बचपन में अपनी सहेलियों के साथ स्टापू खेलते वक़्त अक्सर मैं पहाड़े दोहराया करती थी। इससे मेरा ध्यान बना रहता था और फिर खेल-खेल में मेरी पढ़ाई भी हो जाती थी। आज जब पलटकर उन दिनों को देखती हूँ तो लगता है कि इन सालों में कितना कुछ बदल गया है।
एक वक़्त था जब हमारे घर में सिर्फ एक टेलीफोन हुआ करता था और हम बहन भाई उसी के पास बैठकर अलग-अलग नंबर लगाया करते थे। सच में किसी अजूबे से कम नहीं था हमारे घर का वो टेलीफोन। आज की बात बिल्कुल अलग है, अब हर किसी के हाथ में स्मार्टफोन है और लगता है कि पूरी दुनिया पास में है।
खैर, परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है। जैसे-जैसे तकनीक बढ़ी, हमारे ज़िंदगी जीने के तरीके भी बदल गए। आने वाली पीढ़ी की दुनिया हमारे बचपन की दुनिया से बहुत अलग है। हमारे लिए कार्टून नेटवर्क पर दिखाए जाने वाले रोबोट्स सिर्फ एक कल्पना हुआ करते थे। आज के बच्चे इस कल्पना को हकीकत में बदल सकते हैं। वे खुद अपने रोबोट्स डिज़ाइन कर रहे हैं और उनके रोबोट्स सिर्फ खिलौने नहीं हैं, बल्कि आज की दुनिया का हिस्सा हैं।
कुछ दिन पहले, ख़बरें आईं थीं कि एक युवा ने ऐसा रोबोट बनाया है जो गटर आदि की साफ़-सफाई कर सकता है। कितना अच्छा है ना! क्योंकि अगर यह रोबोट काम कर सकता है तो हमारे किसी साथी को उस गंदगी में जाकर काम करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।
इसी तरह, पुणे के कुछ बच्चों की टीम ने ट्रैफिक कंट्रोलिंग रोबोट बनाया है। अगर आप ढूंढेंगे तो आपको ऐसी बहुत-सी कहानियां मिलेंगी, जहां बच्चे अपने आस-पास की परिस्थितियों को बेहतर बनाने के लिए काम कर रहे हैं। वे पहले समस्या को समझते हैं और फिर अपनी रचनात्मक और क्रियात्मक सोच से उसका समाधान ढूंढते रहते हैं।
जब भी बच्चे कुछ अलग सीखना चाहते हैं जैसे कि गेम डिजाइनिंग या फिर रोबोटिक्स, तो अक्सर उन्हें यह कहकर चुप करा दिया जाता हैं कि भविष्य में इसका कोई स्कोप नहीं है। पर मैं आपको बता दूँ कि लीक से हटकर जिन चीज़ों का कोई भविष्य नहीं दिखता, वही अक्सर भविष्य में हमारा आज निर्धारित कर रही होती हैं।
एक अच्छी बात यह है कि आज देश-दुनिया में ऐसे संसाधन और माध्यम मौजूद हैं, जो इन बच्चों की कल्पनाओं और सपनों को पंख दे रहे हैं। बहुत-सी प्रतियोगिताएं इन बच्चों को अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए वैश्विक मंच दे रहीं हैं।
रोबोटिक्स के लिए भी पूरे साल, नैशनल से लेकर इंटरनैशनल स्तर तक की प्रतियोगिताएं आयोजित होती हैं, जिनमें अलग-अलग उम्र और अलग-अलग कक्षाओं में पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं भाग ले सकते हैं। ऐसा ही एक कम्पटीशन है, FIRST Lego League (फर्स्ट लेगो लीग) चैंपियनशिप।
यह रोबोटिक्स के क्षेत्र में विश्व-स्तरीय प्रतियोगिता है जिसमें 9 साल से 14 साल की उम्र तक के बच्चे भाग ले सकते हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि लेगो तो बच्चे के खिलौने बनाने वाली कंपनी है तो इसका रोबोटिक्स से क्या काम और फर्स्ट का क्या मतलब है?
