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पिता दिव्यांग और मुश्किलें कईं पर नहीं मानी हार, बनीं गांव की पहली महिला सब-इंस्पेक्टर

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बाड़मेर जिले के गांव मंगले की बेरी की रहने वाली लक्ष्मी गढ़वीर उन लोगों के लिए मिसाल हैं, जो अभावों का रोना रोते रहते हैं। लक्ष्मी के पिता आँखों से देख नहीं सकते। दो भाई हैं, जो मेहनत मज़दूरी करते हैं। फ़ीस भरने को पैसे नहीं थे तो भाई ने एसएससी के बाद पढ़ाई छोड़ दी। लेकिन लक्ष्मी ने हालात से हार नहीं मानी। आज बाड़मेर की इस बेटी के कंधों पर दो स्टार सजे हैं, वह अपने गाँव की पहली महिला सब इंस्पेक्टर बन गईं हैं। पासिंग आउट परेड के बाद ‘लक्ष्मी थानेदार’ मां के पास आईं और अपनी टोपी उनके सिर पर रखकर उनका आशीर्वाद लिया। बेटी के कंधों पर सितारे सजे देख मां धापो देवी की आँखें भर आईं।

आज लक्ष्मी अपने गांव की ऊंची उड़ान का सपना देख रहीं लड़कियों के लिए एक मिसाल बन गई हैं। 

घर में रहकर पढ़ाई करने से लेकर पहली महिला सब इंस्पेक्टर बनने तक का सफर

लक्ष्मी ने द बेटर इंडिया को बताया, “घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। पिता रायचंद देख नहीं सकते थे। ऐसे में वह खुद से कोई काम नहीं कर पाते। दोनों बड़े भाइयों ने स्कूल छोड़ दिया, क्योंकि उनकी मेहनत मज़दूरी की वजह से ही घर चलता था। दूसरे, स्कूल में फ़ीस भरने के पैसे नहीं थे। इसके बावजूद उन्होंने मेरी पढ़ाई रोकने की बात कभी नहीं की। वे कहते कि मैं चाहे जितना पढ़ूं।” 

वह बताती हैं, “इसके बाद मेरा लक्ष्य पढ़ाई ही था। अच्छे मार्क्स भी आते थे। घर से स्कूल करीब साढ़े चार किलोमीटर दूर था। रोज़ इतनी दूरी तय कर स्कूल पहुंचते थे। लेकिन जब दसवीं के बाद आगे की पढ़ाई की बात उठी, तो नवोदय में वे सारी सीटें भर चुकी थीं, जो विषय मुझे चाहिए था। ऐसे में मैंने घर बैठकर प्राइवेट परीक्षा देने का फैसला किया और 12वीं पास की।” 

इसके बाद उनके एक पड़ोसी ने उनको कांस्टेबल की भर्ती निकलने के बारे में बताया। लक्ष्मी कहती हैं कि उन्होंने फॉर्म भर दिया और पहले ही प्रयास में, साल 2010 में कांस्टेबल का एग्ज़ाम निकाल लिया।

SI Laxmi Gadveer with her family during Passing out ceremony

कांस्टेबल की नौकरी के साथ की आगे की पढ़ाई 

लक्ष्मी ने बताया कि उन्होंने कांस्टेबल की नौकरी के साथ-साथ प्राइवेट पढ़ाई करना जारी रखा। इसी तरह, पहले बीए किया और फिर एमए की डिग्री हासिल की।

वह बताती हैं कि नौकरी में बिज़ी रहने की वजह से उन्होंने इसके आगे के बारे में नहीं सोचा था, लेकिन जब उपाधीक्षक यानी सब इंस्पेक्टर (एसआई) की भर्ती निकली तो कई साथ वालों ने कहा कि एक बार फॉर्म भरकर देखूं।

