/hindi-betterindia/media/post_attachments/uploads/2018/06/गौहर-जान.png)
फोटो: रिकॉर्डिंग स्टूडियो में गौहर जान/ मिड-डे.कॉम
"गौहर के बिना महफ़िल, जैसे शादी के बिना दुल्हन," ये अक्सर कहा जाता था भारत की पहली रिकॉर्डिंग सुपरस्टार गौहर जान के लिए। गौहर जान पहली ऐसी सिंगर थी जिनके गाए गानों को 78 आरपीएम पर रिकॉर्ड किया गया था। यह रिकॉर्ड भारत की प्रसिद्ध ग्रामोफोन कंपनी ने रिलीज किया था। इसलिए गौहर जान को 'रिकॉर्डिंग सुपरस्टार' के नाम से भी जाना जाता है।
गौहर जान 19वीं सदी के अंत और 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में भारतीय संगीत का सम्मानित और प्रसिद्द नाम थीं। उस समय की गायिका और गणिकाओं के बीच वो भारत की 'पहली दिवा' के रूप में जानी जाती थीं।
जब भारत में ग्रामाफ़ोन का दौर शुरू हुआ तो इस तकनीक को अपनाने वाली वो पहली भारतीय थीं।
गौहर जान के जीवन को कई किताबों में लेखकों द्वारा शब्दों में उतारा गया है। गौहर और उनके जैसे अनेक कलाकरों की कहानी को दिल्ली की विद्या शाह ने अपनी किताब 'जलसा' में शामिल किया है। इसके अलावा विक्रम संपथ द्वारा 'माई नेम इज गौहर जान! लाइफ एंड टाइम्स ऑफ ए म्यूजिशियन' में उनके जीवन के पहलुओं को उजागर किया गया है।
जन्म
गौहर का जन्म 26 जून, 1873 में हुआ था। उनका वास्तविक नाम एंजेलिना येओवर्ड था। उनके पिता विलियम रोबर्ट येओवर्ड आजमगढ़ में एक ड्राई आइस फैक्ट्री में काम करते थे। उनकी माँ विक्टोरिया हम्मिंग, जिनका जन्म और पालन-पोषण भारत में ही हुआ था, भारतीय संगीत और नृत्य में पारंगत थी।
उनके माता-पिता की शादी ज्यादा दिन नहीं चली और साल 1879 में उनका तलाक हो गया था। इसी बीच उकी माँ का रिश्ता उनके एक दोस्त खुर्शीद से बन गया, जिसके साथ वे अपनी बेटी को लेकर बनारस चली आयी। बनारस आने के बाद गौहर की माँ ने इस्लाम धर्म अपना लिया।
/hindi-betterindia/media/post_attachments/uploads/2018/06/gauhar.jpg)
इस्लाम कबूलने के बाद उनकी माँ का नाम मलका जान और 8 साल की एंजेलिना का नाम गौहर जान रखा गया। गौहर को प्यार से 'गौरा' भी बुलाया जाता था। 'मलका जान' बनारस की मशहूर हुनरमंद गायिका और कत्थक डांसर के तौर पर पहचानी जाने लगीं। उन्हें 'बड़ी' मलका जान कहा जाता था क्योंकि उन्ही की समकालीन तीन और प्रसिद्द मलका जान थीं। जिनमें वे सबसे बड़ी थी इसलिए उन्हें बड़ी मलका जान कहा गया।
कुछ ही वक्त बाद मलका जान अपनी बेटी के साथ कलकत्ता चली गईं और नवाब वाजिद अली शाह के दरबार में परफॉर्म करना शुरू कर दिया। साल 1883 में गौहर ने संगीत सीखना शुरू किया।
उन्होंने रामपुर के उस्ताद वज़ीर खान, कलकत्ता के प्यारे साहिब और लखनऊ (कथक) के महान महाराज बिंदद्दीन से गायन में प्रशिक्षण लिया था। उन्होंने श्रीजनबाई से ध्रुपद व धामर और चरन दास से बंगाली कीर्तनों में भी प्रशिक्षण लिया था।
फर्स्ट डांसिंग गर्ल के नाम से भी जानी जाती हैं गौहर जान
/hindi-betterindia/media/post_attachments/uploads/2018/06/gj.jpg)
यह वह दौर था जब गौहर का 'रंग प्रवेश्म' हुआ, मतलब उन्होंने पहली बार दरबार में परफॉर्म किया। साल 1887 में दरभंगा राज का दरबार और 14 साल की गौहर जान। गौहर की कला से महाराज इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इतनी कम उम्र में भी गौहर को दरबार में संगीतकार के तौर पर नियुक्त कर लिया।
गौहर जान ख्याल, ध्रुपद और ठुमरी की भी मल्लिका थीं। उनका ख्याल गायन इतना उम्दा था कि भातखण्डे ने उन्हें भारत की महान ख्याल गायिका घोषित किया। ये उनकी आवाज और कला का जादू था जिसने उन्हें उस समय के पुरुष प्रधान क्षेत्र में पहचान दिलाई।
साल 1896 में, उन्होंने कलकत्ता में प्रदर्शन करना शुरू किया। उनके चर्चे पुरे देश में होने लगे। उन्हें दिल्ली में किंग जॉर्ज वी की ताजपोशी के दौरान प्रदर्शन करने के लिए भी आमंत्रित किया गया था। इसके बाद उन्होंने देश भर में प्रदर्शन के लिए यात्रा शुरू कर दी।
