मिलिए दिल्ली की पहली महिला डाकिया, इंद्रावती से!

"मुझे अपने पढ़े-लिखे होने की खुशी उस वक्त सबसे ज्यादा हुई जब मैंने लोगों को चिट्ठियां पढ़कर सुनाईं। कई लोग खासकर बुजुर्ग पढ़ नहीं पाते थे। जब मैं उनकी चिट्ठी पढ़ती तो वो खुश होकर मुझे आशीर्वाद देते।"

मिलिए दिल्ली की पहली महिला डाकिया, इंद्रावती से!

र रोज सुबह पांच बजे उठकर फटाफट घर का काम खत्म करके दफ्तर के लिए निकलना। फिर एक भारी-सा चिट्ठियों का झोला उठाकर हर दिन एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे तक कम से कम आठ किलोमीटर पैदल चलना। ताकि किसी की कोई जरूरी सुचना पहुंचाने में देरी न हो जाये।

अपनी ज़िन्दगी के तीन दशक दिल्ली की इंद्रावती ने इस काम को पूरी मेहनत और ईमानदारी के साथ किया। जी हाँ, दिल्ली की पहली महिला डाकिया इंद्रावती। बहुत से लोगों को पहले विश्वास ही नहीं होता था कि वे एक डाकिया हैं। क्योंकि हमारे देश में औरतें थोड़े-ही डाकिया होती हैं!

बहुत-से और रोजगार क्षेत्रों के जैसे ही डाकिया का यह काम भी पुरुष प्रधान है। पर देश की राजधानी दिल्ली की पहली महिला डाकिया इंद्रावती ने इस तथ्य को बदल दिया।

हाल ही में, 60 साल की उम्र में रिटायर हुई इंद्रावती ने अपनी नौकरी साल 1982 में शुरू की थी। कुछ समय पहले द बेटर इंडिया को दिए अपने एक इंटरव्यू में इंद्रावती ने अपनी नौकरी व जीवन के बहुत से पहलुओं को साँझा किया।

एक गांव से ताल्लुक रखते हुए भी, जहां लड़कियों की शिक्षा पर कोई ध्यान नहीं देता है; इंद्रावती बताती हैं कि उनकी शिक्षा कैसे हुई।

"मेरी माँ की असामयिक मौत हो गयी थी, जिसकी वजह से मुझे स्कूल भेजा गया। शायद घर के बाकी लोग नहीं चाहते थे कि पूरा वक़्त मैं घर पर रहूं। पर जो कुछ भी हुआ, वो मेरे भले के लिए ही हुआ। यहां तक कि इस नौकरी के लिए भी गलती से आवेदन हो गया था। और मैं खुश हूँ कि ऐसा हुआ," इंद्रावती कहती हैं।

"13 सितंबर, 1982 को, जब मैंने नौकरी शुरू की, तो मुझे नहीं लगा था कि मै परंपरा से हटकर कुछ कर रही हूँ। यह बस मेरे लिए एक रोजगार था, जो हमें जीवन-यापन का साधन दे रहा था।"

उस समय पोस्ट ऑफिस में केवल दो महिलाएं थी, जिनमें से एक इंद्रावती थी। इंद्रवती का मानना ​​है कि वह तब से एक लंबा सफर तय कर चुकी हैं।

publive-image
अपने पति के साथ इंद्रावती

उन्होंने एक डाकिये के रूप में शुरुआत की और उसी रूप में वे रिटायर हुई। उनकी पहली और आखिरी पोस्टिंग एक ही जगह रही। (वे नई दिल्ली में कनॉट प्लेस के पास गोल डाकखाने में नियुक्त थीं)

उन्होंने बताया, "जब मैंने नौकरी शुरु की तब वक़्त बहुत अलग था। एक औरत होने के साथ-साथ मैं अपने परिवार में वो पहली व्यक्ति थी, जिसे सरकारी नौकरी मिली थी तो इस नौकरी से गर्व भी जुड़ा हुआ था।"

वे बताती हैं, "उस समय इस विभाग में महिला डाकिया होना अजीब बात थी। उस वक्त दूसरे सेक्शन से लोग मुझे देखने आते।"

हालांकि, बाद में काफी कुछ बदल गया। इंद्रावती ने बताया कि कुछ समय में लोग उन्हें जानने लगे। उनके इसी काम की तारीफ होने लगी। बल्कि उनकी नियुक्ति के 7-8 साल बाद एक और महिला डाकिया आईं और धीरे-धीरे संख्या बढ़ने लगी।

शुरू-शुरू में जब इंद्रावती चिट्ठी देने जाती, तो कोई यकीन ही नहीं करता कि वे डाकिया हैं और उन्हें अपना कार्ड दिखाना पड़ता। वे कहती हैं कि कई बार आस-पास के लोग उन्हें रूककर देखने लगते थे।

दो बच्चों की माँ और चार बच्चों की दादी, इंद्रावती ने सुनिश्चित किया कि शादी के बाद भी उनकी बहु की पढाई जारी रहे और उन्होंने उसकी पढ़ाई पूरी करवाई।

publive-image

उन्होंने बताया कि उन्होंने पोस्ट ऑफिस में लगभग सभी विभागों में काम किया है तो उन्हें सभी कार्यों के बारे में अच्छे से पता है।

लोगों के साथ अपनी ज़िन्दगी के अनुभवों के बारे में बताते हुए इंद्रावती कहती हैं, "मुझे अपने पढ़े-लिखे होने की खुशी उस वक्त सबसे ज्यादा हुई जब मैंने लोगों को चिट्ठियां पढ़कर सुनाईं। कई लोग खासकर बुजुर्ग पढ़ नहीं पाते थे। जब मैं उनकी चिट्ठी पढ़ती तो वो खुश होकर मुझे आशीर्वाद देते।"

हाल ही में जब वे रिटायर हुईं तो उनके दफ्तर व घर में कार्यक्रम रखा गया, जहां उनसे वे लोग भी मिलने आये जिनके घर वे रेगुलर चिट्ठियां पहुंचाती थीं।

इंद्रावती कहती हैं, "शायद अब वक़्त है कि हमें पोस्ट 'मैन' की जगह पोस्ट'पर्सन' शब्द का इस्तेमाल शुरू कर देना चाहिए। ताकि यहां भी लैंगिक समानता को बढ़ावा मिले।"

यह भी पढ़ें - गुंजन सक्सेना और श्रीविद्या राजन: कारगिल युद्ध में जाने वाली पहली महिला पायलट्स

संपादन - मानबी कटोच 

मूल लेख: विद्या राजा


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर भेज सकते हैं।

Related Articles
Here are a few more articles:
Read the Next Article
Subscribe