FIRST का मतलब ‘सबसे पहली प्रतियोगिता’ से नहीं है बल्कि यह एक अमेरिकी संगठन के नाम का शॉर्ट फॉर्म है- For Inspiration and Recognition of Science and Technology यानी कि विज्ञान और तकनीक में प्रेरणा और पहचान के लिए।
यह एक अंतरराष्ट्रीय युवा संगठन है, जो दुनिया भर के बच्चों के लिए विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में अलग-अलग प्रतियोगिताएं आयोजित करता है। इसकी शुरुआत, साल 1989 में की गई थी और इसका उद्देश्य बच्चों को इंजीनियरिंग और तकनीक के क्षेत्र में प्रेरित करना है, जिसके लिए उन्होंने दुनिया भर में अलग-अलग कम्पटीशन शुरू किए हैं।
फर्स्ट लेगो लीग चैंपियनशिप के लिए, इस संगठन ने लेगो कंपनी के साथ टाई-अप किया। लेगो कंपनी अपने ब्रांड नाम से बच्चे के लिए खिलौने बनाती है। साल 1932 में इस कंपनी ने अपना सफ़र लकड़ी के खिलौनों से शुरू किया था, लेकिन आज यह अलग-अलग तरह के टेक्निकल खिलौने बनाने तक पहुँच चुका है।
साल 1998 में इन दोनों कंपनियों ने साथ में मिलकर, ‘फर्स्ट लेगो लीग’ चैंपियनशिप शुरू की। अब सवाल यह है कि आखिर क्या है फर्स्ट लेगो लीग?
फर्स्ट लेगो लीग एक ऐसा प्रोग्राम है जो बच्चों और युवाओं को विज्ञान और तकनीक के बारे में ज्यादा से ज्यादा सीखने का मौका देता है और वह भी एक खेल के वातावरण में। मतलब खेल-खेल में बच्चों को पढ़ाना और सिखाना। इससे बच्चों के दिल से यह डर निकलता है कि विज्ञान मुश्किल है।
जो भी बच्चे इस प्रतियोगिता में भाग लेते हैं, उन बच्चों में टीम स्पिरिट आती है। साथ ही, ये बच्चे सीखते हैं कि कैसे वे मुश्किल से मुश्किल समस्या को अपनी रचनात्मक सोच से हल कर सकते हैं। आसान शब्दों में कहें तो बच्चों का कम उम्र से ही किसी भी समस्या को देखने का एक अलग नज़रिया विकसित होता है। इससे वे समस्या के समाधान के बारे में सोचते हैं न कि इस बारे में कि अब क्या होगा?
फर्स्ट लेगो लीग के अंतर्गत एक रोबोटिक्स टूर्नामेंट का आयोजन किया जाता है। हर साल इस प्रतियोगिता की थीम निर्धारित की जाती है लेकिन खासियत यह है कि थीम हमेशा ही किसी न किसी ऐसी समस्या के इर्द-गिर्द होती है, जो दुनिया के लोगों को प्रभावित कर रही है। जीव-जंतु, समुद्र, प्राकृतिक आपदा या फिर अंतरिक्ष- कुछ भी थीम तय की जा सकती है।
हर साल फर्स्ट लेगो लीग प्रतियोगिता की घोषणा के वक़्त ही अपनी थीम बता देता है और यह प्रक्रिया ऑनलाइन की जाती है। इसके साथ ही टूर्नामेंट की अन्य सभी ज़रूरी जानकारी और शेड्यूल भी जारी किए जाते हैं। यह प्रतियोगिता तीन चरणों में होती है- सबसे पहले रोबोट गेम, दूसरा इनोवेशन प्रोजेक्ट और आखिर में कोर वैल्यूज़।
9 साल की उम्र से 16 साल की उम्र तक के बच्चे इस प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। 2 से 10 बच्चों की टीम अपने 2 कोच/मेंटर्स के साथ प्रतियोगिता के लिए रजिस्टर कर सकती है। इस टीम को थीम के हिसाब से माइंडस्ट्रोम का इस्तेमाल करके एक रोबोट बनाना पड़ता है। फिर उन्हें थीम के इर्द-गिर्द एक प्रॉब्लम ढूंढकर उसके समाधान के लिए प्रोजेक्ट पर काम करना होता है और हर टीम इसे फर्स्ट लेगो लीग की कोर वैल्यूज़ को ध्यान में रखकर करती है। हर एक लेवल को पार करके अंत तक पहुँचने वाली टीम को फर्स्ट लेगो लीग की ग्रांट मिलती है।
