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संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में करीब 21 लाख एचआईवी संक्रमित लोग हैं। भारत में इस संक्रमण का सबसे बड़ा कारण असुरक्षित यौन संबंध है, जिसके पीछे एक वजह कॉन्डम का इस्तेमाल नहीं करना भी है। आज भी लोग कॉन्डम खरीदने में हिचकिचाहट और संकोच महसूस करते हैं। इसलिए सरकारी व गैर सरकारी संगठन एचआईवी की रोकथाम के लिए लोगों को जागरूक करने की कोशिश में लगे हैं।
इसी तरह के एक एचआईवी जागरूकता अभियान में चंडीगढ़ में 17 साल पहले कॉलेज के एक छात्र ने बतौर वॉलन्टियर भाग लिया था।
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इस जागरूकता अभियान के दौरान जब वह रिक्शावालों, छोटे दुकानदारों और मज़दूरों से बात करता तो उन्हें अजीब-सी शर्मिंदगी महसूस होती। एक दिन वह लड़का कॉन्डम इस्तेमाल करने का ब्रोशर हाथ में लिए एक रिक्शावाले को कुछ बताने की कोशिश कर रहा था। रिक्शावाले ने कहा, “बाबूजी, हमें आपकी बात समझ में तो आ गयी है कि यह जरूरी है, लेकिन हम इसे ख़रीदें कैसे? हमें तो इसका नाम लेने में ही शर्म-सी महसूस होती है।“
इस छात्र का नाम था गौरव गौड़, जिसने बिना किसी झिझक के सरकार द्वारा मुफ़्त उपलब्ध करवाया जाने वाला कॉन्डम उन लोगों तक पहुँचाना शुरू कर दिया, जो इसे ख़रीदने में संकोच महसूस करते थे।
गौरव पिछले 17 सालों से लोगों को फ्री कॉन्डम बांट रहे हैं और एचआईवी संक्रमण के प्रति जागरूकता भी फैला रहे हैं।
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अपनी इस अनूठी पहल के बारे में वह कहते हैं, "जब हम जागरूकता अभियान में जाते, तो लोग हमारी बातें बहुत ध्यान से सुनते और आखिर में अपनी लाचारी या संकोच भी जाहिर करते। उस समय मुझे महसूस हुआ कि एचआईवी संक्रमण अगर किसी के संकोच या लाचारी की वजह से फैलता रहा तो इसे रोक पाना मुश्किल होगा। इसी वजह से मैंने लोगों को फ्री कॉन्डम देना शुरू कर दिया। शुरुआत में दिक्कत होती, क्योंकि एक-एक आदमी तक पहुँचना बड़ी मेहनत का काम था और इसमें समय भी काफी लगता था। तब मैंने इसके लिए एक और तरीका निकाला। मैंने कॉन्डम के पैकेट टेलर्स, दुकानदारों और रिक्शा स्टैंड वालों को देने शुरू कर दिए। ऐसी जगहों को कम्युनिटी कॉन्डम डिपो होल्डर कह सकते हैं, क्योंकि वहाँ से उनके दोस्त आसानी से कॉन्डम ले सकते थे। इसके बाद मुझे भी चंडीगढ़ की कॉलोनियों और आसपास के गाँवों में ज़्यादा से ज़्यादा जाने का समय मिलने लगा। हालाँकि, मुझे स्वास्थ्य केंद्र वाले भी कहते थे कि कहीं तुम इन कॉन्डम को बेचते तो नहीं हो।"
17 साल के इस सफ़र के दौरान गौरव ने कई तरह के अनुभव हासिल किए। पढ़ाई के बाद कुछ साल एनजीओ सेक्टर में काम करने के बाद उन्हें पंजाब यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी मिल गयी।
इस सफ़र को लगातार जारी रखने के बारे में वह बताते हैं, "शुरुआत में मैं फ्री कॉन्डम स्टेट एड्स कंट्रोल सोसाइटी, चंडीगढ़ से लेता था। लेकिन वहाँ कई बार दिक्कतें आतीं तो अपने पैसे से ख़रीदकर भी मैं कॉन्डम बांटता। शुरू में मेरे दोस्तों को यह थोड़ा अजीब-सा लगा, लेकिन बाद में उन्होंने भी इसमें मदद करनी शुरू कर दी। कुछ साल बाद AHF (एड्स हेल्थकेयर फाउंडेशन इंडिया) से संपर्क होने पर मुझे वहाँ से फ्री में कॉन्डम मिलने लगे। यह संस्था एड्स के प्रति जागरूकता फैलाने का काम करती है और अभी तक मैं इससे जुड़ा हुआ हूँ।"
कई बार किसी वजह से जब फ्री कॉन्डम गौरव को नहीं मिल पाते हैं, तो वह ख़ुद ख़रीद कर कॉन्डम अपने डिपो होल्डर को पहुँचाते हैं।
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कॉन्डम बांटने के दौरान कई लोग गौरव से आज भी कई तरह के सवाल करते हैं।
उनमें से एक सवाल जो बार-बार पूछा जाता है, वह है- "क्या आप कॉन्डम बांटकर लोगों को सेक्स करने के लिए उकसा रहे हैं?"
