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हैदराबाद में हर गली-नुक्क्ड़ पर आपको बिरयानी सर्व करने वाले छोटे-बड़े होटल मिल जाएंगे, लेकिन आज हम आपको हैदराबाद की बिरयानी के बारे में बताने नहीं जा रहे हैं, बल्कि इस शहर के एक ऐसी शख्सियत से रू-ब-रू करवाने जा रहे हैं जिनकी कैटरिंग सर्विस (home chef) शहर भर में लोकप्रिय है।
यह कहानी हैदराबाद की एक होम-शेफ 56 वर्षीय शाहनूर जहाँ ‘नूरा’ की है, जिनकी कैटरिंग सर्विस, ‘ख़ासा’ का हर कोई दिवाना है। नूरा एक होम कैटरर हैं जो ‘ख़ासा’ नाम से अपना बिज़नेस चला रही हैं। उनके हाथ के बने शमी कबाब, मटन शिखमपुर, टामटे का कूट और दम का मुर्ग़, जो एक बार खाता है, कभी भी स्वाद नहीं भूल पाता। इन सभी व्यंजनों की जड़ें हैदराबाद की संस्कृति से जुडी हैं और बिरयानी से कहीं आगे हैं। दिलचस्प बात यह है कि उनकी सभी रेसिपी लगभग 100 साल पुरानी है जो कई पीढ़ियों से होकर उन तक पहुँची।
नूरा बतातीं हैं कि वह काफी कम उम्र से खाना पका रही हैं। उन्हें खाना पकाना बहुत पसंद है। उन्होंने बताया, "मेरे पति- बच्चे सब अपने दोस्तों को मेरे हाथ का खाना खिलाने के लिए घर बुलाते हैं। मेरे बच्चों के दोस्त अक्सर कहते थे, 'आंटी आपको प्रोफेशनली कुकिंग करनी चाहिए।' रेसिपी मेरी परदादी की हैं और उनसे मुझतक आई हैं।"
नूरा ने कुकिंग की कोई प्रोफेशनल ट्रेनिंग नहीं ली है हालांकि उन्होंने बीए तक की पढ़ाई की हुई है। साल 2015 में उन्होंने ‘ख़ासा’ की शुरुआत की, जिसका उर्दू में मतलब होता है पका हुआ खाना। एक आईएएस ऑफिसर की बेटी नूरा बतातीं हैं, "पहले, मैं परिवार के सदस्यों और दोस्तों से ही छोटे ऑर्डर लेती थी जो सालों से मेरी कुकिंग का आनंद ले रहे थे। इंटरनेट के चलन के साथ, और अपने बच्चों और उनके दोस्तों के प्रोत्साहन के बाद, मैंने सोचा कि मैं अपनी इस स्किल को आगे लेकर जाऊं और मैंने ख़ासा की शुरुआत की।"
बरसों पुरानी हैं रेसिपी:
‘ख़ासा’ में इस्तेमाल की जाने वाली रेसिपीज पीढ़ियों से शाहनूर की पारिवारिक विरासत का हिस्सा रही हैं, और सौ साल से अधिक पुरानी हैं। वह कहतीं हैं, "मेरी नानी के खाना पकाने का तरीका यमन के स्वाद से प्रभावित था क्योंकि वह वहीं से थीं और मैंने उनकी तकनीक और रेसिपीज को सीखा।"
शाहनूर का बचपन में शाह मंज़िल में बिता है जो वर्तमान राजभवन है और वहीं से उनकी खाना बनाने के शौक की शुरुआत हुई। यह घर उनके दादा का था, जिन्हें प्यार से शाह नवाब के नाम से जाना जाता था और इसलिए नाम शाह मंजिल पड़ा।
शाहनूर कहतीं हैं, "जब भी मैं हॉस्टल से घर वापस आती तो मैं अपनी माँ को खाना बनाते देखती और कभी-कभी उनकी मदद करती।" उनकी माँ, फ़िआक जेहान, भी शाही हैदराबादी व्यंजन पकाने के लिए शाहनूर के लगाव की बड़ी वजह रहीं हैं।
