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“साल 2011 तक भारत में बुजुर्गों की संख्या 98 मिलियन थी और अनुमान है कि साल 2021 तक यह 143 मिलियन हो जाएगी, जिनमें 51% महिलाएँ हैं।”- हेल्पएज इंडिया रिपोर्ट, 2015
बुजुर्गों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, पर सवाल यह है कि कितने बुजुर्ग आज अपने घरों में परिवार के साथ सम्मानपूर्वक जी रहे हैं। आज कितने बुजुर्गों को अपने घरों में फ़ैसले लेने का अधिकार है या फिर किसी भी अहम फ़ैसले में उनकी राय ली जाती है? सच्चाई तो यह है कि बुजुर्ग लगातार उपेक्षा के शिकार हो रहे हैं। देश में लगातार बढ़ रही वृद्धाश्रमों की संख्या भी बुजुर्गों के प्रति बढ़ती असंवेदनशीलता की गवाही देती है।
साथ ही, बुजुर्गों के साथ होने वाली घरेलू हिंसा (ख़ासकर बुजुर्ग महिलाओं के साथ) के मामलों में भी बढ़ोत्तरी हुई है। जहाँ बहुत-से लोग बड़े-बूढ़ों को सिर्फ़ उनकी पेंशन के लिए अपने साथ रखते हैं, तो वहीं बहुत-से बुजुर्ग ऐसे हैं जिनके पास आय का कोई साधन नहीं होने के कारण उनके बच्चे उन्हें दो वक़्त का खाना भी नहीं देते हैं।
वाकई यह बात दिल दहला देने वाली है कि जो माँ-बाप बच्चों को अपना पेट काटकर पालते हैं, उनके बुढ़ापे में वे उन्हें इज्ज़त से दो वक़्त की रोटी भी नहीं देते। जबकि किसी का पेट भरने के लिए सिर्फ़ पैसे की नहीं, बल्कि सही नीयत और सच्चे दिल की ज़रूरत होती है। यदि इंसान चाहे तो वह अपना क्या, लाखों लोगों का पेट भर सकता है और यह बात साबित कर रहे हैं मुंबई में रहने वाले डॉ. उदय मोदी।
50 की उम्र पार कर चुके आयुर्वेदिक डॉक्टर उदय मोदी पिछले 12 सालों से मुंबई के भायंदर इलाके में लगभग 250 बुजुर्गों को हर रोज़ तीन वक़्त का खाना खिला रहे हैं। वह भी कोई रुपया-पैसा लिए बिना। मूल रूप से गुजरात के अमरेली से संबंध रखने वाले डॉ. उदय आज सिर्फ़ अपने माता-पिता के लिए ही नहीं, बल्कि इन सभी बुजुर्गों के लिए उनके श्रवण कुमार हैं।
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'श्रवण टिफ़िन सेंटर' के नाम से चलने वाली उनकी फ़ूड सर्विस, चाहे कोई भी परेशानी हो, कभी भी नहीं रुकती है। सिर्फ़ 2 टिफ़िन के साथ शुरू हुई उनकी यह सर्विस आज पूरे 235 टिफ़िन तक पहुँच चुकी है। इसके अलावा, अगर कभी राह चलते उन्हें कोई गरीब बुजुर्ग दिख जाता है, तो उसे भी वे खाना खिलाने से नहीं चूकते।
इस पहल की शुरुआत के बारे में बात करते हुए डॉ. उदय बताते हैं कि 12 साल पहले लगभग 70 साल के एक बुजुर्ग उनके क्लिनिक पर आए थे। उनकी हालत देखकर ही वे समझ गए थे कि उन्होंने कई दिनों से कुछ नहीं खाया है। डॉ. उदय ने उनसे इलाज़ के पैसे नहीं मांगे और उनके लिए जूस और कुछ खाने को मंगवाया।
डॉ. उदय का यह उदार स्वभाव देखकर बुजुर्ग रोने लगे और पूछने पर बताया कि उनका बेटा उन्हें व उनकी पत्नी को खाना नहीं देता है। उनकी पत्नी लकवाग्रस्त हैं और इसलिए उन्हें देखभाल के लिए घर पर रहना होता है। पर उनके बेटे-बहू का रवैया इस कदर बुरा है कि उनकी हालत बदतर होती चली जा रही है।
