे काफी सहायक होंगी," नरहरी कहते है।
नरहरी महिलाओं के प्रति अपने इस जज्बे का श्रेय अपने पिता को देते है। उनका कहना है कि उनके पिता एक गाँव में एक साधारण दर्जी थे पर उन्हें इस बात का ज्ञान था कि लड़के और लड़कियों में कभी फर्क नहीं करना चाहिए। तभी पांच भाईयो में उनकी इकलौती बहन को उनके पिता ने खूब पढाया और आज वो पांचो भाईयो के मुकाबले ज्यादा पढ़ी लिखी है।
नरहरी का ये भी मानना है कि समाज में ऊँचे पद पर कार्यरत लोगो की ये ज़िम्मेदारी है कि वो अच्छे काम करके समाज के सामने एक उदाहरण स्थापित करे।
हमे यकीन है कि कलेक्टर नरहरी से प्रेरित होकर अन्य क्षेत्रो के उच्च पद पर कार्यरत पदाधिकारी भी समाज के सामने ऐसे उदाहरण ज़रूर रखेंगे।
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