उन्होंने 'हमदम' पेन नाम से कई गजलें भी लिखीं।
रिकॉर्डिंग सुपरस्टार बनने का सफर
भारत में ग्रामोफ़ोन का दौर शुरू हुआ। यह देश में तकनीक की शुरुआत थी, जिससे संगीत को रिकॉर्ड करके बेचा जा सके। पर इसके लिए जरूरी था कि गायक और गायिकाएं संगीत रिकॉर्ड करने के लिए राजी हों। लेकिन उस समय इस पुरुष-प्रधान क्षेत्र में महिला गायिकाओं के लिए स्टूडियो जाकर रिकॉर्ड करना मर्यादाओं के बाहर था।
साल 1902 में भारतीय संगीत का ऐतिहासिक पल लिखा गया। जी हाँ, एक ग्रामोफ़ोन कंपनी ने गौहर जान को उनके लिए अपने गायन की रिकॉर्डिंग करने का प्रस्ताव दिया। गौहर, भारत की प्रथम व्यक्ति बनीं जिन्होंने रिकॉर्डिंग डिस्क के लिए 3-मिनट का राग गायन कर रिकॉर्डिंग की।
भारत में रिलीज़ होने वाली पहली रिकॉर्डिंग, गौहर के ख्याल गायन की थी।
साल 1902 से 1920 तक उन्होंने 10 से अधिक भाषाओं में 600 से अधिक गीत रिकॉर्ड किए। इसी के साथ ही वे भारत की पहली "रिकॉर्डिंग स्टार" बन गयी।
वे अपनी हर रिकॉर्डिंग के अंत में 'माई नेम इस गौहर जान' कहकर साइन ऑफ करती थीं। ये उनकी पहचान बन गयी थी।
गौहर न केवल अपनी कला बल्कि अपनी जीवनशैली के लिए भी जानी जाती थीं। ग्रैामोफोन कंपनी के एफ डब्ल्यू गैसबर्ग बताते हैं कि जब भी वह रिकॉर्डिंग के लिए आती थीं, तो वह हमेशा सुन्दर गाउन और बेहतरीन आभूषण पहनती थीं। उन्होंने कभी भी रिकॉर्डिंग के दौरान एक बार पहने गए कपडों और आभूषणों को दुबारा नहीं पहना था।
/hindi-betterindia/media/post_attachments/uploads/2018/06/scroll.jpg)
बताया जाता है कि एक बार उन्होंने दतिया में एक प्रदर्शन में जाने के लिए अपनी एक निजी रेल की मांग की। जिसमें उनके साथ उनका खानसामाँ, उसके मददगार, निजी हकीम, धोबी और अन्य नौकर भी गए। यक़ीनन, गौहर का कोई जवाब नहीं था।
गौहर जान के साथ कई कहानियां जुड़ी हैं। अब ये कितनी सच्ची या झूठी हैं यह तो नहीं पता। पर कहा जाता है कि उन्हीं की समकालीन प्रसिद्द तवायफ बेनजीर बाई ने एक महफ़िल में गौहर से पहले अपनी परफॉरमेंस दी। जिसमें वे गहनों से सजी हुई थीं। गौहर अपनी बेहतरीन परफॉरमेंस के बाद बेनजीर के पास आयी और कहा कि तुम्हारे आभूषणों में कितनी भी चमक हों पर महफ़िल में सिर्फ तुम्हारी कला चमकती है।
गौहर का उम्दा प्रदर्शन देखकर जब बेनजीर वापिस आयी तो उसने अपने सभी गहने अपने गुरु को दे दिए और शास्त्रीय संगीत में फिर से अपनी ट्रेनिंग पूरी शिद्दत से शुरू की। 10 साल बाद अपने गहन प्रशिक्षण के साथ बेनजीर ने फिर एक बार गौहर के सामने महफ़िल में परफॉर्म किया। जिसमें गौहर ने उनसे कहा कि खुश रहो, अब वाकई में तुम्हारे गहने चमक रहे हैं।
/hindi-betterindia/media/post_attachments/uploads/2018/06/mysore_palace.jpg)
तो ऐसी थीं गौहर जान। भले ही उनका जीवन भव्यता में बीता पर उनके आखिरी दिन अकेलेपन में गुजरे। साल 1928 में कृष्ण राजा वाडियार चतुर्थ के निमंत्रण पर गौहर मैसूर के शाही महल में चली गईं। वहां 1 अगस्त 1928 को उन्हें शाही संगीतकार नियुक्त किया गया था। हालांकि यह नियुक्ति केवल 18 महीने तक चली। 17 जनवरी, 1930 को उनकी मृत्यु हो गई।
58 वर्ष की उम्र में भले ही गौहर इस दुनिया से चली गयी। लेकिन वे अपने पीछे ऐसी विरासत छोड़ गयीं, जिसे जितना सहेजा जाये उतना कम है। उन्होंने 20 से अधिक भाषाओं में गाने रिकॉर्ड किए और विभिन्न शैलियों में उत्कृष्टता हासिल की। यकीनन, वे भारत की पहली रिकॉर्डिंग सुपरस्टार थीं।
साल 1905 उनके द्वारा गायी हुई एक ठुमरी आप यहां सुन सकते हैं,
( संपादन - मानबी कटोच )
/hindi-betterindia/media/post_attachments/uploads/2018/06/gauharjan4.jpg)
/hindi-betterindia/media/post_attachments/uploads/2018/06/gauharjan3.gif)