पढ़ें, आज़ाद भारत की पहली महिला पायलट ने बंटवारे के दौरान भारतीयों को कैसे बचाया?

First Indian Woman Pilot of Independent India Usha Sudaram, V Sudaram & Sardar Patel

उषा सुंदरम ने देश के आजाद होने के बाद, भारतीय आसमान में उड़ान भरने वाली पहली महिला होने का खिताब अपने नाम किया। आज देश के विमानन उद्योग में, भारतीय महिला पायलटों की संख्या 15 प्रतिशत है, जबकि वैश्विक औसत केवल 5 प्रतिशत ही है। लेकिन उस समय, कॉकपिट में एक महिला का होना एक असाधारण बात थी।

कम दूरी की उड़ान भरने वाली ब्रिटिश हवाई-कंपनी, डी हैविलैंड डव को ब्रिटेन के सबसे सफल पोस्ट वॉर सिविल डिजाइनों में से एक माना जाता है। सन् 1946 के आसपास, यह अपनी आधुनिकता, भार वहन क्षमता, सेफ इंजन फेल्यर परफॉर्मेंस और आसानी से इंटरचेंज और रीमूव होने वाले पार्ट्स के लिए जाना जाता था। उस समय यह किसी चमत्कार से कम नहीं था। साल 1950 में, मद्रास सरकार ने राज्य के लिए इसका एक मॉडल खरीदने के लिए उषा सुंदरम (First Indian Woman Pilot) और वी सुंदरम नाम के कपल से संपर्क किया।

उस कपल ने भी सरकार के इस अप्रोच को स्वीकार किया और एक शिप से इंग्लैंड गए और वहां से एक नया डी हैविलैंड डव खरीदा। अगले वर्ष, वे विमान के को-पाइलट बनकर पेरिस, कराची और बगदाद के रास्ते लंदन से बॉम्बे पहुंचे। यह यात्रा 27 घंटे के भीतर पूरी हुई और यह पिस्टन-इंजन डव पर इंग्लैंड से भारत की उड़ान के लिए विश्व रिकॉर्ड भी बना, जो आज तक कायम है।

उषा सुंदरम् और उनके पति वी सुंदरम्, कई भारतीय गणमान्य लोगों (Indian dignitaries) के विश्वसनीय सह-पायलट रहे। वी सुंदरम 19 साल की उम्र से पायलट थे, जबाकि उनकी पत्नी, उषा ने शादी के तुरंत बाद उड़ान भरने की इच्छा ज़ाहिर की थी। जब दोनों ने विश्व रिकॉर्ड बनाया, तब वह केवल 22 वर्ष की थीं।

काफी कम उम्र में उड़ान भर उषा बनीं First Indian Woman Pilot

उषा के बड़े बेटे, सुरेश सुंदरम ने एक इंटरव्यू में बताया, “जुलाई 1941 में मेरे पिता से शादी करने के तुरंत बाद ही काफी छोटी उम्र में मेरी मां ने आसमान छू लिया था। मेरे पिता एक कुशल पायलट थे, जो मद्रास फ्लाइंग क्लब में ट्रेनर थे। उन दिनों, को-पायलट लाइसेंस मिलना बहुत मुश्किल काम नहीं था। इसलिए मेरे पिता अक्सर जब पूरे भारत या फिर मद्रास से सीलोन के लिए उड़ान भरते थे, तो मेरी माँ, उनके साथ को-पायलट की सीट पर रहती थीं।”

इस तरह उषा ने देश के आजाद होने के बाद, भारतीय आसमान में उड़ान भरने वाली पहली महिला (First Indian Woman Pilot) होने का खिताब अपने नाम किया। आज देश के विमानन उद्योग में, भारतीय महिला पायलटों की संख्या 15 प्रतिशत है, जबकि वैश्विक औसत केवल 5 प्रतिशत ही है। लेकिन उस समय, कॉकपिट में एक महिला का होना एक असाधारण बात थी। 