फर्स्ट लेगो लीग के लिए रजिस्ट्रेशन अप्रैल के महीने में खुल जाते हैं और फिर अगस्त के महीने में फर्स्ट लेगो लीग की तरफ से चैलेंज की थीम और नियमों की घोषणा की जाती है। प्रतियोगिता में दिलचस्पी रखने वाले बच्चे या फिर उनके शिक्षक, एक टीम बनाकर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं।
हम आपको बता दें कि फर्स्ट लेगो लीग के हर देश में कुछ पार्टनर संगठन हैं जो कि रीजनल लेवल पर पहले यह प्रतियोगिता आयोजित कराते हैं। आप इन रीजनल पार्टनर्स की ऑफिशियल वेबसाइट से भी कम्पटीशन के लिए रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं।
रजिस्ट्रेशन करने के साथ ही आपको प्रतियोगिता के लिए ज़रूरी फील्ड सेट-अप किट/चैलेंज सेट खरीदना होता है। जिसमें रोबोट के लिए प्रैक्टिस फील्ड, लेगो ब्रिक्स का एक एक्सक्लूसिव सेट, ड्यूल लॉक फास्टनर्स और रॉल आउट फील्ड मैप होता है। इसके अलावा अगर आप पहली बार किसी रोबोटिक्स प्रतियोगिता में भाग ले रहे हैं तो आपको लेगो माइंडस्ट्रोम सेट भी लेना पड़ता है, जिससे आप अपना रोबोट तैयार करते हैं।
चैलेंज की घोषणा के बाद, हर एक टीम को 8 हफ्ते मिलते हैं टूर्नामेंट की तैयारी के लिए। इसके बाद, हर एक टीम को अपने रीजन के टूर्नामेंट्स में जाने का मौका मिलता है। सबसे पहले रीजनल टूर्नामेंट होते हैं, इसमें क्वालीफाई करने वाली सभी टीम को आगे सेमी-फाइनल राउंड के लिए जाने का मौका मिलता है।
इस राउंड के बाद तय किया जाता है कि कौन-कौन सी टीम फाइनल चैंपियनशिप के लिए अमेरिका जाएंगी। इसके अलावा, और भी बहुत से अलग-अलग इवेंट फर्स्ट लेगो लीग आयोजित करता रहता है और इन इवेंट्स में भी अच्छा प्रदर्शन करने वाली हर टीम को बुलाया जाता है।
जैसा कि हम जानते हैं कि टूर्नामेंट को अलग-अलग भागों में बांटा गया है। इसमें सबसे पहले रोबोट गेम होता है, जिसके लिए हर एक टीम लेगो माइंडस्ट्रोम तकनीक का इस्तेमाल कर रोबोट डिज़ाइन करती है। इस गेम में हर टीम को मिशन पूरा करने के लिए ढाई-ढाई मिनट के एक या फिर दो राउंड मिलते हैं। इसके बाद जूरी के सदस्य, टीम के सभी बच्चों से उनके रोबोट की डिज़ाइन, तकनीक, मिशन को हल करने की स्ट्रैटेजी आदि पर सवाल-जवाब करते हैं।
इसके बाद, रिसर्च प्रोजेक्ट राउंड में, बच्चों को थीम से संबंधित किसी असल ज़िंदगी की समस्या को ढूंढ़कर उसका हल निकालना होता है। उस समस्या के हल के लिए वे पहले से ही मौजूद किसी इनोवेशन को और बेहतर कर सकते हैं या फिर अपना कुछ इनोवेशन कर सकते हैं। उनके इस हल का उनके आस-पास के और ज़रूरतमंद लोगों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ना चाहिए। कम्पटीशन के दिन सभी टीम को अपना यह समाधान किसी मॉडल, पोस्टर, प्रोटोटाइप या फिर किसी भी कला के माध्यम से जूरी पैनल के सामने प्रस्तुत करना होता है।
अंत में आता है कोर वैल्यूज़ राउंड- आखिर क्या हैं ये कोर वैल्यूज़? दरअसल, इस प्रतियोगिता का उद्देश्य सिर्फ यह देखना नहीं है कि किस टीम ने क्या (रोबोट, प्रोजेक्ट) बनाया है बल्कि उन्होंने अपना रोबोट और प्रोजेक्ट कैसे बनाया है- यह भी बहुत मायने रखता है। उनका उद्देश्य है कि कम्पटीशन में भाग लेने वाले बच्चे इस पूरे टूर्नामेंट के दौरान यह समझें कि जीतने से ज्यादा ज़रूरी है खेल की भावना। मायने यह रखता है कि इस प्रतियोगिता में उनका व्यक्तित्व चाहे निजी तौर पर हो या फिर समूह में, कैसे विकसित हुआ है।
