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शहीद के साथी: महात्मा गाँधी की सच्ची साथी, ‘गाँधी बूढ़ी’ को नमन!

lady gandhi freedom fighter

lady gandhi freedom fighter

हर सुख भूल, घर को छोड़, क्रांति की लौ जलाई थी, 
बरसों के संघर्ष से इस देश ने आज़ादी पाई थी! 
आज़ाद, भगत सिंह, और बिस्मिल की गाथाएं तो सदियाँ हैं गातीं, 
पर रह गए वक़्त के पन्नों में जो धुंधले कुछ और भी थे इन शहीदों के साथी!

शहीद-ए-आज़म भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, चंद्र शेखर आज़ाद, रानी लक्ष्मी बाई और भी न जाने कितने नाम हमें मुंह-ज़ुबानी याद हैं। फिर भी ऐसे अनेक नाम इतिहास में धुंधला गए हैं, जिन्होंने क्रांति की लौ को जलाए रखने के लिए दिन-रात संघर्ष किया। अपना सबकुछ त्याग खुद को भारत माँ के लिए समर्पित कर दिया। यही वो साथी थे, जिन्होंने शहीद होने वाले क्रांतिकारियों को देश में उनका सही मुकाम दिलाया और आज़ादी की लौ को कभी नहीं बुझने दिया।

इस #स्वतंत्रता दिवस पर हमारे साथ जानिए कुछ ऐसे ही नायक-नायिकाओं के बारे में, जो थे शहीद के साथी!

गाँधी जी और स्वतंत्रता के लिए उनके संघर्ष से भारतीय तो क्या, विदेशों में रहने वाले लोग भी भली-भाँति परिचित हैं। बचपन से ही हम सब गाँधी जी के किस्से और कहानियाँ पढ़ते-सुनते बड़े हुए हैं। पर गाँधी जी के आंदोलन और उनकी सोच को भारत के कोने-कोने तक पहुंचाने में जिन लोगों ने साथ दिया, उनके बारे में बहुत ही कम लोग जाते हैं।

गाँधी जी के ऐसे बहुत से साथी थे, जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों में उनके विचारों की लौ को जलाया और देशवासियों को इकठ्ठा किया। उनके इन साथियों को गाँधी जी के नाम तक की उपाधि दी गई जैसे सरहदी गाँधी, मलकानगिरी के गाँधी आदि। इसी फेहरिस्त में एक नाम है, ‘गाँधी बूढ़ी’ का!

ब्रिटिश बंगाल के मिदनापुर में जन्मी मातंगिनी हाजरा को लोग ‘गाँधी बूढ़ी’ या ‘ओल्ड लेडी गाँधी’ के नाम से जानते थे। बालपन में ब्याह और फिर छोटी उम्र में वैधव्य जीवन, उन्होंने सब-कुछ झेला और अपने इस निजी संघर्ष में वह कब स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़ गईं, उन्हें खुद भी पता नहीं चला।

मातंगिनी ने गाँधी जी की सीखों को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया था। वह खुद अपना सूत काततीं और खादी के कपड़े पहनती थीं। इसके अलावा, वह हमेशा लोगों की सेवा करने के लिए तत्पर रहती थीं। जनसेवा और भारत की आज़ादी को ही उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था।

गाँधी जी के हर आंदोलन में वह बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती थीं। देश के लिए न जाने कितनी बार यह बेटी जेल भी गई पर अपने लक्ष्य से पीछे नहीं हटी। साल 1942 में जब गाँधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया तो मातंगिनी इस आंदोलन की मुख्य महिला सेनानियों में से एक बनकर उभरीं।

29 सितंबर 1942 को उन्होंने 6,000 लोगों की एक रैली का नेतृत्व किया और तामलुक पुलिस चौकी को घेरने के लिए निकल पड़ीं। लेकिन बीच में ही उन्हें ब्रिटिश पुलिस ने रोक लिया और उन पर गोलियाँ चलने लगीं। मातंगिनी अपने हाथ में तिरंगे को लेकर एक चबूतरे पर खड़ी हो गईं। उनके बाएँ हाथ में गोली लगी, पर वह नहीं रुकी और आगे बढ़ने लगीं।

ब्रिटिश पुलिस ने फिर गोलियां दागीं और इस बार उन्हें दो गोलियां लगीं- एक दाएँ हाथ में और दूसरी सिर में। अपने आख़िरी पलों में भी देश की इस महान बेटी ने झंडे को गिरने नहीं दिया और उनकी जुबां पर दो ही शब्द थे, ‘वन्दे मातरम’!

द बेटर इंडिया, गाँधी जी की इस साथी और भारत की सच्ची बेटी को सलाम करता है! 

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