उनकी दादी, मुजफ्फर उनिसा बेगम, पूर्व यमन के सुल्तान की बेटी थीं, और उनके दादा नवाब अहमद बेग, स्वर्गीय शहजोर जंग के बेटे थे। परिणामस्वरूप, शाहनूर के खाने में भारत के साथ-साथ यमन का भी प्रभाव है। वह कहती हैं, "मैंने अपनी सास शहदा बेगम से भी बहुत कुछ सीखा है।"
कुछ अलग हैं उनके व्यंजन:
पारिवारिक विरासत के चलते इन व्यंजनों को बनाने का तरीका जानने के बाद, शाहनूर की सदियों पुरानी रेसिपीज़ अब हैदराबादी व्यंजनों के छिपे हुए स्वाद और फ्लेवर को बाहर ला रही हैं। उनके व्यंजनों को काफी प्रशंसा भी मिल रही है। वह बतातीं हैं कि उन्होंने कभी भी बिरयानी नहीं पकाई क्योंकि यह हर जगह उपलब्ध है, और वह कुछ अलग करना चाहती थी।
शाहनूर को हलीम और मटन रोस्ट पकाना बहुत ज़्यादा पसंद हैं। हलीम, मांस और दाल से बनता है। हलीम रमजान का पर्याय है और साथ ही, शादियों और अन्य सामाजिक समारोहों में परोसे जाने वाले पारंपरिक व्यंजन हैं। यह व्यंजन उनके बच्चों को बहुत पसंद हैं, और उन्हें इसके सबसे अधिक ऑर्डर मिलते हैं।
शाहनूर कहते हैं, ''दम का मुर्ग भी बहुत ज्यादा डिमांड में है। लेकिन मेरे लगभग सभी व्यंजन काफी पसंद किए जाते हैं।" उन्हें ऑर्डर कभी एक पैटर्न में नहीं मिलते, किसी दिन एक-दो ऑर्डर आते हैं तो कभी ज़्यादा।
हाल ही में, मेनू में जोड़ी गयीं, नूरानी सेवइयां शाहनूर की दादी द्वारा बनाई गई थी। वह बताती है कि इसमें सेवइयां, चीनी, केसर, दूध और क्रीम का इस्तेमाल होता है। इसे पिस्ता और वरक से गार्निश किया जाता है। यह पकवान ऊपर से कुरकुरा होता है और अंदर से नरम होता है, बीच की लेयर में चीनी और केसर होता है।
वह कहतीं है, "मैं आभारी हूँ कि लोग मेरे भोजन को इतना पसंद करते हैं। और मुझे बिरयानी के लिए भी बहुत सारे आर्डर मिलते हैं, तो शायद भविष्य में, मैं यह भी सर्व करना शुरू करूँ।"
'असल निज़ाम व्यंजन'
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हैदराबादी व्यंजनों का विस्तार व्यापक है। शाहनूर के घर से, ‘ख़ासा’ बहुत से अनसुने और लगभग लुप्त हो चुके हैदराबादी स्वाद को ला रहा है जो दूसरे हैदराबादी शेफ को पता तक नहीं है। यह उनके जैसे लोग हैं जिन्होंने अपनी सदियों पुरानी रेसिपीज़ से असल निज़ाम व्यंजनों को जीवित रखा है।
शाहनूर इन रेसिपीज से कोई छेड़छाड़ नहीं करतीं हैं। सभी के सभी रेसिपीज बिलकुल अपने मूल रूप में ही रखी गयीं हैं। और इस तरह से उनका उद्यम मोतियों के इस शहर की जड़ों से जुड़ा हुआ है। उनके बारे में अधिक जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।
संपादन - जी. एन झा
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