बंगाल की यह आईएएस अफसर छुट्टी वाले दिन बन जाती हैं गरीब मरीज़ों के लिए डॉक्टर!

आकांक्षा ने डॉक्टरी के अपने बेहतरीन भविष्य को परे रखते हुए UPSC की तैयारियां शुरू कर दी और 24 साल की उम्र में उन्होंने अपने पहले ही अटेम्प्ट में उन्होंने इस परीक्षा में 76वां रैंक हासिल किया।

बंगाल की यह आईएएस अफसर छुट्टी वाले दिन बन जाती हैं गरीब मरीज़ों के लिए डॉक्टर!

श्चिम बंगाल के रघुनाथपुर की एसडीओ (SDO) आकांक्षा भास्कर जब अपने जिला पुरुलिया के संतुरी गाँव के अस्पताल का जायज़ा लेने गयीं, तो स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं थी।

"वहां न तो पर्याप्त मेडिकल स्टाफ था और न ही इतने सारे मरीज़ों के लिए ज़रूरी सुविधाएँ। अस्पताल के कमरों का जायज़ा लेते हुए मुझे लगा कि इन मरीज़ों का इलाज करने से अच्छा, लोगों से जुड़ने का और क्या जरिया हो सकता है?"

बस फिर क्या था एसडीओ साहिबा ने उठाया स्ट्रेटेस्कोप और उसी दिन करीब 40 मरीज़ों का इलाज किया, उनकी परेशानियां सुनी, उनके लिए ज़रूरी दवाईयों का इंतज़ाम किया और जो कुछ भी वे अपने दायरे में कर सकती थीं, वो सब कुछ किया।

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यह सिलसिला आज भी जारी है। छुट्टी वाले दिन आकांक्षा इस इलाके की एसडीओ नहीं बल्कि यहाँ के दूरदराज़ के गाँवों में रह रहे आदिवासियों की डॉक्टर बन जाती हैं।

पर आप सोच रहे होंगे कि एक आईएइस अधिकारी आखिर मरीज़ों का इलाज कैसे कर सकती हैं?

दरअसल यह इसलिए संभव हो पाया क्यूंकि यूपीएससी की परीक्षा पास करने से पहले आकांक्षा एक डॉक्टर ही थीं।

बनारस की रहने वाली आकांक्षा भास्कर के माता-पिता दोनों ही डॉक्टर हैं। इसलिए शायद इस प्रोफेशन को चुनना उनके लिए स्वाभाविक ही था। उन्होंने कोलकाता के आरजी मेडिकल कॉलेज से MBBS की डिग्री हासिल की है और कुछ वक़्त तक एक डॉक्टर के रूप में काम भी किया है।

सरकारी डॉक्टर के तौर पर उनकी पहली पोस्टिंग एक गाँव में हुई थी, जहाँ के हालात देखकर ही उन्होंने प्रशासनिक सेवाओं में जाने का निर्णय लिया था।

"इन गाँवों की बहुत ही खस्ता हालत थी। लोगों में अपने अधिकारों को लेकर ना  के बराबर जागरूकता थी। एक डॉक्टर होने के नाते मैं उनका मर्ज़ तो ठीक कर सकती थी, पर उनके जीवनस्तर को बेहतर बनाने के लिए मुझे जिन अधिकारों की ज़रूरत थी, वो प्रशासन में रहकर ही मुझे मिल सकते थे," आकांक्षा ने बताया।

इसी सोच के साथ आकांक्षा ने डॉक्टरी के अपने बेहतरीन भविष्य को परे रखते हुए UPSC की तैयारियां शुरू कर दी और 24 साल की उम्र में उन्होंने अपने पहले ही अटेम्प्ट में इस परीक्षा में 76वां रैंक हासिल किया।

फिलहाल वे पुरुलिया जिले के रघुनाथपुर के सब डिविशनल ऑफिस की हेड हैं।

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गणतंत्र दिवस के अवसर पर

SDO होने के नाते आकांक्षा अक्सर गाँवों में हेल्थ चेकअप कैम्प्स आयोजित करवाती रहती हैं। इन कैम्प्स का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना भी होता है। गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक आहार लेने की हिदायतें दी जाती हैं। नयी माताओं को बच्चे के स्वास्थय के प्रति सजग होना सिखाया जाता है। इसके अलावा इन्हें एक स्वस्थ जीवन देने के लिए इन्हें मेडिकल किट भी मुहैया करवाई जाती है।

इन सभी कैम्प्स में आकांक्षा एक आईएएस अधिकारी के तौर पर इनकी देखरेख की ज़िम्मेदारी तो उठाती ही हैं, साथ ही एक डॉक्टर होने के नाते स्वयं मरीज़ों का इलाज भी करती हैं।

"बिमारियों का इलाज करना तो है ही, पर मेरा मकसद इन आदिवासियों के जीवनस्तर को बेहतर बनाना है, ताकि इन्हें कम से कम बीमारियां हो और इनके बच्चे जागरूकता की कमी के कारण न मारे जाए। बस मुझे इसी लक्ष्य की ओर बढ़ते जाना है," अपने अगले कैंप की और जाते-जाते आकांक्षा कहती हैं।

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मूल लेख साभार - सायंतनी नाथ 


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