डॉ. उदय ने कहा, " बुजुर्ग की बात सुनकर मेरा दिल भर आया। एक तरफ हमारा देश माता-पिता की आजीवन सेवा करने के संस्कारों के लिए जाना जाता है, वहीं आज माता-पिता को उनके अपने ही बच्चे भूखा रखते हैं। मैंने उनसे कहा कि वे अपना पता दे दें और मेरे घर से हर रोज़ उनके लिए खाने का डिब्बा आ जाया करेगा।"
जब यह बात उनकी पत्नी को पता चली, तो वह भी तुरंत इस काम में साथ देने के लिए तैयार हो गईं। "मेरी पत्नी ने कहा कि दो-चार, जितने भी लोगों का खाना देना हो, आप बता दें। मैं सुबह बना दिया करूँगी।" दो बुजुर्ग पति-पत्नी से शुरू हुआ यह काम धीरे-धीरे और भी लोगों तक पहुँचने लगा। 2 से 4 हुए और 4 से 8। धीरे-धीरे सिर्फ़ भायंदर इलाके में ही लगभग 200 से भी ज़्यादा ज़रूरतमंद बुजुर्ग डॉ. उदय के संपर्क में आए।
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पहले तो वे हैरान थे कि कैसे बच्चे अपने माँ-बाप को इस तरह का जीवन जीने पर मजबूर कर सकते हैं। उन्होंने बहुत-से बच्चों से बात करने की कोशिश भी की। पर उनके परिवार वाले उलटा डॉ. उदय के ही गले पड़ गये। उन्होंने कहना शुरू किया कि क्या हमने आपको बोला कि आप हमारे माँ-बाप के लिए खाना दो या फिर आपको क्या पड़ी इन लोगों की मदद करने की, अपना काम करो आप, हमें ज्ञान मत दो। लेकिन इस तरह की बातें सुनकर इन बुजुर्गों के लिए कुछ करने का उनका इरादा और भी पक्का हो गया।
घर पर इतने सारे लोगों का खाना बनाना थोड़ा मुश्किल था। इसलिए उन्होंने 'श्रवण टिफ़िन सर्विस' के नाम से एक किचन शुरू किया। यहाँ पर उन्होंने खाना बनाने के लिए 3-4 लोगों का स्टाफ रखा और फिर एक वैन हायर कर ली, ताकि सुबह-शाम इन लोगों तक बिना किसी देरी के खाना पहुँचाया जा सके।
हर रोज़ सुबह क्लिनिक पर जाने से पहले डॉ. उदय यह सुनिश्चित करते हैं कि इन सभी बुजुर्गों के लिए वक़्त पर अच्छा खाना पहुँचे। खाने के साथ-साथ, वे इनके स्वास्थ्य का भी ख्याल करते हैं। डायबिटीज से पीड़ित बजुर्गों के लिए अलग खाना बनता है, तो ब्लड प्रेशर के मरीजों के खाने का भी विशेष ध्यान रखा जाता है।
समय-समय पर डॉ. उदय इन सभी बुजुर्गों से मिलते हैं और इनके साथ वक़्त बिताते हैं। वे कहते हैं, "मुझे पीढ़ी-दर-पीढ़ी बदल रही यह सोच समझ में तो आती है। इसे हम 'जनरेशन गैप' कहते हैं। यह हो सकता है कि बच्चों का अपने माँ-बाप से झगड़ा हो जाए, पर कोई बेटा अपने माँ-बाप को खाना तक नहीं दे, ये बात मुझे न तो 12 साल पहले समझ आती थी और न ही आज समझ में आती है। पर अब मुझे सिर्फ़ इतना पता है कि मैं अपनी आख़िरी साँस तक बुजुर्गों की सेवा करना चाहता हूँ।"
उनके इस अभियान में उनके दोनों बच्चे पूरा साथ देते हैं। वे बताते हैं कि उनके बच्चे अपनी हर महीने की पॉकेट मनी से भी कुछ पैसे बचाते हैं और एक पिगी बैंक में डालते हैं। हर महीने इस पिगी बैंक में जितने भी पैसे इकट्ठा होते हैं, वे उन्हें टिफ़िन सर्विस में लगाने के लिए देते हैं।
