साल 2002 में जगजीत सिंह वालिया को पंजाब के मानसा जिले में मूसा गाँव के राजकीय प्राथमिक स्कूल में नियुक्ति मिली। जगजीत सिंह जब इस स्कूल में पहुंचे तो स्कूल की हालत देखकर उन्हें बहुत दुःख हुआ। उनकी जगह अगर कोई और शिक्षक होता तो शायद तबादला लेने के बारे में सोचता। पर जगजीत ने स्कूल बदलने की बजाय, उसी स्कूल में बदलाव लाने की राह चुनी।
जगजीत सिंह बताते हैं कि जब वे पहली बार यहाँ आए थे तो स्कूल बिल्कुल जर्जर हालत में था। सिर्फ़ चार कक्षाएं बनी हुई थी, न कोई शौचालय, न साफ़-सफाई और न ही स्कूल में कोई गेट था। बच्चे या तो स्कूल आते नहीं थे और जो आते थे, वे कक्षाओं में कम दिखाई पड़ते थे। साथ ही, स्कूल जानवरों के लिए भी खुला मैदान था।
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वैसे तो, भारत में सरकारी स्कूल की बात हो तो अक्सर ऐसी ही तस्वीर हमारी कल्पना में आती है और हम प्रशासन को दोष देना शुरू कर देते हैं। पर जगजीत सिंह ने किसी और पर दोष डालने से पहले खुद अपनी ज़िम्मेदारी निभाने की ठानी। उन्होंने बताया,
"सबसे पहले तो जी मैंने अपने स्तर पर काम करना शुरू किया। बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ अन्य खेल-कूद और रचनात्मक गतिविधियों से जोड़ा। इसके अलावा, स्कूल की कोई छोटी-मोटी ज़रुरत होती थी तो मैं अपनी जेब से कुछ पैसे खर्च कर देता।"
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उन्होंने बच्चों में स्कूल आने के प्रति रूचि बढाने के लिए पंजाब की संस्कृति का अहम हिस्सा, 'भांगड़ा' का सहारा लिया। उन्होंने बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ भांगड़ा सिखाना भी शुरू किया क्योंकि वे अपने कॉलेज के दिनों में थिएटर और लोक-कला आदि से काफ़ी जुड़े हुए थे। 42 वर्षीय जगजीत बताते हैं कि बच्चे डांस और नाटक आदि के चाव में रेग्युलर स्कूल आने लगे।
उनकी इन छोटी-छोटी पहलों ने न सिर्फ़ छात्रों को, बल्कि अन्य स्कूल के शिक्षकों को भी प्रेरित किया। जब उन्हें स्कूल के पूरे स्टाफ का साथ मिलने लगा तो जगजीत सिंह ने स्कूल के इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम करना शुरू किया। पर इस राह में चुनौती थी फंड्स की।
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सरकार से मिलने वाले फंड्स के इंतज़ार में बैठने का कोई फायदा नहीं था। इसलिए जगजीत ने सामुदायिक सहभागिता का रास्ता अपनाया। उन्होंने स्कूल के विकास कार्यों के लिए गाँव से चंदा इकट्ठा करने की ठानी।
"हालांकि, मुझे गाँव के ही कई लोगों ने इस फ़ैसले से पीछे हटने के लिए भी कहा क्योंकि उनका कहना था कि कोई भी इस काम में मदद नहीं करेगा। पर मुझे पता था कि मुझे यह करना है। मेरा काम था कि हम लोगों को भरोसा दिलाएं कि यह उनके अपने बच्चों के लिए ज़रूरी है,"उन्होंने बताया।
जगजीत सिंह ने स्कूल की गर्मियों की छुट्टियों में अपनी टीम के साथ जाकर गाँव के हर घर से चंदा इकट्ठा किया। वे हर सुबह घर-घर जाकर लोगों को समझाते कि अगर वे थोड़ी भी मदद करके सरकारी स्कूल को ही सुधरवा दें तो उन्हें अपने बच्चों को महंगे प्राइवेट स्कूल में भेजने की ज़रुरत नहीं पड़ेगी। उनकी ये कवायद रंग लाई और धीरे-धीरे गाँव के लोग उनकी मदद के लिए आगे आने लगे।
वे बताते हैं कि उन्होंने गाँव से लगभग 15 लाख रुपए चंदे के तौर पर इकट्ठे किए और खुद अपनी जेब से लगभग 2 लाख रुपए दिए। स्कूल के अन्य स्टाफ ने भी आर्थिक मदद की और इस तरह से स्कूल की पूरी काया ही पलट गई।
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जगजीत बताते हैं कि आज उनका स्कूल पंजाब के 3400 स्मार्ट स्कूलों की लिस्ट में आता है और स्कूल में छात्रों की संख्या 230 है। स्कूल में आठ कक्षाएं हैं, छात्र-छात्राओं और शिक्षकों के लिए शौचालय, स्मार्टक्लास, कंप्यूटर क्लासेस, लाइब्रेरी, खेलने का मैदान, वर्कशॉप लैब और एक एजुकेशनल पार्क भी है।
