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26 नवम्बर 2008 को भारत की संप्रभुता पर हमला हुआ था। ‘26/11’ सुनते ही मन में मुंबई के ताज होटल के गुंबद से उठती आग की लपटों का दृश्य छा जाता है। क्या आम और क्या खास, इस आतंकवादी हमले से हर कोई दहल गया था। पाकिस्तान से आए लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकियों ने मायानगरी में ऐसा खूनी खेल खेला कि पूरा देश सकते में आ गया। चार दिनों तक कमांडो आतंकवादियों से मुंबई को छुड़ाने के लिए जूझते रहे और पूरे शहर में युद्ध जैसा माहौल बना रहा।
लेकिन डर और तनाव के बीच इन चार दिनों में मुम्बई ने बेमिसाल सूझबूझ और अदम्य साहस के कई उदाहरण भी देखे। जिस जलते हुए ताज होटल की तस्वीरें लोगों के जहन में छपी हुई हैं उसी ताज में रवि धर्निधिरका मौजूद थे। रवि ने अपने विलक्षण सूझबूझ से अपने साथ-साथ 157 लोगों की जान बचाई थी।
ये हैं रवि धर्निधिरका की कहानी!
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रवि धर्निधिरका अमेरीकी नौसेना ( Marine Corps) में कैप्टन थे। इराक के युद्ध में उन्होंने 4 साल में 200 से अधिक मिशन में हिस्सा लिया था। रवि 2004 में फलूजाह की भयानक लड़ाई का भी हिस्सा थे।
नवम्बर 2008 में 31 साल के रवि लगभग एक दशक बाद अपने परिवार के साथ छुट्टियाँ मनाने भारत आए थे। रवि का परिवार मुम्बई के बधवर पार्क इलाके में रहता है।
एक दिन रवि अपने अंकल और भाइयों के साथ ताज पैलेस की 20वीं मंजिल पर स्थित लेबनानी रेस्टोरेंट, ‘सुक’ में खाना खाने आए। ये दिन था 26/11!
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ब्रिटिश पत्रकार कैथी स्कॉट क्लार्क और एड्रियन लेवी द्वारा लिखी गई किताब - 'The Siege : 68 Hours Inside The Taj Hotel' में बताया गया है कि रवि होटल में प्रवेश करने के बाद से ही कुछ असहज थे। सिक्युरिटी चेक पर मेटल डिटेक्टर में बीप साउन्ड न बजने से उन्हें कुछ शंका हो रही थी। इतने में ही होटल में मौजूद कई लोगों के फोन एक साथ बजने लगे। उनके भाई के पास भी फोन आया जिससे उन्हें पता चला कि कोलाबा में हमला हुआ है।
एक बार जब ये पुख्ता हो गया कि होटल पर आतंकि हमला हुआ है, तो रवि ने एक प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले दक्षिण अफ्रीका के कुछ पूर्व कमांडो के साथ तय किया कि अब उन्हें स्थिति संभालनी है।
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उन्होंने पाया कि उन्हें सुक के काँच के दरवाजों से खतरा था। वहाँ से ग्रेनेड फेंक कर आतंकी उन्हें नुकसान पहुँचा सकते थे।
दो दक्षिण अफ्रिकी कमांडो, लोगों को हालात के बारे में समझाने लगे। बाकी कमांडो के साथ कैप्टन धर्निधरका आसपास का जायजा लेने लगे। उन्हें एक काँफ्रेंस हॉल मिल गया जिसके दरवाजे लकड़ी के थे। हॉल के पास ही सीढ़ियाँ थीं। उन सीढ़ियों को कुर्सी, टेबल या जो भी सामान मिला उससे ब्लॉक कर दिया ताकि आतंकवादी वहाँ तक आसानी से न पहुँच सकें। इसके बारे में उन्होंने होटल के स्टाफ को भी खबर कर दी ताकि जरूरत पड़ने पर वो उन्हें सिग्नल दे दें और सीढ़ियों को ब्लॉक करने के लिए लगाए गए सामान को समय से हटाया जा सके।
