Powered by

Home प्रेरक महिलाएं बेटियों को समर्पित प्रसून जोशी की नयी कविता, जो आपसे पूछ रही है, "शर्म आ रही है ना?"

बेटियों को समर्पित प्रसून जोशी की नयी कविता, जो आपसे पूछ रही है, "शर्म आ रही है ना?"

New Update
बेटियों को समर्पित प्रसून जोशी की नयी कविता, जो आपसे पूछ रही है, "शर्म आ रही है ना?"

रानी लक्ष्मीबाई, सरोजिनी नायडू, इंदिरा गाँधी जैसी कई भारतीय महिलाओं पर हम सभी भारतियों ने हमेशा से गर्व किया है। पर वहीँ दूसरी तरफ अपने ही घर की बेटियों को सुरक्षित रहने के लिए घर बैठे रहने की सलाह भी देते रहे है। पर अब हमारा समाज और उसकी सोच बदल रही है। पर ये बदलाव एक दिन में नहीं आया, इसके पीछे हमारे देश की बेटियों ने बरसो मेहनत की है। बरसो तक लड़-लड़ के एक-एक करके उन्होंने सभी क्षेत्रो में अपना परचम फैराया है, फिर चाहे वो कला हो, राजनीति हो या खेल। हाल ही में हुए रिओ ओलिंपिक में देश का नाम रौशन करने वाली साक्षी मलिक, पी.वी. सिन्धु और दीपा करमाकर जैसी खिलाड़ी इस बात की जिंदा मिसाल है।

इन्ही को और इनके ही जैसी देश की हर बेटी को समर्पित है प्रसून जोशी की नयी कविता, जिसे पढ़कर आप अपने आप से, अपने समाज से एक बार ज़रूर पूछेंगे,"शर्म आ रही है ना?"...

शर्म आ रही है ना उस समाज को
जिसने उसके जन्म पर
खुल के जश्न नहीं मनाया?
शर्म आ रही है ना
उस पिता को उसके होने पर
जिसने एक दिया कम जलाया
शर्म आ रही है ना
उन रस्मों को उन रिवाजों को
उन बेड़ियों को उन दरवाज़ों को
शर्म आ रही है ना
उन बुज़ुर्गों को
जिन्होंने उसके अस्तित्व को
सिर्फ़ अंधेरों से जोड़ा
शर्म आ रही है ना
उन दुपट्टों को
उन लिबासों को
जिन्होंने उसे अंदर से तोड़ा
शर्म आ रही है ना
स्कूलों को दफ़्तरों को
रास्तों को मंज़िलों को
शर्म आ रही है ना
उन शब्दों को
उन गीतों को
जिन्होंने उसे कभी
शरीर से ज़्यादा नहीं समझा
शर्म आ रही ना
राजनीति को
धर्म को
जहाँ बार बार अपमानित हुए
उसके स्वप्न
शर्म आ रही है ना
ख़बरों को
मिसालों को
दीवारों को
भालों को
शर्म आनी चाहिए
हर ऐसे विचार को
जिसने पंख काटे थे उसके
शर्म आनी चाहिए
ऐसे हर ख़याल को
जिसने उसे रोका था
आसमान की तरफ़ देखने से
शर्म आनी चाहिए
शायद हम सबको
क्योंकि जब मुट्ठी में सूरज लिए
नन्ही सी बिटिया सामने खड़ी थी
तब हम उसकी उँगलियों से
छलकती रोशनी नहीं
उसका लड़की होना देख रहे थे
उसकी मुट्ठी में था
आने वाला कल
और सब देख रहे थे
मटमैला आज
पर सूरज को तो धूप खिलाना था
बेटी को तो सवेरा लाना था
और सुबह हो कर रही!!
------- प्रसून जोशी

आयिये सुनते है प्रसून जोशी की ही आवाज़ में बेटियों को समर्पित यह कविता -


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें [email protected] पर लिखे, या Facebook और Twitter (@thebetterindia) पर संपर्क करे।