शादी और बेटे की ज़िम्मेदारी के बावजूद बनीं गाँव की पहली महिला सब इंस्पेक्टर

लक्ष्मी बताती हैं कि साल 2016 में जब एसआई के लिए भर्ती निकली, उस समय तक उनकी शादी हो चुकी थी और एक बेटा भी था। नौकरी के साथ बच्चे की ज़िम्मेदारी और उसपर पढ़ाई और कोचिंग, ये सब इतना आसान नहीं था। वह सात-सात घंटे कोचिंग करती थीं और पढ़ाई पर ध्यान देने की कोशिश कर रहीं थीं; लेकिन इसी बीच एक हादसे में बेटे का हाथ जल गया।

SI Laxmi with mother and her son

वह कहती हैं, “इससे मन बहुत दुखी हो गया। यह तो अच्छा हुआ कि भर्ती दो साल के लिए पोस्टपोन हो गई और तैयारी के लिए समय मिल गया।” 

अब उन्होंने छुट्टी लेकर पूरा ध्यान सेल्फ स्टडी पर लगाया। साल 2018 में परीक्षा हुई। लगातार भाग-दौड़ की वजह से फिज़िकल निकालने में भी उन्हें परेशानी नहीं हुई। आख़िर वह दिन भी आ गया, जब उन्हें उनकी मेहनत का नतीजा मिला और वह एसआई बन गईं। अब बस कॉनवोकेशन के बाद वह ज्वाइनिंग के लिए जोधपुर चली जाएंगीं। 

लक्ष्मी ने बताया कि उन्हें ट्रेनिंग के दौरान साइबर फ्रॉड और उससे निपटने के तरीक़ों के बारे में भी बहुत अच्छी तरह से सिखाया गया है। 

परिवार के हालात के चलते हमेशा नौकरी को दी प्राथमिकता 

लक्ष्मी कहती हैं कि बेशक उन्होंने बचपन में पुलिस अफ़सर बनने के बारे में नहीं सोचा था, लेकिन परिवार के हालात देखते हुए उनके लिए नौकरी करना हमेशा से सबसे ज़रूरी था। 

अब लक्ष्मी का एक सात साल का बेटा है। अपने बेटे की अच्छी परवरिश भी उनकी प्राथमिकताओं में शामिल है। 

उनका सभी को एक ही संदेश है कि राहों की बाधाओं से न घबराएं। अपने लक्ष्य पर नज़र रखकर मेहनत करते रहें; कामयाबी ज़रूर मिलेगी। 

लक्ष्मी के एसआई बनने पर राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया समेत कई बड़े नेताओं ने उन्हें बधाई दी। उनके लिए कई सम्मान समारोह आयोजित किए गए। मेघवाल समाज में ख़ास तौर पर लक्ष्मी के एसआई बनने पर उत्साह है, क्योंकि इस समाज की वह पहली बेटी हैं, जो थानेदार बनी हैं।  

प्रतियोगी परीक्षा निकालने के लिए सबसे ज़रुरी क्या है?

लक्ष्मी कहती हैं कि चाहे कोई भी कॉम्पिटिटिव एग्ज़ाम हो, सेल्फ स्टडी बहुत काम आती है। वह अपना उदाहरण देते हुए कहती हैं कि उन्होंने ज़्यादा से ज़्यादा सेल्फ स्टडी की। जीके पर पकड़ बहुत मज़बूत बनाई, जिसका उन्हें फ़ायदा मिला। उनकी भाग-दौड़ इतनी रहती थी कि फिज़िकल में तो उन्हें कभी कोई दिक्क़त नहीं आई।

बेटियों को लेकर बदल रही है सोच

लक्ष्मी कहती हैं कि गाँव में पहले लड़कियों को लेकर लोगों की सोच ऐसी नहीं थी कि उन्हें बहुत आगे जाने दें, लेकिन अब बेटियों को लेकर सोच बदली है। लोग अब उन्हें भी आगे आने का मौका दे रहे हैं। 

वह कहती हैं कि अगर गाँव की कुछ लड़कियां कुछ अच्छा करती हैं तो इसकी वजह से बाकी लड़कियों के लिए भी रास्ते खुल जाते हैं।

संपादन: भावना श्रीवास्तव

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