इसके बाद लोगों को रसोईघर के रास्ते, उस सुरक्षित हॉल तक पहुँचाया जाना था। लोगों के साथ उनकी सुरक्षा करने के लिए कमांडो भी चल रहे थे। हथियार के नाम पर उनके पास केवल चाकू और रॉड थे। वो जानते थे कि आतंकवादियों के पास मौजूद हथियार और गोला-बारूद के सामने ये कुछ भी नहीं हैं। पर तर्क ये था कि इससे उन्हें कुछ देर के लिए तो रोका जा सकता है। आतंकवादियों को किसी तरह के पलटवार की अपेक्षा नहीं होगी।
सभी को हॉल में लाने के बाद उसके दरवाजे को वहाँ मौजूद हर भारी चीज से ब्लॉक करने की कोशिश की गई। परदे खींच दिए गए और बत्त्तियाँ भी बंद कर दी गईं जिससे किसी को उनके वहाँ होने का शक न हो। सभी को शांत रहने और फोन से किसी को भी अपने वहाँ होने की खबर न देने की हिदायत दी गई। रवि और बाकी कमांडो इस बात को अच्छी तरह समझ रहे थे कि उनके वहाँ होने की खबर बाहर जाने से वहाँ मौजूद 157 लोगों की जान किस कदर खतरे में पड़ सकती है।
इसके बाद सभी वहाँ से सुरक्षित बाहर निकलने के मौके का इंतजार करते रहे। ताज के कर्मचारी इस दौरान इन लोगों को खाने-पीने की चीजें देते रहे। तभी उन लोगों को दो धमाकों की आवाज़ सुनाई दी। आतंकवादियों ने ताज के गुंबद में RDX से विस्फोट किया था। ताज की छठवीं मंजिल में आग लग गई थी।
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जैसे-जैसे आग फैलती जा रही थी, रवि समझ रहे थे कि अब दरवाजों को ब्लॉक किए रहना खतरनाक साबित हो सकता है। भले ही 20वीं मंजिल तक आग न पहुँचे लेकिन शॉर्ट सर्किट होने का खतरा तो है ही। वहाँ कभी भी बिजली जा सकती थी जिससे लोगों का दम घुटने लगता।
इससे पहले कि हालात खराब होते रवि और अन्य कमांडो ने लोगों को वहाँ से निकालने का फैसला किया। हालाँकि, उन्हें बताया गया था कि सुरक्षाबल के जवान उन्हें निकालने आ रहे हैं। लेकिन, कैप्टन धर्निधिरका को आतंकवादियों के पास मौजूद हथियारो का अंदाजा था। उन्हें पता था कि जवान इतनी जल्दी वहाँ नहीं पहुँच पाएंगे।
लोगों को निकालने से पहले पूर्व कमांडो ने निकलने का रास्ता खाली किया। खुद रवि ने होटल के कर्मचारियों की मदद से रास्ते से सारे बैरिकेड हटाए। लोगों को आगे बढ़ाने से पहले ये सुनिश्चित किया गया कि कोई रूकावट न हो। इसके बाद लोगों को हॉल से निकलने के लिए कहा गया। उन्होंने अपने फोन बंद कर दिए थे और जूते भी उतार दिए थे। वो बहुत ही सावधानी और शांती से नीचे उतर रहे थे।
हर मंजिल पर काँच का एक फायर एग्जिट था। ये सबसे खतरनाक था। पूर्व कमांडो और रवि की देखरेख में लोग बहुत सावधानी से इन एग्जिट को पार कर रहे थे।
सबसे आगे पूर्व कमांडो और ताज के कुछ सुरक्षाकर्मी चल रहे थे। उनके पीछे महिलाओं और बच्चों को रखा गया था। इसके बाद पुरूष और आखिर में रवि धर्निधिरका चल रहे थे। रवि ने देखा कि उनमें एक 84 साल की बुजुर्ग महिला थीं जिनके लिए इस तरह 20 मंजिल सीढ़ियों से उतरना लगभग नामुमकिन था। महिला ने उनसे कहा कि वो लोग उन्हें वहाँ छोड़कर चले जाएँ। लेकिन रवि उन्हें कुछ वेटर की मदद से अपनी बाहों पर बैठा कर नीचे तक ले आए।
आतंकवादियों के बीच जलती हुई इमारत में 20 मंजिल के इस बेहद तनावपूर्ण और खतरनाक सफर में रवि सफल हुए। उन्होंने पूर्व कमांडो की अपनी टीम के साथ सभी 157 लोगों को सुरक्षित निकाल लिया। ऐसे माहौल में भी उन्होने बेहद सूझबूझ का परिचय दिया और उन 157 लोगों के मसीहा बन गए। उनके साहस और उससे मिली जीत को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।