अपने बच्चों की तरह ही वे दूसरे युवाओं को भी इन बुजुर्गों के प्रति प्रेम-भाव रखने के लिए प्रेरित करते हैं। अपने इस नेक काम के चलते उन्हें मुंबई के बहुत से स्कूल-कॉलेजों में जाने का मौका मिलता है। वहाँ पर वे सभी बच्चों को बड़ों का आदर व सम्मान करने का संदेश देते हैं।
डॉ. उदय कहते हैं, "अक्सर स्कूल-कॉलेज के बच्चों का ग्रुप मेरे पास आता है। वे कहते हैं कि अंकल हमारे पास पैसे तो नहीं हैं, पर फिर भी हम इन बूढ़े दादा-दादी के लिए कुछ करना चाहते हैं। ऐसे बच्चों को मैं इन बुजुर्गों के जन्मदिन, सालगिरह या फिर उनके पास महीने में जब भी समय हो, तब इन लोगों के साथ जाकर कुछ वक़्त बिताने के लिए कहता हूँ। इससे बच्चों को भी अच्छा संदेश मिलता है और साथ ही ये बुजुर्ग भी खुद को अकेला महसूस नहीं करते।"
डॉ. उदय मोदी एक काबिल डॉक्टर होने के साथ-साथ बेहतरीन एक्टर भी हैं। इस बारे में पूछने पर वह कहते हैं कि स्कूल में एक बार उनके पिता के दोस्त ने उनसे एक गुजराती फिल्म में काम करवाया था। उस समय वे सिर्फ़ 8 साल के थे। लेकिन इसके बाद वे अपनी पढ़ाई और प्रोफेशन में इतने व्यस्त हो गए कि अपने इस शौक पर कभी ध्यान ही नहीं दिया।
लेकिन वर्षों बाद उन्हें फिर अपने इस शौक को पूरा करने का मौका मिला। डॉ. उदय मोदी ने बताया, "मेरे क्लिनिक पर एक बार गुजराती सीरियल्स में काम करने वाला एक शख्स आया था। बातों-बातों में मैंने उन्हें बताया कि मैं भी थोड़ा-बहुत एक्टिंग का शौक रखता हूँ। बस फिर क्या था, उन्होंने खुद मुझे अपने एक सीरियल में कास्ट किया और यहीं से फिर एक्टिंग का सिलसिला शुरू हो गया। अब तक मैं कोई 30-40 हिंदी-गुजराती सीरियल में काम कर चुका हूँ और अभी भी करता हूँ।"
एक्टिंग प्रोफेशन से डॉ. उदय जो भी पैसा कमाते हैं, वह सब उनकी टिफ़िन सर्विस में जाता है। साथ ही, अब उन्हें और भी जान-पहचान वाले लोगों का साथ मिल रहा है और इस वजह से कभी भी टिफ़िन सर्विस के लिए किसी चीज़ की कोई कमी नहीं होती।
पिछले साल से डॉ. उदय मोदी इन लोगों को इनका अपना एक घर देने के लिए प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने भायंदर से कुछ दूरी पर ज़मीन खरीदी है और अब यहाँ घर का निर्माण शुरू भी हो गया है। इस पूरे अभियान के लिए उन्होंने मिलाप पर एक फंडरेज़िंग कैंपेन चलाया है।
अंत में वे सिर्फ इतना ही कहते हैं कि आज जो हम अपने बुजुर्गों के साथ करेंगे, वही कल हमारे साथ भी होगा। इसलिए ज़रूरी है कि हम अपने बच्चों को परिवार और रिश्तों का महत्व समझाएं। हमारे यहाँ माता-पिता को भगवान से भी बड़ा दर्जा मिला है, क्योंकि वे हर मुश्किल सहकर भी अपने बच्चों पर कोई आंच नहीं आने देते, तो जब उन्हें ज़रूरत हो तो हमें भी उनका सहारा बनना चाहिए।
डॉ. उदय मोदी के इस अभियान में छोटी-बड़ी आर्थिक मदद आप मिलाप फंडरेज़र के ज़रिए कर सकते हैं। इसके अलावा, यदि आप मुंबई में रहते हैं और इन बुजुर्गों के साथ कुछ वक़्त बिताकर अपना योगदान देना चाहते हैं, तो डॉ. मोदी से 9820448749 पर सम्पर्क करें।
संपादन: मनोज झा
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