इसके जवाब में गौरव कहते हैं कि कॉन्डम बांटने का मतलब यह नहीं है कि वह लोगों को सेक्स करने के लिए उकसा रहे हैं।
वह हमेशा संक्रमण से बचने के लिए एड्स की ABC पर जोर देते हैं, जिसमें A का मतलब है abstinence यानी ब्रह्मचर्य का पालन करें। B का मतलब हैं Be faithful यानी आप अपनी पत्नी या पार्टनर के प्रति वफादार रहें। C का मतलब है correct and consistent condom use यानी कॉन्डम का सही और लगातार इस्तेमाल करना। यह एक ऐसा फॉर्मूला है जो एचआईवी के संक्रमण से बचाने के लिए महत्वपूर्ण है।
गौरव कहते हैं कि हर इंसान को एचआईवी टेस्ट जरूर करवाना चाहिए। वह लोगों को यह टेस्ट करवाने के लिए प्रोत्साहित भी करते हैं। उनके इस अभियान के दौरान बहुत से लोगों ने उन्हें ‘कॉन्डममैन’ कहकर भी पुकारना शुरू कर दिया। कई लोगों ने तो उनका फोन नंबर ही ‘CONDOM MAN’ के नाम से सेव कर रखा है। कुछ लोग उनका मजाक भी उड़ाते हैं औरउन पर तंज कसते हैं।
तंज कसने वालों के बारे में गौरव हंस कर कहते हैं, "वे जब भी कुछ इस तरह का कहते थे तो मेरा एक ही जवाब होता था, 'प्यार फैलाइए, एड्स नहीं'।
उन्होंने अपनी कार को भी पेंट करवाकर जागरूकता अभियान का हिस्सा बना लिया है।
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लोग उनकी कार को देखते और उस पर लिखे गए जागरूकता संबंधी नारों को पढ़ते भी। उन्होंने अपनी कार को जागरूकता अभियान का हिस्सा इसलिए बनाया, क्योंकि उन्हें इस अभियान में साथ देने के लिए ज़्यादा लोग नहीं मिलते थे।
वह बताते हैं, "पहले तो लोग बहुत शर्माते थे। मेरी कार ने मेरा काम बहुत आसान कर दिया। लोग मेरी कार पर लिखे संदेशों को पढ़ते थे। अब समय बदल रहा है, लोग इसे लेकर पब्लिकली बात करने लगे हैं। यूनिवर्सिटी के मेरे स्टूडेंट्स भी इस अभियान में मेरा साथ देते हैं। हर साल एक दिसंबर को वर्ल्ड एड्स डे पर मेरे छात्र एचआईवी टेस्ट करवाते हैं और दूसरे लोगों को भी टेस्ट करवाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।"
नाको के अनुसार, पिछले कुछ सालों में एचआईवी संक्रमण के सालाना नये मामलों में 27 प्रतिशत की कमी आई है। हालाँकि, संक्रमण के नये मामलों में 2020 तक 75 प्रतिशत कमी लाने के लक्ष्य तक पहुँचने के लिहाज से यह आँकड़ा बहुत कम है। लेकिन एचआईवी संक्रमण के खिलाफ इस लड़ाई में गौरव जैसे जागरूकता फैलाने वाले लोग बहुत अहम साबित हुए हैं।
गौरव से संपर्क करने के लिए आप उन्हें [email protected] पर मेल कर सकते हैं।
संपादन - मनोज झा