अनजान राहें

1946 में, उषा और वी सुंदरम बैंगलोर आ गए और कुछ समय बाद, वी सुंदरम को मैसूर राज्य का नागरिक उड्डयन डायरेक्टर (Director of Civil Aviation) बना दिया गया। फिर 1948 में जक्कुर में गवर्नमेंट फ्लाइंग ट्रेनिंग स्कूल (GFTS) की स्थापना हुई और वी सुंदरम को वहां का प्रिंसिपल नियुक्त किया गया। 1949 में उषा उस अकादमी से पास आउट होने वाली पहली छात्रा थीं और फिर भारत की पहली महिला पायलट (First Indian Woman Pilot) बनीं।

दोनों को मैसूर के महाराजा के विमान डकोटा डीसी-3 के निजी पायलट के रूप में चुना गया था। उषा और सुंदरम कई प्रतिष्ठित लोगों के पायलट रहे, जिसमें पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल का नाम भी शामिल है।

विशेष रूप से, सुंदरम भारत की रियासतों के एकीकरण के पटेल के ऐतिहासिक मिशन का एक अभिन्न अंग रहे। भारत और पाकिस्तान के बीच जब राज्यों को लेकर बातचीत चल रही थी, तो उषा और सुंरदम उप प्रधानमंत्री की उड़ानों के पायलट और को-पायलट थे। काफी कम उम्र में ही उषा, राजनेताओं की करीबी दोस्त बन गई थीं।

उषा के सबसे छोटे बेटे चिन्नी कृष्णा बताते हैं, “नेहरू और पटेल जैसे स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने वाले नेता, मेरे माता-पिता के साथ मैसूर महाराजा के निजी जेट पर उड़ान भरना पसंद करते थे, क्योंकि इस विमान की पूरी क्रू भारतीय थी। उस समय अन्य विमानों में मुख्य रूप से अमेरिकी और ब्रिटिश सदस्य हुआ करते थे।” इसके अलावा ये दोनों, राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद और शिक्षा मंत्री अबुल कलाम आज़ाद के भी पायलट रहे।

पाकिस्तान में फंसे लोगों के लिए चलाया बचाव मिशन

उस समय उपमहाद्वीप में तनावपूर्ण माहौल के बावजूद, उषा ने विभाजन के बाद पाकिस्तान में फंसे लोगों को निकालने की अद्भुत उपलब्धि हासिल की। उन्होंने कई मौकों पर ये यात्राएं कीं और भारतीय नागरिकों को सुरक्षित रूप से घर वापस लेकर आईं।

Usha Sundaram & V Sundaram
Usha Sundaram & V Sundaram

उषा (First Indian Woman Pilot) ने खराब मौसम में भी कुशलता से उड़ानों की कमान संभाली और बचाव मिशन का नेतृत्व किया, जिसमें कम ऊंचाई पर यात्रा की आवश्यकता थी, क्योंकि उस समय केबिन दबाव अविश्वसनीय था। यहां तक ​​कि जब उषा के पति ने एयरलाइन व्यवसाय पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कुछ समय के लिए विमान चलाने से दूरी बनाई, तो उन्होंने अकेले नेहरू और अन्य गणमान्य व्यक्तियों के प्लेन की भी कमान संभाली। उनकी इस कुशलता से देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद काफी प्रभावित हुए।

1952 में, उषा ने अपने तीन बच्चों की देखभाल के लिए पेशेवर उड़ानों से रिटायरमेंट ले ली। वह और उनके पति जीवन के अंत तक शौकिया रूप से उड़ान भरते रहे। अपने जीवनकाल में, उन्होंने 1959 में ब्लू क्रॉस इंडिया की स्थापना की, जो एक पशु कल्याण संगठन है, जिसका मुख्यालय चेन्नई में है। यह भारत में इस तरह का सबसे बड़ा संगठन है। 

2001 में, बेंगलुरु में मीडिया के साथ बातचीत करते हुए, उषा ने अपने उड़ान के दिनों को याद किया और कहा, “उड़ान के क्षेत्र में कोई लिंग पूर्वाग्रह नहीं होना चाहिए। विमान के साथ एक महिला की क्षमता एक पुरुष के बराबर होती है।”

मूल लेखः दिव्या सेतू

संपादनः अर्चना दुबे

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