वैसे तो स्कूल का औपचारिक समय सुबह 8 बजे से दोपहर 2 बजे तक का है। लेकिन स्कूल शाम के 8 बजे तक खुला रहता है।
"हमारे बच्चे स्कूल की छुट्टी के बाद एक-डेढ़ घंटे के लिए घर जाते हैं और फिर कुछ देर खाना खाकर, आराम करके, फिर से स्कूल आते हैं। यहाँ पर वे पहले अपना होमवर्क आदि पूरा करते हैं और फिर शाम में बच्चों के लिए कबड्डी और एथलेटिक्स की प्रैक्टिस होती है," जगजीत ने बताया।
खेल-कूद के साथ-साथ बच्चों की म्यूजिक क्लास भी होती है। इसके लिए स्कूल ने प्राचीन कला केंद्र नामक एक संगठन से टाई-अप किया हुआ है। इस संगठन के ज़रिए सभी छात्र-छात्राओं को संगीत के क्षेत्र में अपने स्कूल और गाँव का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिलता है।
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जगजीत सिंह फ़िलहाल स्कूल के इन-चार्ज हैं और उनके अलावा, पांच और शिक्षक स्कूल में अपनी बेहतरीन सेवाएं दे रहे हैं। हालांकि, उनके लिए उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि इस स्कूल से पढ़े बच्चे, जो आज कॉलेज तक पहुँच चुके हैं, आज भी स्कूल में आकर नई पीढ़ी को पढ़ाने में उनकी मदद करते हैं। वे आगे बताते हैं,
"अब हम स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के लिए नई-नई तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। हमने स्कूल में ही एक एजुकेशनल पार्क बनवाया है, जहाँ पर ट्रैफिक सिग्नल, एयरोप्लेन आदि के मॉडल बनाए गए हैं। इस सबके ज़रिए हम बच्चों को प्रैक्टिकल तौर पर पढ़ाते हैं ताकि उन्हें हर चीज़ अच्छे से समझ में आए।"
आज स्मार्ट टेक्नोलॉजी की वजह से कहीं न कहीं बच्चों की सोचने की क्षमता सीमित होती जा रही है। इसलिए जगजीत सिंह की कोशिश है कि वे बच्चों को दुनिया के विभिन्न पहलुओं से अवगत करवाएं ताकि बच्चे अपनी सोच और बौद्धिक क्षमता का इस्तेमाल करें और उस विषय पर सोचे।
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मानसा से स्कूल के लिए हर रोज़ 10 किमी का सफ़र करने वाले जगजीत बताते हैं कि जैसे-जैसे स्कूल का स्तर सुधरा, गाँव के सभी लोगों ने अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में ही भेजना शुरू कर दिया। यह उनके लिए बहुत गर्व की बात है कि आज गाँव का कोई भी बच्चा प्राइवेट स्कूल में नहीं जाता है, और तो और पैसे कमाने के लिए गाँव में जो दो-चार छोटे-बड़े प्राइवेट स्कूल खुले थे, वे भी अब बंद हो गए हैं।
पांचवीं कक्षा तक की पढ़ाई गाँव के सभी बच्चे इस सरकारी स्कूल में ही करते हैं। इसके बाद, आगे की पढ़ाई के लिए उनका कहीं और दाखिला करवाया जाता है। पर इसके लिए भी स्कूल की कोशिश है कि बच्चे आगे भी अच्छे स्कूल जैसे कि जवाहर नवोदय स्कूल आदि की परीक्षा पास करके वहां पढ़ने जाए। इस बार भी स्कूल के 2-3 बच्चों ने यह परीक्षा पास की है।
जगजीत सिंह को उनके प्रयासों के लिए पंजाब सरकार ने सम्मानित भी किया है। साथ ही, साल 2018 में इस स्कूल को स्मार्ट स्कूल घोषित किया गया। स्कूल के उत्थान के लिए जगजीत सिंह मूसा गाँव के निवासियों, शिक्षकों और पंजाब सरकार के शिक्षा विभाग के साथ का तहे दिल से शुक्रिया करते हैं। वे कहते हैं कि अगर आपका समुदाय और साथी आपके साथ हो और प्रशासन में अच्छा अधिकारी हो तो बदलाव और विकास की राह काफ़ी आसान हो जाती है।
"मेरा मानना है कि बच्चे वाकई भगवान का रूप होते हैं। उनका मन एकदम साफ और सच्चा होता है। इसलिए अगर आपको किसी के लिए कुछ नेक काम करना है तो बच्चों के लिए करो। अगर आज आप उनके लिए कुछ करेंगे तो आप भविष्य की राह तय करते हैं। इसलिए शिक्षक होने के नाते हमें हर सम्भव प्रयास करना चाहिए कि हमारे बच्चों को हर क्षेत्र में आगे बढ़ने का मौका मिले," उन्होंने अंत में कहा।
द बेटर इंडिया, जगजीत सिंह वालिया की सोच और जज़्बे को सलाम करता है और उम्मीद है कि देश के अन्य शिक्षक भी इसी तरह अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुए बदलाव की इबारत लिखेंगे।
संपादन - भगवती लाल तेली