फर्स्ट लेगो लीग की कोर वैल्यूज़ है- नयी स्किल और आइडिया तलाशना, इनोवेशन, इम्पैक्ट (कैसे आपका प्रोजेक्ट एक अच्छा बदलाव ला सकता है), टीम के साथ मिलकर काम करना और हर एक पल को पूरे दिल से जीना।
हर एक राउंड के लिए सभी टीम को निश्चित समय मिलता है और इतने ही समय में उन्हें अपना प्रदर्शन करना होता है। अंत में, सभी टीम को प्रदर्शन के हिसाब से सम्मानित किया जाता है और सारे विजेता टीम को आगे के टूर्नामेंट्स में भाग लेने का मौका मिलता है।
हालांकि, इस प्रतियोगिता के लिए रजिस्टर करने और चैलेंज सेट आदि खरीदने की फीस काफी है। एक टीम को सिर्फ रजिस्ट्रेशन के लिए लगभग 18 हज़ार रुपये फीस जमा करनी पड़ती है और इसके अलावा किट भी काफी महंगी आती है। टूर्नामेंट के लिए दूसरे शहर या फिर दूसरे देश में आने-जाने का खर्च भी टीम को खुद ही उठाना पड़ता है।
अक्सर बड़े और नामी स्कूलों से बच्चे इस प्रतियोगिता में पहुँच पाते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आम घरों से आने वाले बच्चों के लिए यहाँ कोई स्कोप नहीं है। आज बहुत से सामाजिक और सीएसआर संगठनों की फंडिंग के चलते बहुत से गरीब तबकों से आने वाले बच्चों को न सिर्फ रोबोटिक्स सीखने का मौका मिल रहा है बल्कि वे इस प्रतियोगिता तक पहुँच भी रहे हैं।
इसका सबसे अच्छा उदहारण है महाराष्ट्र के अकोला में स्थित मनुताई स्कूल की लड़कियों की टीम- मनुताई किट्स एंजिल्स। बहुत ही कम आमदनी में अपना घर चलाने वाले किसान परिवारों से आने वाली इन 10 लड़कियों ने फर्स्ट लेगो लीग के इंडिया-वेस्ट नैशनल कम्पटीशन को जीतकर, फर्स्ट वर्ल्ड चैंपियनशिप में अपनी जगह बना ली है।
मनुताई किट्स एंजिल्स टीम ने, साल 2019- 20 के लिए फर्स्ट लेगो लीग की थीम ‘सिटी शेपर चैलेंज’ के लिए अपना रोबोट और प्रोजेक्ट तैयार किया है। उन्हें इंडिया वेस्ट नैशनल कम्पटीशन में चैंपियंस अवॉर्ड, टीम वर्क अवॉर्ड और बेस्ट मेंटर अवॉर्ड मिला है।
अब ये लड़कियां पूरे जोर-शोर से अमेरिका में होने वाली चैंपियनशिप की तैयारी में जुटी हैं। बेशक, भारत की इन बेटियों ने न सिर्फ अपने परिवारों का बल्कि पूरे देश का नाम रौशन किया है। विडंबना यह है कि अभी तक यह निश्चित नहीं है कि ये बच्चियां अमेरिका तक जा पाएंगी या नहीं।
इन लड़कियों की पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहाँ पर क्लिक करें!
क्योंकि इनके पास अमेरिका जाकर कम्पटीशन में भाग लेने के लिए कोई फंडिंग नहीं है। इस पूरी ट्रिप के लिए उन्हें 17, 50, 000 रुपयों की ज़रूरत है और इसलिए द बेटर इंडिया यह क्राउड-फंडिंग कैंपेन चला रहा है। यदि आप में से कोई भी इन लड़कियों की किसी भी तरह मदद कर सकता है तो आगे आएं।
भारत का पूरी दुनिया में नाम रौशन करने वाली इन बेटियों को आज हम सबके साथ की ज़रूरत है। इनकी हिम्मत बने क्योंकि अगर आज हमने इन्हें अमेरिका पहुंचा दिया तो देश की और बेटियों को भी इस तरह के सपने देखने की प्रेरणा मिलेगी!
संपादन – अर्चना गुप्ता